उत्तर प्रदेश: ललितपुर की ग्रेनाइट खनन कंपनी ने 70 से अधिक कर्मचारियों को निकाला

उत्तर प्रदेश के ललितपुर ज़िले का मामला. ज़िले के कालापहाड़ और मडवारी गांव में ग्रेनाइट खनन का काम करने वाली माउंट विक्टोरिया कंपनी से निकाले जाने के बाद कर्मचारी पिछले एक महीने से हड़ताल पर बैठे हैं.

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(फोटो: द वायर)

उत्तर प्रदेश के ललितपुर ज़िले का मामला. ज़िले के कालापहाड़ और मडवारी गांव में ग्रेनाइट खनन का काम करने वाली माउंट विक्टोरिया कंपनी से निकाले जाने के बाद कर्मचारी पिछले एक महीने से हड़ताल पर बैठे हैं.

(फोटो: द वायर)
(फोटो: द वायर)

नई दिल्ली: उत्तर प्रदेश के ललितपुर जिले में स्थित एक ग्रेनाइट कंपनी ने अपने 70 से अधिक कर्मचारियों को नौकरी से निकाल दिया है. कंपनी से हटाए जाने के बाद ये सभी कर्मचारी पिछले एक महीने से हड़ताल पर बैठे हैं.

यह मामला माउंट विक्टोरिया ग्रेनाइट लिमिटेड कंपनी का है, जो कि ललितपुर जिले के कालापहाड़ और मडवारी गांव में ग्रेनाइट खनन का काम करती है.

कर्मचारियों का आरोप है कि कंपनी ने साल 2018 से कर्मचारियों के पीएफ का पैसा जमा नहीं किया था, हालांकि पीएफ कमिश्नर कानपुर से शिकायत के बाद कंपनी ने पीएफ का पैसा जमा करा दिया.

इसके बाद कंपनी ने सभी कर्मचारियों के तीन महीने (जुलाई, अगस्त, सितंबर) का वेतन रोक दिया. कर्मचारियों ने जब इसकी शिकायत जिलाधिकारी से की तब कंपनी ने कर्मचारियों का दो महीने का वेतन जारी किया.

हालांकि, इसके बाद कंपनी ने 11 सितंबर 2019 को एक नोटिस जारी करते हुए 72 कर्मचारियों को दो समूहों में बांटकर 15-15 दिन काम पर आने और उन्हें उसी का वेतन देने की घोषणा कर दी. इसके लिए कंपनी ने तर्क दिया कि वह गंभीर वित्तीय संकट का सामना कर रही है, इसलिए वह अपने कुछ परिचालनों को बंद कर रही है.

नोटिस मिलने के बाद कंपनी के फैसले से प्रभावित होने वाले सभी 72 कर्मचारी हड़ताल पर बैठ गए और विरोध में काम पर न जाने का ऐलान कर दिया.

इस दौरान बीते चार अक्टूबर को कर्मचारियों ने कंपनी के निदेशक को एक पत्र लिखा. इस पत्र में उन्होंने कंपनी के स्थानीय प्रबंधन द्वारा कर्मचारियों के भारी मानसिक और आर्थिक शोषण किए जाने का आरोप लगाते हुए कहा कि न तो उन्हें समय से वेतन दिया जाता है, न ही कभी स्वास्थ्य परीक्षण किया जाता है, न तो आकस्मिक दुर्घटना के संबंध में कोई इंतजाम है.

पत्र में उन्होंने लिखा कि समय से भुगतान न होने के कारण वे भुखमरी के कगार आ गए हैं. उन्होंने कहा कि प्रबंधन कंपनी के घाटे में चलने की बात कहकर उन्हें गुमराह कर रही है और उनके वेतन में कटौती करने या उन्हें निकालने की तैयारी कर रही है.

इसके बाद कर्मचारियों की हड़ताल को देखते हुए कंपनी ने सभी कर्मचारियों को 14 अक्टूबर से ही कंपनी से निकालने का आदेश दे दिया.

कंपनी से निकाले गए कर्मचारियों में शामिल गंगाराम प्रजापति का कहना है कि पीएफ, वेतन और दिवाली का बोनस न मिलने की शिकायत करने के बाद कंपनी ने उन लोगों को बाहर निकालने का फैसला किया है. मूल वेतन अधिक होने के बावजूद कंपनी कम वेतन देती है और महंगाई भत्ता भी नहीं दिया जाता है.

कर्मचारियों के अनुसार, कंपनी में करीब 90 कर्मचारी हैं, जिसमें से 72 कर्मचारियों को निकाला जा रहा है. इसमें 26 कर्मचारी स्थायी हैं, 26 मस्टर रोल पर और 26 दिहाड़ी मजदूर हैं. इनमें चौकीदार, गेटमैन, मेंटेनेंस विभाग, कम्प्रेसर आदि चलाने वाले शामिल हैं.

अपने बारे में बताते हुए गंगाराम कहते हैं कि वे साल 2000 से कंपनी के साथ काम कर रहे हैं लेकिन मस्टर रोल के तहत उन्हें जुलाई 2007 में लिया गया. वे मशीन चलाने का काम करते थे. इस समय उन्हें 15,360 रुपये वेतन मिलता है और उनकी मांग थी कि उसे बढ़ाकर 19 हजार रुपये किया जाए.

(फोटो: द वायर)
(फोटो: द वायर)

गंगाराम कहते हैं कि इससे पहले भी एक महीने का वेतन दूसरे महीने के आखिर में दिया जाता था. लेकिन हम लोग कहीं बाहर न जाना पड़े इस डर के कारण काम चलाते थे.

हालांकि वे कहते हैं, ‘हमें निकालने के बदले मुआवजे के रूप में कंपनी ग्रेच्यूटी और छह महीने का अतिरिक्त वेतन देने की बात कर रही है, लेकिन 15-20 सालों से यहां काम करते आ रहे हम कर्मचारियों की उम्र अब 40-50 के बीच हो गई है. यहां से निकाले जाने के बाद इस उम्र में हम कहां काम करने जाएंगे.’

कंपनी से निकाले गए कर्मचारियों में दिहाड़ी मजदूरी करने वाले रामपाल राजपूत मरवाड़ी भी शामिल हैं. उनका है कि उन्हें कंपनी में काम करते हुए 15-20 साल हो गए हैं लेकिन आज तक हमारा पीएफ नहीं कटा है लेकिन जब उन लोगों ने पीएफ सहित अपनी कुछ जायज मांगों को लेकर शिकायत की तब उन्हें निकाल दिया गया. उन्हें करीब 9000 रुपये मासिक मिलते हैं.

वे कहते हैं, ‘वे रोजाना कंपनी में काम करने के लिए जाते हैं लेकिन कंपनी उनसे काम नहीं करवा रही है. कंपनी कह रही है कि अब तुमको काम नहीं मिलेगा, कहीं भी जा सकते हो. जो भी तुम्हारा पैसा है वो नवंबर तक मिल जाएगा. काम तो चालू करना है लेकिन तुम लोगों को हटाना है. तुम लोग नेतागिरी करते हो और यहां-वहां शिकायत करते हो. हम लोग तो चाहते हैं कि काम चालू हो जाए और जैसे इतने सालों से करते आ रहे हैं वैसे करते रहेंगे.’

कंपनी से निकाले गए बद्री प्रसाद कहते हैं कि वह कंपनी में पिछले 20-22 साल से काम कर रहे हैं. जब हमने अपने हक में आवाज उठाई तब कंपनी ने हमें निकाल दिया. हम सभी लोग काम करना चाहते हैं. पहले वाले प्रबंध निदेशक के रिटायर होने के बाद नए माइनिंग एजेंट ने हम लोगों को हटा दिया है.

उन्होंने कहा, ‘हमें पेंशन, मेडिकल और अन्य सुविधा मिलनी चाहिए लेकिन कोई सुविधा नहीं मिल रही है. निकाले जाने के बाद हमने न्याय की मांग को लेकर शिकायत भी की. हम गरीब और मजदूर आदमी हैं. हमें करीब 18 हजार वेतन मिलना चाहिए लेकिन अभी 12 हजार से भी कम मिलता है.’

वे कहते हैं, ‘दो साल पहले हमारी शिकायत पर सहायक श्रमायुक्त ने कंपनी के अधिकारियों को झांसी बुलाकर कहा था कि किसी आदमी का वेतन 18 हजार से कम नहीं होना चाहिए और वेतन बढ़ाने के लिए एक हफ्ते का समय दिया था लेकिन कंपनी ने वेतन नहीं बढ़ाया. हमारे पास उनके दस्तावेज भी हैं.’

कंपनी से निकाले गए 57 वर्षीय बाबू लाल ड्राइवर का काम करते हैं. वह कहते हैं कि वे 1996 से काम कर रहे हैं. अब अचानक निकाल दिए जाने के बाद कुछ समझ नहीं आ रहा है. अगर हमें निकाला जा रहा है. वैसे तो हम चाहते नहीं कि नौकरी से निकाला जाए लेकिन अगर निकाला जा रहा है तो कम से कम पैसा सही मिले. हमारे पास थोड़ी-बहुत खेती तो है लेकिन अधिक बारिश होने के कारण फसल भी बर्बाद हो गई है.

कंपनी से निकाले गए 28 वर्षीय प्रमोद कुमार पत्थर काटने का काम करते हैं और दिहाड़ी मजदूर हैं. वे कहते हैं, ‘मैं 2008 से काम कर रहा हूं और उन्होंने आज तक हमारा पीएफ भी नहीं काटा और अब हमें नौकरी से निकाल रहे हैं. वे कह रहे हैं कि जो आपका बकाया है वही मिलेगा और कुछ नहीं मिलेगा.’

वे कहते हैं, ‘घर की परिस्थितियों के कारण बहुत ही कम उम्र में काम शुरू कर दिया था और किसी तरह हाईस्कूल तक पढ़ाई पूरी की. पिताजी कुम्हार थे लेकिन अब उम्र होने के कारण काम नहीं कर पाते. मेरे बड़े भाई राजेश कुमार कंपनी के स्थायी कर्मचारी हैं, उन्हें भी निकाल दिया गया.’

उन्होंने कहा, ‘ये लोग सभी के साथ फर्जीवाड़ा कर रहे हैं. तीन-चार साल पहले ये लोग 150 रुपये प्रतिदिन के हिसाब से देते थे. लेकिन अधिकारियों को दिखाने के लिए दूसरा रजिस्टर रखते थे जिसमें हमें 15 दिन उपस्थित, 15 दिन अनुपस्थित और एक दिन का वेतन 300 रुपये दिखाते थे. उनका दूसरा रजिस्टर एक दिन अचानक मैंने देख लिया था. जब मैंने पूछा तो उन्होंने कहा कि तुम्हें इससे कहा.’

कंपनी के माइनिंग एजेंट उमाशंकर सिंह और प्रोडक्शन मैनेजर के. गुनाशेकरन से द वायर द्वारा संपर्क किए जाने पर दोनों ने इस मामले पर कोई भी टिप्पणी करने से इनकार कर दिया.

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