पराली: सुप्रीम कोर्ट ने कहा, किसानों को सज़ा देना समाधान नहीं, उन्हें मूलभूत सुविधाएं दें

जस्टिस अरुण मिश्रा और जस्टिस दीपक गुप्ता की विशेष पीठ ने सुनवाई के बाद दिल्ली-एनसीआर में प्रदूषण की समस्या के समाधान के लिए अंतरिम आदेश पारित किया है.

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Amritsar: Smoke rises as a farmer burns paddy stubbles at a village on the outskirts of Amritsar, Friday, Oct 12, 2018. Farmers are burning paddy stubble despite a ban, before growing the next crop. (PTI Photo) (PTI10_12_2018_1000108B)
(प्रतीकात्मक फाइल फोटो: पीटीआई)

जस्टिस अरुण मिश्रा और जस्टिस दीपक गुप्ता की विशेष पीठ ने सुनवाई के बाद दिल्ली-एनसीआर में प्रदूषण की समस्या के समाधान के लिए अंतरिम आदेश पारित किया है.

Amritsar: Smoke rises as a farmer burns paddy stubbles at a village on the outskirts of Amritsar, Friday, Oct 12, 2018. Farmers are burning paddy stubble despite a ban, before growing the next crop. (PTI Photo) (PTI10_12_2018_1000108B)
(प्रतीकात्मक तस्वीर: पीटीआई)

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने बीते गुरुवार को उत्तर प्रदेश, हरियाणा और पंजाब की सरकार को निर्देश दिया कि पराली के समाधान के लिए छोटे एवं मध्यम किसानों को सात दिन के भीतर प्रति कुंतल पर 100 रुपये की सहायता दी जाए, ताकि वे पराली न जलाएं.

जस्टिस अरुण मिश्रा और जस्टिस दीपक गुप्ता की विशेष पीठ ने दो घंटे लंबी सुनवाई के बाद दिल्ली-एनसीआर में प्रदूषण की समस्या के समाधान के लिए अंतरिम आदेश पारित किया है.

कोर्ट ने कहा है कि राज्यों द्वारा किसानों को भाड़े पर मशीन मुहैया कराया जाए और राज्यों को ये निर्देश भी दिया कि इसके लिए जो भी राशि आएगा, उसका वहन राज्य सरकारें करें.

लाइव लॉ के मुताबिक कोर्ट ने कहा, ‘किसानों को सजा देना कोई समाधान नहीं है. उन्हें मूलभूत सुविधाएं दी जाए. किसानों को मशीनें दी जानी चाहिए, न कि सजा.’

केंद्र सरकार को तीन महीने के भीतर छोटे और सीमांत किसानों के हितों की रक्षा के लिए एक योजना तैयार करने का निर्देश दिया गया है. इसे पूरे देश में लागू किया जाएगा. इस बीच, राज्यों से कहा गया है कि वे अपने फंड से किसानों को प्रोत्साहन राशि दें ताकि किसान पराली न जलाएं.

कोर्ट ने कहा कि खतरनाक स्तर का वायु प्रदूषण दिल्ली-राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के करोड़ों लोगों के लिए जिंदगी-मौत का सवाल बन गया है. शीर्ष अदालत ने कहा कि वायु प्रदूषण पर अंकुश लगा पाने में विफल रहने के लिए प्राधिकारियों को ही जिम्मेदार ठहराना होगा.

पीठ ने सवाल किया, ‘क्या आप लोगों को प्रदूषण की वजह से इसी तरह मरने देंगे. क्या आप देश को सौ साल पीछे जाने दे सकते हैं?’

पीठ ने कहा, ‘हमें इसके लिए सरकार को जवाबदेह बनाना होगा.’ पीठ ने सवाल किया, ‘सरकारी मशीनरी पराली जलाए जाने को रोक क्यों नहीं सकती?’

न्यायाधीशों ने राज्य सरकारों को आड़े हाथ लेते हुए कहा कि यदि उन्हें लोगों की परवाह नहीं है तो उन्हें सत्ता में रहने का कोई अधिकार नहीं है.

पीठ ने कहा, ‘आप (राज्य) कल्याणकारी सरकार की अवधारणा भूल गए हैं. आप गरीब लोगों के बारे में चिंतित ही नहीं हैं. यह बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण है.’ शीर्ष अदालत ने यह भी सवाल किया कि क्या सरकार किसानों से पराली एकत्र करके उसे खरीद नहीं सकती?

दिल्ली और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में दम घोंटने वाले वायु प्रदूषण की गंभीर स्थिति पर चिंता व्यक्त करते हुए पीठ ने कहा, ‘हम पराली जलाने और प्रदूषण पर नियंत्रण के मामले में देश की लोकतांत्रिक सरकार से और अधिक अपेक्षा करते हैं. यह करोड़ों लोगों की जिंदगी और मौत से जुड़ा सवाल है. हमें इसके लिए सरकार को जवाबदेह बनाना होगा.’

दम घोंटने वाले वायु प्रदूषण में किसानों द्वारा पराली जलाये जाने के योगदान के मद्देनजर शीर्ष अदालत ने सोमवार को पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और दिल्ली के मुख्य सचिवों को छह नवंबर को न्यायालय में पेश होने का निर्देश दिया था.

कोर्ट ने इन तीनों राज्यों के मुख्य सचिवों को कड़ी फटकार लगाई. कोर्ट ने पाया कि पराली जलाने की समस्या के समाधान के लिए पहले से कोई योजना तैयार नहीं की गई थी.

दिल्ली और इससे लगे इलाकों में वायु प्रदूषण की गंभीर स्थिति को देखते हुए कोर्ट ने मंगलवार को इसका स्वत: संज्ञान लेते हुए अलग से खुद एक नया मामला दर्ज किया. इस मामले में अन्य मामले के साथ ही बुधवार को सुनवाई हुई.

इससे पहले, शीर्ष अदालत ने दिल्ली-एनसीआर में वायु प्रदूषण की गंभीर स्थिति को ‘भयावह’ करार दिया था. साथ ही, क्षेत्र में निर्माण एवं तोड़-फोड़ की सभी गतिविधियों तथा कूड़ा-करकट जलाये जाने पर प्रतिबंध लगा दिया था.

न्यायालय ने कहा था कि ‘आपात स्थिति से बदतर हालात’ में लोगों को मरने के लिए नहीं छोड़ा जा सकता. न्यायालय ने यह भी कहा कि उसके आदेश के बावजूद निर्माण कार्य एवं तोड़फोड़ की गतिविधियां करने वालों पर एक लाख रुपये का जुर्माना लगाया जाए.

पीठ ने कहा था कि इलाके में यदि कोई कूड़ा-करकट जलाते पाया गया तो उस पर 5,000 रुपये का जुर्माना लगाया जाए. न्यायालय ने यह भी कहा था कि इस आदेश का किसी तरह का उल्लंघन होने पर स्थानीय प्रशासन और क्षेत्र के अधिकारी जिम्मेदार ठहराये जाएंगे.

पीठ ने कहा था कि वैज्ञानिक आंकड़ों से यह पता चलता है कि क्षेत्र में रहने वालों की आयु इसके चलते घट गई है.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)

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