एनएच-74 घोटाला: उत्तराखंड सरकार सीबीआई जांच के पक्ष में, बचाव में उतरा केंद्र

मामले में उत्तराखंड के मुख्यमंत्री कई अधिकारियों को निलंबित कर चुके हैं, वहीं केंद्रीय राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी ने सीएम से फैसले पर पुनर्विचार करने को कहा है.

मामले में उत्तराखंड के मुख्यमंत्री कई अधिकारियों को निलंबित कर चुके हैं, वहीं केंद्रीय राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी ने सीएम से फैसले पर पुनर्विचार करने को कहा है.

Nitin Gadkari Trivendra Singh Rawat PTI
उत्तराखंड के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत और केंद्रीय सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी. (फोटो: पीटीआई)

देहरादून: उत्तराखंड के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के एनएच-74 भूमि अधिग्रहण मामले में कथित घोटाले की सीबीआई जांच के पक्ष में होने के बावजूद वह केंद्रीय सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी के बाद अब भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (एनएचएआई) द्वारा भी प्राथमिकी में दर्ज अपने अफसरों के नाम हटाए जाने को कहने के कारण केंद्र के दबाव में हैं.

प्राथमिकी में नामज़द एनएचएआई के अफसरों ने बुधवार को इस मामले में अपनी गिरफ्तारी से बचने को लेकर उत्तराखंड उच्च न्यायालय की भी शरण ली है.

उधमसिंह नगर जिला प्रशासन द्वारा दर्ज की गई प्राथमिकी में नामज़द अपने अधिकारियों के बचाव में आगे आते हुए एनएचएआई के अध्यक्ष वाईएस मलिक ने 26 मई को उत्तराखंड के मुख्य सचिव एस. रामास्वामी को एक पत्र लिखा है.

पत्र में मुख्य सचिव से इस तथ्य के आलोक में एनएचएआई अधिकारियों के दोष का पुनर्परीक्षण करने को कहा है कि उनका एनएच-74 के लिए अधिगृहीत की गई भूमि का उपयोग बदलने या मुआवज़ा राशि तय करने में कोई भूमिका नहीं थी.

हरीश रावत के नेतृत्व वाली पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार के कार्यकाल में उधमसिंह नगर ज़िले में एनएच-74 के चौड़ीकरण के लिए भूमि अधिग्रहण में बांटी गई मुआवज़ा राशि में 300 करोड़ रुपये का कथित घोटाला हुआ था. राष्ट्रीय राजमार्ग 74 उत्तर प्रदेश के बरेली शहर के पास स्थित नगीना से शुरू होकर उत्तराखंड के काशीपुर इलाके में ख़त्म होता है. इसकी कुल लंबाई 333 किलोमीटर है. 

इस साल मार्च में पद संभालने के तुरंत बाद मुख्यमंत्री रावत ने कुमांऊ कमिश्नर की जांच रिपोर्ट पर संज्ञान लेते हुए तीन उप-ज़िलाधिकारियों समेत कई अधिकारियों को निलंबित कर दिया था और मामले की जांच सीबीआई से कराने की घोषणा की थी.

भू-उपयोग बदलने और मुआवजा राशि के निर्धारण का कार्य पूरी तरह से राज्य सरकार के राजस्व अधिकारियों के अधिकार क्षेत्र में होने का हवाला देते हुए मलिक ने रामास्वामी से मामले में दर्ज एफआईआर से एनएचएआई अधिकारियों का नाम हटाने को कहा है.

एनएचएआई के अध्यक्ष ने इस मामले में राजमार्ग अधिकारियों की भूमिका के बारे में कानूनी राय लेने की सलाह देते हुए कहा है कि ऐसे मामलों में एनएचएआई अधिकारियों का नाम घसीटा जाना काउंटर प्रोडक्टिव हो सकता है.

इससे पहले, गडकरी ने भी मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत को पत्र लिखकर जांच पर पुनर्विचार करने को कहा था. अपने पत्र में गडकरी ने कहा था कि इससे अधिकारियों के मनोबल पर विपरीत असर पड़ता है और परियोजनाओं के निर्बाध संचालन में बाधा आती है.

हाल में अपने नई दिल्ली दौरे के दौरान मुख्यमंत्री रावत ने गडकरी से मुलाकात की थी और कहा था कि भ्रष्टाचार पर ज़ीरो टॉलरेंस की नीति बरक़रार है और भ्रष्टाचारी बच नहीं पाएंगे.

इससे पहले 30 मई को उधमसिंह नगर ज़िले में हुए इस कथित घोटाले की प्राथमिकी में नामज़द भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण के अधिकारियों ने उच्च न्यायालय में एक याचिका दायर कर अपनी गिरफ्तारी पर रोक लगाने की प्रार्थना की.

न्यायमूर्ति लोकपाल सिंह की एकलपीठ ने याचिका पर राष्ट्रीय राजमार्ग के निर्माण के लिए अधिगृहीत की गई ज़मीनों के मालिकों को नोटिस जारी किए.

याचिकाकर्ताओं की तरफ से अदालत में भारत के महान्यायवादी मुकुल रोहतगी प्रतिनिधित्व कर रहे हैं. हालांकि, रोहतगी के अदालत में उपस्थित न हो पाने के कारण मामले की सुनवाई की अगली तारीख 28 जुलाई तय की गई है.

कुमांऊ क्षेत्र के आयुक्त डी. सेंथिल पांडियन की जांच रिपोर्ट में ज़मीन अधिग्रहण के लिए बांटी गई मुआवज़ा राशि में करीब 300 करोड़ रुपये का कथित घोटाला सामने आया था.

पूर्ववर्ती हरीश रावत के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार के कार्यकाल के इस कथित घोटाले को उजागर करने वाली जांच रिपोर्ट पर मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने मार्च में पद संभालते ही संज्ञान लिया और कई उप-जिलाधिकारी स्तर के अधिकारियों को निलंबित कर दिया. साथ ही घोटाले की सीबीआई जांच की सिफ़ारिश कर दी.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)