अयोध्या पर सुप्रीम कोर्ट का फ़ैसला विचित्र तर्क पर आधारित है

यह सोचना मूर्खतापूर्ण है कि अयोध्या पर आया फ़ैसला सांप्रदायिक सद्भाव लाएगा. 1938 के म्यूनिख समझौते की तरह तुष्टीकरण सिर्फ आक्रांताओं की भूख को और बढ़ाने का काम करता है.

//
Ayodhya: FILE - In this Oct. 29, 1990, file photo, Indian security officer guards the Babri Mosque in Ayodhya, closing off the disputed site claimed by Muslims and Hindus. India’s top court is expected to pronounce its verdict on Saturday, Nov. 9, 2019, in the decades-old land title dispute between Muslims and Hindus over plans to build a Hindu temple on a site in northern India. In 1992, Hindu hard-liners demolished a 16th century mosque in Ayodhya, sparking deadly religious riots in which about 2,000 people, most of them Muslims, were killed across India. AP/PTI(AP11_9_2019_000012B)
(फोटो: एपी/पीटीआई)

यह सोचना मूर्खतापूर्ण है कि अयोध्या पर आया फ़ैसला सांप्रदायिक सद्भाव लाएगा. 1938 के म्यूनिख समझौते की तरह तुष्टीकरण सिर्फ आक्रांताओं की भूख को और बढ़ाने का काम करता है.

Ayodhya: FILE - In this Oct. 29, 1990, file photo, Indian security officer guards the Babri Mosque in Ayodhya, closing off the disputed site claimed by Muslims and Hindus. India’s top court is expected to pronounce its verdict on Saturday, Nov. 9, 2019, in the decades-old land title dispute between Muslims and Hindus over plans to build a Hindu temple on a site in northern India. In 1992, Hindu hard-liners demolished a 16th century mosque in Ayodhya, sparking deadly religious riots in which about 2,000 people, most of them Muslims, were killed across India. AP/PTI(AP11_9_2019_000012B)
(फोटो: एपी/पीटीआई)

अयोध्या विवाद पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला भारत के कानूनी इतिहास में उसी तरह से याद किया जाएगा, जिस तरह से 1975 के एडीएम जबलपुर बनाम शिवकांत शुक्ला मामले का फैसला याद किया जाता है- फर्क सिर्फ इतना है कि इसके उलट हालिया फैसले में एक भी साहस भरी असहमति नहीं है.

असल में कोर्ट ने ‘समरथ को नहीं दोष गुंसाईं’ पर मुहर लगाने का काम किया है और आक्रमण को उचित ठहराने की एक खतरनाक मिसाल कायम की है.

जैसा कि प्रतीक सिन्हा ने ट्विटर पर लिखा, यह कुछ ऐसा ही है कि कोई बदमाश लड़का स्कूल में किसी बच्चे की सैंडविच छीन ले और शिक्षक एक ‘संतुलित फैसला’ देते हुए बदमाश लड़के को वह सैंडविच रखने दे और बच्चे को ‘मुआवजे’ में एक सूखा ब्रेड दे दे.

हमें कोर्ट के इस कथन की सत्यता या असत्यता में जाने की जरूरत नहीं है कि बाबरी मस्जिद का निर्माण बाबर के एक सेनापति ने एक ऐसे स्थल पर किया था, जहां पहले एक गैर इस्लामिक ढांचा था और जिसे शायद नष्ट किया गया हो.

यह सच है कि हिंदू मंदिरों को मुस्लिम आक्रमणकारियों द्वारा नष्ट किया गया और उनकी जगह मस्जिदों का निर्माण कराया गया. कभी-कभी तो मंदिर की सामग्री का इस्तेमाल करते हुए.

मिसाल के लिए दिल्ली में कुतुब मीनार के पास कुव्वत उल इस्लाम मस्जिद के स्तंभ में हिंदू नक्काशियां हैं. या वाराणसी में ज्ञानवापी मस्जिद जिसकी पिछली दीवार में हिंदू नक्काशियां हैं. या जौनपुर का अटाला देवी मस्जिद.

लेकिन सवाल है कि भारत को आगे बढ़ना है या पीछे जाना है? बात अलग होती अगर आज किसी हिंदू मंदिर को गैरकानूनी ढंग से तोड़कर उसकी जगह पर मस्जिद बना दी जाए. लेकिन जब ऐसा कोई काम कथित तौर पर 500 साल पहले किया गया हो, तो उस ढांचे को फिर से हिंदू ढांचे में बदलने की कवायद का क्या अर्थ निकलता है?

इस तरह की बदले की कार्रवाई, जिसकी मांग विश्व हिंदू परिषद करता है, मूर्खताभरी होगी और इससे सिर्फ समाज का ध्रुवीकरण होगा और यह बस उन लोगों के राजनीतिक एजेंडे को ही पूरा करेगा, जो वोट पाने के लिए सांप्रदायिक आग को जलाए रखना चाहते हैं.

अपने फैसले के पैराग्राफ 786 और 798 में कोर्ट ने कहा है कि मुस्लिम पक्ष यह दिखाने के लिए कोई सबूत पेश नहीं कर पाया कि 1528 में मस्जिद के निर्माण से लेकर 1857 तक इस पर मुस्लिमों का कब्जा था और वे यहां नमाज पढ़ते थे. लेकिन इस बारे में संभवतः कैसा सबूत पेश किया जा सकता था?

उस समय का कोई चश्मदीद गवाह अभी तक जिंदा नहीं हो सकता है और यह भली भांति पता है कि 1857 के स्वतंत्रता संघर्ष में अवध के लगभग सारे रिकॉर्ड नष्ट कर दिए गए थे.

कुछ भी हो, सामान्य समझ यह कहती है कि जब किसी प्रार्थना स्थल का निर्माण किया जाता है, चाहे वह मंदिर हो, मस्जिद हो, चर्च या गुरुद्वारा हो, तो यह निर्माण उपयोग के लिए होता है न कि सिर्फ सजावट के लिए.

फैसले के पैराग्राफ 798 में कहा गया है, ‘मुस्लिमों को इबादत से रोकने और उनके कब्जे को हटाने का काम 22/23 दिसंबर,1949 की रात को किया गया, जब हिंदू मूर्तियों की स्थापना के द्वारा मस्जिद को अपवित्र किया गया. मुस्लिमों को कानूनी प्राधिकार के तहत बाहर नहीं किया गया और मुस्लिमों से गलत तरीके से एक मस्जिद छीन ली गई, जिसका निर्माण 450 साल से भी पहले हुआ था.’

इस स्पष्ट निष्कर्ष के बावजूद कोर्ट ने एक अजीबोगरीब तर्क के द्वारा यह स्थल हिंदुओं को दे दिया है.

इस तरह से यह सोचना मूर्खतापूर्ण होगा कि अयोध्या पर आया फैसला सांप्रदायिक शांति कायम करेगा. 1938 के म्यूनिख समझौते  जैसा तुष्टीकरण सिर्फ आक्रांताओं की भूख को और बढ़ाने का काम करता है.

6 दिसंबर, 1992 को बाबरी मस्जिद विध्वंस के ठीक बाद वाराणसी और मथुरा के मुस्लिम स्थलों को अगला निशाना बनाने की धमकी देनेवाला ‘अभी तो ये झांकी है, काशी मथुरा बाकी है’ का नारा सुना गया था. इनका फिर से दोहराया जाना तय है.

भाजपा सांसद साक्षी महाराज ने कहा है कि दिल्ली का जामा मस्जिद एक हिंदू मंदिर के ऊपर बनाया गया था और इसका फिर से उसी रूप में निर्माण किया जाना चाहिए. ऐसा ही दावा भाजपा के उग्र नेताओं द्वारा ताजमहल को लेकर भी किया गया है. यह सब आखिर कहां जाकर रुकेगा?

यह कहना कि राम का जन्म एक खास स्थान पर ही हुआ था, मूर्खतापूर्ण है. अगर राम का चरित्र मिथकीय न होकर, ऐतिहासिक भी होता, तो भी कोई यह कैसे कह सकता है कि हजारों साल पहले कोई व्यक्ति कहां जन्मा था?

भारत एक भीषण आर्थिक संकट से गुजर रहा है. जीडीपी वृद्धि औंधे मुंह गिरी हुई है, विनिर्माण और कारोबार में तेज गिरावट है, बेरोजगारी दर ऐतिहासिक स्तर पर है (खुद सरकार के नेशनल सैंपल सर्वे के मुताबिक भी), बाल कुपोषण की स्थिति चिंताजनक है (ग्लोबल हंगर इंडेक्स के मुताबिक भारत का हर दूसरा बच्चा कुपोषित है), भारत की 50 फीसदी औरतें खून की कमी से पीड़ित हैं, किसानों की आत्महत्या रुक नहीं रही है, व्यापक जनसंख्या के लिए स्वास्थ्य सेवा और अच्छी शिक्षा की स्थिति दयनीय है.

ऐसा दिखाई देता है कि हमारे नेताओं के पास इन बड़ी समस्याओं का कोई समाधान नहीं है. इसलिए जनता का ध्यान इनसे हटाने के लिए उन्हें योग दिवस, गोरक्षा, स्वच्छता अभियान, अनुच्छेद 370 की समाप्ति जैसे पैंतरों का सहारा लेना पड़ता है. कोई भ्रम नहीं होना चाहिए कि अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण भी इसी श्रेणी में आता है.

विभाजन के बाद राजनीतिक उपद्रवियों के द्वारा बाबरी मस्जिद का विध्वंस भारत की सबसे बड़ी त्रासदी थी. अयोध्या का फैसला कहता है कि यह विध्वंस गैरकानूनी था, लेकिन साथ ही वह इसे पाक-साफ़ भी क़रार दे देता है. बहुत खूब, माय लॉर्ड्स!

(लेखक सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज हैं.)

(इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)

pkv games bandarqq dominoqq pkv games parlay judi bola bandarqq pkv games slot77 poker qq dominoqq slot depo 5k slot depo 10k bonus new member judi bola euro ayahqq bandarqq poker qq pkv games poker qq dominoqq bandarqq bandarqq dominoqq pkv games poker qq slot77 sakong pkv games bandarqq gaple dominoqq slot77 slot depo 5k pkv games bandarqq dominoqq depo 25 bonus 25 bandarqq dominoqq pkv games slot depo 10k depo 50 bonus 50 pkv games bandarqq dominoqq slot77 pkv games bandarqq dominoqq slot bonus 100 slot depo 5k pkv games poker qq bandarqq dominoqq depo 50 bonus 50 pkv games bandarqq dominoqq