तमाम विरोधों के बावजूद केंद्रीय मंत्रिमंडल ने नागरिकता संशोधन विधेयक को मंज़ूरी दी

नागरिकता संशोधन विधेयक में बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफगानिस्तान के हिंदू, जैन, ईसाई, सिख, बौद्ध और पारसी समुदाय के उन लोगों को भारतीय नागरिकता देने का प्रस्ताव है, जिन्होंने देश में छह साल गुज़ार दिए हैं, लेकिन उनके पास कोई दस्तावेज़ नहीं है.

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Guwahati: Students of Cotton University participate in a torch rally in protest against the Citizenship Amendment Bill (CAB), in Guwahati, Saturday, Nov. 30, 2019. (PTI Photo)(PTI11_30_2019_000173B)

नागरिकता संशोधन विधेयक में बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफगानिस्तान के हिंदू, जैन, ईसाई, सिख, बौद्ध और पारसी समुदाय के उन लोगों को भारतीय नागरिकता देने का प्रस्ताव है, जिन्होंने देश में छह साल गुज़ार दिए हैं, लेकिन उनके पास कोई दस्तावेज़ नहीं है.

Guwahati: Students of Cotton University participate in a torch rally in protest against the Citizenship Amendment Bill (CAB), in Guwahati, Saturday, Nov. 30, 2019. (PTI Photo)(PTI11_30_2019_000173B)
नागरिकता संशोधन विधेयक के विरोध में पूर्वोत्तर के विभिन्न राज्यों में इन दिनों विरोध प्रदर्शन चल रहे हैं. (फोटो: पीटीआई)

नई दिल्लीः केंद्रीय मंत्रिमंडल ने बुधवार को नागरिकता संशोधन विधेयक को मंजूरी दे दी. हालांकि कई विपक्षी दल इस विधेयक का विरोध कर रहे हैं.

नागरिकता संशोधन विधेयक में बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफगानिस्तान के हिंदू, जैन, ईसाई, सिख, बौद्ध और पारसी समुदाय के उन लोगों को भारतीय नागरिकता देने का प्रस्ताव है, जिन्होंने देश में छह साल गुज़ार दिए हैं, लेकिन उनके पास कोई दस्तावेज़ नहीं है.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में हुई केंद्रीय मंत्रिमंडल की बैठक में इसके प्रस्ताव को मंजूरी दी गई. इस विधेयक को संसद के शीतकालीन सत्र में पेश किया जा सकता है.

विपक्षी दल इस विधेयक को समाज को बांटने वाला एवं सांप्रदायिक बता रहे हें.

विपक्षी दल इसे भाजपा की विचारधारा से जुड़े महत्वपूर्ण आयाम का हिस्सा माना जा रहा है जिसमें शरणार्थी के तौर पर भारत में रहने वाले गैर मुसलमानों को नागरिकता देने का प्रस्ताव किया गया है. इनमें से ज्यादातर लोग हिंदू हैं. उनका कहना है कि इसके माध्यम से उन्हें उस स्थिति में संरक्षण प्राप्त होगा जब केंद्र सरकार देशव्यापी राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) की योजना को आगे बढ़ाएगी.

वहीं, केंद्रीय मंत्रिमंडल की बैठक के बाद सूचना एवं प्रसारण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने बताया कि सरकार सभी के हितों और भारत के हितों का ध्यान रखेगी. उन्होंने कुछ वर्गों द्वारा इसका विरोध किए जाने के बारे में पूछे जाने पर कहा कि लोग देश के हित में इसका स्वागत करेंगे.

माना जा रहा है कि सरकार इसे अगले दो दिनों में संसद में पेश करेगी और अगले सप्ताह इसे पारित कराने के लिए आगे बढ़ाएगी.

मालूम हो कि यह विधेयक इस साल जनवरी में लोकसभा में पारित हो गया था लेकिन राज्यसभा में पारित नहीं हो सका था. रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने मंगलवार को भाजपा सांसदों से कहा था कि यह बिल सरकार के लिए शीर्ष प्राथमिकता है, ठीक उसी तरह जैसे अनुच्छेद 370 था.

कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस सहित कुछ विपक्षी दलों ने इसकी आलोचना की है.

नागरिकता (संशोधन) विधेयक पर विरोध जताते हुए कांग्रेस के वरिष्ठ नेता शशि थरूर ने बुधवार को कहा कि इससे संविधान का मूलभूत सिद्धांत कमतर होता है.

थरूर ने कहा, ‘मुझे लगता है कि विधेयक असंवैधानिक है, क्योंकि विधेयक में भारत के मूलभूत विचार का उल्लंघन किया गया है. जो यह मानते हैं कि धर्म के आधार पर राष्ट्र का निर्धारण होना चाहिए. इसी विचार के आधार पर पाकिस्तान का गठन हुआ था.’

उन्होंने कहा कि हमने सदैव यह तर्क दिया है कि राष्ट्र का हमारा वह विचार है जो महात्मा गांधी, नेहरू जी, मौलाना आजाद, डॉ. आंबेडकर ने कहा कि धर्म से राष्ट्र का निर्धारण नहीं हो सकता.

अरुणाचल प्रदेश, नगालैंड, मिज़ोरम के इनर लाइन परमिट क्षेत्र नागरिकता संशोधन विधेयक से बाहर

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, पूर्वोत्तर राज्यों की चिंताओं को ध्यान में रखते हुए अरुणाचल प्रदेश, नगालैंड, मिजोरम के ‘इनर लाइन परमिट’ (आईएलपी) क्षेत्रों और पूर्वोत्तर की छठी अनुसूची के तहत आने वाले क्षेत्रों को नागरिकता संशोधन विधेयक से बाहर रखा गया है.

इसका मतलब यह है कि नागरिकता संशोधन विधेयक का लाभ उठाने वालों को भारत की नागरिकता मिल जाएगी लेकिन वे अरुणाचल प्रदेश, नगालैंड और मिजोरम में बस नहीं पाएंगे. मौजूदा भारतीय नागरिकों पर भी यह प्रतिबंध लागू रहेगा.

असम, मेघालय और त्रिपुरा का एक बड़ा हिस्सा छठी अनुसूची क्षेत्रों के तहत आने की वजह से इस विवादास्पद विधेयक के दायरे से बाहर रहेगा.

मालूम हो कि पूर्वात्तर के कई राज्यों में इन दिनों नागरिकता संशोधन विधेयक का विरोध हो रहा है. विधेयक लाए जाने के बाद से असम सहित पूर्वोत्तर के कई राज्यों में इस विधेयक का जोरदार विरोध हो रहा है. पूर्वोत्तर में कई संगठनों ने इस विधेयक का यह दावा करते हुए विरोध किया है कि वह क्षेत्र के मूलनिवासियों के अधिकारों को कमतर कर देगा.

नागरिकता संशोधन विधेयक के विरोध में बीते दो दिसंबर को असम के कॉटन विश्वविद्यालय और डिब्रूगढ़ विश्वविद्यालय के छात्रसंघों ने विश्वविद्यालय परिसर में भाजपा और आरएसएस नेताओं के प्रवेश पर पाबंदी लगाते हुए विरोध प्रदर्शन करने का ऐलान किया है.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)