हिंदी के प्रसिद्ध कथाकार स्वयं प्रकाश का निधन

हिंदी के कथाकार स्वयं प्रकाश पिछले कुछ समय से बीमार थे. मुंबई के लीलावती अस्पताल में उनका इलाज चल रहा था.

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कथाकार स्वयं प्रकाश. (फोटो साभार: फेसबुक)

हिंदी के कथाकार स्वयं प्रकाश पिछले कुछ समय से बीमार थे. मुंबई के लीलावती अस्पताल में उनका इलाज चल रहा था.

कथाकार स्वयं प्रकाश. (फोटो साभार: फेसबुक)
कथाकार स्वयं प्रकाश. (फोटो साभार: फेसबुक)

नई दिल्ली: हिंदी के प्रसिद्ध साहित्यकार और कथाकार स्वयं प्रकाश का मुंबई के लीलावती अस्पताल में शनिवार सुबह निधन हो गया है. वह 72 वर्ष के थे. वह पिछले कुछ समय से बीमार थे.

उनकी पुत्री अंकिता ने मुंबई से फोन पर बताया कि वह पिछले एक माह से रक्त कैंसर से जूझ रहे थे. उन्हें तीन चार दिन पहले अस्पताल में भर्ती कराया गया था. मुंबई के सांताक्रूज स्थित विद्युत शव दाहगृह में उनका शनिवार को अंतिम संस्कार कर दिया गया.

स्वयं प्रकाश हिंदुस्तान जिंक लिमिटेड में सतर्कता अधिकारी और हिंदी अधिकारी रहे थे. विगत लगभग दो दशकों से वह भोपाल में रह रहे थे.

प्रगतिशील लेखक संघ की मुखपत्रिका ‘वसुधा’ और बच्चों की चर्चित पत्रिका ‘चकमक’ के संपादक रहे स्वयं प्रकाश के एक दर्जन से अधिक कहानी संग्रह और पांच उपन्यास प्रकाशित हुए थे.

स्वयं प्रकाश का जन्म 20 जनवरी 1947 को मध्य प्रदेश के इंदौर शहर में हुआ था. उन्हें एक कहानीकार के तौर पर जाना जाता था. कहानी के अलावा उन्होंने उपन्यास और दूसरी विधाओं में भी अपनी कलम का जादू बिखेरा था.

उनके लिखे उपन्यास जलते जहाज पर (1982), ज्योति रथ के सारथी (1987), उत्तर जीवन कथा (1993), बीच में विनय (1994) और ईंधन (2004) हैं. ‘सूरज कब निकलेगा’ राजस्थान के मारवाड़ इलाके में 70 के दशक में आई बाढ़ पर लिखी गयी कहानी थी. राजस्थान उनकी कहानियों में अक्सर पाया जाता था.

राजस्थान में रहते हुए स्वयं प्रकाश ने अपने मित्र मोहन श्रोत्रिय के साथ लघु पत्रिका ‘क्यों’ का संपादन-प्रकाशन किया तो ‘फीनिक्स’, ‘चौबोली’ और ‘सबका दुश्मन’ जैसे नाटक भी लिखे.

इसके अलावा मात्रा और भार (1975), सूरज कब निकलेगा (1981), आसमां कैसे-कैसे (1982), अगली किताब (1988), आएंगे अच्छे दिन भी (1991), आदमी जात का आदमी (1994), अगले जनम (2002), संधान (2006), छोटू उस्ताद (2015) नाम से उनके कहानी संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं.

उन्होंने हिंदी से एमए किया था और साल 1980 में उन्हें पीएचडी की उपाधि मिली थी. इसके अलावा उन्होंने मैकेनिकल इंजीनियरिंग की डिग्री भी हासिल की थी.

कहानी लेखन शुरू करने से पहले वह कविताएं लिखते थे और विभिन्न मंचों पर इनका पाठ भी किया करते थे.

उन्हें साहित्य अकादमी ने राष्ट्रीय पुस्तक न्यास से छपी बच्चों की पुस्तक ‘प्यारे भाई रामसहाय’ के लिए बाल साहित्य का अकादमी पुरस्कार दिया था. इसके अलावा उन्हें राजस्थान साहित्य अकादमी पुरस्कार, सुभद्रा कुमारी चौहान पुरस्कार, पहल सम्मान, विशिष्ट साहित्यकार सम्मान, भवभूति सम्मान, कथाक्रम सम्मान, वनमाली स्मृति पुरस्कार जैसे प्रतिष्ठित सम्मान दिए गए थे.

उनकी आत्मकथात्मक कृति ‘धूप में नंगे पांव’ का प्रकाशन इसी वर्ष हुआ था.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)

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