नागरिकता संशोधन विधेयक के विरोध में दिल्ली और देश के कई हिस्सों में प्रदर्शन

विभिन्न संगठनों की ओर से बुलाए गए बंद के बाद असम के गुवाहाटी में ज्यादातर दुकानें बंद रहीं. असम के सभी बड़े शहरों में प्रदर्शन हो रहा है. इस विधेयक के खिलाफ अगरतला और पश्चिम बंगाल में भी प्रदर्शन हुआ.

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Guwahati: People holding torches march during a protest over the Citizenship Amendment Bill, 2019 (CAB) in Guwahati, Saturday, Dec. 7, 2019. (PTI Photo)(PTI12_7_2019_000181B)

विभिन्न संगठनों की ओर से बुलाए गए बंद के बाद असम के गुवाहाटी में ज्यादातर दुकानें बंद रहीं. असम के सभी बड़े शहरों में प्रदर्शन हो रहा है. इस विधेयक के खिलाफ अगरतला और पश्चिम बंगाल में भी प्रदर्शन हुआ.

Guwahati: People holding torches march during a protest over the Citizenship Amendment Bill, 2019 (CAB) in Guwahati, Saturday, Dec. 7, 2019. (PTI Photo)(PTI12_7_2019_000181B)
असम की राजधानी गुवाहाटी में नागरिकता संशोधन विधेयक के विरोध में लगातार प्रदर्शन हो रहे हैं. (फोटो: पीटीआई)

नई दिल्ली/गुवाहाटी: संसद में गृहमंत्री अमित शाह द्वारा सोमवार को पेश किए गए नागरिकता संशोधन विधेयक (सीएबी) के खिलाफ संसद परिसर, शहर के अन्य हिस्सों और देश के अलग-अलग हिस्सों में विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं.

इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग (आईयूएमएल) सांसदों ने संसद भवन परिसर में महात्मा गांधी की प्रतिमा के सामने प्रदर्शन किया. वहीं ऑल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट (एआईयूडीएफ) ने जंतर मंतर पर प्रदर्शन किया.

उन्होंने हाथों में तख्तियां पकड़ी हुई थीं, जिन पर लिखा था कि यह विधेयक भारत के सिद्धांत के खिलाफ है. सीएबी के बारे में सवाल करने पर लोकसभा में असम के धुबरी से एआईयूडीएफ के सदस्य बदरुद्दीन अजमल ने कहा, ‘हम इस विधेयक का विरोध करते हैं. यह संविधान और हिंदू-मुस्लिम एकता के खिलाफ है.’

नागरिकता (संशोधन) विधेयक, 2019 के मुताबिक पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान में धार्मिक उत्पीड़न के कारण 31 दिसंदर 2014 तक भारत आए हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई समुदाय के लोगों को अवैध शरणार्थी नहीं माना जाएगा, बल्कि उन्हें भारतीय नागरिकता दी जाएगी.

इस विधेयक के लोकसभा में पेश होने पर देश के विभिन्न हिस्सों में प्रदर्शन हो रहा है. उत्तर पूर्व के मूल निवासियों का कहना है कि बाहर से आकर नागरिकता लेने वाले लोगों से उनकी पहचान और आजीविका को खतरा है.

असम में इस विधेयक का व्यापक स्तर पर विरोध हो रहा है, क्योंकि वहां के लोगों का मानना है कि इससे असम समझौता 1985 के अधिनियम निष्प्रभावी हो जाएंगे.

इस अधिनियम के तहत 24 मार्च, 1971 के बाद भारत आए अवैध प्रवासियों को प्रत्यर्पित किया जाना है और इसके लिए कोई धार्मिक आधार नहीं है.

विभिन्न संगठनों की ओर से बुलाए गए बंद के बाद असम के गुवाहाटी में ज्यादातर दुकानें बंद रहीं. इसके अलावा असम के सभी बड़े शहरों में प्रदर्शन हो रहा है. इस विधेयक के खिलाफ अगरतला और पश्चिम बंगाल में भी प्रदर्शन हुआ.

पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) और नागरिकता (संशोधन) विधेयक का विरोध करने के लिए विपक्षी दलों का आह्वान करते हुए कहा कि देश के एक भी नागरिक को शरणार्थी नहीं बनने दिया जाएगा.

बनर्जी ने खड़गपुर में एक रैली को संबोधित करते हुए कहा, ‘एनआरसी और कैब को लेकर चिंता करने की कोई जरूरत नहीं है. हम बंगाल में कभी इसकी इजाजत नहीं देंगे. वे किसी वैध नागरिक को यूं ही देश से बाहर नहीं फेंक सकते या उसे शरणार्थी नहीं बना सकते.’

बंद के पहले दिन असम के कुछ हिस्सों में जनजीवन प्रभावित

नागरिकता संशोधन विधेयक के खिलाफ और छह समुदायों को अनुसूचित जनजाति का दर्जा प्रदान किए जाने की मांग पर दबाव बनाने के लिए ऑल मोरान स्टूडेंट्स यूनियन (एएमएसयू) द्वारा 48 घंटे के असम बंद के पहले दिन कई जिलों में आम जनजीवन प्रभावित हुआ.

सुबह पांच बजे बंद की शुरूआत के बाद लखीमपुर, धेमाजी, तिनसुकिया, डिब्रूगढ़, शिवसागर, जोरहाट, माजुली, मोरिगांव, बोंगाइगांव, उदालगुड़ी, कोकराझार और बक्सा जिले में दुकानें, बाजार और वित्तीय संस्थान बंद रहे. स्कूल और कॉलेज भी नहीं खुले.

अधिकारियों ने बताया कि बराक घाटी के बंगाली समुदाय बहुल कछार, करीमगंज और हैलाकांडी जिले में और पहाड़ी जिले कार्बी आंगलोंग और दीमा हसाओ में बंद का असर नहीं पड़ा.

बंद प्रभावित क्षेत्रों में निजी कार्यालय बंद रहे और सरकारी कार्यालयों में भी उपस्थिति बहुत कम रही.

कई जगहों पर प्रदर्शनकारियों ने टायर जलाए और राष्ट्रीय राजमार्ग को बाधित किया लेकिन पुलिस ने कदम उठाते हुए सड़क पर परिचालन सामान्य कर दिया. लंबी दूरी की कुछ बसें पुलिस पहरे में चली.

डिब्रूगढ और गुवाहाटी में पुलिसकर्मियों से भिड़ने वाले प्रदर्शनकारियों के समूह को तितर-बितर करने के लिए पुलिस ने लाठी चार्ज किया.

नागरिकता संशोधन विधेयक के खिलाफ बंद के अलावा एएमएसयू ने मोरान और पांच अन्य समुदायों- ताई अहोम, कूच राजबोंगशी, चूटिया, चाय बागान समुदाय और मटाक को अनुसूचित जनजाति का दर्जा प्रदान किए जाने की मांग पर जोर देने के लिए प्रदर्शन का आयोजन किया.

नागरिकता विधेयक के खिलाफ नग्न प्रदर्शन, मुख्यमंत्री निवास पर चिपकाए गए पोस्टर

असम में नागरिकता संशोधन विधेयक (सीएबी) के खिलाफ विभिन्न प्रकार से विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं जिनमें नग्न होकर प्रदर्शन करना और तलवार लेकर प्रदर्शन करना भी शामिल है.

बीते रविवार को मुख्यमंत्री सर्बानंद सोनोवाल के चबुआ स्थित निवास और गुवाहाटी में वित्त मंत्री हिमंत बिस्व सरमा के घर के बाहर सीएबी विरोधी पोस्टर चिपकाए गए.

सोनोवाल ने नागरिकता संशोधन विधेयक के विरोध में हो रहे प्रदर्शनों में शामिल न होने की छात्रों से अपील की है.

ऑल असम स्टूडेंट यूनियन (आसू) ने अपने मुख्यालय से मशाल जलाकर जुलुस निकाला और गुवाहाटी की सड़कों पर प्रदर्शन किया.

आसू के मुख्य सलाहकार समुज्जल कुमार भट्टाचार्य ने जुलूस का नेतृत्व करते हुए कहा कि राज्य विधेयक को किसी भी रूप में स्वीकार नहीं करेगा.

आसू और अन्य संगठन विधेयक के विरोध में प्रदर्शन कर रहे हैं.

ऑल असम मटक स्टूडेंट यूनियन के कार्यकर्ताओं ने रविवार शाम को शिवसागर की सड़कों पर नग्न होकर प्रदर्शन किया. हालांकि पुलिस ने प्रदर्शन कर रहे मटक समुदाय के लोगों को हिरासत में ले लिया.

वहीं नलबारी नगर में असम गण परिषद के तीन मंत्रियों के खिलाफ विभिन्न स्थानों पर पोस्टर चिपकाए गए.

विधेयक के ख़िलाफ़ मंगलवार को पूर्वोत्तर बंद

क्षेत्र में सभी छात्र संगठनों के शीर्ष संगठन नार्थ ईस्ट स्टूडेंट्स ऑर्गनाइजेशन (एनईएसओ) ने मंगलवार को 11 घंटे के पूर्वोत्तर बंद का आह्वान किया है. वहीं नागरिकता (संशोधन) विधेयक के विरोध में करीब 16 संगठनों ने 10 दिसंबर को 12 घंटे का असम बंद आहूत किया है.
कृषक मुक्ति संग्राम समिति (केएमएसएस) के सलाहकार अखिल गोगोई ने रविवार को संवाददाता सम्मेलन में कहा कि केएमएसएस और उसके सहयोगी संगठनों ने इन संगठनों और छात्र संगठन द्वारा बुलाए गए बंद को अपना समर्थन जताया है.

उन्होंने बताया कि केएमएसएस ने सूटिया, मोरान और कोच-राजबोंग्शी जैसे विभिन्न आदिवासी छात्र निकायों द्वारा सोमवार को आहूत 12 घंटे के असम बंद को भी समर्थन दिया है.

एसएफआई, डीवाईएफआई, एआईडीडब्ल्यूए, एसआईएसएफ, आइसा, इप्टा जैसे 16 संगठनों ने संयुक्त बयान में विधेयक को रद्द करने की मांग की.

हालांकि नगालैंड में जारी हॉर्नबिल फेस्टिवल की वजह से उसे बंद के दायरे से छूट दी गई है.

मालूम हो कि तमाम विरोधों के बाद भी केंद्रीय मंत्रिमंडल ने बीते चार दिसंबर को नागरिकता संशोधन विधेयक को मंजूरी दे दी थी. इससे पहले यह विधेयक इस साल जनवरी में लोकसभा में पारित हो गया था लेकिन राज्यसभा में पारित नहीं हो सका था.

विधेयक लाए जाने के बाद से असम सहित पूर्वोत्तर के कई राज्यों में इस विधेयक का जोरदार विरोध हो रहा है. पूर्वोत्तर में कई संगठनों ने इस विधेयक का यह दावा करते हुए विरोध किया है कि वह क्षेत्र के मूलनिवासियों के अधिकारों को कमतर कर देगा.

हालांकि अरुणाचल प्रदेश, नगालैंड, मिजोरम के ‘इनर लाइन परमिट’ (आईएलपी) क्षेत्रों और पूर्वोत्तर की छठी अनुसूची के तहत आने वाले क्षेत्रों को नागरिकता संशोधन विधेयक से बाहर रखा गया है.

इसका मतलब यह है कि नागरिकता संशोधन विधेयक का लाभ उठाने वालों को भारत की नागरिकता मिल जाएगी लेकिन वे अरुणाचल प्रदेश, नगालैंड और मिजोरम में बस नहीं पाएंगे. मौजूदा भारतीय नागरिकों पर भी यह प्रतिबंध लागू रहेगा.

कहा जा रहा है कि असम, मेघालय और त्रिपुरा का एक बड़ा हिस्सा छठी अनुसूची क्षेत्रों के तहत आने की वजह से इस विवादास्पद विधेयक के दायरे से बाहर रहेगा.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)

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