क्या सीबीआई के ख़ौफ़ से केजरीवाल के साथ काम करने से कतरा रहे हैं अधिकारी?

मौजूदा अधिकारी केजरीवाल सरकार के साथ काम नहीं करना चाहते और नए अधिकारी यहां आने को तैयार नहीं है.

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फाइल फोटो: पीटीआई

मौजूदा अधिकारी केजरीवाल सरकार के साथ काम नहीं करना चाहते और नए अधिकारी यहां आने को तैयार नहीं है.

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केंद्र की ओर से दिल्ली सरकार पर कसे जा रहे सीबीआई के शिकंजे ने अरविंद केजरीवाल सरकार के लिए मुसीबत खड़ी कर दी है. ख़बरें हैं कि तमाम वरिष्ठ अधिकारी दिल्ली सरकार के मुख्यमंत्री कार्यालय में काम करने से कतरा रहे हैं. उन्हें डर है कि केजरीवाल सरकार के साथ काम करने पर सीबीआई उन्हें निशाना बना सकती है.

मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल सरकार के साथ तमाम अधिकारी ऐसे हैं जो एक से ज़्यादा पदों पर ज़िम्मेदारी संभाल रहे हैं. दिल्ली सरकार को फ़िलहाल क़रीब एक दर्जन अधिकारियों की तुरंत आवश्यकता है, लेकिन हाल में दिल्ली सीएमओ में काम करने वाले अधिकारियों के ख़िलाफ़ सीबीआई की कार्रवाई के चलते अधिकारी पदभार संभालने से मना कर रहे हैं.

केजरीवाल सरकार के सूत्रों का कहना है, ‘अधिकारियों की कमी के चलते बहुत सारे अधिकारी एकाधिक विभाग देख रहे हैं. मसलन, अर्थ, गृह और योजना विभाग का ज़िम्मा एक ही अधिकारी के पास है. उच्च शिक्षा, स्कूली शिक्षा और तकनीकी शिक्षा एक अन्य अधिकारी के पास है.’

दिल्ली सरकार ने क़रीब एक दर्जन अधिकारियों से संपर्क किया, लेकिन मुख्यमंत्री कार्यालय (सीएमओ) में इन सभी वरिष्ठ अधिकारियों के काम करने से इनकार के बाद केजरीवाल दिल्ली से बाहर के अधिकारियों को ला सकते हैं या अनुबंध पर निजी व्यक्तियों को नियुक्त कर सकते हैं.

दिल्ली सरकार का सीएमओ इस समय अधिकारियों की कमी का सामना कर रहा है और सरकार के सूत्रों की मानें तो वहां जल्द ही कोई अधिकारी नहीं बचेगा.

सीएमओ के सूत्रों ने बताया कि मुख्यमंत्री ने अपने कार्यालय में काम करने के लिए क़रीब 10-12 अधिकारियों से संपर्क किया है लेकिन उन्होंने पदभार संभालने से विनम्रतापूर्वक इनकार कर दिया क्योंकि उन्हें आशंका है कि वे भी सीबीआई के रडार पर आ सकते हैं क्योंकि मुख्यमंत्री के प्रधान सचिव राजेंद्र कुमार और उप सचिव तरुण कुमार पर भ्रष्टाचार के एक मामले में कार्रवाई हुई है.

दोनों अधिकारियों को वर्ष 2016 में सीबीआई के मामले के बाद निलंबित कर दिया गया. मुख्यमंत्री कार्यालय के एक सूत्र ने कहा, मुख्यमंत्री कार्यालय में अधिकारियों की कमी को देखते हुए क़रीब एक दर्जन नौकरशाहों से संपर्क किया गया लेकिन उन्होंने कार्रवाई की आशंका जताते हुए इसे ठुकरा दिया.

मुख्यमंत्री कार्यालय के एक सूत्र ने कहा, इस स्थिति में मुख्यमंत्री के पास दिल्ली से बाहर के अधिकारियों या अनुबंधित कर्मचारियों की सेवा लेने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचेेगा.

सूत्रों ने यह भी कहा कि सीएमओ में ओएसडी के पद पर तैनात भारतीय राजस्व सेवा अधिकारी सुकेश जैन ने अपने मूल कैडर में वापस भेजने के लिए आवेदन दे दिया है जिसे मंज़ूरी मिलने की संभावना है.

अतिरिक्त सचिव गीतिका शर्मा का तबादला कर दिया गया जबकि एक और अतिरिक्त सचिव दीपक विरमानी ने अध्ययन अवकाश के लिए आवेदन दिया है.

नाम न छापने की शर्त पर सूत्रों ने बताया, ‘केजरीवाल की चुनी हुई सरकार से अगस्त, 2016 के बाद से लेफ्टिनेंट गर्वनर आॅफिस या केंद्रीय गृह मंत्रालय की ओर से अधिकारियों के ट्रांसफर या पोस्टिंग को लेकर कोई सलाह नहीं ली गई है. दिल्ली सरकार से सलाह लिए बिना ही वे सबकुछ कर रहे हैं.’

मुख्यमंत्री केजरीवाल के मुख्य सचिव राजेंद्र कुमार और डिप्टी सेक्रेटरी तरुण कुमार पर कथित भ्रष्टाचार का आरोप लगा था. दोनों अधिकारियों के ख़िलाफ़ सीबीआई के केस दर्ज करने के बाद उन्हें सस्पेंड कर दिया था. इसके बाद अन्य अधिकारियों को लगता है कि केजरीवाल सरकार के अधिकारी सीबीआई रडार पर हैं, इस डर से वे दिल्ली सरकार के साथ काम करने से मना कर रहे हैं.

दिल्ली में आम आदमी पार्टी की सरकार बनने के बाद से ही मुख्यमंत्री केजरीवाल और केंद्र सरकार के बीच अधिकारियों की नियुक्ति, ट्रांसफर आदि को लेकर टकराव की स्थिति रही है. हालांकि, यह मसला कोर्ट गया और अंतत: दिल्ली हाईकोर्ट ने फ़ैसला दिया कि दिल्ली केंद्र शासित प्रदेश है जिसका शासकीय प्रमुख लेफ्टिनेंट गवर्नर है. मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल बार बार केंद्र सरकार पर आरोप लगाते रहे हैं कि केंद्र सरकार उन्हें काम नहीं करने दे रही है और चुनी हुई सरकार को अस्थिर करना चाहती है.

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