निर्भया मामला: सुप्रीम कोर्ट ने ख़ारिज की दोषी की पुनर्विचार याचिका, मौत की सज़ा बरक़रार

सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान दोषी अक्षय के वकील ने पीठ से कहा कि अक्षय को मृत्युदंड दिया गया क्योंकि वह ग़रीब परिवार से ताल्लुक़ रखता है और मीडिया और राजनीतिक दबाव की वजह से उनके मुवक्किल को दोषी ठहराया गया.

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New Delhi: A view of Supreme Court of India in New Delhi, Thursday, Nov. 1, 2018. (PTI Photo/Ravi Choudhary) (PTI11_1_2018_000197B)
(फोटो: पीटीआई)

सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान दोषी अक्षय के वकील ने पीठ से कहा कि अक्षय को मृत्युदंड दिया गया क्योंकि वह ग़रीब परिवार से ताल्लुक़ रखता है और मीडिया और राजनीतिक दबाव की वजह से उनके मुवक्किल को दोषी ठहराया गया.

New Delhi: A view of Supreme Court of India in New Delhi, Thursday, Nov. 1, 2018. (PTI Photo/Ravi Choudhary) (PTI11_1_2018_000197B)
(सुप्रीम कोर्ट: पीटीआई)

नई दिल्लीः दिल्ली के निर्भया बलात्कार मामले में सुप्रीम कोर्ट ने दोषियों में से एक की पुनर्विचार याचिका बुधवार को खारिज कर फांसी की सजा बरकरार रखी.

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, जस्टिस आर भानुमति की अध्यक्षता में जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस एएस बोपन्ना की तीन सदस्यीय पीठ ने दोषी अक्षय कुमार सिंह की याचिका खारिज कर दी.

इस दौरान दोषी अक्षय कुमार सिंह के वकील एपी सिंह ने पीठ से कहा कि दोषी राष्ट्रपति के समक्ष दया याचिका दायर करना चाहता है, तो इसके लिए उन्हें तीन सप्ताह का समय दिया जाए लेकिन दिल्ली सरकार की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि कानून इसके लिए एक सप्ताह का समय देता है.

इसके बाद अदालत ने कहा कि दोषी तय अवधि में दया याचिका दाखिल कर सकता है. दोषी अक्षय कुमार ने अपनी याचिका में अपनी सजा कम करने की अपील है. उनका कहना है कि अन्य कई देशों में फांसी की सजा पर प्रतिबंध है.

पीठ ने कहा, ‘पुनर्विचार याचिका बार-बार मामले की सुनवाई नहीं है. हमें मृत्युदंड की सजा को बरकरार रखने के 2017 के फैसले का कोई आधार नहीं मिला है.

मालूम हो कि निर्भया मामले में सुनवाई से चीफ जस्टिस एसए बोबडे के खुद को अलग रखने के एक दिन बाद यह सुनवाई हुई है.

सुनवाई के दौरान दोषियों के वकील एपी सिंह ने पीठ को बताया कि अक्षय को मृत्युदंड दिया गया क्योंकि वह गरीब परिवार से ताल्लुक रखता है.

वकील ने कहा कि मीडिया और राजनीतिक दबाव की वजह से उनके मुवक्किल को दोषी ठहराया गया. इस पर पीठ ने कहा कि इन सभी बातों पर पहले बहस हो चुकी है. अक्षय को दी गई फांसी की सजा पर अक्षय के वकील ने अन्य देशों का हवाला दिया, जहां मौत की सजा पर प्रतिबंध है.

सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने इसका विरोध करते हुए कहा कि जब तक यह कानून की किताबों में है, यह कानून है. मेहता ने पीठ को बताया कि ऐसे कई अपराध हैं, जहां मानवता शर्मसार हुई हैं और यह घटना इसी में से एक है.

मेहता ने कहा, ‘ऐसे कुछ अपराध हैं, जहां भगवान पीड़िता को न बचाने और इस तरह के हैवानों को बनाने को लेकर शर्मिंदा होगा. इस तरह के अपराधों के लिए मृत्युदंड की सजा को हटाया जाना सही नहीं होगा.’

उन्होंने कहा कि निर्भया मामले में दोषी सजा में देरी के भरसक प्रयास कर रहे हैं लेकिन कानून को जल्द से जल्द अपना काम करना चाहिए.

बता दें कि वकील एपी सिंह ने अदालत से कहा था कि प्रदूषित हवा और पानी की वजह से दिल्ली-एनसीआर में नागरिकों की उम्र घट रही है तो ऐसे में दोषियों को फांसी की सजा देने की कोई जरूरत नहीं है.

इससे पहले देश के मुख्य न्यायाधीश एसए बोबडे ने 2012 के निर्भया गैंगरेप और हत्या मामले में एक दोषी की याचिका पर हो रही सुनवाई से खुद को अलग कर लिया था.

गौरतलब है कि 16 दिसंबर, 2012 की रात को दक्षिण दिल्ली में एक चलती बस में 23 साल की पैरामेडिकल छात्रा के साथ छह लोगों ने सामूहिक बलात्कार किया और उस पर नृशंस हमला किया था और उसे चलती बस से बाहर फेंक दिया था.

29 दिसंबर, 2012 को सिंगापुर के एक अस्पताल में उसकी मृत्यु हो गयी थी. मामले के एक आरोपी राम सिंह ने तिहाड़ जेल में कथित रूप से खुदकुशी कर ली थी. एक अन्य आरोपी किशोर था और उसे किशोर न्याय बोर्ड ने दोषी ठहराया था. उसे तीन साल तक सुधार गृह में रखने के बाद रिहा कर दिया गया था.

शीर्ष अदालत ने 2017 में इस मामले के बाकी चार दोषियों को निचली अदालत और दिल्ली उच्च न्यायालय द्वारा सुनाए गए मृत्युदंड को बरकरार रखा था.

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