पुलिस ने जामिया के छात्रों को अधिक से अधिक नुकसान पहुंचाने के इरादे से हमला कियाः रिपोर्ट

जामिया मिलिया इस्लामिया में 15 दिसंबर को प्रदर्शनकारी छात्रों पर पुलिस की बर्बर कार्रवाई पर जारी पीपुल्स यूनियन फॉर डेमोक्रेटिक राइट्स की फैक्ट फाइंडिंग रिपोर्ट में कहा गया है कि पुलिस ने जानबूझकर लोगों को हिरासत में रखा और घायलों तक चिकित्सकीय मदद नहीं पहुंचने दी.

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दिसंबर 2019 में जामिया मिलिया इस्लामिया की लाइब्रेरी में की गई तोड़फोड़. (फाइल फोटो: पीटीआई)

जामिया मिलिया इस्लामिया में 15 दिसंबर को प्रदर्शनकारी छात्रों पर पुलिस की बर्बर कार्रवाई पर जारी पीपुल्स यूनियन फॉर डेमोक्रेटिक राइट्स की फैक्ट फाइंडिंग रिपोर्ट में कहा गया है कि पुलिस ने जानबूझकर लोगों को हिरासत में रखा और घायलों तक चिकित्सकीय मदद नहीं पहुंचने दी.

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जामिया में हुई हिंसा के बाद लाइब्रेरी. (फोटो: पीटीआई)

नई दिल्लीः नागरिकता कानून के विरोध में दिल्ली के जामिया मिलिया इस्लामिया में छात्रों के प्रदर्शन के दौरान पुलिस की बर्बर कार्रवाई को लेकर फैक्ट फाइंडिंग टीम की रिपोर्ट जारी हुई है.

पीपुल्स यूनियन फॉर डेमोक्रेटिक राइट्स (पीयूडीआर) के छह सदस्यों की एक टीम ने जामिया के छात्रों, टीचिंग, नॉन टीचिंग स्टाफ, डॉक्टर, घायल छात्रों, मरीजों, स्थानीय लोगों और प्रत्यक्षदर्शियों से बातचीत कर इस रिपोर्ट को तैयार किया है.

इस रिपोर्ट का नाम ‘ब्लडी संडे’ है, जिसे गुरुवार को दिल्ली में जारी किया गया. रिपोर्ट में 15 दिसंबर को यूनिवर्सिटी कैंपस में पुलिस के घुसने और छात्रों पर बर्बर कार्रवाई के घटनाक्रमों का ब्योरा दिया गया है.

रिपोर्ट में कहा गया, ‘हमें टूटे हुए ताले, आंसू गैस के गोले के खोखे, टूटी खिड़कियां और फर्नीचर और फर्श पर फैला खून दिखा. इसके साथ ही ऐसे कई संकेत थे जिनसे उस रात को हुई तबाही के मंजर का पता अंदाजा लगाया जा सकता है.’

रिपोर्ट के मुताबिक, छात्रों और शिक्षकों ने नागरिकता कानून और एनआरसी के विरोध में संसद तक के मार्च की योजना बनाई थी. इस बीच पुलिस ने मार्च को रोकने के लिए बैरिकेड लगा दिए, जिसके बाद छात्रों ने बैरिकेड तोड़कर मार्च जारी रखा.

इस बीच पुलिस ने प्रदर्शनकारियों पर आंसू गैस के गोले दागे, जिससे सड़कों पर अफरा-तफरी मच गई. रिपोर्ट में कहा गया कि छात्र घायल हुए और कथित तौर पर पुलिस ने घायल छात्रों तक चिकित्सकीय मदद पहुंचने से रोक दिया.

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जामिया में हुई हिंसा के बाद लाइब्रेरी में मिला आंसू गैस का शेल. (फोटो: पीटीआई)

रिपोर्ट कहती है कि इस बीच पुलिस बिना मंजूरी के कैंपस पहुंची और बैटन से छात्रों को पीटना शुरू किया. पुलिस ने छात्रों की मोटरसाइकिल तोड़ दी.

पुलिस ने सीसीटीवी कैमरे तोड़ दिए और छात्रों पर लाठीचार्ज करना शुरू किया. एएमयू की तरह ही जामिया में भी पुलिस ने छात्रों पर सांप्रदायिक टिप्पणियां कीं.

रिपोर्ट में कहा गया है कि पुलिस ने छात्रों पर बर्बर कार्रवाई करने के दौरान उनके लिए जिहादी, देशद्रोही और कटवा जैसे शब्दों का इस्तेमाल किया. पुलिस ने कथित तौर पर महिलाओं को यौन हिंसा की भी धमकियां दीं.

इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक की रिपोर्ट ने जामिया के कैंपस के अंदर और बाहर छात्रों और प्रदर्शनकारियों पर पुलिस की कार्रवाई को अवैध करार दिया.

रिपोर्ट में कहा गया कि पुलिस ने जानबूझकर लोगों को हिरासत में रखा और जानबूझकर घायलों तक चिकित्सकीय मदद नहीं पहुंचने दी. रिपोर्ट में कहा गया कि कई घायल छात्र पुलिस की बर्बर कार्रवाई से बचने के लिए कैंपस के भीतर ही महिलाओं के हॉस्टल में कई घंटों तक छिपे रहे.

Police made students raise their hands as they forced them to leave the Jamia Millia Islamia campus [Adnan Abidi/Reuters]
पुलिस द्वारा जामिया के अंदर से छात्रों को निकाला गया था. (फोटो: रॉयटर्स)
रिपोर्ट के मुताबिक, महिलाओं के जम्मू कश्मीर हॉस्टल में रह रहे लोगों ने जान पहचान वालों और गंभीर रूप से घायलों को हॉस्टल के फर्स्ट फ्लोर पर शरण दी और लाइटें बंद कर दी. जब शाम को लगभग 7.30 बजे एंबुलेंस कैंपस में घुसी तो तीन गंभीर रूप से घायलों को हॉस्टल से बाहर निकाला गया.

रिपोर्ट में कहा गया, ‘पुलिस द्वारा दिखाई गई यह क्रूरता पूरी तरह से अस्वीकार्य है. छात्रों को जिस तरह से चोटें आई हैं, उससे साफ पता चलता है कि पुलिस उन्हें अधिक से अधिक चोट पहुंचाना चाहती थी.’

रिपोर्ट कहती है कि लगभग 85 छात्रों का अलशिफा अस्पताल में इलाज किया गया. इन 85 छात्रों में से 35 को टांके लगाए गए, 15 से 20 को आर्थोपेडिक फ्रैक्चर हुआ है और लगभग 20 के सिर में चोटें लगी हैं.

रिपोर्ट में बताया गया है कि कैंपस में तैनात सिक्योरिटी गार्डों और कैंपस में मौजूद मस्जिद के इमाम को भी पीटा गया था.

दक्षिण पूर्व जिले के एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने कहा कि वे रिपोर्ट में लगाए गए सभी आरोपों को खारिज करते हैं.

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