नगालैंड: फिर छह महीने के लिए बढ़ाया गया आफस्पा, गृह मंत्रालय ने कहा अब भी ‘अशांत’

गृह मंत्रालय का कहना है कि समूचा नगालैंड क्षेत्र एक ऐसी ‘अशांत और ख़तरनाक स्थिति’ में है कि नागरिक प्रशासन की सहायता के लिए सशस्त्र बल का इस्तेमाल ज़रूरी है.

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(प्रतीकात्मक फोटो: पीटीआई)

गृह मंत्रालय का कहना है कि समूचा नगालैंड क्षेत्र एक ऐसी ‘अशांत और ख़तरनाक स्थिति’ में है कि नागरिक प्रशासन की सहायता के लिए सशस्त्र बल का इस्तेमाल ज़रूरी है.

Afspa- Armed forcesc PTI File
(प्रतीकात्मक फोटो: पीटीआई)

नई दिल्ली: पूरे नगालैंड राज्य को विवादास्पद ‘आफस्पा’ के तहत और छह महीने के लिए यानी जून 2020 के अंत तक ‘अशांत क्षेत्र’ घोषित कर दिया गया है.

सशस्त्र बल (विशेषाधिकार) कानून (आफस्पा) सुरक्षा बलों को कहीं भी अभियान चलाने और बिना किसी पूर्व सूचना के किसी भी व्यक्ति को गिरफ्तार करने का अधिकार देता है.

नगालैंड में यह कानून दशकों से लागू है. बीते कई सालों से सरकार छह-छह महीने पर इसकी अवधि बढ़ाती आयी है.

गृह मंत्रालय ने एक अधिसूचना में कहा है कि केंद्र सरकार का विचार है कि समूचा नगालैंड क्षेत्र, एक ऐसी ‘अशांत और खतरनाक स्थिति’ में है कि नागरिक प्रशासन की सहायता के लिए सशस्त्र बल का इस्तेमाल जरूरी है.

इसमें कहा गया है, ‘अब इसलिए सशस्त्र बल (विशेषाधिकार) अधिनियम, 1958 (1958 के नम्बर 28) की धारा तीन द्वारा प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग करते हुए केंद्र सरकार घोषणा करती है कि उक्त पूरा राज्य उक्त अधिनियम के लिए 30 दिसंबर, 2019 से छह महीने की अवधि के लिए एक ‘अशांत क्षेत्र’ होगा.’

गृह मंत्रालय के एक अधिकारी ने कहा कि नगालैंड को ‘अशांत क्षेत्र’ घोषित रखने का निर्णय इसलिए लिया गया है क्योंकि हत्याएं, लूट और उगाही राज्य के विभिन्न हिस्सों में जारी है. इसने वहां तैनात सुरक्षा बलों की सुविधा के लिए इस कदम को जरूरी बना दिया.

बता दें कि राज्य में एनडीपीपी की सरकार है. पार्टी के नेता नेफ्यू रियो भाजपा के साथ गठबंधन में बने पीपुल्स डेमोक्रेटिक एलायंस के साथ सरकार का नेतृत्व कर रहे हैं.

गौरतलब है कि पूर्वोत्तर के साथ ही जम्मू कश्मीर से विभिन्न संगठनों की ओर से इस विवादास्पद कानून (आफस्पा) को निरस्त करने की मांग होती रही है. उनका कहना है कि यह सुरक्षा बलों को ‘व्यापक अधिकार’ देता है.

मालूम हो कि नगालैंड में उग्रवाद का समाधान ढूंढने के लिए यहां के प्रमुख विद्रोही संगठन नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नगालैंड- इसाक मुइवाह (एनएससीएन-आईएम) और केंद्र सरकार के बीच बातचीत चल रही है.

उत्तर पूर्व के सभी उग्रवादी संगठनों का अगुवा माने जाने वाला एनएससीएन-आईएम अनाधिकारिक तौर पर सरकार से साल 1994 से बात कर रहा है. सरकार और संगठन के बीच औपचारिक वार्ता वर्ष 1997 से शुरू हुई थी.

नई दिल्ली और नगालैंड में बातचीत शुरू होने से पहले दुनिया के अलग-अलग देशों में दोनों के बीच बैठकें हुई थीं. अगस्त 2015 में भारत सरकार ने एनएससीएन-आईएम के साथ अंतिम समाधान की तलाश के लिए समझौते पर हस्ताक्षर किए, जिसे नगा शांति समझौते के जाना जाता है.

इस समझौते की शर्तों पर अब तक सरकार से सहमति नहीं बन सकी है और न ही सरकार द्वारा इस मसौदे को सामने लाया गया है.

बीते अक्टूबर में इस बारे में हुई एक बैठक तब बेनतीजा साबित हुई, जब एनएससीएन-आईएम अलग नगा झंडे और संविधान को लेकर अपने रुख पर कायम रहा और केंद्र भी अपनी बात पर अड़ा रहा.

इसके बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने केंद्र के वार्ताकार और नगालैंड के राज्यपाल आरएन रवि को 31 अक्टूबर तक का समय दिया था. तब से इस बारे में न ही सरकार और न ही संगठन द्वारा कोई जानकारी दी गई है.

इसी बीच बीते दिनों राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) ने दिल्ली और नगालैंड के दीमापुर में एनएससीएन (आईएम) को फंड मुहैया करवाने करने के मामले में एक आरोपी के घरों पर छापे मारे थे.

एनआईए के एक अधिकारी ने एक बयान में कहा कि ये घर अलेमला जमीर के हैं. जमीर पुंगतिंग शिरमरांग उर्फ जेम्स जमीर की पत्नी हैं. शिरमरांग एनएससीएन (आईएम) की संचालन समिति का सदस्य और संगठन के  महासचिव टी. मुइवाह के रिश्तेदार है.

अधिकारी ने बताया कि एजेंसी ने 20 दिसंबर को एनएससीएन की फंडिंग से जुड़ा मामला दोबारा दर्ज किया था. अलेमला पर आरोप है कि वह इस संगठन ने लिए काम करती है.

अलमेला को  17 दिसंबर को आयकर अधिकारियों ने 72 लाख रुपये की नकदी के साथ दिल्ली हवाईअड्डे से गिरफ्तार किया था. अधिकारी ने बताया कि इसी दिन उन्हें स्पेशल सेल ने गिरफ्तार किया था.

उन्होंने बताया कि 23 दिसंबर को एनआईए की एक विशेष अदालत ने अलेमला को पांच दिन की न्यायिक हिरासत में भेजा गया था.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)

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