एमपी: विभिन्न मांगों को लेकर सरकारी मेडिकल कॉलेजों के क़रीब 1,000 प्रोफेसरों ने दिया इस्तीफ़ा

स्पष्ट प्रमोशन नीति सहित विभिन्न मांगों को लेकर इस्तीफ़ा देने वाले मध्य प्रदेश के छह सरकारी मेडिकल कॉलेजों में पढ़ाने वाले इन प्रोफेसरों ने चेतावनी दी है कि अगर आठ जनवरी तक उनकी मांगें नहीं मानी गईं तो वे नौ जनवरी से ड्यूटी पर नहीं आएंगे.

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प्रतीकात्मक फोटो. साभार-विकीपीडिया

स्पष्ट प्रमोशन नीति सहित विभिन्न मांगों को लेकर इस्तीफ़ा देने वाले मध्य प्रदेश के छह सरकारी मेडिकल कॉलेजों में पढ़ाने वाले इन प्रोफेसरों ने चेतावनी दी है कि अगर आठ जनवरी तक उनकी मांगें नहीं मानी गईं तो वे नौ जनवरी से ड्यूटी पर नहीं आएंगे.

प्रतीकात्मक फोटो. साभार-विकीपीडिया
प्रतीकात्मक फोटो. साभार-विकीपीडिया

भोपालः मध्य प्रदेश के छह सरकारी मेडिकल कॉलेजों में पढ़ाने वाले लगभग 1,000 प्रोफेसरों ने स्पष्ट प्रमोशन नीति सहित विभिन्न मांगों के लिए राज्य सरकार पर दबाब बनाने के लिए बीते 48 घंटों में सामूहिक रूप से इस्तीफा दे दिया.

इस्तीफा देने वाले मेडिकल प्रोफेसरों ने चेतावनी दी है कि यदि आठ जनवरी तक उनकी मांगे नहीं मानी गई तो वे नौ जनवरी से ड्यूटी पर नहीं आएंगे.

सेंट्रल मेडिकल टीचर्स एसोसिएशन की मध्य प्रदेश इकाई के सचिव डॉ. राकेश मालवीय ने बताया कि प्रदेश के बाकी सात अन्य मेडिकल कॉलेजों के 2,300 प्रोफेसर भी शुक्रवार तक अपना इस्तीफा सौंप सकते हैं.

मेडिकल टीचर्स एक जनवरी 2016 से सातवां वेतनमान और भारतीय चिकित्सा परिषद (एमसीआई) के हिसाब से प्रमोशन पॉलिसी बनाने की मांग कर रहे हैं.

उन्होंने कहा, ‘हम चाहते हैं कि राज्य सरकार हमारे लिए स्पष्ट प्रमोशन नीति लेकर आए और सातवें वेतन आयोग में हमारे वेतन भत्तों में जो विसंगतियां हैं, उन्हें दूर करे.’

मेडिकल प्रोफेसरों के इस कदम से नौ जनवरी से मध्य प्रदेश में स्वास्थ्य सेवाएं प्रभावित हो सकती है, क्योंकि ये प्रोफेसर इन 13 मेडिकल कॉलेजों में एमबीबीएस, एमडी और एमएस कोर्स कर रहे छात्रों को पढ़ाने के साथ-साथ इनसे जुड़े अस्पतालों में मरीजों को देखते भी हैं.

भोपाल स्थित गांधी मेडिकल कॉलेज से जुड़े सरकारी हमादिया अस्पताल में ही रोजाना करीब 3,500 मरीज उपचार के लिए आते हैं.

मेडिकल डॉयलॉग वेबसाइट की रिपोर्ट के मुताबिक, मध्य प्रदेश मेडिकल शिक्षक संघ (एमपीएमटीए) के तहत मेडिकल शिक्षकों का मामला काफी लंबे समय से लंबित है, सरकार इनकी मांगों को पूरा करने का वादा करती रही है. इन शिक्षकों की प्रमुख मांगों में समयबद्ध प्रमोशन और 2016 से सातवें वेतन आयोग का क्रियान्वयन करना है. मेडिकल शिक्षकों की अन्य मांगों में प्रमोशन पॉलिसी और टियर तीन प्रमोशन प्रणाली को अपग्रेड करना है.

रिपोर्ट के मुताबिक, अन्य राज्यों में और मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया (एमसीआई) के अनुरूप फैकल्टी का पहला प्रमोशन चार से पांच साल में होता है लेकिन मध्य प्रदेश में यह 12 साल में होता है. इसके अलावा एक ही क्षेत्र में कोई शिक्षक 30 साल तक बना रहता है तो उसके कम से कम तीन प्रमोशन होते हैं लेकिन मध्य प्रदेश में इस अवधि में सिर्फ दो प्रमोशन ही होते हैं.

इससे पहले सितंबर 2019 में डॉक्टरों ने सामूहिक इस्तीफे की चेतावनी दी थी लेकिन मुख्यमंत्री के प्रतिनिधि के मांगों को पूरा करने के वादे के बाद ही डॉक्टर इस चेतावनी से पीछे हटे थे लेकिन चार महीने बाद भी राज्य सरकार ने इनकी मांगों को पूरा नहीं किया है.

एमपीएमटीए से 300 मेडिकल शिक्षक और 13 मेडिकल कॉलेज जुड़े हुए हैं. मेडिकल कॉलेज के जूनियर डॉक्टर भी इनके समर्थन में आगे आए हैं.

एमपीएमटीए की अध्यक्ष डॉ. पूनम माथुर ने कहा, ‘जबसे भाजपा सरकार सत्ता में आई है, हम नीतियों में बदलाव की कोशिश कर रहे हैं लेकिन सरकार की तरफ से कोई जवाब नहीं आया है. हमने इस्तीफे का नोटिस भी आलाकमान को भेजा है क्योंकि हमारे पास और कोई विकल्प नहीं बचा है. हमने नौ जनवरी 2020 से एक महीने का नोटिस दिया है. 95 फीसदी मेडिकल शिक्षक पहले ही इस्तीफा दे चुके हैं और बाकी बचे पांच फीसदी लीव (छुट्टी) पर हैं लेकिन उन्होंने प्रशासन को फोन कर इसकी सूचना दे दी है.’

डॉ. पूनम ने कहा कि इंदौर से कैबिनेट मंत्री तुलसीराम सिलावट ने वादा किया है कि वह मुख्यमंत्री के साथ बैठक की व्यवस्था करेंगे.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)