बलात्कार के मामलों में सजा की दर मात्र 27.2 प्रतिशत: एनसीआरबी रिपोर्ट

एनसीआरबी के आंकड़ों के मुताबिक बलात्कार के मामलों में सजा की दर 2018 में पिछले साल के मुकाबले घटी है. 2017 में सजा की दर 32.2 प्रतिशत थी.

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Mumbai: Women activists disply placards and shout slogans during a protest against the Hyderabad rape and murder case, at Dadar in Mumbai, Tuesday, Dec. 3, 2019. (PTI Photo/Mitesh Bhuvad) (PTI12_3_2019_000172B)

एनसीआरबी के आंकड़ों के मुताबिक बलात्कार के मामलों में सजा की दर 2018 में पिछले साल के मुकाबले घटी है. 2017 में सजा की दर 32.2 प्रतिशत थी.

Mumbai: Women activists disply placards and shout slogans during a protest against the Hyderabad rape and murder case, at Dadar in Mumbai, Tuesday, Dec. 3, 2019. (PTI Photo/Mitesh Bhuvad) (PTI12_3_2019_000172B)
(प्रतीकात्मक तस्वीर: पीटीआई)

नई दिल्ली: हाल ही में प्रकाशित एनसीआरबी के नवीनतम आंकड़ों के मुताबिक बलात्कार के मामलों में देश में सजा की दर अब भी मात्र 27.2 प्रतिशत है. सामाजिक कार्यकर्ताओं का कहना है कि आपराधिक न्याय प्रणाली में खामियों की वजह से ऐसा हो रहा है.

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के मुताबिक 2018 में बलात्कार के 1,56,327 मामलों में मुकदमे की सुनवाई हुई. इनमें से 17,313 मामलों में सुनवाई पूरी हुई और सिर्फ 4,708 मामलों में दोषियों को सजा हुई. आंकड़ों के मुताबिक 11,133 मामलों में आरोपी बरी किए गए जबकि 1,472 मामलों में आरोपियों को आरोपमुक्त किया गया.

किसी मामले में आरोपमुक्त तब किया जाता है जब आरोप तय नहीं किए गए हों. वहीं मामले में आरोपियों को बरी तब किया जाता है जब मुकदमे की सुनवाई पूरी हो जाती है. खास बात यह है कि 2018 में बलात्कार के 1,38,642 मामले लंबित थे.

एनसीआरबी के आंकड़ों के मुताबिक बलात्कार के मामलों में सजा की दर 2018 में पिछले साल के मुकाबले घटी है. 2017 में सजा की दर 32.2 प्रतिशत थी. उस वर्ष बलात्कार के 18,099 मामलों में मुकदमे की सुनवाई पूरी हुई और इनमें से 5,822 मामलों में दोषियों को सजा हुई थी.

बलात्कार के खिलाफ कानून को 2012 में निर्भया कांड के बाद सख्त किए जाने के बावजूद सजा की दर कम ही रही है.

महिला कार्यकर्ताओं का कहना है कि न्यायिक प्रणाली में आमूल-चूल बदलाव करने की जरूरत है जिससे पीड़ितों और यौन हमलों की पीड़ितों को शीघ्रता से न्याय मिल सके.

महिला सशक्तिकरण समूह ‘सहेली’ की वाणी सुब्रमण्यन कहती हैं कि निर्भया की घटना कोई अकेला मामला नहीं था.

उन्होंने कहा, ‘देश में यौन हमले नियमित रूप से हो रहे हैं. हमें ऐसी सजा तय करनी होगी जो ऐसे अपराधों को अंजाम देने वालों को रोकने के लिए सच्चे निवारक के तौर पर काम करे.’

महिला अधिकार कार्यकर्ता और भाकपा नेता एनी राजा ने कहा कि फास्ट ट्रैक अदालतों की संख्या बढ़ाना ही यौन हिंसा के मामलों में सजा की कम दर का समाधान नहीं हो सकता.

वह केंद्र द्वारा महिलाओं और बच्चों के खिलाफ यौन अपराधों के मुकदमों की त्वरित सुनवाई के लिये 1,023 विशेष अदालतों के गठन के संदर्भ में यह बात कह रही थीं.

उन्होंने कहा, ‘हमें पुलिस को भी संवेदनशील बनाने की जरूरत है. दिल्ली पुलिस की कर्मियों में भी, आपको पूछना चाहिए कि बलात्कार के खिलाफ कानून को लेकर उनमें कितनी जागरूकता है. यही वजह है कि हम व्यापक बदलाव और न्यायिक सुधारों की मांग कर रहे हैं.’

राजा ने कहा कि बलात्कार के मामलों में आधारभूत ढांचों और सुविधाओं के लिए ज्यादा बजटीय आवंटन की आवश्यकता है.

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