20 विपक्षी दलों ने कहा, एनआरसी का विरोध करने वाले सभी मुख्यमंत्री एनपीआर पर रोक लगाएं

कांग्रेस की अगुवाई में सोमवार को हुई विपक्षी दलों की बैठक में संशोधित नागरिकता क़ानून को तत्काल वापस लेने और एनआरसी व एनपीआर पर रोक लगाए जाने की मांग करते हुए प्रस्ताव पारित किया गया.

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New Delhi: Congress interim President Sonia Gandhi, party leaders Rahul Gandhi and Ghulam Nabi Azad, left leaders Sitaram Yechury and D Raja, Jharkhand CM Hemant Soren and others after an Opposition leaders meeting to discuss the current political situation following widespread protests against the amended Citizenship Act and the violence on campuses, in New Delhi, Monday, Jan. 13, 2020. (PTI Photo/Subhav Shukla)(PTI1_13_2020_000128B) *** Local Caption ***

कांग्रेस की अगुवाई में सोमवार को हुई विपक्षी दलों की बैठक में संशोधित नागरिकता क़ानून को तत्काल वापस लेने और एनआरसी व एनपीआर पर रोक लगाए जाने की मांग करते हुए प्रस्ताव पारित किया गया.

New Delhi: Congress interim President Sonia Gandhi, party leaders Rahul Gandhi and Ghulam Nabi Azad, left leaders Sitaram Yechury and D Raja, Jharkhand CM Hemant Soren and others after an Opposition leaders meeting to discuss the current political situation following widespread protests against the amended Citizenship Act and the violence on campuses, in New Delhi, Monday, Jan. 13, 2020. (PTI Photo/Subhav Shukla)(PTI1_13_2020_000128B) *** Local Caption ***
सोमवार को हुई बैठक के बाद विपक्ष के नेता. (फोटो: पीटीआई)

नई दिल्लीः कांग्रेस की अगुवाई में सोमवार को 20 विपक्षी पार्टियों ने एक प्रस्ताव पारित कर नागरिकता कानून को वापस लेने और राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) और राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर (एनपीआर) पर तत्काल रोक लगाने की मांग की.

कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी द्वारा बुलाई गई इस बैठक में 20 दलों के नेता शामिल हुए थे और बैठक में सीएए के विरोध में हुए प्रदर्शनों और कई विश्वविद्यालय परिसरों में हिंसा के बाद पैदा हुए हालात, आर्थिक मंदी तथा कई अन्य मुद्दों पर चर्चा की गई।

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, एनपीआर को प्रस्तावित एनआरसी के लिए आधार बताते हुए इस प्रस्ताव में कहा गया, ‘नागरिकता कानून, एनपीआर और एनआरसी असंवैधानिक है, जो मुख्य रूप से गरीबों, पिछड़ों, अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजातियों और भाषाई और धार्मिक अल्पसंख्यकों को निशाना बनाता है.’

इसमें कहा गया, ‘वे सभी मुख्यमंत्री जिन्होंने कहा कि वे अपने-अपने राज्यों में एनआरसी को लागू नहीं करेंगे, उन्हें एनपीआर को भी रद्द करना चाहिए क्योंकि यह एनआरसी का आधार है.’

इस प्रस्ताव में आर्थिक संकट का उल्लेख करते हुए कहा गया कि इन मुद्दों का समाधान निकालने और लोगों को राहत देने के बजाए भाजपा सरकार सांप्रदायिक ध्रुवीकरण को तेज करने के खतरनाक मार्ग पर आगे बढ़ गई है.’

इस दौरान कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी ने नागरिकता कानून और एनआरसी पर देश को गुमराह करने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह को जिम्मेदार ठहराते हुए कहा, ‘कुछ सप्ताह पहले ही दोनों ने अपने ही बयानों का खंडन किया था और उकसावे वाले बयान जारी रखे थे.’

उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि प्रधानमंत्री और गृह मंत्री ने सीएए और एनआरसी पर देश को गुमराह किया है। बैठक में सोनिया ने आरोप लगाया, ‘सरकार ने दमन चक्र चला रखा है, नफरत फैला रही है और लोगों को समुदाय के आधार पर बांट रही है।’

उन्होंने आगे कहा, ‘देश में अप्रत्याशित अशांति है। संविधान को कमजोर किया जा रहा है और सरकारी मशीनरी का दुरुपयोग किया जा रहा है। देश के हिस्सों खासकर उत्तर प्रदेश में समाज के बड़े तबकों को प्रताड़ित किया जा रहा है और उन पर हमले किए जा रहे हैं।’

उन्होंने दावा किया, ‘असम में एनआरसी उल्टा पड़ गई। मोदी-शाह सरकार अब एनपीआर की प्रक्रिया को करने में लगी है। यह स्पष्ट है कि एनपीआर को पूरे देश में एनआरसी लागू करने के लिए किया जा रहा है।’

संसद भवन एनेक्सी में हुई बैठक में कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी, पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी, राकांपा प्रमुख शरद पवार, कांग्रेस के वरिष्ठ नेता अहमद पटेल,  के एंटनी, केसी वेणुगोपाल, गुलाम नबी आजाद और रणदीप सुरजेवाला के साथ माकपा के सीताराम येचुरी, भाकपा के डी. राजा, झामुमो नेता एवं झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन, राकांपा के प्रफुल्ल पटेल, राजद के मनोज झा, नेशनल कॉन्फ्रेंस के हसनैन मसूदी और रालोद के अजित सिंह मौजूद थे।

इसके साथ ही आईयूएमएल के पीके कुन्हालीकुट्टी, लोकतांत्रिक जनता दल के शरद यादव, पीडीपी के मीर मोहम्मद फैयाज, जद (एस) के डी. कुपेंद्र रेड्डी, हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा के जीतन राम मांझी, रालोसपा के उपेंद्र कुशवाहा तथा कई अन्य दलों के नेता भी बैठक में शामिल हुए थे।

हालांकि, बसपा, आम आदमी पार्टी, तृणमूल कांग्रेस और डीएमके ने इस बैठक से दूरी बनाए रखी.

इससे पहले मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) ने भी एनआरसी का विरोध करने वाले राज्यों के मुख्यमंत्रियों से अपने-अपने राज्यों में राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर (एनपीआर) की प्रक्रिया पर फिलहाल रोक लगाने को कहा था.

माकपा पोलितब्यूरो ने केंद्र सरकार से नए नागरिकता कानून को वापस लेने को भी कहा था.

बता दें कि माकपा पोलितब्यूरो की इस सप्ताहांत हुई बैठक में देश के राजनीतिक और आर्थिक स्थिति और नागरिकता कानून के खिलाफ लगातार हो रहे प्रदर्शनों पर चर्चा हुई थी.

पार्टी ने केंद्र सरकार पर शांतिपूर्ण प्रदर्शनों को बर्बर तरीके से कुचलने का आरोप लगाते हुए निर्दोष लोगों के खिलाफ लगाए गए झूठे मामलों को तत्काल वापस लेने और गिरफ्तार किए गए सभी लोगों की रिहाई करने की भी मांग की.

माकपा ने बैठक के बाद जारी बयान में कहा, ‘नागरिकता कानून, एनआरसी, एनपीआर के विरोध में सामूहिक आंदोलन में छात्र, युवा और आम नागरिक सभी शामिल हैं, जो इन कानूनों से संविधान और इसके लोकतांत्रिक धर्मनिरपेक्ष मूल्यों को होने वाले खतरों को स्पष्ट तौर पर देख पा रहे हैं. बीते एक महीने से देश के हर हिस्से में रोजाना प्रदर्शन हो रहे हैं. सबसे अधिक बर्बरता उत्तर प्रदेश में शांतिपूर्ण ढंग से प्रदर्शन कर रहे प्रदर्शनकारियों पर हुई, विशेष रूप से मुस्लिम समुदाय से जुड़े लोगों पर.’

बयान में कहा गया, ‘नागरिकता नियम 2003 के अनुसार एनपीआर को संग्रहित किया जाना है, जो एनआरसी का आधार होगा. सरकार ने यह अधिसूचित किया था कि एनपीआर की प्रक्रिया एक अप्रैल से 30 सितंबर 2020 तक चलेगी. इस प्रक्रिया से लाखों लोग प्रभावित होंगे और इससे अल्पसंख्यक समुदाय के लोग निशाना बनेंगे.’

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)