नागरिकता कानून के विरोधियों पर रासुका लगाने के खिलाफ व्यापक आदेश नहीं दे सकते: सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने नागरिकता संशोधन कानून को लेकर चल रहे विरोध के दौरान ही कुछ राज्यों और राष्ट्रीय राजधानी में रासुका लगाने के निर्णय को चुनौती देने वाली याचिका पर कहा कि हम सहमत हैं कि रासुका का दुरुपयोग नहीं किया जाना चाहिए लेकिन सभी के लिए कोई आदेश नहीं दिया जा सकता. इससे अव्यवस्था पैदा होगी.

New Delhi: A view of the Supreme Court of India in New Delhi, Monday, Nov 12, 2018. (PTI Photo/ Manvender Vashist) (PTI11_12_2018_000066B)
(फोटो: पीटीआई)

सुप्रीम कोर्ट ने नागरिकता संशोधन कानून को लेकर चल रहे विरोध के दौरान ही कुछ राज्यों और राष्ट्रीय राजधानी में रासुका लगाने के निर्णय को चुनौती देने वाली याचिका पर कहा कि हम सहमत हैं कि रासुका का दुरुपयोग नहीं किया जाना चाहिए लेकिन सभी के लिए कोई आदेश नहीं दिया जा सकता. इससे अव्यवस्था पैदा होगी.

New Delhi: A view of the Supreme Court of India in New Delhi, Monday, Nov 12, 2018. (PTI Photo/ Manvender Vashist) (PTI11_12_2018_000066B)
सुप्रीम कोर्ट (फोटो: पीटीआई)

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को कहा कि नागरिकता संशोधन कानून का विरोध कर रहे लोगों के खिलाफ राष्ट्रीय सुरक्षा कानून (रासुका) लगाने से प्राधिकारियों को रोकने के लिए वह कोई व्यापक आदेश नहीं दे सकता.

शीर्ष अदालत ने कहा कि रासुका के दुरुपयोग की अनुमति नहीं दी जा सकती लेकिन इस संबंध में सभी के लिए कोई निर्देश भी नहीं दिया जा सकता क्योंकि विरोध के दौरान सार्वजनिक संपत्तियों को आग लगाई जा रही है और यह संगठित भी हो सकता है.

जस्टिस अरूण मिश्रा और जस्टिस इन्दिरा बनर्जी की पीठ ने नागरिकता संशोधन कानून को लेकर चल रहे विरोध के दौरान ही कुछ राज्यों और राष्ट्रीय राजधानी में रासुका लगाने के निर्णय को चुनौती देने वाली याचिका पर विचार करने से इंकार कर दिया.

पीठ ने कहा, ‘हमारा मत है कि इस मामले में सामान्य आदेश नहीं दिया जा सकता. हम संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत अधिकार का इस्तेमाल नहीं कर सकते. हम सहमत हैं कि रासुका का दुरुपयोग नहीं किया जाना चाहिए लेकिन सभी के लिए कोई आदेश नहीं दिया जा सकता. इससे अव्यवस्था पैदा होगी.’

याचिकाकर्ता अधिवक्ता मनोहरलाल शर्मा ने कहा कि दिल्ली के शाहीन बाग और दूसरे स्थानों पर शांतिपूर्ण तरीके से नागरिकता संशोधन कानून का विरोध हो रहा है और राज्यों को विरोध कर रहे लोगों के खिलाफ इस कठोर कानून को लागू करने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए.

पीठ ने शर्मा से कहा, ‘आप हमें स्पष्ट घटना बतायें जहां ऐसा हुआ है. हम व्यापक आदेश दे सकते. यदि व्यापक निर्देश दिया गया तो इससे अव्यवस्था फैलेगी. आपको पता नहीं है कि कोलकाता, त्रिपुरा और असम में क्या हो रहा है. संपत्तियों को आग लगाई जा रही है और यह संगठित भी हो सकता हैं. हमें लोगों की पृष्ठभूमि के बारे में जानकारी नहीं है.’

शर्मा ने राहत के लिए बार बार अनुरोध किया और कहा कि शांतिपूर्ण तरीके से विरोध कर रहे लोगों के खिलाफ इस कानून के तहत मामला दर्ज किया जा सकता है. उन्होने कहा कि न्यायालय को उन्हें संरक्षण देना चाहिए.

इस पर पीठ ने कहा, ‘यदि कोई व्यक्ति हिंसा में संलिप्त है और अनेक आपराधिक मामलों में संलिप्त था. तो सरकार को क्या करना चाहिए. क्या सरकार कार्रवाई नहीं करेगी.’

पीठ ने शर्मा से कहा कि वह संशोधित याचिका दायर करें और उन घटनाओं का जिक्र करें जिनमें सीएए का विरोध कर रहे लोगों के खिलाफ रासुका लगाई गई है.

पीठ ने शर्मा से यह भी कहा कि नागरिकता संशोधन कानून प्रकरण में लंबित याचिकाओं में अंतरिम आवेदन दायर कर उचित राहत का अनुरोध कर सकते हैं.

शर्मा ने इस पर अपनी याचिका वापस लेने और रासुका के उल्लंघन के विवरण के साथ संशोधित याचिका दायर करने की अनुमति चाही. पीठ ने उन्हें इसकी अनुमति प्रदान कर दी.

शर्मा ने इस याचिका में रासुका लगाये जाने पर सवाल उठाते हुए कहा था कि नागरिकता संशोधन कानून, राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्ट्रर और राष्ट्रीय नागरिकता पंजी के खिलाफ विरोध कर रही जनता पर दबाव डालने के लिए ही यह कदम उठाया गया है.

दिल्ली के उपराज्यपाल अनिल बैजल ने 10 जनवरी को रासुका की अवधि 19 जनवरी से तीन महीने के लिए बढ़ा दी थी. इस कानून के तहत दिल्ली पुलिस को किसी व्यक्ति को हिरासत में लेने का अधिकार प्राप्त है. रासुका के तहत पुलिस किसी भी व्यक्ति को बगैर किसी मुकदमे के 12 महीने तक हिरासत में रख सकती है.

इस याचिका में शर्मा ने गृह मंत्रालय, दिल्ली, उत्तर प्रदेश, आंध्र प्रदेश और मणिपुर सरकारों को पक्षकार बनाया था.

याचिका में कहा गया है पुलिस को हिरासत में लिए गये व्यक्तियों पर रासुका लगाने की अनुमति देने संबंधी अधिसूचना से संविधान के अनुच्छेद 19 (1) (अभिव्यक्ति और बोलने की आजादी) तथा अनुच्छेद 21 (जीने के अधिकार) के तहत प्रदत्त मौलिक अधिकारों का उल्लंघन होता है. याचिका में इस अधिसूचना को निरस्त करने का अनुरोध किया गया था.

इसके अलावा, याचिका में रासुका के तहत हिरासत मे लिए गये व्यक्तियों की समाज में अपमान और प्रतिष्ठा खोने के कारण 50-50 लाख रूपए का मुआवजा दिलाने का भी अनुरोध किया गया था.

देश के विभिन्न हिस्सों में नागरिकता संशोधन कानून और राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर के खिलाफ इस समय विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं.

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