नागरिकता क़ानून: बिजनौर पुलिस प्रदर्शनकारियों द्वारा गोली चलाने का दावा ​साबित नहीं कर पाई

उत्तर प्रदेश पुलिस ने बिजनौर के नहटौर, नज़ीबाबाद और नगीना में नागरिकता संशोधन क़ानून के ख़िलाफ़ प्रदर्शन के दौरान हिंसा में शामिल होने का आरोप लगाते हुए 100 से अधिक लोगों को गिरफ़्तार किया था और कई एफआईआर दर्ज की थीं. बिजनौर में यूपीएससी की तैयारी करने वाले 20 वर्षीय छात्र सहित दो लोगों की मौत हुई थी.

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Kanpur: Police personnel hits a civilian during their protest against the Citizenship (Amendment) Act that turned violent, at Babu Purwa in Kanpur, Friday, Dec. 20, 2019. (PTI Photo) (PTI12_20_2019_000262B)

उत्तर प्रदेश पुलिस ने बिजनौर के नहटौर, नज़ीबाबाद और नगीना में नागरिकता संशोधन क़ानून के ख़िलाफ़ प्रदर्शन के दौरान हिंसा में शामिल होने का आरोप लगाते हुए 100 से अधिक लोगों को गिरफ़्तार किया था और कई एफआईआर दर्ज की थीं. बिजनौर में यूपीएससी की तैयारी करने वाले 20 वर्षीय छात्र सहित दो लोगों की मौत हुई थी.

Kanpur: Police personnel hits a civilian during their protest against the Citizenship (Amendment) Act that turned violent, at Babu Purwa in Kanpur, Friday, Dec. 20, 2019. (PTI Photo) (PTI12_20_2019_000262B)
(फाइल फोटो: पीटीआई)

बिजनौर: पिछले महीने हुए नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) विरोधी प्रदर्शनों के दौरान दंगा कराने और हत्या के प्रयास के दो आरोपियों को जमानत देते हुए उत्तर प्रदेश के बिजनौर के एक सत्र अदालत ने पुलिस के दावों को खारिज करते हुए कहा कि उन्होंने ऐसा कोई सबूत नहीं दिखाया जिससे पता चले कि आरोपी गोलीबारी या आगजनी में लिप्त थे या पुलिस ने आरोपियों से कोई हथियार जब्त किया हो या कोई पुलिसकर्मी गोली से घायल हुआ हो.

बता दें कि, सीएए विरोधी प्रदर्शनों के दौरान बिजनौर उत्तर प्रदेश में सबसे बुरी तरह से प्रभावित जिलों में से एक था.

इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार, उसे अदालत से मिले दस्तावेज दिखाते हैं कि अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश संजीव पांडे 24 जनवरी के जमानत आदेश में पुलिस ने जो दावे किए थे उनमें गंभीर खामियों की ओर इशारा किया है.’

उन्होंने कहा, ‘मामले के गुण-दोष पर कोई राय बनाए बिना मेरे विचार से परिस्थितियों और अपराधों को देखते हुए अभियुक्त को जमानत दी जानी चाहिए.

जमानत आदेश में की गई टिप्पणियां महत्वपूर्ण हैं क्योंकि बिजनौर पुलिस ने बिजनौर के नाहटौर, नजीबाबाद और नगीना में हिंसा में शामिल होने का आरोप लगाते हुए 100 से अधिक लोगों को गिरफ्तार किया था और कई एफआईआर दर्ज की थीं.

पुलिस ने यह भी माना था कि यूपीएससी की तैयारी करने वाले 20 वर्षीय मोहम्मद सुलेमान को उनके कांस्टेबल मोहित कुमार ने आत्मरक्षा में गोली मारी थी. हालांकि, सुलेमान के पास से कोई हथियार बरामद नहीं हुआ था. इस मामले में सुलेमान के परिवार ने छह पुलिसकर्मियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराया है.

24 जनवरी का जमानत आदेश नजीबाबाद पुलिस स्टेशन में शफीक अहमद और इमरान के खिलाफ दर्ज प्राथमिकी, हत्या और हत्या के प्रयास से संबंधित है.

प्राथमिकी में कहा गया है कि हमें जानकारी मिली कि सीएए-एनआरसी के खिलाफ विरोध प्रदर्शन करते हुए जलालाबाद के 100-150 लोगों ने एनएच -74 पर जाम लगा दिया था… भीड़ का नेतृत्व शफीक अहमद और इमरान ने किया. पुलिस ने भीड़ को समझाया. हालांकि, भीड़ ने मारने की धमकी दी और राष्ट्रीय राजमार्ग पर बैठ गई. इमरान को मौके पर ही गिरफ्तार कर लिया गया और अन्य आरोपी व्यक्ति भाग गया.

अदालत के रिकॉर्ड के अनुसार, पुलिस ने दावा किया कि उन्होंने 20 दिसंबर को प्रदर्शनकारियों को नियंत्रित करने के लिए ‘न्यूनतम बल’ का इस्तेमाल किया.

अभियोजन पक्ष के तर्क को दर्ज करते हुए अदालत ने  कहा, ‘अभियोजन पक्ष ने जमानत का विरोध करते हुए तर्क दिया है कि आरोपी का नाम एफआईआर में लिया गया है. भीड़ से गोलीबारी और पथराव हुआ जिसके कारण पुलिस अधिकारी घायल हो गए. भीड़ को नियंत्रित करने के लिए पुलिस ने न्यूनतम बल का प्रयोग किया. पुलिस ने मौके से .315 गोलियां भी जब्त कीं. अभियुक्त गंभीर आरोपों का सामना कर रहा है और जमानत याचिका को खारिज करना पड़ता है.’

इसके बाद आदेश में पुलिस के दावों में पाई गई खामियों को दर्ज किया गया है, ‘मैंने दोनों पक्षों की दलीलें सुनी हैं और केस डायरी का भी अवलोकन किया है… एफआईआर में नामजद इमरान को ही मौके से गिरफ्तार किया गया है. अन्य किसी भी आरोपी को मौके से गिरफ्तार नहीं किया गया है. अभियोजन पक्ष ने यह भी तर्क दिया है कि पुलिस अधिकारी पथराव के दौरान घायल हुए थे.’

पुलिस द्वारा पेश किए गए सबूतों पर इसने कहा, ‘हालांकि, अभियोजन पक्ष द्वारा ऐसा कोई सबूत नहीं दिया गया है, जिससे पता चलता है कि अभियुक्त व्यक्तियों ने दुकानों में तोड़फोड़ की या आग लगा दी… पुलिस ने दिखाया है कि उसने .315 बोर की गोलियां जब्त की हैं. हालांकि, इसने किसी भी आरोपी व्यक्ति के पास से कोई हथियार नहीं दिखाया है.’

आदेश में कहा गया, ‘अभियोजन पक्ष के अनुसार, किसी भी पुलिस अधिकारी को कोई गोली नहीं लगी है. इससे पता चला है कि पथराव के कारण पुलिस अधिकारियों को चोटें आई हैं. हालांकि, ऐसा कोई सबूत नहीं मिला है जो यह साबित करता हो कि किसी को गंभीर चोटें आई हैं.’

बता दें कि, बीते 20 दिंसबर को हुई हिंसा में पुलिस ने कम से कम 26 लोगों के घायल होने का दावा किया था. पुलिस का दावा था कि इसमें 20 पुलिसवाले हैं. वहीं, सुलेमान और 21 वर्षीय एक अन्य व्यक्ति अनस की मौत हो गई थी.

पुलिस ने जिन 20 लोगों के घायल होने का दावा किया था, उसमें मोहित कुमार के साथ तीन अन्य पुलिसवालों के गोलियों से घायल होने का दावा किया गया था. इसमें नहटौर पुलिस स्टेशन के एसएचओ राजेश सिंह सोलंकी भी शामिल थे.

20 दिसंबर की इस घटना के मामले में नहटौर पुलिस स्टेशन ने 35 नामजद के साथ कई अन्य अज्ञात लोगों के खिलाफ तीन एफआईआर दर्ज की थीं.