शिमला से रिपोर्ट: हाईवे विस्तार में उजड़े कई रोज़गार, कई आशियाने

कालका-शिमला हाईवे को टिम्बर ट्रेल से चम्बा घाट तक फोर लेन करने का काम अगर सही समन्वय के साथ किया जाता तो बहुत सारे लोगों के रोजगार और अशियाने न उजड़ते.

कालका-शिमला हाईवे को टिम्बर ट्रेल से चम्बा घाट तक फोर लेन करने का काम अगर सही समन्वय के साथ किया जाता तो बहुत सारे लोगों के रोज़गार और अशियाने न उजड़ते.

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हाईवे विस्तार परियोजना के दौरान गिराए गए घर. (फोटो: भारत डोगरा)

कालका-शिमला हाईवे को टिम्बर ट्रेल से चम्बा घाट तक फोर लेन करने का कार्य लगभग एक वर्ष से चल रहा है. इस दौरान हुए निर्माण कार्य से गिरे मलबे के कारण पहाड़ी सड़क पर कई खतरे उत्पन्न होते जा रहे हैं. पर स्थानीय लोगों के लिए सबसे अधिक समस्याएं तो इस वर्ष मई महीने के अंत में व जून महीने के आरंभ में उपस्थित हुईं जब धर्मपुर व सूखी जोड़ी जैसे मुख्य बाजार में बड़ी संख्या में दुकानों व कुछ आवासों को हाईवे विस्तार के लिए ध्वस्त कर दिया गया.

यहां के निवासी प्रदीप कुमार बताते हैं, ‘यहां लगभग 2500 रोजगार सृजन करने वाली इकाईयां छोटी दुकानें व ढाबे ऐसे थे जो ध्वस्त हुए या प्रतिकूल प्रभावित हुए हैं. इनमें से लगभग आधे ऐसे हैं जिनके लिए नए सिरे से अपना कारोबार चलाना कठिन होगा. हालांकि प्रशासन की ओर से मुआवजा दिया गया है, व उसका रेट भी ठीक रखा गया है, पर अनेक छोटे स्तर के रोजगार तो निश्चित तौर पर उजड़ गए हैं.’

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धरमपुर और सुखी में हाईवे विस्तार के लिए की गई तोड़फोड़. (फोटो: भारत डोगरा)

प्रदीप कुमार ने आगे बताया कि हाईवे विस्तार के लिए जितनी इकाईयों को हटाना जरूरी था, उनसे डेढ़ गुणा को हटाया गया. सही नियोजन से व सावधानी से कईयों को उजड़ने से बचाया जा सकता था. उन्होंने बताया कि कई दुकानदारों को अंत तक अहसास नहीं था कि उन्हें हटाया जाएगा. उन्हें मात्र थोड़ा सा समय अपना सामान हटाने के लिए दिया गया जिस कारण उनकी स्थिति बहुत कठिन हो गई. स्वयं प्रदीप कुमार के साथ ऐसा ही हुआ.

संजय कुमार एक छोटे स्तर के दुकानदार थे जिन्हें इस तोड़-फोड़ की कार्रवाई में उजाड़ा गया. उन्होंने कहा कि अब वह नए सिरे से रोजगार जमाने का प्रयास करेंगे तो सही पर उनके जैसे अनेक छोटे दुकानदारों के लिए फिर से रोजगार को जमाना बहुत कठिन है.

जिन दुकानों व मकानों को सरकारी रिकॉर्ड में अवैध माना गया है या जो पर्याप्त स्वामित्व का प्रमाण प्रस्तुत नहीं कर पाए हैं, उनमें से अधिकांश मुआवजे से वंचित हैं. इस तरह उजड़ने व नया रोजगार आरंभ न कर पा सकने वाले परिवारों की स्थिति विकट है. धर्मपुर से गुजरने वाले शिमला, कसौली, सनावर आदि के यात्रियों के लिए ज्ञानी का ढाबा जैसा जो भोजनालय दशकों से विख्यात रहा है, वह भी इस कार्रवाई में ध्वस्त कर दिया गया है.

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हाईवे विस्तार के लिए चल रहा निर्माण कार्य. (फोटो: भारत डोगरा)

धर्मपुर-सूखी जोड़ी के अतिरिक्त चंबाघाट, कंजाघाट, शौघी, झाबली, कोटी, दतियार आदि स्थानों पर भी कई परिवार उजड़े हैं.

स्थानीय लोग बताते हैं कि इस फोर लेन को बनाने में पेड़ कटने के जो सरकारी अनुमान हैं, वास्तव में उससे कई गुणा अधिक पेड़ काटे गए हैं. इस कारण स्थानीय पक्षियों व वन्य जीवों पर भी बहुत प्रतिकूल असर पड़ा है. कृषि पशुओं के लिए चारे की कमी हुई है. पर्यटकों को आसपास जो छायादार पेड़ व छोटी-छोटी मनोहर दुकानें आकर्षित करते थे, वे अब नहीं रहे. मुख्य पर्यटक मार्ग के आसपास के स्थानीय रोजगार पर बहुत प्रतिकूल असर पड़ा है.

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हाईवे के किनारे कटे हुए पेड़. (फोटो: भारत डोगरा)

हरे छायादार पेड़ों के स्थान पर जगह-जगह हाईवे विस्तार के दौरान मलबे के ढेर लगने लगे तो दुर्घटनाओं की संभावना बढ़ गई. अनेक स्थानों पर ऊपर से लुढ़कते पत्थर बहुत तेजी से हाईवे पर गिरने लगे जिससे जगह-जगह यात्रा को रोका गया फिर भी दुर्घटनाएं होती रहीं. मुकेश कुमार नामक गढ़खल के ड्राईवर की कार पर बहुत बड़ा पत्थर आ गिरा. उसे बहुत दिनों तक अस्पताल में भर्ती रहना पड़ा. एक वर्ष बीत गया पर महज कुछ कदम ही चल पा रहा है. रोजी-रोटी भी उजड़ गई पर मुआवजा नहीं मिला.

सड़क दुर्घटना के अतिरिक्त लैंडस्लाइड अधिक सक्रिय होने से मलबा नीचे के गांवों में गिरने की संभावना भी बढ़ गई. लैंड स्लाईड या भू-स्खलन जगह-जगह बढ़ जाने की संभावना के कारण बार-बार ट्रैफिक बाधित होने की संभावना हो गई है जबकि फोर लेन बनाने का उद्देश्य तो यह है कि ट्रैफिक बिना किसी बाधा के चले.

दूसरी ओर यदि ट्रैफिक जाम रोकने के लिए महत्त्वपूर्ण पर सीमित स्थानों पर सड़क को कुछ चौड़ा करने का काम स्थानीय लोगों की भागेदारी से होता तो बहुत सी तबाही व प्रतिकूल परिणामों को रोका जा सकता था. चूंकि हिमालय क्षेत्र में हाईवे को फोर लेन करने व उनके विस्तार का कार्य तेजी से आगे बढ़ रहा है, अतः जरूरी सबक लेते हुए अभी से और अधिक तबाही को रोकने के लिए इन परियोजनाओं में जरूरी बदलाव व सुधार करने चाहिए.

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं और अनेक सामाजिक आंदोलनों व अभियानों से जुड़े रहे हैं)

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