सुप्रीम कोर्ट ने नियमों में दी ढील, मुकदमे की सुनवाई तक मिल सकती है अग्रिम जमानत

सुप्रीम कोर्ट की पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने कहा कि अग्रिम जमानत सामान्य तौर पर तब तक समाप्त नहीं किए जाने की जरूरत है जब तक अदालत द्वारा उसे समन किया जाए या आरोप तय किए जाएं. हालांकि यह अदालत पर निर्भर है कि ‘विशेष या खास’ मामलों में इसकी अवधि तय करे.

New Delhi: A view of the Supreme Court of India in New Delhi, Monday, Nov 12, 2018. (PTI Photo/ Manvender Vashist) (PTI11_12_2018_000066B)
(फोटो: पीटीआई)

सुप्रीम कोर्ट की पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने कहा कि अग्रिम जमानत सामान्य तौर पर तब तक समाप्त नहीं किए जाने की जरूरत है जब तक अदालत द्वारा उसे समन किया जाए या आरोप तय किए जाएं. हालांकि यह अदालत पर निर्भर है कि ‘विशेष या खास’ मामलों में इसकी अवधि तय करे.

New Delhi: A view of the Supreme Court of India in New Delhi, Monday, Nov 12, 2018. (PTI Photo/ Manvender Vashist) (PTI11_12_2018_000066B)
सुप्रीम कोर्ट (फोटो: पीटीआई)

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को कहा कि एक व्यक्ति को दी गई अग्रिम जमानत जरूरी नहीं कि एक तय अवधि के लिए सीमित हो और यह मुकदमे की सुनवाई पूरी होने तक जारी रह सकती है.

न्यायालय ने कहा कि हालांकि यह अदालत पर निर्भर है कि वह ‘विशेष या खास’ मामलों में इसकी अवधि तय करे.

जस्टिस अरुण मिश्रा की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने कहा कि अग्रिम जमानत सामान्य तौर पर तब तक समाप्त नहीं किए जाने की जरूरत है जब तक अदालत द्वारा उसे समन किया जाए या आरोप तय किए जाएं. उन्होंने कहा कि यह (अग्रिम जमानत) सुनवाई पूरी होने तक जारी रह सकती है.

पीठ में जस्टिस इंदिरा बनर्जी, विनीत सरन, एम आर शाह और एस रवींद्र भट भी शामिल हैं.

न्यायालय ने कहा, ‘…यह अदालत मानती है कि किसी व्यक्ति को दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 438 (गिरफ्तारी की आशंका वाले व्यक्ति को जमानत देने के निर्देश से जुड़ी धारा) के तहत दिया गया संरक्षण निश्चित रूप से एक तय अवधि तक सीमित नहीं होना चाहिए. बिना किसी समय की बंदिश के इसका लाभ आरोपी को मिलना चाहिए.’

पीठ ने कहा कि दंड प्रक्रिया संहिता की के प्रावधानों के तहत सामान्य स्थिति में एक व्यक्ति को अग्रिम जमानत दी जाती है और अगर कोई विशेष परिस्थिति या कारक इस अपराध के संदर्भ में सामने आते हैं तो यह अदालत पर निर्भर करता है कि वह उचित शर्त लगा सकती है.

इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार, अदालत ने कहा कि ‘संसद ने पूर्व-गिरफ्तारी या अग्रिम जमानत देने, विशेषकर अवधि के संबंध में या चार्जशीट दायर होने तक या अदालतों की या गंभीर अपराधों के मामलों शक्ति या विवेक पर पर्दा डालना उचित नहीं समझा.

इसलिए यह समाज के व्यापक हितों में नहीं होगा यदि न्यायालय न्यायिक व्याख्या द्वारा उस शक्ति के अभ्यास को सीमित करता है. इसका खतरा यह होगा कि पिछले 46 वर्षों में जिस कानून को विस्तृत बनाए रखने का प्रयास किया गया है उसका प्रभाव बहुत ही संकीर्ण हो जाएगा.

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अग्रिम जमानत के लिए आवेदन का फैसला करते समय अदालत को कुछ बातों को ध्यान में रखना चाहिए. आवेदन ठोस तथ्यों पर आधारित होना चाहिए न कि एक या दूसरे विशिष्ट अपराध से संबंधित अस्पष्ट या सामान्य आरोपों पर.

कोर्ट ने कहा कि प्राथमिकी दर्ज होने से पहले ही आवेदन किया जा सकता है जब तक कि तथ्य स्पष्ट नहीं हो जाते और गिरफ्तारी के लिए उचित आधार नहीं हो. यहां तक कि सीमित अवधि के लिए अंतरिम जमानत देने से पहले अदालत सरकारी वकील को नोटिस जारी कर सकती है और तथ्यों की मांग कर सकती है.

आदेश में कहा गया, ‘अदालत को अपराध की प्रकृति, व्यक्ति की भूमिका, जांच के दौरान उसके प्रभाव को प्रभावित करने, या सबूतों के साथ छेड़छाड़ करने (गवाहों को डराने सहित), न्याय से भागने की संभावना (जैसे देश छोड़ने) की संभावना आदि पर विचार करना होगा.’

शर्तें लागू करने अदालतों छूट देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस पर हर मामले में अलग-अलग आधार पर फैसला करना होगा जो कि राज्य या जांच एजेंसी द्वारा उपलब्ध कराई गई सामग्री पर निर्भर करता है.

सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि अग्रिम जमानत का आदेश इस अर्थ में खाली नहीं होना चाहिए कि वह अभियुक्तों को आगे के अपराध करने में सक्षम करे और गिरफ्तारी से अनिश्चितकालीन सुरक्षा के लिए राहत का दावा करे.

यह आदेश जांच एजेंसी यह अधिकार भी देगा कि वह किसी भी शर्त के उल्लंघन की स्थिति में अभियुक्त को गिरफ्तार करने के लिए अदालत जा सके.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)

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