आरटीआई संशोधन क़ानून को चुनौती देने वाली जयराम रमेश की याचिका पर कोर्ट ने नोटिस जारी किया

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता जयराम रमेश ने अपनी याचिका में कहा है कि आरटीआई क़ानून में संशोधन करने का मुख्य उद्देश्य आरटीआई के तहत बने संस्थानों को प्रभावित करना है ताकि वे स्वतंत्र और निष्पक्ष होकर काम न कर पाएं.

(फोटो: पीटीआई)

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता जयराम रमेश ने अपनी याचिका में कहा है कि आरटीआई क़ानून में संशोधन करने का मुख्य उद्देश्य आरटीआई के तहत बने संस्थानों को प्रभावित करना है ताकि वे स्वतंत्र और निष्पक्ष होकर काम न कर पाएं.

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(फोटो: पीटीआई)

नई दिल्ली: पूर्व केंद्रीय मंत्री और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता जयराम रमेश द्वारा सूचना का अधिकार कानून में किए गए संशोधनों को खारिज करने की मांग वाली याचिका पर जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली सुप्रीम कोर्ट पीठ ने केंद्र को नोटिस जारी किया है. इस पीठ में जस्टिस केएम जोसेफ भी हैं.

बार एंड बेंच के मुताबिक रमेश ने अपनी याचिका में कहा, ‘आरटीआई कानून में संशोधन करने का मुख्य उद्देश्य आरटीआई के तहत बने संस्थानों को प्रभावित करना है ताकि वे स्वतंत्र और निष्पक्ष होकर काम न कर पाएं. सरकार इन संस्थानों से डरती है इसलिए इस संशोधन के जरिए वे इनकी स्वतंत्रता और निष्पक्षता के पर काटना चाहते हैं.’

जयराम रमेश ने कहा कि नया आरटीआई संशोधन कानून साल 2005 में बने मूल आरटीआई कानून का उल्लंघन है. यह संविधान के अनुच्छेद 14, 19 (1) (ए) और 21 के तहत मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता है. उन्होंने यह भी कहा कि ये संशोधन सुप्रीम कोर्ट के फैसलों का भी उल्लंघन है.

पिछले साल जुलाई महीने में संसद ने सूचना का अधिकार (संशोधन) विधेयक, 2019 पारित किया था, जिसके तहत केंद्र एवं राज्य के सूचना आयुक्तों की सैलरी, कार्यकाल और सेवा शर्तों को निर्धारित करने का अधिकार केंद्र सरकार को मिल गया है.

इस संशोधन से पहले मुख्य सूचना आयुक्त एवं सूचना आयुक्तों का कार्यकाल पांच साल या 65 साल की उम्र तक, जो भी पहले हो, के लिए तय था. इसके अलावा केंद्रीय सूचना आयुक्त का दर्जा केंद्रीय चुनाव आयुक्त और सूचना आयुक्त का दर्जा चुनाव आयुक्त के बराबर था और इसी आधार पर उन्हें सैलरी दी जाती थी.

हालांकि मोदी सरकार ने आरटीआई कानून में संशोधन कर इन चीजों को तय करने का अधिकार अपने पास ले लिया है. नए आरटीआई नियम के मुताबिक केंद्रीय सूचना आयुक्त का दर्जा हटाकर कैबिनेट सचिव और सूचना आयुक्त का दर्जा घटाकर केंद्र सरकार के सचिव के बराबर कर दिया गया है.

इसी तरह राज्य के सूचना आयुक्तों के भी दर्जे को घटा दिया गया है. कार्यकर्ताओं का आरोप है कि सूचना आयुक्तों का दर्जा और उनका कार्यकाल कम करने से आरटीआई कानून के कामकाज पर काफी बुरा प्रभाव पड़ेगा और ये आम जनता के लिए नुकसान है.

इस विधेयक पर चर्चा के दौरान कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने इसका कड़ा विरोध किया था और कहा था कि आरटीआई के जरिए इस सरकार के खिलाफ कई खुलासे हुए हैं, जिसकी वजह से ये संशोधन लाया गया है ताकि कानून को कमजोर किया जा सके.

आरटीआई संशोधन विधेयक पर बहस के दौरान जयराम रमेश ने केंद्रीय सूचना आयोग के पांच महत्वपूर्ण आदेशों का उल्लेख किया और आरोप लगाया कि सरकार सीआईसी को पीएमओ की कठपुतली बनाना चाह रही है.

सीआईसी के ये आदेश प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की डिग्री को सार्वजनिक करने, नोटबंदी पर हुई रिजर्व बैंक की बैठक से संबंधित जानकारी का खुलासा करने, रघुराम राजन द्वारा प्रधानमंत्री कार्यालय को भेजे गए बड़े फ्रॉड करने वालों की सूची सार्वजनिक करने, रघुराम राजन द्वारा प्रधानमंत्री कार्यालय को भेजे गए बड़े फ्रॉड करने वालों की सूची सार्वजनिक करने, काले धन पर जानकारी देने और फर्जी राशन कार्ड के बारे में जानकारी देने से जुड़े हुए हैं.

अब जयराम रमेश ने आरटीआई संशोधन कानून को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है और सभी संशोधनों को खारिज करने की मांग की है. सुप्रीम कोर्ट के अलावा केरल हाईकोर्ट ने भी इसी तरह की याचिका पर केंद्र को नोटिस जारी किया था.

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