दिल्ली विधानसभा चुनावः चांदनी चौक के चुनावी मैदान में पुराने चेहरे नए दल के साथ उतरे

देश का व्यापारिक केंद्र कहे जाने वाले चांदनी चौक विधानसभा क्षेत्र में 1998 से 2013 तक लगातर चार बार कांग्रेस जीती है, लेकिन 2015 में आम आदमी पार्टी की अलका लांबा ने इस सीट से जीत दर्ज की. 1993 में पहली और आखिरी बार भाजपा इस सीट से जीती थी.

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लाल क़िला. (फोटो साभार: विकिमीडिया कॉमंस)

देश का व्यापारिक केंद्र कहे जाने वाले चांदनी चौक विधानसभा क्षेत्र में 1998 से 2013 तक लगातर चार बार कांग्रेस जीती है, लेकिन 2015 में आम आदमी पार्टी की अलका लांबा ने इस सीट से जीत दर्ज की. 1993 में पहली और आखिरी बार भाजपा इस सीट से जीती थी.

लाल किला (फोटोः द वायर)
लाल किला (फोटोः द वायर)

नई दिल्लीः दिल्ली विधानसभा चुनाव के मद्देनजर देश का व्यापारिक केंद्र समझे जाने वाले चांदनी चौक विधानसभा क्षेत्र में सियासी गहमागहमी तेज हो गई है.

इस बार मतदाता बिजली, पानी, सीवर, ट्रैफिक, सड़कें, स्वास्थ्य और शिक्षा के साथ-साथ जीएसटी और सीलिंग के मुद्दों पर मतदान केंद्र का रुख करेंगे. इसके साथ ही दो उम्मीदवारों के पार्टी बदलने का मामला भी मतदाताओं के बीच चर्चा में बना हुआ है.

चांदनी चौक लोकसभा क्षेत्र की बात करें तो ये कांग्रेस का गढ़ रहा है लेकिन विधानसभा में यहां कांग्रेस लंबे समय से सत्ता से दूर है. मिली-जुली आबादी वाले चांदनी चौक में 1998 से लेकर 2013 तक कांग्रेस का दबदबा रहा. कांग्रेस के प्रह्लाद सिंह साहनी लगातार चार बार इस सीट से विधायक रहे लेकिन 2015 में आम आदमी पार्टी की उम्मीदवार अलका लांबा ने इस सीट से जीत दर्ज की.

20 साल तक कांग्रेस में रहीं अलका लांबा ने 2015 में आम आदमी पार्टी की टिकट से चुनाव लड़ा और भाजपा के सुमन कुमार गुप्ता को हराकर इस सीट से जीत दर्ज की.

1993 में पूर्ण विधानसभा का दर्जा पाने वाली दिल्ली विधानसभा में हुए पहले चुनाव में भाजपा के वासुदेव कैप्टन ने पहली जीत हासिल की और यह जीत यहां से भाजपा के लिए पहली और आखिरी जीत भी साबित हुई.

चांदनी चौक में 2015 में हुए विधानसभा चुनाव जैसी स्थिति ही एक बार दोबारा देखने को मिल रही है. बस फर्क इतना है कि इस बार उम्मीदवारों के चेहरे वही हैं लेकिन उनकी पार्टियां बदल गई हैं.

अलका लांबा आम आदमी पार्टी छोड़कर एक बार फिर कांग्रेस में लौट आई हैं, तो वहीं प्रह्लाद सिंह साहनी ने कांग्रेस का हाथ छोड़कर आम आदमी पार्टी का दामन थाम लिया है.

वहीं, इन दोनों के सामने भाजपा ने एक बार फिर सुमन कुमार गुप्ता को चुनावी मैदान में उतारा है.

स्थानीय मुद्दों के साथ राष्ट्रीय मुद्दे भी चर्चा में

पुरानी दिल्ली के चांदनी चौक में गंदा और प्रदूषित पानी, सीवर की समस्या, बिजली के ओवरहेड तारों का जाल, संकरी गलियां होने से सिर्फ बारिश ही नहीं आम दिनों में भी जलभराव जैसे स्थानीय मुद्दे हैं, जिन्हें ध्यान में रखकर यहां के मतदाता वोट करने वाले हैं. इसके अलावा नागरिकता संशोधन कानून, राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर (एनआरसी) जैसे राष्ट्रीय मुद्दे भी जनता के मन में हैं.

केजरीवाल सरकार के पांच साल के कार्यकाल में हुए कामकाज से उत्साहित रिक्शा चालक आलम कहते हैं, ‘चांदनी चौक की जनता आम आदमी पार्टी के काम खुश है. उनके कामों की हर जगह चर्चा हो रही है, इसलिए इस बार भी केजरीवाल ही जीतेंगे.’

पिछले 10 साल से यहां कपड़े की दुकान चला रहे श्यामसुंदर कहते हैं, ‘केजरीवाल सरकार ने शिक्षा के क्षेत्र में बेहतरीन काम किया है इसलिए मैं उन्हें ही वोट दूंगा. मुझे उम्मीद है कि अगले पांच साल में केजरीवाल सरकार और भी बेहतरीन काम करेगी. उनका काम तारीफ के काबिल है.

देश में हो रही मंदिर-मस्जिद की सियासत पर वह कहते हैं, ‘हमें न तो मंदिर चाहिए, न मस्जिद चाहिए. हमें शिक्षा और रोजगार चाहिए, केजरीवाल पढ़े-लिखे इंसान है, उनके नेतृत्व में अच्छा काम हुआ है और आगे भी होगा. बेरोजगारी बढ़ रही है इसलिए एक ऐसी सरकार चाहिए जो लोगों को रोजगार दे सके.’

चांदनी चौक (फोटोः द वायर)
चांदनी चौक की एक गली. (फोटोः द वायर)

बीतें पांच साल में चांदनी चौक में विकास से जुड़ा कोई भी काम न होने का दावा करने वाले स्थानीय मतदाता उदयवीर सिंह कहते हैं, ‘चांदनी चौक में बीते पांच साल में कोई काम नहीं हुआ. डेढ़ साल हो गया है, सड़कें खोदकर रखी हुई हैं, सिर्फ ये दिखाने के लिए कि विकास कार्य हो रहे हैं लेकिन हो कुछ नहीं रहा. काम-धंधे सब चौपट हो गए हैं. चांदनी चौक सौंदर्यीकरण के नाम पर बीते दो साल से कुछ नहीं हुआ. एक जगह सड़कें बनाकर बस पुताई कर दी है, दो लाइटें लगा दी हैं. इसे विकास कहते हैं क्या? हम तो भाजपा को वोट देंगे. हमारा मोदी सही है.’

वहीं एक और स्थानीय मतदाता आनंद कहते हैं, ‘यहां की प्रमुख समस्या ट्रैफिक जाम, सीवर, और सार्वजनिक शौचालयों का न होना है. केजरीवाल मुफ्त की रेवड़ियां बांट रहे हैं, वो दाल-रोटी मुफ्त क्यों नहीं कर देते? राशन फ्री कर दें? लोगों को ताकि कमान ही न पड़े. केजरीवाल सरकार तो मुफ्तखोरी की आदत डाल रही है. मुफ्त की योजनाओं में जो पैसा जाएगा, वो पैसा तो जनता का है, उनकी निजी संपत्ति थोड़ी है, जिसका वो नाजायज इस्तेमाल कर रहे हैं!’

केंद्र में मोदी और दिल्ली में केजरीवाल के होने के समीकरण पर एक शख्स कहते हैं, ‘केंद्र में मोदी बिल्कुल सही है और दिल्ली में केजरीवाल बहुत बढ़िया है. मोदी ने देश की सुरक्षा को लेकर सख्त कदम उठाए हैं. धारा 370 हटाई, राम मंदिर का मुद्दा सुलझाया, घुसपैठियों पर लगाम लगा रहे हैं, नागरिकता कानून लेकर आए, ये बहुत बढ़िया कदम हैं. केंद्र में मोदी को हर बार आना चाहिए जबकि दिल्ली में केजरीवाल ने पांच साल बहुत अच्छी सेवा की है, उन्हें दिल्ली में दोबारा आना चाहिए. उन्होंने शिक्षा, स्वास्थ्य के क्षेत्र में बेहतरीन काम किया है.’

दिल्ली के शाहीन बाग में बीते डेढ़ महीने से नागरिकता संशोधन कानून के विरोध में हो रहे प्रदर्शनों को लेकर भी चांदनी चौक में कुछ लोगों में नाराजगी है.

इस बारे में मंजीत कहते हैं, ‘ये शाहीन बाग में क्या हो रहा है, जो लोग शाहीन बाग में प्रदर्शन कर रहे हैं उन्हें सीएए का मतलब तक नहीं पता है. ये कानून नागरिकता देने का कानून है, लेने का नहीं. इसे लेकर भ्रम फैलाया जा रहा है. मुस्लिम भाइयों को इससे डरने की जरूरत नहीं है. ये बिल बहुत बढ़िया है.’

डीटीसी बसों में महिलाओं के मुफ्त सफ़र पर बंटी मतदाताओं की राय

बीते साल दिल्ली की केजरीवाल सरकार ने डीटीसी बसों में महिलाओं के लिए निशुल्क सफर की शुरुआत की थी. इसके तहत डीटीसी और क्लस्टर बसों में महिलाओं के लिए मुफ्त सफर की व्यवस्था है लेकिन चांदनी चौक के मतदाताओं की राय इस कदम पर बंटी नजर आ रही हैं.

एक स्थानीय मतदाता सुमित कहते हैं, ‘केजरीवाल ने चुनाव पास आते ही बसों में महिलाओं के लिए मुफ्त सफर कर दिया. वे चार साल पहले कहां थे. इन्होंने जनता को पागल समझा है क्या. साढ़े चार तक आप सरकार सोई रही लेकिन अब चुनाव पास आते ही सारी सड़कें खुदवा दीं. यहां की सारी सड़कें टूटी हुई हैं, कुछ काम नहीं हुआ और ये महिलाओं के लिए सफर मुफ्त कर हमें बहलाने की कोशिश कर रहे हैं.’

एक थोक व्यापारी विपिन कहते हैं, ‘डीटीसी बसों में महिलाओं के लिए मुफ्त सफर का फैसला अच्छा है. इससे विशेष रूप से गरीब तबकों की महिलाओं को फायदा होगा. ऐसी महिलाओं को फायदा होगा, जो पूरी तरह से पति और परिवार पर निर्भर है. जनता को क्या चाहिए, सस्ती और मुफ्त सेवाएं और जब कोई सरकार ये मुहैया करा रही है तो इसमें दिक्कत क्या है.’

चांदनी चौक के एक स्कूल में बीते 12 साल से पढ़ा रही रमा कहती हैं, ‘डीटीसी बसों में महिलाओं के लिए मुफ्त सफर से महिलाएं खुश हैं लेकिन मैं चाहती हूं कि ऐसा नहीं करना चाहिए था क्योंकि सरकार को इससे नुकसान होता है. लोगों को निकम्मेपन की आदत पड़ जाती है. किराए में राहत देनी थी, जो सभी के लिए होती, किसी एक जेंडर के लिए नहीं.’

वहीं, एक अन्य व्यापारी कहते हैं, ‘मैं टैक्स पेइंग समुदाय से हूं. मैं केजरीवाल को बिल्कुल वोट नहीं दूंगा क्योंकि मुझे मुफ्त की चीजें नहीं चाहिए. डीटीसी बसों में महिलाओं के लिए यात्रा निशुल्क करने का क्या मतलब है. कोई तुक नहीं बनता. ट्रेडिंग कम्युनिटी जीएसटी की वजह से परेशान है लेकिन इस ओर कुछ नहीं किया गया.’

वे कहते हैं, ‘दिल्ली में आम आदमी पार्टी की 40 और भाजपा की 25 के आसपास सीटें आने वाली हैं. अगर मिडिल क्लास वोटर भाजपा के पास चला जाता है तो भाजपा की सरकार भी बन सकती है. मुस्लिम समुदाय तो भाजपा से लगातार कट रहा है, ये तो तय है कि भाजपा को मुस्लिम समुदाय का वोट नहीं मिलने जा रहा.’

चांदनी चौक से पलायन की समस्या

बीते कई सालों से चांदनी चौक के स्थानीय लोग लगातार नोएडा, गाजियाबाद और गुरुग्राम की ओर रुख कर रहे हैं. यहां के स्थानीय लोगों का एनसीआर की ओर पलायन एक प्रमुख समस्या है.

चांदनी चौक के भागीरथ पैलेस में इलेक्ट्रॉनिक्स की दुकान चलाने वाले रंजीत साहू कहते हैं, ‘चांदनी चौक को दिल्ली का दिल कहते हैं लेकिन इसी दिल में कई छेद भी हैं. यहां की सड़कें टूटी हुई हैं, जिस वजह से लोगों को चलने में दिक्कत आती है. पानी फ्री कर दिया है लेकिन गंदे पानी की सप्लाई होती है. चार-चार यूनिट बिजली की रीडिंग में 350 रुपये बिल आता है. कोई सुविधा नहीं है, विकास के नाम पर कुछ नहीं होगा तो ऐसे में लोग तो यहां से निकलकर बाहर जाएंगे.’

चांदनी चौक (फोटोः द वायर)
चांदनी चौक (फोटोः द वायर)

भागीरथ पैलेस के ही एक व्यापारी रामनाथ कहते हैं, ‘यहां की सड़कें बने हुए दशक हो गए हैं, सीवर लाइन 15 सालों में अब पिछले साल डली है. बिजली के तार देख लीजिए, ऐसे ही खुले लटके हुए हैं, कब कोई बड़ा हादसा हो जाए कोई गारंटी नहीं. यहां पांच मिनट बारिश हो जाए तो  दो दिनों तक कीचड़ जमी रहेगी. इसी वजह से कई लोग इसे कीचड़ पैलेस भी कहते हैं. इसलिए समय के साथ अधिकतर लोग बाहर चले गए हैं. मुश्किल से 10 से 15 परिवार रह रहे हैं.’

मोहल्ला क्लीनिक से खुश मतदाता

2015 में आम आदमी पार्टी की सरकार के गठन के बाद दिल्ली में मोहल्ला क्लीनिक खोले गए थे, जिनका मुख्य उद्देश्य मोहल्ला स्तर पर लोगों को बेहतर स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध कराना है.

मोहल्ला क्लीनिक को लेकर एक स्थानीय रेखा कहती हैं, ‘केजरीवाल सरकार ने बीते पांच साल में आम लोगों के लिए बहुत काम किया है. गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले लोगों को बहुत फायदा हुआ है. सस्ती बिजली, पानी से लोगों की जेब पर भार कम हुआ है. मोहल्ला क्लीनिक तो बेहतरीन योजना है, डॉक्टर की फीस बच गई है. इस योजना को तो राष्ट्रीय स्तर पर बड़े पैमाने पर शुरू करना चाहिए.

एक और स्थानीय रोहतास कहते हैं, ‘दिल्ली ही नहीं देश में स्वास्थ्य का मुद्दा सबसे बड़ा है. यह एक ऐसा क्षेत्र है, जिस पर देश में बहुत ध्यान देने की जरूरत है. आपके मोहल्ले में क्लीनिक है, बढ़िया डॉक्टर हैं, अच्छी दवाएं मिल रही हैं और क्या चाहिए. हमारी तरफ के लोग तो केजरीवाल को ही वोट देंगे.’

यहां के स्थानीय मतदाताओं के विकास कार्य न होने की शिकायत पर इस सीट से कांग्रेस की उम्मीदवार और बीते पांच साल विधायक रहीं अलका लांबा कहती हैं कि नगर निगम ने विकास कार्यों के लिए उनसे पैसा लिया था लेकिन काम नहीं हुआ है तो उसका हिसाब लिया जाएगा.

वे कहती हैं, ‘मैंने पांच साल में अपने क्षेत्र (चांदनी चौक) में काम किया है, मुझे बताने की जरूत नहीं है कि क्या काम हुआ है वो दिखता है लेकिन अगर जनता कह रही है कि सड़कें नहीं बनी हैं, उन्हें दिक्कते हैं तो मैं उस पर अमल करूंगी. सड़कें बनाने का जिम्मा नगर निगम का है, मुझसे विकास कार्यों के लिए पैसा मांगा गया था, मैंने अपनी विधायक निधि से पांच करोड़ रुपये दिए थे लेकिन अगर जनता कह रही है कि काम नहीं हुआ तो मैं उसका पूरा हिसाब लूंगी.’

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