क्या वीडी शर्मा को मध्य प्रदेश भाजपा अध्यक्ष बनाना नाराज़ सवर्णों को मनाने की कोशिश है?

भाजपा ने बीते दिनों खजुराहो से सांसद विष्णुदत्त शर्मा को प्रदेशाध्यक्ष बनाया है. मूल रूप से एबीवीपी से आने वाले शर्मा प्रदेश राजनीति में बेहद कम पहचान रखते हैं, ऐसे में राज्य में पार्टी के बड़े नामों को छोड़कर उन्हें चुनने के फ़ैसले पर सवाल उठ रहे हैं.

//
मध्य प्रदेश भाजपा अध्यक्ष और सांसद वीडी शर्मा. (फोटो साभार: ट्विटर)

भाजपा ने बीते दिनों खजुराहो से सांसद विष्णुदत्त शर्मा को प्रदेशाध्यक्ष बनाया है. मूल रूप से एबीवीपी से आने वाले शर्मा प्रदेश राजनीति में बेहद कम पहचान रखते हैं, ऐसे में राज्य में पार्टी के बड़े नामों को छोड़कर उन्हें चुनने के फ़ैसले पर सवाल उठ रहे हैं.

VD Sharma BJP MP Twitter
खजुराहो से भाजपा सांसद और नवनियुक्त प्रदेशाध्यक्ष विष्णुदत्त शर्मा. (फोटो साभार: ट्विटर/@vdsharmabjp)

मध्य प्रदेश के भाजपा अध्यक्ष के तौर पर जबलपुर सांसद राकेश सिंह की नियुक्ति 2018 के विधानसभा चुनावों के ठीक पहले हुई थी. लेकिन उनके नेतृत्व में भाजपा अपनी जीत का क्रम जारी नहीं रख पाई. भाजपा लगातार चौथी बार सरकार बनाने से चूक गई जिससे राकेश सिंह के नेतृत्व पर अंगुलियां उठने लगीं. पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के साथ उनके मनमुटाव की खबरें भी सुनने को मिलने लगीं.

हार के तुरंत पद प्रदेशाध्यक्ष को हटाने से पार्टी में गलत संदेश जा सकता था, ऊपर से लोकसभा चुनाव भी करीब थे, इसलिए वे अपने पद पर बने रहे. लोकसभा चुनाव के अच्छे प्रदर्शन ने उन्हें बदले जाने की अटकलों पर कुछ समय के लिए विराम लगा दिया.

फिर दो विधानसभा उपचुनावों में पार्टी की हार, भाजपा के दो विधायकों (शरद कौल और नारायण त्रिपाठी) का पार्टी से बगावत करके कांग्रेस के साथ खड़े होना, पार्टी नेताओं का विवादित बयान देना और शिवराज से उनकी पटरी न बैठने जैसे कुछ कारण राकेश के खिलाफ माहौल बनाने लगे.

इसी कड़ी में नवंबर-दिसंबर में राज्य में भाजपा संगठन के चुनाव हुए. तभी नये प्रदेश अध्यक्ष की ताजपोशी होनी थी. राकेश सिंह के नाम पर तब संगठन में सहमति नहीं बन सकी क्योंकि शिवराज सिंह, नरोत्तम मिश्रा, कैलाश विजयवर्गीय, प्रभात झा जैसे दिग्गजों के नाम भी रेस में शामिल थे.

आदिवासी दावेदार के तौर पर केंद्रीय मंत्री फग्गन सिंह कुलस्ते ने स्वयं ही अपना नाम आगे बढ़ा दिया था. बतौर दलित शिवराज सरकार में मंत्री रहे लाल सिंह आर्य भी दावेदार थे.

‘एक अनार, सौ बीमार’ वाले हालातों में केंद्रीय नेतृत्व ने फैसला दिल्ली विधानसभा चुनाव तक टाल दिया और फिर 15 फरवरी को पार्टी ने सबको चौंकाते हुए खजुराहो सांसद विष्णुदत्त शर्मा (वीडी शर्मा) को नया प्रदेशाध्यक्ष बना दिया.

49 वर्षीय वीडी शर्मा 1986-87 से ही भाजपा के अनुषांगिक छात्र संगठन अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) में प्रदेश और राष्ट्रीय स्तर पर करीब ढाई दशक तक विभिन्न पदों पर रहे. इस दरमियान 1995-96 से उन्होंने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के प्रचारक के तौर पर काम करना शुरू कर दिया.

संघ से नजदीकी का लाभ भी मिला और 2007 में एबीवीपी के राष्ट्रीय महासचिव बनाए गए. 2013 में पूरी तरह से भाजपा में शामिल होकर प्रचारक बनकर काम किया. 2015 में केंद्र की भाजपा सरकार ने उन्हें राज्यमंत्री का दर्जा देकर नेहरू युवा केंद्र का उपाध्यक्ष बना दिया. 2016 में उन्हें भाजपा की मप्र इकाई में महामंत्री नियुक्त किया गया.

करीब तीन दशक तक एबीवीपी, संघ और भाजपा का वीडी शर्मा ने सांगठनिक काम तो देखा लेकिन सक्रिय चुनावी राजनीति में पहली बार उनका नाम 2019 में सुना गया.

ग्वालियर-चंबल अंचल के मुरैना जिला निवासी वीडी 2019 के लोकसभा चुनावों में मुरैना सीट से टिकट चाहते थे. लेकिन, केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर द्वारा अपनी ग्वालियर सीट छोड़कर मुरैना आने के कारण उन्हें पीछे हटना पड़ा.

उन्होंने भोपाल सीट नजर गढ़ाई. संघ से नजदीकी के चलते वे टिकट मिलने को लेकर आश्वस्त थे. लेकिन कांग्रेस ने भोपाल सीट पर राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के नाम का ऐलान कर दिया तो वीडी ने दावेदारी वापस ले ली.

अंतत: वे खजुराहो सीट पर चुनाव लड़े जो बाहरियों को जिताने के लिए जानी जाती है. यहां भी वीडी का विरोध हुआ. पार्टी कार्यकर्ताओं ने उनके पुतले जलाए. एक पूर्व विधायक ने विरोध में पार्टी से इस्तीफा दे दिया.

जब वीडी का नाम भोपाल सीट पर आगे था, तब पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल गौर ने उन्हें लेकर यह तक कह दिया था, ‘कौन है ये वीडी शर्मा? मैं तो इसे जानता तक नहीं.’

वही वीडी शर्मा आज प्रदेश भाजपा अध्यक्ष हैं. उनकी नियुक्ति इसीलिए अप्रत्याशित लग रही है कि वे राज्य की राजनीति में जाना-पहचाना नाम नहीं हैं और ये नियुक्ति तब हुई है जब प्रदेश भाजपा में बड़े नामों की कोई कमी नहीं है.

VD Sharma Shivraj Singh Chouhan FB2
पदभार ग्रहण करने से पहले प्रदेश भाजपा कार्यालय में शिवराज सिंह चौहान के साथ पूजा-अर्चन करते वीडी शर्मा (फोटो साभार: फेसबुक/BJP4MP)

वरिष्ठ पत्रकार राकेश दीक्षित कहते हैं, ‘खजुराहो में कोई ढंग से उन्हें पहचानता तक नहीं था. संघ का चहेता होना ही उनका एकमात्र गुण है. संघ ने 2018 के बाद ही राज्य में नेतृत्व परिवर्तन का सोच लिया था. विधानसभा चुनाव के पहले हुए सवर्ण आंदोलन पर भी संघ ने मंथन किया और वीडी को अध्यक्ष बनाने की रूपरेखा हाल ही में भोपाल और इंदौर में हुई संघ की समन्वय बैठक में तय हुई थी. सवर्णों का गुस्सा शांत करने के लिए किसी ब्राह्मण नेता को प्रदेशाध्यक्ष बनाने का फैसला हुआ. ब्राह्मण नेताओं में संघ के चहेते एकमात्र वीडी थे.’

वे आगे कहते हैं, ‘मोदी-शाह के बढ़ते कद के चलते संघ में खुद को प्रासंगिक बनाए रखने की सोच भी हावी है. इसीलिए केरल में भी जिस के. सुरेंद्रन को प्रदेशाध्यक्ष बनाया है, वे भी संघ प्रचारक हैं. एक अन्य बात कि राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा के साथ भी वीडी ने काम किया है. नड्डा की पत्नी जबलपुर की हैं और एबीवीपी में वीडी के साथ थीं. अध्यक्ष बनने में इसका भी लाभ वीडी को मिला.’

वीडी की नियुक्ति में संघ की सिफारिश को तो अहम माना ही जा रहा है. साथ ही और भी कई ऐसे कारण हैं जो वीडी शर्मा के पक्ष में माहौल बनाते दिखते हैं.

पहला कि भाजपा ने अपने संगठन चुनावों में उम्र का क्राइटेरिया रखा था. मंडल अध्यक्ष और जिलाध्यक्ष के लिए क्रमश: अधिकतम 40 और 50 वर्ष उम्र तय थी. युवा नेतृत्व को आगे बढ़ाने की इसी पहल में पार्टी 60 वर्ष से कम उम्र के व्यक्ति को प्रदेश अध्यक्ष बनाना चाहती थी. अत: शिवराज, नरोत्तम और विजयवर्गीय जैसे अनेक नाम स्वत: ही दौर से बाहर हो गए.

दूसरा कि वीडी ब्राह्मण हैं और उस चंबल अंचल से ताल्लुक रखते हैं जहां विधानसभा चुनावों में भाजपा का प्रदर्शन सबसे लचर रहा था, 34 में से 27 सीटों पर हार झेलनी पड़ी थी. हार का एक बड़ा कारण सवर्ण आंदोलन था इसलिए वीडी के जरिए पार्टी अपने ऊपर लगे सवर्ण विरोधी के दाग को धोकर चंबल में फिर से अपनी धाक जमाना चाहती है.

वीडी की नियुक्ति इस लिहाज से भी अहम है कि वे छह अंचलों में विभाजित प्रदेश के तीन अंचलों से प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष ताल्लुक रखते हैं. चंबल अंचल उनकी जन्मभूमि है. मुरैना में वे पैदा हुए, वर्तमान में उनके माता-पिता और भाई ग्वालियर में रहते हैं.

खजुराहो यानी बुंदेलखंड अंचल से वे सांसद हैं. ऐसा पहली बार हुआ है कि बुंदेलखंड का नेता भाजपा अध्यक्ष बना है. वहीं, महाकौशल अंचल के जबलपुर में उनकी ससुराल है.

हालांकि, वीडी के सामने चुनौतियों की भरमार है. पहली चुनौती कि स्वयं से कई गुना अधिक अनुभवी और दिग्गज प्रदेश अनेक भाजपा नेताओं को अपने इशारों पर चलाना और उनके बीच अपनी छवि निर्माण करना.

दूसरी चुनौती कि विपक्ष में बैठी पार्टी को जनता के बीच लोकप्रिय और प्रासंगिक बनाए रखना, कार्यकर्ताओं में जोश फूंकना. शिवराज से तालमेल बिठाना वीडी के लिए जरूरी होगा क्योंकि शिवराज संगठन से परे जाकर रैली और आयोजन कर रहे हैं जिसके चलते पूर्व अध्यक्ष से उनके संबंधों में खटास आई थी.

तीसरी चुनौती, पार्टी नेताओं की अनर्गल बयानबाजी पर रोक जिसमें राकेश सिंह असफल रहे और आए दिन पार्टी की फजीहत हुई. चौथी चुनौती, पार्टी के विधायकों को जोड़े रखना जो कि राकेश सिंह के समय टूट रहे थे. शरद कौल और नारायण त्रिपाठी कांग्रेस से जा मिले थे तो और भी कई विधायक कांग्रेसी नेताओं के संपर्क में रहे. जिससे कांग्रेस को कहने का मौका मिला कि भाजपा के कई विधायक कांग्रेस में शामिल होंगे.

वहीं, संघ की प्रयोगशाला माने जाने वाले मध्य प्रदेश में संघ का एजेंडा लागू करना भी एक चुनौती होगी. अहम चुनौती यह भी होगी कि पार्टी में गुटबाजी न हो.

ज्ञात हो कि गुटबाजी के चलते ही कांग्रेस 15 सालों तक सत्ता से बाहर थी. सत्ता से दूर होने के बाद भाजपा में भी वैसी ही गुटबाजी देखने को मिल रही है. पर सबसे पहले जरूरी है कि वीडी अपनी स्वीकार्यता पार्टी कार्यकर्ताओं के बीच हासिल करें.

अपेक्षाकृत कम लोकप्रिय वीडी को कार्यकर्ता अपना नेता मानेंगे या फिर सब अपने क्षेत्रीय क्षत्रपों के नीचे ही रहेंगे, यह देखना होगा.

राकेश कहते हैं, ‘लोकसभा टिकट पाने में ही उनका विरोध हुआ, लगता नहीं कि उनकी स्वीकार्यता कार्यकर्ताओं में रहेगी. ऐसे हालात बन सकते हैं कि प्रदेश भाजपा के बड़े नामों तले वे दबे रहें. तब पार्टी में समन्वय बनाना उनके लिए बहुत मुश्किल होगा. सत्ता में रहते हुए ऐसा अध्यक्ष हो तो चलता है लेकिन विपक्ष में रहते हुए ऐसा अध्यक्ष जिसकी स्वीकार्यता न हो तो गडबड़ हो सकती है. मुख्यमंत्री कमलनाथ चालाक नेता हैं, भाजपा के लिए मुश्किल दौर होगा. यहां देखना होगा कि संघ के इशारे पर कार्यकर्ता उन्हें कितना सपोर्ट करते हैं.’

जानकारों के मुताबिक, चंबल अंचल में उनके उभार से भी विपरीत हालात बन सकते हैं. नरेंद्र सिंह तोमर, प्रभात झा, नरोत्तम मिश्रा जैसे दिग्गजों का यहां प्रभाव रहा है, वीडी का उभार उन्हें खल सकता है.

बहरहाल, अब प्रदेश भाजपा में सभी अहम पदों पर ब्राह्मण नेताओं का कब्जा हो गया है. विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष गोपाल भार्गव हैं, मुख्य सचेतक नरोत्तम मिश्रा हैं और अब प्रदेशाध्यक्ष वीडी शर्मा हैं. इसलिए कयास लगाए जा रहे हैं कि गोपाल भार्गव की उनके पद से छुट्टी हो सकती है. इसके लिए उन्होंने वीडी को जिम्मेदार माना तो इस लिहाज से पार्टी में समन्वय बनाना फिलहाल तो आसान नहीं दिखता.

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं.)

pkv games bandarqq dominoqq pkv games parlay judi bola bandarqq pkv games slot77 poker qq dominoqq slot depo 5k slot depo 10k bonus new member judi bola euro ayahqq bandarqq poker qq pkv games poker qq dominoqq bandarqq bandarqq dominoqq pkv games poker qq slot77 sakong pkv games bandarqq gaple dominoqq slot77 slot depo 5k pkv games bandarqq dominoqq depo 25 bonus 25 bandarqq dominoqq pkv games slot depo 10k depo 50 bonus 50 pkv games bandarqq dominoqq slot77 pkv games bandarqq dominoqq slot bonus 100 slot depo 5k pkv games poker qq bandarqq dominoqq depo 50 bonus 50 pkv games bandarqq dominoqq