दिल्ली दंगे ने लोगों को अपने ही शहर में बनाया शरणार्थी

उत्तर पूर्वी दिल्ली के शिव विहार में बीते दिनों हुए दंगे के बाद सैकड़ों मुस्लिम परिवारों ने मुस्तफाबाद ने शरण ली है. पीड़ितों को डर है कि अगर वे वापस जाएंगे, तो हिंदुत्व संगठन के लोग उन पर हमला कर सकते हैं

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(फाइल फोटो: रॉयटर्स)

उत्तर पूर्वी दिल्ली के शिव विहार में बीते दिनों हुए दंगे के बाद सैकड़ों मुस्लिम परिवारों ने मुस्तफाबाद ने शरण ली है. पीड़ितों को डर है कि अगर वे वापस जाएंगे, तो हिंदुत्व संगठन के लोग उन पर हमला कर सकते हैं.

Men remove debris in a riot affected area following clashes between people demonstrating for and against a new citizenship law in New Delhi, February 27, 2020. REUTERS/Rupak De Chowdhuri
(फोटो: रॉयटर्स)

नई दिल्ली: दिल्ली के दंगा प्रभावित मुस्तफाबाद के इन्द्रा विहार में गली नंबर 4 की एक तीन मंजिला इमारत के बाहर सीआरपीएफ के छह जवान अपने हथियार लिए खड़े हुए थे. घर के अंदर से रोने की आवाजें आ रही थीं और चारों तरफ अफरा-तफरी का माहौल बना हुआ था. जब हम एक अंधेरे कमरे से होते हुए करीब 15 सीढ़ियां चढ़कर ऊपर पहले फ्लोर पर पहुंचते हैं तो वहां करीब 50-60 मुस्लिम परिवार अपने छोटे-मोटे सामान समेटे हुए गमगीन बैठे हुए थे.

ये परिवार यहां से लगभग 500 मीटर दूर स्थित शिव विहार से अपनी जान बचाकर भागकर आए हैं. स्थानीय लोगों ने बताया कि करीब 700-800 परिवारों को इस इलाके में पलायन करना पड़ा है.

लोगों के घरों, दुकानों, गाड़ियों में इस तरह से आग लगाई गई है कि इनका अंश तक नहीं बचा है. डर का आलम इस कदर था कि लोग सिर्फ अपने बच्चों को ही साथ ला सकें, बाकी सब कुछ पीछे छूट गया.

इस कमरे में कोई पंखा नहीं है और गर्मी बढ़ती जा रही. भीड़ की वजह से सांस लेने में भी मुश्किल होती है. जमीन पर बिछाई गई दरी में मिट्टी और गंदगी का ढेर जमा हुआ है. महिलाएं अपने छोटे बच्चों को चुप कराने की कोशिश कर रहीं थीं क्योंकि उन्हें कई दिनों से सही से खाना और दूध नहीं मिला है.

कमरे के एक कोने में खाली जगह देखकर कुछ बच्चे वहां आपस में खेलना शुरू करते हैं, तभी एक महिला आती हैं और उन्हें डांटकर भगा देती हैं. महिला ने कहा, ‘ये मेरा कोना है. जाओ अपने मां-बाप को ढूंढो. यहां से हटो तुरंत.’

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उस बिल्डिंग के बाहर खड़े सीआरपीएफ के जवान जहां शिव विहार के लोगों ने शरण ले रखी है. (फोटो: द वायर)

इसी बीच कुछ लोग राहत का सामान लेकर आते हैं और लोग उस पर टूट पड़ते हैं. हर कोई अपने लिए ज्यादा से ज्यादा सामान इकट्ठा कर लेना चाहता है. उन्हें डर है कि पता नहीं फिर कब उनका नंबर आएगा. सामान बांटने वाला गुस्से में आ जाता है और कहा, ‘बंद करो ये सब. किसी को कुछ नहीं मिलेगा. ऐसे ही बैठे रहो तुम सब.’

59 वर्षीय शकील अहमद 1994 से ही शिव विहार के तिराहे पर एल (L) आकार में बने अपने 50 गज के तीन मंजिला घर में रहते थे. हिंसा के समय अहमद ने पास में स्थित एक शिव मंदिर को बचाया था. हालांकि ऐसा करना भी उपद्रवियों की भावना में परिवर्तन नहीं ला सका और उन्होंने उनके पूरे घर का जलाकर राख कर दिया.

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शकील अहमद और उनका परिवार. (फोटो: द वायर)

इस समय शकील अहमद ने अपने पूरे परिवार के साथ मुस्तफाबाद में अपने एक दूसरे बेटे के यहां शरण ले रखी है.

उस दिन के पूरे घटनाक्रम को बयान करते हुए शकील अहमद के 38 वर्षीय बेटे जावेद खान ने कहा, ’24 फरवरी के दिन चार घंटे तक हम अपने घर में डरे सहमे बैठे रहे. हमें लगा ये शोर अब शांत हो जाएगा, अब शांत हो जाएगा. लेकिन शोर शांत नहीं हुआ और फिर एक वक्त ऐसा आया कि हमारी दुकान के शटर का ताला तोड़ दिया गया और उसमें आग लगा दी गई.’

उन्होंने आगे कहा, ‘हम अपने बच्चों को दिखाकर गुजारिश कर रहे थे कि यहां हमारी फैमिली रहती है, चले जाओ. लेकिन उन्हें रहम नहीं आया और उन्होंने पत्थर मारना शुरु कर दिया.’

खान की मोटरसाइकिल के स्पेयर पार्ट्स की दुकान थी. उपद्रवियों की पहचान के बारे में पूछे जाने पर शकील अहमद कहते हैं कि सभी हमलावर बाहर के रहने वाले थे. उन्होंने कहा, ‘मैं इतने सालों से यहां रह रहा हूं. अगर हमला करने वाला कोई भी व्यक्ति यहां का होता तो पहचान में आ जाता.’

24 फरवरी की शाम को जावेद खान अपने भाइयों और पड़ोसियों की मदद से भागकर मुस्तफाबाद आ गए थे. अगले दिन जब जाकर उन्होंने देखा तो उनके घर में सिर्फ राख का ढेर बचा था. उनके घर के सामने हिंदुओं के भी तीन घर थे जिसे जला दिया गया है.

खान उस दिन अपने पत्नी और बच्चों के अलावा गुरु नाम के एक हिंदू बच्चे के साथ घर में छिपे हुए थे. उन्होंने कहा, ‘वो हमारे यहां मोटरसाइकिल का काम सीखता था. उसे हम अपने साथ ले आए और अगले दिन बाइज्जत उसे उसके घर पहुंचाया.’

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जावेद खान का घर जलाने से पहले और बाद की स्थिति.

जावेद खान की पत्नी शमा अपने घर की पहले की तस्वीरें दिखाते हुए रोने लगती हैं. उन्होंने कहा, ‘एक-एक चीज जोड़कर इतने सालों में हमने घर बनाया था. मेरे पति की पूरी जवानी कट गई सामान इकट्ठा करते-करते. लेकिन एक पल में ही इन्होंने खाक कर दिया. अपने बच्चे के अलावा मैं कुछ भी अपने साथ नहीं ला सकी. हमारे घर में सामान नहीं है, अब सिर्फ ढांचा बचा है. हमने एक बार भागना शुरू किया तो भागते रहे, पीछे मुड़कर देखने का मौका नहीं था हमारे पास.’

शमा ने बताया कि वे न तो अपने जेवर समेट पाईं और न ही घर की अन्य चीजें ला पाईं. उन्होंने कहा, ‘जीने के लिए अब हमारे पास कुछ भी नहीं बचा. हमें नहीं पता कि हम कहां से शुरुआत करें. सरकार ने जितनी राशि देने की घोषणा की है उतने में मेरे रसोई का सामान भी नहीं आ सकती है. घर बनाना इतना आसान नहीं होता है. अल्लाह के अलावा हमें किसी पर भी यकीन नहीं है.’

शकील अहमद हिंदू और मुस्लिमों के बीच अच्छे संबंध होने का दावा करते हुए कहते हैं कि उनका एक दूसरे के यहां आना-जाना और खानपीना है. खान के बच्चे जिस राजधानी पब्लिक स्कूल में पढ़ते थे, उसे भी जला दिया गया है.

पिछले 20 साल से खातून शिव विहार के एक हिंदू व्यक्ति के मकान में किराए पर रहती थीं. 24 फरवरी को शाम में उनके पति मजदूरी से वापस आए थे, लेकिन हिंसा के डर के बिना खाए-पिए छह लोगों के परिवार के साथ वो मुस्तफाबाद में आ गईं और तब से एक बार भी वापस नहीं गईं हैं.

उन्हें नहीं पता की उनके घर में क्या कुछ बचा भी है लेकिन उन्हें इसकी खुशी है कि उनकी जान बच गई. इसी तरह 50 वर्षीय मोहम्मद शकील भागीरथी विहार में अपनी पत्नी और तीन लड़कों के साथ एक कमरे के घर में रहते थे. कमरे का किराया 2,500 रुपये प्रति महीने था.

शकील अपनी पत्नी शायरा के साथ ठेले पर चाय और खाना बेचने का काम करते थे. उपद्रवियों ने शकील के कमाई का एकमात्र जरिया इस ठेले और उनकी एक मोटरसाइकिल जलाकर राख कर दी.

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शिव विहार से विस्थापित होकर आई महिलाएं. (फोटो: द वायर)

इस घटना के बाद से ही उन्होंने पूरे परिवार के साथ मुस्तफाबाद में एक जानने वाले व्यक्ति के घर में शरण ले रखी है. एक फेरी लगाने वाले व्यक्ति ने एक कमरे के घर में उन्हें रहने का स्थान दिया है.

वे कहते हैं, ‘ये कितने दिन चल पाएगा. किसी न किसी दिन तो हमें जाना होगा. अब कुछ बचा ही नहीं है. वहां पर और लोगों के भी बाइक थे लेकिन उन्होंने मेरी ही बाइक जलाई.’ जिस बिल्डिंग में शकील रहते थे उसमें सीसीटीवी कैमरे लगे हुए थे, लेकिन उपद्रवियों ने उसे भी तोड़ दिया.

शायरा ने बताया ने उपद्रवियों ने उनके जेवर और सभी कीमती सामान को चुरा लिया है. उन्होंने कहा, ‘मेरे बड़े बेटे वकील का रिश्ता लग गया था. उसकी शादी के लिए काफी सामान खरीदकर रखा था. लेकिन वे सब उठा ले गए. हम जिस कपड़े में घर से निकले थे उसी कपड़े में अभी तक हैं.’

शायरा ने अपना हाथ आगे बढ़ाकर कुछ पैसे दिखाते हुए कहा, ‘ये डेढ़ सौ रुपये हैं, नीचे एक दुकान वाले ने दिया है. कुल मिलाकर इतने ही पैसे हैं मेरे पास.’ हमलावरों के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने कहा, ‘ये हम नहीं बता सकते हैं, हमारी जान को खतरा है.’

इसी बिल्डिंग में शकील वाले फ्लोर पर ही बिहार से आने वालीं रुखसाना रहती थीं. तीन साल पहले हार्ट अटैक से उनके पति की मौत हो गई थी. रुखसाना के तीन लड़के और दो लड़कियां हैं. वे घरों में झाडू-पोंछा लगाने का काम करती हैं, जिसके लिए एक घर से 2,000 रुपये प्रति महीने मिलते हैं. ससुराल से कोई रिश्ता नहीं है. कभी कोई उनका हाल जानने नहीं आता है.

कई दिनों की मेहनत के बाद उन्होंने 8,000 रुपये कमाकर रखा था, लेकिन हमलावरों ने ये सब लूट लिया. इसके अलावा गैस सिलेंडर, राशन का सामान, बर्तन वगैरह भी लूटा गया है. उन्होंने कहा, ‘पहले से ही मेरी स्थिति बहुत खराब है. मायके वाले भी मेरा साथ नहीं देते हैं. अब कैसे फिर से सब कुछ बना पाउंगी मैं. पुलिस ने अभी तक मेरी शिकायत नहीं लिखी है.’

उन्होंने आगे कहा, ‘मेरे बच्चे बहुत छोटे हैं. बहुत डरे हुए हैं. कल ही 150 रुपये की दवा लेकर आई हूं. हर पल रोते रहते हैं. जो भी राहत सामग्री बांटी जा रही है वो भी मुझे नहीं मिल पा रही है.’

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जुल्फिकार और उनकी पत्नी. (फोटो: द वायर)

शिव विहार की रहने वालीं 70 वर्षीय नूरजहां अपने सबसे छोटे बेटे आकिब की शादी करने की तैयारी कर रहीं थीं. बड़े बेटे से कोई खास रिश्ता नहीं है इसलिए उन्हें इस बेटे के शादी के काफी सपने पाल रखे थे, हालांकि वे इसे मुकम्मल नहीं कर पाईं.

दंगे के चलते उन्होंने पूरा घर-बार छोड़कर मुस्तफाबाद में आना पड़ा है. उन्होंने कहा, ‘एक समय था कि हम गरीबों की मदद किया करते थे, लेकिन आज हम खाने के मोहताज हो गए.’

नूरजहां बात करते-करते हांफने लगती हैं. वो ब्लड प्रेशर की मरीज हैं. उन्होंने कहा, ‘बेटा, मैं अपना दवा भी नहीं ला पाई. एक ही कपड़े पिछले तीन-चार दिन से पहन रखे हैं. इस उम्र में मैं अब कहां जाऊंगी. ऐसी नफरत का माहौल का कभी नहीं देखा मैंने.’

60 साल के जुल्फिकार ई-रिक्शा चलाकर अपना गुजारा चलाते थे, लेकिन तीन महीने पहले एक दुर्घटना में उनका एक पैर टूट गया, जिसकी वजह से उन्हें अपने पैर में रॉड डलवानी पड़ी.

अभी भी उनकी स्थिति काफी खराब है और बिना किसी सहारे के चल पाना नामुमकिन है. पत्नी नसीमा की भी स्थिति ठीक नहीं रही है. बीच-बीच में उन्हें दौरे पड़ते हैं. वे किराए के घर में रहते थे. हिंसा के चलते इन्हें पूरा घर-बार छोड़कर मुस्तफाबाद आना पड़ा.

उनके ई-रिक्शे को भी उपद्रवियों ने जला दिया और घर का ताला तोड़कर सारा सामान लूटकर ले गए. जुल्फिकार को अभी भी डर है कि अगर वे वापस जाते हैं तो उन पर हमला हो सकता है.

कई शरणार्थियों का कहना है कि उनके कई महत्वपूर्ण दस्तावेज आधार कार्ड, वोटर कार्ड, पैन कार्ड इत्यादि या तो जल गए या फिर उपद्रवियों ने उसे फेंक दिया, ऐसी स्थिति में वे कैसे मुआवजे का लाभ उठा पाएंगे क्योंकि मुआवजा फॉर्म में ये सारे दस्तावेज देने होंगे.

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