राज्यसभा में रंजन गोगोई को नामित किए जाने पर पूर्व न्यायाधीशों और विपक्षी दलों ने की आलोचना

पूर्व न्यायाधीश कुरियन जोसफ सहित कई पूर्व न्यायाधीशों ने पूर्व प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई के राज्यसभा में मनोनयन पर कहा कि सेवानिवृत्ति के बाद पद लेना न्यायपालिका की स्वतंत्रता को कमतर करता है. विपक्षी दलों ने इसे केंद्र सरकार का निर्लज्ज कृत्य क़रार दिया.

पूर्व सीजेआई रंजन गोगोई. (फोटो: पीटीआई)

पूर्व न्यायाधीश कुरियन जोसफ सहित कई पूर्व न्यायाधीशों ने पूर्व प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई के राज्यसभा में मनोनयन पर कहा कि सेवानिवृत्ति के बाद पद लेना न्यायपालिका की स्वतंत्रता को कमतर करता है. विपक्षी दलों ने इसे केंद्र सरकार का निर्लज्ज कृत्य क़रार दिया.

मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई. (फोटो: पीटीआई)
मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई. (फोटो: पीटीआई)

नई दिल्ली: राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद द्वारा पूर्व मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई को राज्यसभा के लिए नामित करने पर उच्चतम न्यायालय के पूर्व न्यायाधीशों और विपक्षी दल के नेताओं ने आलोचना की है.

पूर्व न्यायाधीश कुरियन जोसफ सहित कई पूर्व न्यायाधीशों ने पूर्व प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई के राज्यसभा में मनोनयन पर कहा कि सेवानिवृत्ति के बाद पद लेना न्यायपालिका की स्वतंत्रता को कमतर करता है.

जस्टिस कुरियन जोसफ ने रंजन गोगोई और दो अन्य वरिष्ठ न्यायाधीशों जे. चेलमेश्वर और मदन बी. लोकुर (अब सभी सेवानिवृत्त) के साथ 12 जनवरी 2018 को संवाददाता सम्मेलन करके तत्कालीन सीजेआई दीपक मिश्रा के तहत उच्चतम न्यायालय की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े किए थे.

जोसफ ने कहा कि गोगोई ने न्यायपालिका की स्वतंत्रता के सिद्धांतों से समझौता किया है. उन्होंने हैरानी जताई और कहा कि गोगोई द्वारा इस मनोनयन को स्वीकार किए जाने ने न्यायापालिका में आम आदमी के विश्वास को हिला कर रख दिया है.

पत्रकारों ने जब जोसफ से इस बारे में प्रतिक्रिया मांगी तो उन्होंने आरोप लगाया कि गोगोई ने न्यायपालिका की स्वतंत्रता व निष्पक्षता के पवित्र सिद्धांतों से समझौता किया.

पूर्व न्यायाधीश ने कहा, ‘मेरे मुताबिक राज्यसभा के सदस्य के तौर पर मनोनयन को पूर्व प्रधान न्यायाधीश द्वारा स्वीकार किए जाने से निश्चित रूप से न्यायपालिका की स्वतंत्रता पर आम आदमी के भरोसे को झकझोर दिया है.’

उन्होंने कहा कि न्यायपालिका भारत के संविधान के मूल आधार में से एक है. जोसफ ने 2018 में चारों न्यायाधीशों द्वारा किए गए संवाददाता सम्मेलन के संदर्भ में कहा, ‘मैं हैरान हूं कि न्यायपालिका की स्वतंत्रता के लिए कभी ऐसा दृढ़ साहस दिखाने वाले जस्टिस रंजन गोगोई ने कैसे न्यायपालिका की स्वतंत्रता और निष्पक्षता के पवित्र सिद्धांत से समझौता किया है.’

जोसफ ने कहा कि उन्होंने सेवानिवृत्ति के बाद कोई भी पद नहीं लेने का निर्णय किया था. उच्चतम न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश मदन बी. लोकुर ने कहा कि गोगोई जब मीडिया में राज्यसभा की सीट स्वीकार करने के बारे में अपना विस्तृत बयान देंगे उसके बाद ही वह अपने विचार व्यक्त करेंगे.

दिल्ली उच्च न्यायालय के पूर्व मुख्य न्यायाधीश एपी शाह और उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश आरएस सोढ़ी ने भी सरकार द्वारा गोगोई के नामांकन पर तीखी प्रतिक्रिया जताई.

जस्टिस (सेवानिवृत्त) सोढ़ी ने कहा कि न्यायाधीश को कभी भी सेवानिवृत्त नहीं होना चाहिए या सेवानिवृत्ति के बाद कभी भी पद नहीं लेना चाहिए.

उन्होंने कहा, ‘मेरा हमेशा विचार रहा है कि न्यायाधीशों को सेवानिवृत्ति के बाद कभी भी नौकरी स्वीकार नहीं करनी चाहिए. न्यायाधीशों को इतना मजबूत होना चाहिए कि अपनी स्वतंत्रता को बचाए रखें ताकि न्यायपालिका की स्वतंत्रता कमतर नहीं हो.’

वरिष्ठ अधिवक्ता और सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन के अध्यक्ष दुष्यंत दवे ने द वायर से बातचीत में कहा, ‘यह पूरी तरह से घृणित है. यह स्पष्ट तौर पर उनके (रंजन गोगोई) किए के एवज में सरकार की ओर उन्हें दिया गया इनाम है. न्यायपालिका की स्वतंत्रता पूरी तरह से नष्ट कर दी गई है.’

गोगोई के मनोनयन पर राजनीतिक वर्गों एवं अन्य क्षेत्रों में बहस चल रही है जो 13 महीने तक भारत का प्रधान न्यायाधीश रहने के बाद पिछले वर्ष नवंबर में सेवानिवृत्त हुए थे. गोगोई उन पीठों के प्रमुख रहे जिसने संवेदनशील अयोध्या भूमि विवाद सहित कई महत्वपूर्ण फैसले दिए.

गोगोई की अध्यक्षता वाली पीठ ने अयोध्या भूमि विवाद मामले समेत कई संवेदनशील मामलों की सुनवाई की थी. पूर्व सीजेआई गोगोई ने रफाल विमान सौदा, राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी), सीबीआई के निदेशक आलोक वर्मा को हटाए जाने, और सबरीमला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश के मामले की सुनवाई करने वाली पीठ की भी अध्यक्षता की थी.

कांग्रेस समेत विपक्षी दलों के कई नेता पूर्व सीजेआई रंजन गोगोई द्वारा दिए गए फैसलों से मोदी सरकार को फायदा पहुंचने का आरोप लगा रहे हैं.

पूर्व सीजेआई जस्टिस रंजन गोगोई पर यौन उत्पीड़न के आरोप भी लग चुके हैं. हालांकि जांच समिति उन्हें इस मामले में क्लीनचिट दे चुकी है.

सुप्रीम कोर्ट की एक पूर्व कर्मचारी ने सुप्रीम कोर्ट के 22 जजों को पत्र लिखकर आरोप लगाया था कि सीजेआई जस्टिस रंजन गोगोई ने अक्टूबर 2018 में उनका यौन उत्पीड़न किया था.

35 वर्षीय यह महिला अदालत में जूनियर कोर्ट असिस्टेंट के पद पर काम कर रही थीं. उनका कहना है कि चीफ जस्टिस द्वारा उनके साथ किए ‘आपत्तिजनक व्यवहार’ का विरोध करने के बाद से ही उन्हें, उनके पति और परिवार को इसका खामियाजा भुगतना पड़ रहा है.

पिछले साल मई में सुप्रीम कोर्ट के महासचिव द्वारा जारी विज्ञप्ति में कहा गया था कि आंतरिक जांच समिति ने पाया कि 19 अप्रैल 2019 को सुप्रीम कोर्ट की एक पूर्व कर्मचारी द्वारा पूर्व सीजेआई रंजन गोगोई पर लगाए गए यौन उत्पीड़न के आरोपों में कोई दम नहीं है.

सरकार ने सोमवार को उन्हें राज्यसभा के लिए मनोनीत किया. पिछले साल नवंबर में भारत के प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) के पद से सेवानिवृत्त होने वाले गोगोई ने कहा कि शपथ लेने के बाद वह मनोनयन स्वीकार करने पर विस्तार से बात करेंगे.

उन्होंने गुवाहाटी में संवाददाताओं से कहा, ‘पहले मुझे शपथ लेने दीजिए, इसके बाद मैं मीडिया से इस बारे में विस्तार से चर्चा करूंगा कि मैंने यह पद क्यों स्वीकार किया और मैं राज्यसभा क्यों जा रहा हूं.’

राज्यसभा के लिए मनोनयन की हो रही आलोचना पर गोगोई ने एक स्थानीय समाचार चैनल को बताया, ‘मैंने राज्यसभा के लिए मनोनयन का प्रस्ताव इस दृढ़विश्वास की वजह से स्वीकार किया कि न्यायपालिका और विधायिका को किसी बिंदु पर राष्ट्र निर्माण के लिये साथ मिलकर काम करना चाहिए.’

12 जनवरी 2018 को सुप्रीम कोर्ट के चार वरिष्ठतम जजों ने इतिहास में पहली बार प्रेस कॉन्फ्रेंस करके कहा था कि उच्चतम न्यायालय में सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है. (फोटोः पीटीआई)
12 जनवरी 2018 को सुप्रीम कोर्ट के चार वरिष्ठतम जजों ने इतिहास में पहली बार प्रेस कॉन्फ्रेंस करके कहा था कि उच्चतम न्यायालय में सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है. (फोटोः पीटीआई)

उन्होंने कहा, ‘संसद में मेरी मौजूदगी विधायिका के सामने न्यायपालिका के नजरिये को रखने का एक अवसर होगी. इसी तरह विधायिका का नजरिया भी न्यायपालिका के सामने आएगा.’

पूर्व सीजेआई ने कहा, ‘भगवान संसद में मुझे स्वतंत्र आवाज की शक्ति दे. मेरे पास कहने को काफी कुछ है, लेकिन मुझे संसद में शपथ लेने दीजिए और तब मैं बोलूंगा.’

विपक्षी दलों ने इसे सरकार का निर्लज्ज कृत्य क़रार दिया

भारत के पूर्व प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई को राज्यसभा में मनोनीत किए जाने को लेकर कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों ने सवाल उठाते हुए आरोप लगाया कि सरकार के इस निर्लज्ज कृत्य ने न्यायपालिका की स्वतंत्रता को हड़प लिया है.

कांग्रेस ने केंद्र पर संविधान के मौलिक ढांचे पर गंभीर हमला करने का आरोप लगाते हुए कहा कि यह कार्रवाई न्यायपालिका की स्वतंत्रता को हड़प लेती है.

राजस्थान के मुख्यमंत्री और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता अशोक गहलोत ने कहा कि इससे न्यायिक प्रणाली में जनता का विश्वास कमजोर होगा और उनके द्वारा दिए गए फैसलों की निष्पक्षता पर संदेह पैदा करेगा.

गहलोत ने ट्वीट किया, ‘राजग सरकार द्वारा जस्टिस गोगोई को उनकी सेवानिवृत्ति के बाद राज्यसभा सदस्य के रूप में मनोनीत किया जाना आश्चर्यजनक है. यह बताता है कि एनडीए पर संस्थाओं की स्वतंत्रता को नष्ट करने का भूत सवार है.’

राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के प्रवक्ता महेश तपासे ने कहा कि सरकार को उन न्यायाधीशों को उच्च सदन में मनोनीत करने से बचना चाहिए, जिन्होंने संवेदनशील मामलों की सुनवाई की हो.

माकपा ने इसे न्यायपालिका की स्वतंत्रता को कमजोर करने का शर्मनाक प्रयास करार दिया. पार्टी ने एक बयान में कहा, ‘मोदी सरकार पूर्व प्रधान न्यायाधीश को राज्यसभा के लिये मनोनीत करके शर्मनाक तरीके से न्यायपालिका की स्वतंत्रता को कमजोर कर रही है और राज्य के दो अंगों के बीच शक्तियों के विभाजन को तहस-नहस कर रही है, जोकि हमारी संवैधानिक व्यवस्था में निहित पवित्र सिद्धांत है.’

एआईएमआईएम नेता असदुद्दीन ओवैसी ने पूछा कि क्या गोगोई के मनोनयन में परस्पर लेन-देन है? उन्होंने ट्वीट किया, ‘कई लोग सवाल उठा रहे हैं, न्यायाधीशों की स्वतंत्रता पर लोगों को विश्वास कैसे रहेगा?’

उन्होंने कहा, ‘2012 में स्वर्गीय अरुण जेटली ने राज्यसभा में कहा था कि रिटायरमेंट के पहले न्यायाधीशों के जो फैसले होते हैं और उसके बाद उनको नियुक्ति मिलती है, वो फौरन नहीं मिलना चाहिए.’

ओवैसी ने कहा, ‘रंजन गोगोई के फैसलों से मौजूदा मोदी सरकार को राजनीतिक फायदा हुआ है. चाहे वो सीबीआई का केस हो, अयोध्या-बाबरी मस्जिद का फैसला हो या रफाल का मामला हो. और गोगोई ने खुद कहा था कि रिटायरमेंट के बाद नियुक्ति नहीं होनी चाहिए.’

कांग्रेस प्रवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि इस फैसले ने न्यायापालिका पर लोगों के विश्वास को चोट पहुंचाई है. कांग्रेस नेता ने कहा कि मोदी सरकार ने पूर्व वित्त मंत्री अरुण जेटली के उस कथन का भी ख्याल नहीं रखा जिसमें उन्होंने न्यायाधीशों की सेवानिवृत्ति के बाद पदों पर नियुक्ति का विरोध किया था.

सिंघवी ने जेटली की टिप्पणी का उल्लेख करते हुए कहा, ‘मोदीजी, अमित शाह जी हमारी नहीं तो अरुण जेटली की तो सुन लीजिए. क्या उन्होंने न्यायाधीशों की सेवानिवृत्ति के बाद न्यायाधीशों पर दरियादिली के खिलाफ नहीं कहा और लिखा था? क्या आपको याद है?’

उन्होंने संवाददाताओं से कहा, ‘कांग्रेस यह कहना चाहती है कि हमारे सबसे महत्वपूर्ण और व्यापक स्तंभ न्यायपालिका पर आघात किया गया है.’

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता कपिल सिब्बल ट्वीट किया, ‘जस्टिस एचआर खन्ना अपनी ईमानदारी, सरकार के सामने खड़े होने और कानून का शासन बरकरार रखने के लिए याद किए जाते हैं. जस्टिस रंजन गोगोई को राज्यसभा जाने की खातिर सरकार के साथ खड़े होने और सरकार व खुद की ईमानदारी के साथ समझौता करने के लिए याद किए जाएंगे.’

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)

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