श्रीलंका में गृहयुद्ध के दौरान आठ लोगों की हत्या के दोषी सैनिक की मौत की सज़ा माफ़

वर्ष 2000 में तमिल बहुल उत्तरी प्रांत में तैनाती के दौरान श्रीलंकाई सैनिक सुनील रत्नायके एक बच्चे समेत आठ नागरिकों की हत्या का आरोप लगाया गया था. 2015 में उच्च न्यायालय ने उन्हें हत्या का दोषी ठहराया था. राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे ने सैनिक की सज़ा माफ़ कर दी है.

श्रीलंका के राष्ट्रपति गोटाबाया राजपक्षे. (फोटो: रॉयटर्स)

वर्ष 2000 में तमिल बहुल उत्तरी प्रांत में तैनाती के दौरान श्रीलंकाई सैनिक सुनील रत्नायके  एक बच्चे समेत आठ नागरिकों की हत्या का आरोप लगाया गया था. 2015 में उच्च न्यायालय ने उन्हें हत्या का दोषी ठहराया था. राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे ने सैनिक की सज़ा माफ़ कर दी है.

श्रीलंका के राष्ट्रपति गोटाबया राजपक्षे (फोटो: रॉयटर्स)
श्रीलंका के राष्ट्रपति गोटाबया राजपक्षे (फोटो: रॉयटर्स)

कोलंबों: श्रीलंका के राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे ने साल 2000 में गृहयुद्ध के दौरान देश के तमिल बहुल उत्तरी प्रांत में एक बच्चे सहित आठ लोगों की हत्या के दोषी श्रीलंकाई सैनिक की मौत की सजा माफ कर दी है.

सेना के स्टाफ सार्जेंट सुनील रत्नायके को जून 2015 में उच्च न्यायालय ने दोषी ठहराया था और उनकी अपील को उच्चतम न्यायालय ने 2019 में खारिज कर दिया था.

रत्नायके पर वर्ष 2000 में उत्तरी प्रांत में तैनाती के दौरान एक बच्चे समेत आठ नागरिकों की हत्या का आरोप लगा था. इस क्षेत्र में सेना और लिबरेशन टाइगर्स ऑफ तमिल ईलम (लिट्टे) के बीच संघर्ष चल रहा था.

तमिल राजनेताओं और मानवाधिकार समूहों के दबाव के बाद रत्नायके और 13 अन्य सैनिकों पर तत्कालीन सरकार ने आरोप तय किए थे. बाद में उनमें से नौ को सभी आरोपों से बरी कर दिया गया, जबकि रत्नायके को 15 मामलों में दोषी ठहराया गया था. उसके चार सहयोगियों को कोई सबूत नहीं मिलने पर बरी कर दिया गया था.

राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे ने पिछले साल नवंबर में अपने चुनाव अभियान में सिरीसेना सरकार के दौरान दोषी पाए गए सैनिकों को छोड़ने का वादा किया था. सिरीसेना सरकार ने कुछ सैनिकों के खिलाफ अधिकारों के कथित दुरुपयोग के लिए जांच शुरू करने का आदेश दिया था.

लिट्टे श्रीलंका के उत्तरी और पूर्वी प्रांतों में अलग तमिल राज्य बनाने के उद्देश्य से संघर्ष कर रहा था. श्रीलंका में इसे लेकर चल रहे गृहयुद्ध के दौरान गोटाबाया शीर्ष रक्षा अधिकारी थे और विद्रोही तमिल टाइगर समूह को हराने में उन्होंने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. 25 साल बाद साल 2009 में लिट्टे प्रमुख प्रभाकरण के मारे जाने के बाद यह गृह युद्ध खत्म हुआ था.

द न्यूयार्क टाइम्स के मुताबिक, श्रीलंका के प्रमुख सिंहली राष्ट्रवादियों ने मौत की सजा का विरोध किया था. इसे 26 साल के अलगाववादी गृहयुद्ध में अल्पसंख्यक तमिल विद्रोहियों के खिलाफ लड़ने वाले सैनिकों के साथ विश्वासघात करार दिया था.

श्रीलंका में पिछले 44 सालों से मृत्युदंड पर रोक लगी हुई है, दोषी को मौत की सजा के बदले आजीवन कारावास हो जाता है.

मालूम हो कि इससे पहले श्रीलंका ने इस साल फरवरी में हुए अपने स्वतंत्रता दिवस समारोह में राष्ट्रीय गान के तमिल संस्करण के प्रस्तुतीकरण को हटा दिया था. साल 2016 के बाद पहली बार ऐसा हुआ था.

वर्ष 2015 में तत्कालीन श्रीलंका सरकार ने तमिल अल्पसंख्यक समुदाय से सामंजस्य स्थापित करने के लिए स्वतंत्रता दिवस समारोह में तमिल में भी राष्ट्रगान को शामिल किया था.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)