बिहार: तेज़ी से बढ़ रहे कोरोना के मामलों के बीच नीतीश सरकार की लचर तैयारी

बिहार में दिनोंदिन बढ़ रहे कोरोना वायरस के प्रकोप के बीच संक्रमित मरीज़ों के इलाज में लगे डॉक्टरों का कहना है कि पर्याप्त आइसोलेशन बेड व सुरक्षा उपाय तो दूर, उन्हें सबसे बुनियादी चीज़ें मास्क और सैनिटाइज़र तक उपलब्ध नहीं कराए गए हैं.

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Patna: Medics take samples from a patient in the isolation ward of novel coronavirus (COVID-19) at Patna Medical College and Hospital (PMCH) in Patna, Saturday, March 14, 2020. (PTI Photo)(PTI14-03-2020_000040B)

बिहार में दिनोंदिन बढ़ रहे कोरोना वायरस के प्रकोप के बीच संक्रमित मरीज़ों के इलाज में लगे डॉक्टरों का कहना है कि पर्याप्त आइसोलेशन बेड व सुरक्षा उपाय तो दूर, उन्हें सबसे बुनियादी चीज़ें मास्क और सैनिटाइज़र तक उपलब्ध नहीं कराए गए हैं.

Patna: Medics take samples from a patient in the isolation ward of novel coronavirus (COVID-19) at Patna Medical College and Hospital (PMCH) in Patna, Saturday, March 14, 2020. (PTI Photo)(PTI14-03-2020_000040B)
पटना मेडिकल कॉलेज और अस्पताल में बने आइसोलेशन वार्ड में एक मरीज. (फोटो: पीटीआई)

13 मार्च से  21 मार्च के बीच बिहार में कोरोना वायरस से संक्रमित होने के संदेह में 31 लोगों के सैंपल की जांच की गई थी, तो कोरोना से पीड़ितों की संख्या शून्य थी.

वहीं, 22 मार्च से 27 मार्च के बीच 6 दिनों में लगभग 544 सैंपलों की जांच की गई, जिनमें 9 लोग कोरोना वायरस से संक्रमित पाए गए हैं. इनमें सबसे ज्यादा मामले पटना में सामने आए हैं.

पटना में 4 लोगों में, मुंगेर में 3 और नालंदा व सिवान में 1-1 व्यक्ति कोरोना से संक्रमित मिला है. इनमें कम से कम चार लोग ऐसे हैं, जिनमें संक्रमण एक ही मरीज से फैला है.

कतर से 12 मार्च को मुंगेर लौटे 38 वर्षीय सैफ को किडनी में तकलीफ की शिकायत पर मुंगेर से लेकर पटना तक चार अस्पतालों में भर्ती कराया गया था, लेकिन कहीं भी उसकी कोरोना वायरस के संक्रमण की जांच की सिफारिश नहीं की गई थी.

जब सैफ को पटना में एम्स में भर्ती कराया गया था, तो एक दिन बाद उसका सैंपल जांच के लिए पटना के ही राजेंद्र मेमोरियल रिसर्च इंस्टीट्यूट भेजा गया था, लेकिन जांच रिपोर्ट आने से पहले ही उसकी मौत हो गई.

बताया जाता है कि मरने से पहले सैफ ने कम से कम 5 दर्जन लोगों से मुलाकात की थी. इन सभी का सैंपल जांच के लिए भेजा गया था, जिनमें से चार लोगों में कोरोना वायरस का संक्रमण मिला है. दो लोग सैफ के रिश्तेदार हैं.

स्वास्थ्य विभाग के एक अधिकारी के मुताबिक, 9 में से पांच लोगों में संक्रमण विदेश से आए संक्रमित मरीज से फैला है.

इस तरह के संक्रमण को स्थानीय संक्रमण कहा जाता है, जो संक्रमण का दूसरा चरण है. जानकारों का मानना है कि अगर इसे यहीं नहीं रोका गया, तो सामुदायिक स्तर पर फैलने से रोकना नामुमकिन हो जाएगा.

बिहार में दिनोंदिन बढ़ रहे कोरोना वायरस के संक्रमण के मामले बताते हैं कि यहां हालात संगीन होने वाले हैं, लेकिन बिहार सरकार की तैयारियां नाकाफी नजर आ रही हैं.

पर्याप्त आइसोलेशन बेड व सुरक्षा उपाय तो दूर कोरोना वायरस के मरीजों के इलाज में लगे डॉक्टरों का तो कहना है कि उन्हें सबसे बुनियादी चीजें मास्क और सैनिटाइजर तक उपलब्ध नहीं कराया गया है.

भागलपुर के जवाहर लाल नेहरू चिकित्सा महाविद्यालय के इन्टर्न ने कोरोना वायरस के संदिग्ध मरीजों के इलाज के लिए एन-95 मास्क और पर्सनिल प्रोटेक्टिव इक्विपमेंट (पीपीई) की मांग की, तो अस्पताल प्रबंधन ने लिखित आदेश जारी कर कहा कि मरीजों के इलाज के लिए इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (आईसीएमआर) के दिशानिर्देश में एन-95 मास्क और पीपीई की आवश्यकता नहीं है.

हालांकि, जूनियर डॉक्टरों के रोष के बाद दो एन-95 मास्क और दो किट उपलब्ध कराए गए हैं.

जवाहर लाल नेहरू चिकित्सा महाविद्यालय के जूनियर डॉक्टर अमित आनंद ने बताते हैं, ‘अस्पताल में लगभग 100 जूनियर डॉक्टर कार्यरत हैं. हालांकि, हमलोगों की ड्यूटी आइसोलेशन वार्ड में नहीं है, लेकिन इमरजेंसी व अन्य विभागों में जो मरीज आते हैं, उनमें कोरोना वायरस का संक्रमण है या नहीं, हम नहीं जानते हैं इसलिए संक्रमण का खतरा रहता है.’

उन्होंने आगे कहा, ‘हम लोगों ने तीन दिन पहले ही प्रबंधन से मास्क और किट देने की मांग की थी. इसे मानते हुए अभी दो मास्क और दो किट दिए गए हैं. प्रबंधन ने आश्वासन दिया है कि एक-दो दिनों में और भी मास्क व किट आएंगे.’

बिहार सरकार की तरफ से कोरोना अस्पताल घोषित किए नालंदा मेडिकल कॉलेज व अस्पताल (एनएमसीएच) के 83 जूनियर डॉक्टरों ने 23 मार्च को अस्पताल प्रबंधऩ को पत्र लिख कर दो हफ्ते के होम क्वारंटाइन (घर पर अलग रहने) की अपील की है.

एनएमसीएच में कोरोना वायरस से ग्रस्त 7 मरीज भर्ती हैं जबकि कम से कम 100 मरीजों में कोरोना वायरस के लक्षण दिख रहे हैं.

डॉक्टरों का कहना है कि उन्हें अस्पताल प्रबंधन की तरफ से मास्क, सैनिटाइजर और पीपीई नहीं दिया गया, जिस कारण कोरोना वायरस से ग्रस्त मरीजों का इलाज करने से उनमें भी संक्रमण के लक्षण नजर आने लगे हैं.

23 मार्च के पत्र का कोई जवाब नहीं मिलने के बाद 25 तारीख को जूनियर डॉक्टरों ने स्वास्थ्य विभाग के प्रधान सचिव को दोबारा पत्र लिखा.

पत्र में डॉक्टरों ने लिखा है, ‘पीपीई किट, एन-95 मास्क और हैंड सैनिटाइजर नहीं होने के कारण कोरोना अस्पताल में कार्यरत सभी चिकित्सक, स्वास्थ्यकर्मी और सुरक्षा कर्मियों में डर का माहौल है.  एनएमसीएच कोरोना अस्पताल है, लेकिन इसका आइसोलेशन वार्ड खुद सुरक्षित नहीं है. कोरोना वायरस से ग्रस्त मरीज और उसके परिजन खुलेआम वार्ड में घूम रहे हैं, जिससे संक्रमण बढ़ने का खतरा है.’

एनएमसीएच के जूनियर डॉक्टर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष रवि आरके रमण ने कहते हैं, ‘होम क्वारंटाइन की मांग पर अब तक कोई कार्रवाई नहीं हुई है, इसके बावजूद हम लोग काम कर ही रहे हैं. जिन डॉक्टरों में संक्रमण के लक्षण ज्यादा दिख रहे थे, उन्होंने दवाई ली है, लेकिन काम बंद नहीं किया है.’

रवि रमण आगे बताते हैं, ‘हम लोगों ने होम क्वारंटाइन की मांग अस्पताल के ही ऑन ड्यूटी डॉक्टरों की सलाह पर की थी क्योंकि आराम करने पर ही रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है. लेकिन अब तक इस पर कोई बात नहीं हुई है. हम लोग काम करने को तैयार हैं और कर भी रहे हैं, हमारी मांग बस इतनी है कि कोरोना वायरस से ग्रस्त मरीजों के इलाज में लगे डॉक्टरों पीपीई, एन-95 मास्क, सैनिटाइजर वगैरह उपलब्ध कराया जाए.’

एनएमसीएच अस्पताल के जूनियर डॉक्टरों ने बताया कि इतने संगीन हालात के बावजूद एन-95 मास्क और पीपीई किट की जगह 27 मार्च को ऑपरेशन में इस्तेमाल होने वाला प्रोटेक्शन किट दिया गया है.

कई सदर अस्पताल के डॉक्टरों ने भी बताया है कि उन्हें मास्क और सैनिटाइजर मुहैया नहीं कराया गया है.

डॉक्टरों की सुरक्षा के लिए मास्क, पीपीई और सैनिटाइजर कमी ही बिहार में इकलौती समस्या नहीं है, बल्कि विदेशों से लौटे ऐसे लोगों की तलाश करना भी सरकार के लिए चुनौती है, जो कोरोना वायरस से ग्रस्त हो सकते हैं.

बताया जा रहा है कि 15 जनवरी के बाद 16447 लोग बिहार लौटे हैं. इनमें से एक बड़ी तादाद को बिहार सरकार ट्रैक नहीं कर पा रही है.

बिहार सरकार ने विदेश से लौटे लोगों की स्क्रीनिंग के लिए एक टोल-फ्री नंबर भी जारी किया था. स्वास्थ्य विभाग के एक अधिकारी बताते हैं, ‘विदेश से लौटे 1,456 लोगों ने टोल फ्री नंबर पर कॉल कर पंजीयन कराया है. इनमें से 210 लोग 14 दिनों का होम क्वारंटाइन पूरा कर चुके हैं.’

विदेश से लौटे सैकड़ों लोगों की शिनाख्त नहीं होना एक बड़ी चूक का कारण बन सकता है, क्योंकि मुंगेर के रहने वाले सैफ के मामले में भी ऐसा हुआ था, जिसका नतीजा ये निकला कि सैफ के संपर्क में आने वाले कई और लोग कोरोना वायरस से संक्रमित हो गए.

मुंगेर के सिविल सर्जन डॉ पुरुषोत्तम कुमार बताते हैं, ‘सैफ जब कतर से लौटा था, तब तक हमारे पास सरकार की तरफ से ऐसा कोई निर्देश नहीं आया था कि विदेश से आने वाले लोगों तक पहुंचना है और उनकी स्क्रीनिंग की जानी है.’

उन्होंने आगे बताया, ‘सैफ की जांच रिपोर्ट पॉजिटिव आने के बाद गांव को सील कर दिया गया है और प्रशासन गांव में हर तरह की सुविधा मुहैया करा रहा है.’

Patna: Volunteers sanitize a railing as a measure to prevent the spread of coronavirus, during nation-wide lockdown, at Jaiprakash Naryan Airport in Patna, Wednesday, March 25, 2020. (PTI Photo)(PTI25-03-2020 000212B)
कोरोना संक्रमण के मद्देनजर पटना के जयप्रकाश नारायण एयरपोर्ट पर सैनिटाइजेशन करते कर्मचारी. (फोटो: पीटीआई)

विदेश से लौटे लोगों की शिनाख्त के सवाल पर स्टेट सर्विलांस अफसर डॉ. रागिनी मिश्रा ने मीडिया को बताया कि इन लोगों का पता लगाने के लिए विश्व स्वास्थ्य संगठन की मदद ली जाएगी.

बिहार में अभी 1900 प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र, 150 सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र और लगभग एक दर्जन मेडिकल कॉलेज हैं.

स्वास्थ्य विभाग ने हर सदर अस्पताल, पीएचसी और मेडिकल कॉलेजों में कोरोना मरीजों के लिए आइसोलेशन वार्ड बनाने को कहा है. अगर इन मेडिकल कॉलेजों व स्वास्थ्य केंद्रों पूरा दोहन किया जाए, तो भी कुछ हजार से ज्यादा बेड नहीं लगाए जा सकते हैं.

ऐसे में अगर बिहार में कोरोना वायरस का संक्रमण बढ़ जाता है, तो उनके लिए आइसोलेशन वार्ड की कमी पड़ जाएगी.

इस संबंध में जब बिहार के स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडेय को फोन किया गया, तो उन्होंने फोन नहीं उठाया. उन्हें सवालों की सूची मेल की गई है, जिसका जवाब आने पर उसे रिपोर्ट में जोड़ा जाएगा.

21 दिन का लॉकडाउन शुरू होने के बाद बिहार सरकार लोगों से घरों में रहने की अपील कर रही है और अस्पतालों में दबाव न बढ़े इसके लिए ऐसे लोगों को होम क्वारंटाइन करने को कह रही है, जिनमें कोरोना वायरस के संक्रमण के लक्षण दिखते हों.

इसके लिए सरकार ने फॉर्म भी बनवाया है. इस फॉर्म को उन सभी घरों में चिपकाया जाएगा, जिनके यहां बाहर से आए हुए लोग रह रहे हैं.

स्वास्थ्य विभाग के एक अधिकारी ने बताया, ‘फॉर्म में संदिग्ध व्यक्ति का नाम लिखा होगा. चिकित्सक रोज उस व्यक्ति से मुलाकात कर फॉर्म में अपनी उपस्थिति दर्ज करेंगे.’

लेकिन जानकारों ने इस पर सवाल उठाया है. सामाजिक अर्शशास्त्री डीएम दिवाकर कहते हैं, ‘बिहार की 88 प्रतिशत आबादी गांवों में बसती है. इनमें से महज 8 से 10 फीसदी आबादी के पास दो या उससे अधिक कमरों का मकान है. इन मकानों में रहने वाले होम क्वारंटाइन का पालन कर सकते हैं. लेकिन बाकी 78- से 80 फीसदी आबादी के पास एक कमरे वाला मकान है. इनके लिए ये असंभव है.’

इस बीच, कोरोना वायरस के संक्रमण की आशंका के मद्देनजर दूसरे राज्यों से लौटे कामगारों को गांवों में जाने नहीं दिया जा रहा है. उन्हें पहले अस्पताल से जांच कराने की हिदायत दी जा रही है या 14 दिन बाहर रहने को कहा जा रहा है.

इस स्थिति से निबटने के लिए बिहार सरकार ने गांव के स्कूलों को क्वारंटाइन सेंटर बनाने का आदेश दिया है.  दूसरे राज्यों से आने वालों को यहां रखा जाएगा और सरकार उनके खाने-पीने की व्यवस्था करेगी.

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं.)

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