नक्सलियों के हाथों मारा जाना जवानों के मानवाधिकारों का उल्लंघन नहीं: सीआरपीएफ

सूचना का अधिकार के तहत दायर आवेदन के जवाब में सीआरपीएफ ने ये बात कही.

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सूचना का अधिकार के तहत दायर आवेदन के जवाब में सीआरपीएफ ने ये बात कही.

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(प्रतीकात्मक फोटो: पीटीआई)

सीआरपीएफ को छत्तीसगढ़ के सुकमा में इस साल 24 अप्रैल को नक्सलियों के हाथों 25 जवानों का मारा जाना मानवाधिकार का उल्लंघन नहीं लगता.

सीआरपीएफ ने सूचना का अधिकार के तहत दायर आवेदन में उक्त घटना की जांच रिपोर्ट साझा करने से इनकार करते हुए यह जवाब दिया.

मानवाधिकार कार्यकर्ता वेंकटेश नायक ने यह रिपोर्ट मांगते हुए कहा था कि इस जनसंहार में मारे गए लोगों के मानवाधिकारों का उल्लंघन हुआ था.

बल को आरटीआई कानून के तहत तब तक सूचना साझा करने से छूट प्राप्त होती है, जब तक सूचना मानवाधिकार उल्लंघन और भ्रष्टाचार के आरोपों से न जुड़ी हो. इन्हें सीआरपीएफ के जवानों द्वारा अंजाम दिया गया हो भी सकता है और नहीं भी.

छूट वाले प्रावधान का हवाला देते हुए सीआरपीएफ ने अपने जवाब में कहा,’इस मामले में मानवाधिकार का कोई उल्लंघन प्रतीत नहीं होता. इसके अलावा इस मामले में भ्रष्टाचार का कोई आरोप भी नहीं है. आपका आवेदन भी ऐसे किसी आरोप की ओर इशारा नहीं करता. इसलिए यह विभाग आरटीआई कानून-2005 के तहत आपको कोई जानकारी उपलब्ध कराने के लिए जिम्मेदार नहीं है.’

सूचना दबाकर रखने के लिए दी गई अतिरिक्त दलीलों में सीआरपीएफ ने यह भी कहा कि रिपोर्ट में अभियान संबंधी कुछ ऐसी जानकारी है, जिसे साझा नहीं किया जा सकता.

नायक ने कहा कि वामपंथी चरमपंथी समूहों द्वारा अप्रैल में किया गया घातक हमला राज्येतर तत्वों द्वारा जवानों के मानवाधिकारों का उल्लंघन है और इस असलियत से इनकार करके सीआरपीएफ शायद अपने ही कर्मियों के साथ अन्याय कर रहा है.

उन्होंने कहा,’जब भी ऐसा कोई हमला होता है, तब राष्ट्र की आत्मा के स्वघोषित रक्षक और राष्ट्रवाद के पैरोकार मानवाधिकारों के पैरोकारों पर आरोप लगाते हैं कि वे सुरक्षाकर्मियों के अधिकारों के उल्लंघन के खिलाफ आवाज नहीं उठाते.’

उन्होंने कहा कि इन घटनाओं के प्रति सरकार के रवैये पर भी सवाल उठाया जाना चाहिए.

उन्होंने कहा,’सरकार और इस मामले में सीआरपीएफ अपने कर्मियों पर किए जाने वाले इन हमलों को मानवाधिकारों का उल्लंघन करार देने में हिचक क्यों महसूस करती है निश्चित तौर पर इसके पीछे कोई वजह होगी’

उन्होंने कहा कि यदि जवानों की मौत की वजह बनने वाले ऐसे हमलों को राज्येतर तत्वों द्वारा किया गया मानवाधिकार उल्लंघन करार नहीं दिया जाता, फिर नागरिक अधिकार कार्यकर्ताओं को क्यों खलनायकों की तरह पेश किया जाता है, जबकि वे हमेशा ही ऐसी घटनाओं की समान रूप से निंदा करते रहे हैं.

केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (सीआरपीएफ) आंतरिक सुरक्षा के लिए प्रमुख केंद्रीय पुलिस बल है.

1980 के दशक में पंजाब में आतंकवाद पर काबू पाने में और 1990 के दशक में त्रिपुरा में उग्रवाद पर काबू पाने में सीआरपीएफ ने अहम भूमिका निभाई थी.

आज इस बल का एक तिहाई से अधिक हिस्सा चरमपंथ पर काबू पाने के लिए वामपंथी चरमपंथ प्रभावित इलाकों में तैनात है.

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