लॉकडाउन: लोगों के ख़िलाफ़ पुलिस ज़्यादती पर केंद्र और केरल सरकार को नोटिस जारी किया

केरल हाईकोर्ट ने कथित रूप से देशव्यापी लॉकडाउन का उल्लंघन करने वाले व्यक्तियों के ख़िलाफ़ पुलिस ज़्यादती की कथित घटनाओं का स्वत: संज्ञान लिया ​है.

लॉकडाउन दौरान के बिहार के रांची में पुलिस एक व्यक्ति सजा देते हुए. (फोटो: पीटीआई)

केरल हाईकोर्ट ने कथित रूप से देशव्यापी लॉकडाउन का उल्लंघन करने वाले व्यक्तियों के ख़िलाफ़ पुलिस ज़्यादती की कथित घटनाओं का स्वत: संज्ञान लिया है.

लॉकडाउन दौरान के बिहार के रांची में पुलिस एक व्यक्ति सजा देते हुए. (फोटो: पीटीआई)
लॉकडाउन दौरान के बिहार के रांची में पुलिस एक व्यक्ति सजा देते हुए. (फोटो: पीटीआई)

तिरुवनंतपुरम: केरल हाईकोर्ट ने कथित रूप से देशव्यापी लॉकडाउन का उल्लंघन करने वाले व्यक्तियों के खिलाफ पुलिस की बर्बरता की कथित घटनाओं का स्वत: संज्ञान लिया है.

लाइव लॉ के मुताबिक जस्टिस एके जयशंकरन नांबियार और जस्टिस शाजी पी. चैली ने गैर-कानूनी पुलिस ज्यादतियों के मामले में राज्य के अधिकारियों के साथ-साथ केंद्र सरकार को भी नोटिस जारी किए हैं.

पीठ ने माना कि कोरोना वायरस के संक्रमण की श्रृंखला को तोड़ने के लिए सामाजिक दूरी बनाए रखना जरूरी है और इस प्रकार राज्य ने भीड़ जमा न हो, इसे प्रतिबंधित करने के लिए पुलिस बलों की तैनाती की थी.

हालांकि अदालत ने कहा कि वह मीडिया रिपोर्टों को नजरअंदाज नहीं कर सकती, जिनमें ऐसे पुलिसकर्मियों द्वारा हिंसा के उपयोग का खुलासा किया गया है.

पीठ ने कहा, ‘हम प्रिंट और सोशल मीडिया में बहुत सारी सामग्री देख चुके हैं, जो हमें विश्वास दिलाती हैं कि स्वास्थ्य अधिकारियों और पुलिसकर्मियों द्वारा अनुकरणीय कार्य किया जा रहा है. अन्य सामग्री जो पिछले एक सप्ताह में प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक और सोशल मीडिया में प्रकाशित हुई है, जो पुलिसकर्मियों द्वारा अपने कर्तव्यों के निर्वहन के दौरान की गईं ज्यादतियों को इंगित करती है.’

पीठ ने कहा कि लॉकडाउन के दौरान लोगों के खिलाफ पुलिस क्रूरता का कोई औचित्य नहीं. संकट की इस स्थिति में भी लोगों के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करने की अनुमति नहीं दी जा सकती.

पीठ ने कहा, ‘कोविड-19 महामारी से हम सभी प्रभावित हुए हैं, लेकिन इस दौरान हमारे नागरिकों के अधिकारों की रक्षा करने के लिए काम करना जारी रखना चाहिए.’

अदालत ने आगे कहा, ‘हमारे संविधान के अनुच्छेद-21 के तहत जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का मौलिक अधिकार, आपातकाल के दौरान भी निलंबित नहीं किया जा सकता है. हमें अपने मौलिक अधिकारों के उल्लंघन के संबंध में भी नागरिकता के बीच भय को दूर करना है.’

बता दें कि कोरोना वायरस संक्रमण से निपटने के लिए पिछले 25 मार्च से देशव्यापी लॉकडाउन लागू कर दिया गया. इस दौरान कई मीडिया रिपोर्टों में पुलिस द्वारा कथित तौर सड़कों में लोगों को सज़ा देने या उनके साथ मारपीट करने या सब्जी की गाड़ियों पर हमला करने के कई उदाहरण सामने आए हैं.

एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया ने देश के कई हिस्सों में कोरोना वायरस संकट की रिपोर्टिंग के दौरान पत्रकारों के कामकाज में बाधा डालने की पुलिस की ‘सख्ती’ और ‘मनमानी’ को लेकर को जताई थी.

मालूम हो कि देश में कोरोना वायरस से मरने वालों की संख्या 32 हो चुकी है और इस महामारी के संक्रमण से पीड़ित होने वालों की संख्या बढ़कर 1,251 हो गई है.