कोई भी लोकतंत्र मीडिया का मुंह बंद करके वैश्विक महामारी से नहीं लड़ रहा है: एडिटर्स गिल्ड

इस हफ़्ते की शुरुआत में केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से कहा था कि मीडिया कोरोना वायरस संबंधी कोई भी जानकारी छापने या दिखाने से पहले सरकार से इसकी पुष्टि कराए. इसके बाद अदालत ने मीडिया को निर्देश दिया कि वे ख़बरें चलाने से पहले उस घटना पर आधिकारिक बयान लें.

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(प्रतीकात्मक फोटो: पीटीआई)

इस हफ़्ते की शुरुआत में केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से कहा था कि मीडिया कोरोना वायरस संबंधी कोई भी जानकारी छापने या दिखाने से पहले सरकार से इसकी पुष्टि कराए. इसके बाद अदालत ने मीडिया को निर्देश दिया कि वे ख़बरें चलाने से पहले उस घटना पर आधिकारिक बयान लें.

Bikaner: People watch Prime Minister Narendra Modi's address to the nation on coronavirus pandemic in Bikaner, Thursday, March 19, 2020. (PTI Photo)(PTI19-03-2020_000246B)
(फोटो: पीटीआई)

नई दिल्ली: एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया ने कहा कि वह उच्चतम न्यायालय में सरकार द्वारा प्रवासी कामगारों के बीच घबराहट पैदा करने के लिए मीडिया को जिम्मेदार ठहराने को लेकर ‘बहुत दुखी’ है और इस तरह की चीजों से खबरें प्रसारित करने की प्रक्रिया बाधित हो सकती है.

गिल्ड ने कड़े शब्दों में अपने बयान में कहा कि इस समय मीडिया पर आरोप लगाना उसके महत्वपूर्ण कार्य को प्रभावित कर सकता है जो वह इन मुश्किल हालात में कर रहा है.

बयान में कहा गया है, ‘एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया उच्चतम न्यायालय में सरकार के हालिया बयान को लेकर बहुत दुखी है जिसमें मीडिया पर प्रवासी कामगारों के बीच घबराहट पैदा करने का आरोप लगाया गया है जिससे लॉकडाउन के मद्देनजर वे बड़ी संख्या में पैदल निकल पड़े.’

गिल्ड ने बृहस्पतिवार रात जारी बयान में कहा कि इसके चलते उच्चतम न्यायालय को यह कहना पड़ा कि वह वैश्विक महामारी पर चर्चा रोकना नहीं चाहता था लेकिन मीडिया को कोरोना वायरस महामारी से जुड़े घटनाक्रम की पुष्टि करनी चाहिए और आधिकारिक ब्यौरा प्रकाशित करना चाहिए.

गिल्ड ने कहा कि वह न्यायालय का बहुत सम्मान करता है लेकिन यह सलाह ‘अकारण और अनावश्यक’ है.

उसने कहा कि देश के अभूतपूर्व संकट का सामना करने के दौरान इस प्रकार के आरोप खबरों के प्रसारण की प्रक्रिया को बाधित कर सकते हैं .

उसने कहा, ‘दुनिया में कहीं भी कोई भी लोकतंत्र अपनी मीडिया का मुंह बंद कराकर महामारी से नहीं लड़ रहा है.’


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गिल्ड ने वेबसाइट ‘द वायर’ के प्रधान संपादक के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करने पर भी निशाना साधा. गिल्ड ने कहा, ‘इस समय आपराधिक कानूनों के तहत प्राथमिकी के रूप में पुलिस की कार्रवाई अनावश्यक प्रतिक्रिया और धमकाने का कृत्य है.’

बयान में कहा गया है कि मीडिया को इस तरह से डराना धमकाना या कामगारों के बड़े पैमाने बाहर निकलने के लिए मीडिया पर आरोप लगाने से इसके उल्टे परिणाम होंगे.

बयान में आगे कहा गया है कि इस प्रकार की कार्रवाई संदेशवाहक को अशक्त करने के समान समझी जाएगी.

बयान में कहा गया है, ‘गिल्ड का निश्चित रूप से यह मानना है कि मीडिया को जिम्मेदार, स्वतंत्र और निष्पक्ष होना चाहिए, लेकिन इस प्रकार का हस्तक्षेप केवल इन लक्ष्यों को कमतर कर सकता है.’

ज्ञात हो कि बीते मंगलवार को केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से गुजारिश की कि कोरोना वायरस (कोविड-19) के संबंध में कोई भी जानकारी छापने या दिखाने से पहले मीडिया सरकार से इसकी पुष्टि कराए.

इसके बाद हालांकि न्यायालय ने कोरोना महामारी को लेकर ‘स्वतंत्र चर्चा’ में कोई हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया, लेकिन मीडिया को ये निर्देश दिया कि वे खबरें चलाने से पहले उस घटनाक्रम पर आधिकारिक बयान लें.

दरअसल, सुप्रीम कोर्ट 21 दिनों के लॉकडाउन से प्रभावित होने वाले प्रवासी मजदूरों को राहत पहुंचाने की मांग वाली दो याचिकाओं पर सुनवाई कर रहा था, जिसे केंद्र ने कोविड-19 महामारी के कवरेज को अप्रत्यक्ष रूप से अपने नियंत्रण में लेने के मुद्दे में तब्दील कर दिया.

केंद्र की ये दलील थी कि मीडिया द्वारा दिखाए जा रहीं खबरों की वजह से लोगों में घबराहट है, जिसके चलते बड़ी संख्या में लोग पलायन करने की कोशिश कर रहे हैं.

इसके बाद पीआईबी और प्रेस काउंसिल ने मीडिया से सुप्रीम कोर्ट के आदेश का पालन करने की अपील की थी.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)

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