दिल्ली: लॉकडाउन में फंसे पति के इंतज़ार में एक मां का संघर्ष

दिल्ली के कालिंदी कुंज के श्रम विहार इलाके में बसे एक कैंप में रहने वाली 23 वर्षीय रेशमा के पति दिहाड़ी मज़दूर हैं, जो लॉकडाउन के चलते गुड़गांव में फंस गए हैं. रेशमा ने दस दिन पहले बेटी को जन्म दिया है. बिना पैसे और खाने के वह पड़ोसियों और सामाजिक कार्यकर्ताओं की मदद के सहारे रह रही हैं.

/
अपनी नवजात बच्ची सहित अपने चार बच्चों के साथ रेशमा. (फोटो: द वायर)

दिल्ली के कालिंदी कुंज के श्रम विहार इलाके में बसे एक कैंप में रहने वाली 23 वर्षीय रेशमा के पति दिहाड़ी मज़दूर हैं, जो लॉकडाउन के चलते गुड़गांव में फंस गए हैं. रेशमा ने दस दिन पहले बेटी को जन्म दिया है. बिना पैसे और खाने के वह पड़ोसियों और सामाजिक कार्यकर्ताओं की मदद के सहारे रह रही हैं.

सात महीने के बच्चे सहित अपने चार बच्चों के साथ रेशमा. (फोटो: द वायर)
अपनी नवजात बच्ची सहित अपने चार बच्चों के साथ रेशमा. (फोटो: द वायर)

नई दिल्ली: कोरोनावायरस का संक्रमण रोकने के लिए किया गया देशव्यापी लॉकडाउन आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग पर बहुत भारी पड़ रहा है.

दिल्ली के कालिंदी कुंज में स्थित श्रम विहार इलाके में बसे शरणार्थी कैंप में रहने वाली 23 वर्षीय रेशमा अपनी दस दिन के बच्ची को गोद में लिए लॉकडाउन के चलते गुड़गांव में फंसे अपने पति का इंतजार कर रही हैं.

गुड़गांव में रहकर दिहाड़ी मजदूरी करने वाले उनके 25 वर्षीय पति नानबाबू लॉकडाउन के बाद वहीं फंस गए और वापस नहीं आ सके.

उत्तर प्रदेश के बलरामपुर के तुलसीपुर गांव के रहने वाले नानबाबू दिहाड़ी मजदूर हैं. वे मानसिक रूप से थोड़े कमज़ोर हैं और उन्हें सुनाई भी कम देता है.

गर्भवती रेशमा दो महीने पहले ही अपने पति के साथ दिल्ली आई थीं. वे इसी कैंप में थीं, जब बीते 27 मार्च को उनकी तबियत बिगड़ने लगी. उनकी हालत देखकर पड़ोसी उन्हें एक निजी अस्पताल में गए जहां उनकी डिलीवरी हुई.

पड़ोसियों ने बताया कि डिलीवरी के लिए डॉक्टर 14 हजार रुपये की मांग की थी, लेकिन उन्होंने किसी तरह से सात हजार रुपये जुटाए और मिन्नतें कर डॉक्टर को डिलीवरी के लिए तैयार किया.

इसके बाद पैसे और कोई साधन न होने के कारण डिलीवरी के बाद उनकी एक पड़ोसी रेशमा और उनकी नवजात बेटी को पैदल लेकर वापस घर आईं.

चार बच्चों की मां रेशमा के पास घर पर न तो कुछ खाने के लिए बचा है और न ही नवजात को टीके लगवाने के लिए पैसे हैं. हालांकि ऐसे में उनके पड़ोसी मदद के लिए सामने आए हैं.

द वायर  से बात करते हुए वह कहती हैं, ‘दस दिन की बच्ची है. पड़ोस के लोगों ने चंदा जुटाकर मदद की. मेरे पति गुड़गांव में काम करने गए थे और जबसे बंदी हुई, वहीं फंस गए हैं. डिलीवरी के बाद अस्पताल ने टीका और करीब एक हजार रुपये की दवा के लिए चार दिन बाद आने के लिए कहा था लेकिन पैसा न होने के कारण जा नहीं पाए हैं.’

रेशमा कहती हैं, ‘पैसा न होने के कारण कोई सामान नहीं आया है. कुछ दाल-चावल मिल जाता है तो वही खा लेते हैं नहीं तो भूखे रहना पड़ता है. मेरी पड़ोसन के भी छह बच्चे हैं तो वो भी मेरी कितनी मदद करेंगी. एक दिन तो घर में कुछ नहीं होने पर दोपहर तक मुझे गुड़ खाकर पानी पीकर रहना पड़ा था. दो महीने पहले गांव से यहां आए थे और हर चीज के लिए समस्या का सामना करना पड़ता है. चार बच्चे हैं, रोते हैं कि यह खाना, वह खाना है… यह लेना है लेकिन जब पैसा ही नहीं है तो क्या कहां से लाकर देंगे.’

रेशमा ने कहा कि उनके पति के पास मोबाइल नहीं है और जब बात करनी होती है तो ठेकेदार को फोन करना पड़ता है. उन्हें यह तक नहीं पता है कि फिलहाल उनके पति किस हाल में हैं.

इस पूरे मुश्किल हालात के दौरान रेशमा की सबसे अधिक मदद उनकी पड़ोसी 30 वर्षीय तजरूनिशां कर रही हैं और वही उन्हें अस्पताल से लेकर आई थीं. वह अपने परिवार के साथ रेशमा और उनके चार बच्चों के भी खाने-पीने का इंतजाम कर रही हैं.

तजरूनिशां कहती हैं, ‘ये (रेशमा) मेरे पड़ोस में ही रहती हैं. मुझसे अपनी परेशानी बताई कि डिलीवरी होनी है और उनके पति यहां नहीं हैं. मैंने उनसे बात की तो कहने लगे कि मैं तो यहां खुद फंस गया हूं और मेरे पास पैसे भी नहीं हैं.’

वे आगे कहती हैं, ‘हम इन्हें डॉक्टर तबस्सुम जरीना के यहां लेकर गए और बहुत मिन्नतें करके 14 हजार से सात हजार रुपये में डिलीवरी करने के लिए तैयार किया. इसके पास अल्ट्रासाउंड या किसी टीके की कोई रिपोर्ट भी नहीं थी तो डॉक्टर बोली कि अगर कोई खतरा होगा तो हमारी जिम्मेदारी नहीं होगी. सात हजार रुपये डिलीवरी का लगा और फिर दवा का अलग से पैसा लगा है. उसके बाद मैं इसे अस्पताल से पैदल लेकर आई हूं.’

रेशमा की पड़ोसी तजरूनिशां. (फोटो: द वायर)
रेशमा की पड़ोसी तजरूनिशां. (फोटो: द वायर)

वह कहती हैं, ‘मैं ही इसे गांव से लेकर आई थी कि वहां पति-पत्नी दोनों कुछ कमाएंगे-खाएंगे लेकिन यहां इतनी समस्या हो गई है. मेरे भी छह बच्चे हैं तो मैं कितनी मदद करुंगी. सरकार सिर्फ कह रही है कि राशन मिलेगा लेकिन हमें तो नहीं मिल रहा है. सरकार को तो हर घर तक राशन पहुंचाना चाहिए.’

वहीं, बस्ती में अपने कुछ सहयोगियों के साथ जरूरतमंदों को खाना खिलाने वाली सामाजिक कार्यकर्ता रेहाना को रेशमा की हालत के बारे में पता चला तो वह अपनी सहयोगी आरिफा के साथ रेशमा के घर राशन का सामान लेकर पहुंच गईं.

रेहाना बताती हैं, ‘मेरे यहां प्रतिदिन खाना बनता है. हमारे एक महमूद भाई हैं जो खाना बनवा रहे हैं. हालांकि, हम बहुत शर्मिंदा है कि ऐसी परिस्थिति का हमें पता नहीं चल पाया. अगर इनके पति यहां होते तो हमारे यहां खाना लेने जरूर आते. आज यह महिला खुद अपना सात दिन बच्चा लेकर मेरे पास आई है और अपनी परेशानी बताई. फिलहाल हमारे यहां बांटने वाला कुछ नहीं था तो मैंने कुछ राशन खरीदकर अभी इन्हें दिया है. हमसे जो सकेगा वह मदद करेंगे.’

दिल्ली के विभिन्न हिस्सों में स्वयंसेवी संस्थाएं और स्वतंत्र नागरिक झुग्गी-बस्ती में रह रहे परिवारों की मदद के लिए सामने आ रहे हैं. दिल्ली सरकार की ओर से मदद के वादे किए गए थे, लेकिन इस कैंप में सरकारी मदद नहीं पहुंची थी.

रेहाना की साथी आरिफा बताती हैं, ‘रेहाना ने मुझे फोन कर बताया कि यहां एक महिला हैं जिनके घर में खाने के लिए कुछ नहीं है और एक सात दिन की बच्ची है. हमने आकर देखा तो वास्तव में इनके घर में खाने के लिए कोई सामान नहीं था. यह सुनकर मुझे रोना आ गया कि इन्होंने गुड़ खाकर एक दिन बिता दिया. सरकार को चाहिए कि वह इन जैसे लोगों को जरूर देखे वरना ये लोग कहां जाएंगे!’

pkv games bandarqq dominoqq pkv games parlay judi bola bandarqq pkv games slot77 poker qq dominoqq slot depo 5k slot depo 10k bonus new member judi bola euro ayahqq bandarqq poker qq pkv games poker qq dominoqq bandarqq bandarqq dominoqq pkv games poker qq slot77 sakong pkv games bandarqq gaple dominoqq slot77 slot depo 5k pkv games bandarqq dominoqq depo 25 bonus 25 bandarqq dominoqq pkv games slot depo 10k depo 50 bonus 50 pkv games bandarqq dominoqq slot77 pkv games bandarqq dominoqq slot bonus 100 slot depo 5k pkv games poker qq bandarqq dominoqq depo 50 bonus 50 pkv games bandarqq dominoqq