भीमा-कोरेगांव हिंसा: गौतम नवलखा और आनंद तेल्तुम्बड़े को एक हफ्ते में समर्पण करने का आदेश

सुप्रीम कोर्ट में नागरिक अधिकारी कार्यकर्ताओं गौतम नवलखा और आनंद तेलतुम्बड़े के वकील की ओर से कहा गया है कि दोनों पुरानी बीमारियों से जूझ रहे हैं और उन्हें समर्पण करने के लिए अधिक समय की ज़रूरत है.

आनंद तेलतुम्बड़े और गौतम नवलखा. (फोटो साभार: फेसबुक/विकिपीडिया)

सुप्रीम कोर्ट में नागरिक अधिकारी कार्यकर्ताओं गौतम नवलखा और आनंद तेलतुम्बड़े के वकील की ओर से कहा गया है कि दोनों पुरानी बीमारियों से जूझ रहे हैं और उन्हें समर्पण करने के लिए अधिक समय की ज़रूरत है.

आनंद तेलतुम्बड़े और गौतम नवलखा. (फोटो साभार: फेसबुक/विकिपीडिया)
आनंद तेलतुम्बड़े और गौतम नवलखा. (फोटो साभार: फेसबुक/विकिपीडिया)m

नई दिल्ली: उच्चतम न्यायालय ने बुधवार को नागरिक अधिकार कार्यकर्ता गौतम नवलखा और आनंद तेल्तुम्बड़े को भीमा कोरेगांव हिंसा मामले के सिलसिले में एक सप्ताह के भीतर जेल अधिकारियों के समक्ष समर्पण करने का आदेश दिया.

साथ ही न्यायालय ने स्पष्ट किया कि इसके बाद समर्पण के लिए समय नहीं बढ़ाया जाएगा क्योंकि महाराष्ट्र में अदालतें काम कर रही हैं.

जस्टिस अरुण मिश्रा की अध्यक्षता वाली पीठ ने यह आदेश देते हुए कहा कि आरोपियों को अग्रिम जमानत रद्द करने के न्यायालय के फैसले का सम्मान करते हुए तीन सप्ताह के भीतर समर्पण करना चाहिए था.

पीठ ने कहा, ‘यद्यपि हमें उम्मीद थी कि आरोपी इस न्यायालय के आदेश का सम्मान करते हुए समर्पण करेंगे, लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया है. हमें बताया गया कि मुंबई में अदालतें काम कर रही हैं. आरोपियों के लिए यह बेहतर होता कि वे समर्पण करते क्योंकि अदालतें खुली हैं और पूरी तरह से बंद नहीं हैं.’

पीठ ने कहा, ‘हालांकि, याचिकाकर्ता काफी लंबे समय तक संरक्षण का लाभ उठा चुके हैं, अंतिम अवसर के रूप में हम उन्हें समर्पण करने के लिये एक सप्ताह का समय देते हैं.’

साथ ही न्यायालय ने स्पष्ट किया कि इसके बाद उनके समर्पण करने की अवधि आगे नहीं बढ़ाई जाएगी.

शीर्ष अदालत ने 16 मार्च को इन कार्यकर्ताओं की अग्रिम जमानत याचिका खारिज करते हुए कहा था कि यह नहीं कहा जा सकता कि उनके खिलाफ पहली नजर में कोई मामला नहीं बना है. हालांकि न्यायालय ने इन कार्यकर्ताओं को जेल अधिकारियों के समक्ष समर्पण करने के लिए तीन सप्ताह का वक्त दिया था.

नवलखा और तेलतुम्बड़े पर गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम (यूएपीए) की धाराओं के तहत आरोप लगाए गए हैं.

16 मार्च को सुनवाई के दौरान न्यायालय ने अग्रिम जमानत की अस्वीकृति के संबंध में यूएपीए के तहत प्रावधानों का हवाला देते हुए उनकी याचिका को खारिज कर दिया था. पीठ ने कहा था कि वह आरोपियों के खिलाफ प्रथमदृष्टया मामले से संतुष्ट है.

इन दोनों आरोपियों ने अग्रिम जमानत याचिका खारिज करने के बॉम्बे उच्च न्यायालय के 14 फरवरी के फैसले को शीर्ष अदालत में चुनौती दी थी. उच्च न्यायालय ने इन दोनों को गिरफ्तारी से प्राप्त संरक्षण की अवधि चार सप्ताह के लिए बढ़ा दी थी.

पुणे की सत्र अदालत से राहत नहीं मिलने पर गौतम नवलखा और आनंद तेलतुम्बड़े ने गिरफ्तारी से बचने के लिए नवंबर 2019 में बॉम्बे उच्च न्यायालय में याचिका दायर की थी, जिसे अदालत ने खारिज कर दिया था.

उच्च न्यायालय के आदेश के खिलाफ इन दोनों नागरिक अधिकार कार्यकर्ताओं ने शीर्ष अदालत में अपील दायर की थी.

पुणे पुलिस ने भीमा कोरेगांव में 31 दिसंबर 2017 की हिंसक घटनाओं के बाद एक जनवरी, 2018 को गौतम नवलखा, आनंद तेल्तुम्बड़े और कई अन्य कार्यकर्ताओं के खिलाफ माओवादियों से कथित रूप से संपर्क रखने के कारण मामले दर्ज किए थे.

हालांकि इन कार्यकर्ताओं ने पुलिस के इन आरोपों से इनकार किया था.

समर्पण के लिए नागरिक अधिकार कार्यकर्ताओं ने न्यायालय से मांगा समय

नागरिक अधिकार कार्यकता गौतम नवलखा और आनंद तेल्तुम्बड़े ने कोरोना वायरस महामारी का हवाला देते हुए उच्चतम न्यायालय से बुधवार को अनुरोध किया कि उन्हें भीमा कोरेगांव हिंसा मामले में जेल अधिकारियों के समक्ष समर्पण करने के लिए और समय दिया जाए.

इन कार्यकर्ताओं ने कहा कि कोविड-19 महामारी के दौरान जेल जाने का मतलब ‘मौत की सजा’ जैसा ही है.

जस्टिस अरुण मिश्रा की अध्यक्षता वाली पीठ ने जांच एजेंसी की ओर से सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता का पक्ष सुनने के बाद कहा कि इस आवेदन पर बाद में आदेश सुनाया जाएगा.

मेहता ने कहा कि यह सिर्फ समर्पण करने से बचने के प्रयास का तरीका है जबकि दोनों ही आरोपियों के खिलाफ गंभीर आरोप हैं.

आरोपियों के वकील का कहना था कि ये कार्यकर्ता पुरानी बीमारियों से जूझ रहे हैं और उन्हें समर्पण करने के लिये अधिक समय की आवश्यकता है.

मालूम हो कि एक जनवरी 2018 को वर्ष 1818 में हुई कोरेगांव-भीमा की लड़ाई को 200 साल पूरे हुए थे. इस दिन पुणे ज़िले के भीमा-कोरेगांव नाम के गांव में दलित समुदाय के लोग पेशवा की सेना पर ईस्ट इंडिया कंपनी की सेना की जीत का जश्न मनाते हैं. इस दिन दलित संगठनों ने एक जुलूस निकाला था. इसी दौरान हिंसा भड़क गई, जिसमें एक व्यक्ति की मौत हो गई थी.

पुलिस ने आरोप लगाया है कि 31 दिसंबर 2017 को हुए एल्गार परिषद के सम्मेलन में भड़काऊ भाषणों और बयानों के कारण भीमा-कोरेगांव में एक जनवरी को हिंसा भड़की.

जेल में बंद नौ अन्य नागरिक अधिकार और सामाजिक कार्यकर्ताओं और वकीलों के साथ तेलतुम्बड़े पर कथित तौर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की हत्या की साजिश रचने और पिछले साल 1 जनवरी को कोरेगांव-भीमा में पहुंचने वाले दलितों को हिंसा के लिए भड़काने का आरोप है.

28 अगस्त 2018 को महाराष्ट्र की पुणे पुलिस ने माओवादियों से कथित संबंधों को लेकर पांच कार्यकर्ताओं- कवि वरवरा राव, अधिवक्ता सुधा भारद्वाज, सामाजिक कार्यकर्ता अरुण फरेरा, गौतम नवलखा और वर्णन गोंसाल्विस को गिरफ़्तार किया था. महाराष्ट्र पुलिस का आरोप है कि इस सम्मेलन के कुछ समर्थकों के माओवादी से संबंध हैं.

इससे पहले महाराष्ट्र पुलिस ने जून 2018 में एल्गार परिषद के कार्यक्रम से माओवादियों के कथित संबंधों की जांच करते हुए सामाजिक कार्यकर्ता सुधीर धावले, रोना विल्सन, सुरेंद्र गाडलिंग, शोमा सेन और महेश राउत को गिरफ्तार किया था.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)

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