राजस्थान: लॉकडाउन बढ़ाए जाने के बाद कोटा में फंसे हज़ारों छात्रों ने की घर भेजे जाने की मांग

कोचिंग हब माने जाने वाले कोटा में लॉकडाउन के चलते हज़ारों छात्र-छात्राएं फंसे हैं. उनका कहना है कि कोई इम्तिहान या क्लास नहीं है, पर रहने-खाने की परेशानी से लेकर किराये के लिए मकानमालिकों का दबाव झेलना पड़ रहा है क्योंकि सरकार हमें घर नहीं भेज सकती.

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(फोटोः रॉयटर्स)

कोचिंग हब माने जाने वाले कोटा में लॉकडाउन के चलते हज़ारों छात्र-छात्राएं फंसे हैं. उनका कहना है कि कोई इम्तिहान या क्लास नहीं है, पर रहने-खाने की परेशानी से लेकर किराये के लिए मकानमालिकों का दबाव झेलना पड़ रहा है क्योंकि सरकार हमें घर नहीं भेज सकती.

A man wearing a protective mask walks on a bridge at a railway station during lockdown by the authorities to limit the spreading of coronavirus disease (COVID-19), in New Delhi. (Reuters)
प्रतीकात्मक तस्वीर (फोटो: रॉयटर्स)

जयपुर: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा लॉकडाउन को तीन मई तक बढ़ा देने की घोषणा के बाद राजस्थान के कोटा में पढ़ रहे कोचिंग के छात्रों ने उन्हें उनके घर वापस भेजने के लिए मदद मांगी है.

कोचिंग हब माने जाने वाले कोटा में इस समय हजारों छात्र हैं और उन्होंने 14 अप्रैल को प्रधानमंत्री की घोषणा के बाद से ट्विटर पर #SendUsBackHome (हमें वापस घर भेजें) हैशटैग के साथ विभिन्न अधिकारियों को टैग करते हुए 50 हज़ार से ज्यादा ट्वीट किये हैं.

घर लौटने की मांग कर रहे ये छात्र बिहार, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल और कर्नाटक के हैं.

बता दें कि लॉकडाउन के बढ़ने के चलते लगभग 35 हजार छात्र-छात्राएं कोटा में फंसे हैं. राजस्थान सरकार पिछले लॉकडाउन के दौरान कई छात्रों को उनके घर लौटने के लिए पास जारी किए, लेकिन बिहार सहित दूसरे राज्यों द्वारा उन्हें प्रदेश की सीमा में दाखिल होने की अनुमति न देने के चलते इस पर रोक लगा दी गई है.

राज्यों का कहना है कि कोटा में कोरोना के से अब तक 50 संक्रमित पाए गए हैं, जिससे संक्रमण फैलने का खतरा है इसलिए छात्रों को रोका गया है. बिहार सरकार ने राजस्थान सरकार के रवैये पर नाराजगी जताते हुए केंद्र को पत्र भी लिखा, जिसके बाद ये प्रक्रिया बंद कर दी गई.

इस रोक के चलते छात्रों में भारी निराशा है. उत्तर प्रदेश के रहने वाले अनमोल सिंह कहते हैं, ‘हमें लगा था कि 21 दिनों में लॉकडाउन ख़त्म हो जायेगा लेकिन अब ये अगला चक्र शुरू हो गया. हमें नहीं लगता कि यहां चीजें सामान्य होने वाली हैं. हम यहां अपने परिवार के बिना और नहीं रह सकते.’

नाम न बताने की शर्त पर कोटा के एलन करिअर इंस्टिट्यूट की फैकल्टी के एक सदस्य ने द वायर  को बताया, ‘मार्च में जब लॉकडाउन घोषित हुआ था तब छात्रों ने खुद को संभाला था, लेकिन अब मानसिक तनाव उन्हें सता रहा है. अभी न कोई एग्जाम है, न क्लासेज ही चल रही हैं, ऐसे में ये 16-20 साल के बच्चे कैसे बिना परिवार के कैसे रह सकते हैं.’

शहर में कोरोना संक्रमण के मामले लगातार बढ़ रहे हैं और यह छात्रों की चिंता बढ़ा रहे हैं. इसी के चलते वे उनको दिए जा रहे खाने को लेकर भी संदिग्ध हैं.

उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर के रहने वाले अनुरोध सिंह नीट की तैयारी कर रहे हैं, वे कहते हैं, ‘हमारी मेस बंद है, तो खाना बाहर से आ रहा है. ऐसे समय में जब किसी से भी कहीं भी संक्रमण फैल रहा है, तो किसी अनजान जगह से आ रहे खाने पर हम कैसे भरोसा कर सकते हैं? हम खुद को कैसे समझाए कि हमारा खाना संक्रमण से सुरक्षित है.’

कुछ की शिकायत यह भी है कि खाने की गुणवत्ता और मात्रा दोनों ही घट गए हैं. कोटा में पढ़ रहे और पढ़कर निकल चुके छात्रों का एक ग्रुप ‘इट हैपेंस ओनली इन कोटा’ है और आशीष रंजन इसके सोशल मीडिया प्रमुख हैं.

वे कहते हैं, ‘खाने का मेन्यू किसी काम का नहीं बचा है. मेस के खाने में पहले ही स्वाद नहीं होता था, अब लॉकडाउन के बाद यह और खराब हो गया है. कई बार तो खाना खाते ही नहीं हैं.’

इसके अलावा एक समस्या मकानमालिकों और किराये से जुड़ी भी है. मकानमालिकों को बच्चों से किराया न लेने संबंधी कोई लिखित आदेश नहीं दिया गया है. ऐसे में कई जगह छात्रों से किराया मांगा जा रहा है.

एक अन्य छात्र रजत बताते हैं, ‘हमें अब बेवजह अप्रैल महीने का किराया देना पड़ रहा है. हमारा कोर्स खत्म हो चुका है, कोई क्लासेज नहीं हो रही हैं लेकिन फिर भी हमें यहां रहने के लिए पैसे देने पड़ रहे हैं क्योंकि सरकार हमें हमारे घर वापस भेजने में मदद नहीं कर सकती.’

वेबसाइट द लल्लनटॉप की रिपोर्ट के मुताबिक कुछ मकानमालिकों ने उनके यहां रह रहे बच्चों से किराया लेने के लिए एटीएम और उसका पिन भी देने को कहा है.

रिपोर्ट के अनुसार मूल रूप से अगरतला की सग्निका भट्टाचार्य कोटा लैंडमार्क सिटी में रहती हैं और उन्होंने बताया कि वे घर वापस जाना चाहती थीं, लेकिन मार्च में और अभी अप्रैल में लॉकडाउन की अवधि बढ़ने के बाद फ्लाइट्स कैंसिल होने के चलते ऐसा नहीं हो सका.

उन्होंने बताया, ‘कोटा में लगातार मामले बढ़ रहे हैं. हमें डर लग रहा है कि कहीं हमें भी संक्रमण न हो जाए. हमें बार-बार किराये के लिए बोला जा रहा है. बाहर नहीं जा सकते इसलिए एटीएम कार्ड मांगा जा रहा है. साथ ही पिन बताने के लिए कहा जा रहा है, ताकि वो रेंट के पैसे निकाल लें. हम क्यों दें अपना एटीएम कार्ड और क्यों बताएं अपना पिन किसी को?’

बिहार के गया की रहने वाली रुमा परवीन ने इस वेबसाइट को बताया कि उन्हें टीबी की शिकायत है, जिसकी लगातार दवाई लेनी होती है. लॉकडाउन के दौरान दवा खत्म हो गई, तो उसका इंतजाम करने में खासी मुश्किलें आईं.

रूमा बताती हैं, ‘बहुत मुश्किल से दिन कट रहे हैं. हॉस्टल में थोड़ा-थोड़ा खाना मिल रहा है, पेट नहीं भरता. साफ-सफाई बंद हो गई है, वॉशरूम गंदे रहने लगे हैं. एक छोटे-से कमरे में दिनभर बंद रहना पड़ता है, पढ़ाई नहीं हो पा रही है. मम्मी-पापा से बात करके फ्रस्टेट होते हैं. हम किसी भी तरह घर जाना चाहते हैं.’

छात्र-छात्राओं ने यह शिकायत भी की है कि कैंटीन और दुकानों पर उनसे सामान के अधिक दाम लिए जा रहे हैं.

रजत बताते हैं, ‘हर चीज के लिए हमसे एक्स्ट्रा पैसे लिए जा रहे हैं. जैसे, जो कोल्ड ड्रिंक 40 रुपये की थी, उसके 45 रुपये लिए जा रहे हैं. ऐसा हर सामान के साथ हो रहा है.’

छात्र-छात्राओं की शिकायत है कि उन्हें घर लौटने के बारे में सोचने या योजना बनाने के लिए पर्याप्त समय नहीं दिया गया.

उत्तर प्रदेश से आने वाले राहुल जेईई (JEE) की तैयारी कर रहे हैं, वे कहते हैं, ’20 मार्च को हमारा जेईई मेंस का एडमिट कार्ड आने वाला था, लेकिन फिर इस परीक्षा को टाले जाने की घोषणा हो गई. हमारे पास कोटा छोड़ने के लिए बस 21 मार्च का दिन था क्योंकि फिर 22 को जनता कर्फ्यू लगा था.’

वे आगे कहते हैं, ‘जो रिजर्वेशन पाने में सफल रहे, वो तो चले गए, लेकिन हममें से ज्यादातर एक दिन में कुछ तैयारी नहीं कर पाए. यहां अधिकतर स्टूडेंट पश्चिम बंगाल और कर्नाटक के हैं, उनकी फ्लाइट की बुकिंग थीं, लेकिन सब कैंसिल हो गईं. अब हम यहां फंसे हैं.’

कोटा के स्थानीय प्रशासन द्वारा छात्रों को निजी वाहन से निकलने के लिए पास दिए गए थे, लेकिन इस पर कई राज्यों ने आपत्ति जताई.

13 अप्रैल को बिहार के मुख्य सचिव ने केंद्रीय गृह सचिव अजय भल्ला को लिखते हुए कोटा के जिलाधिकारी को छात्रों को पास देकर गृह मंत्रालय के बाहर न निकलने के दिशानिर्देशों का उल्लंघन करने के बारे में चेताया था.

पत्र में कहा गया था, ‘कोटा के जिलाधिकारी द्वारा लोगों को बिहार पहुंचाने के लिए प्राइवेट गाड़ियों के पास जारी किए जा रहे हैं. यह जानना जरूरी है कि कोटा में अब तक कोरोना 40 कंफर्म मामले सामने आ चुके हैं और ऐसे में वहां से आना-जाना उचित नहीं है. बिहा लौट रहे छात्रों और उनके साथ आये अभिभावकों का मेडिकल परीक्षण किया जा रहा है, उन्हें खुद को क्वारंटाइन करने का परामर्श भी दिया गया है. इस अभूतपूर्व स्थिति को आसानी से टाला जा सकता था, अगर कोटा में लॉकडाउन को सख्ती से लागू किया गया होता.’

इसके बाद इस प्रक्रिया को रोक दिया गया. गोपनीयता की शर्त पर एक अधिकारी ने बताया, ‘पास केवल उन्हीं छात्रों को दिए गए थे, जिनके घर कोविड-19 के संवेदनशील क्षेत्र में नहीं थे.’

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