क्या दिल्ली पुलिस दिल्ली दंगों में मारे गए लोगों की जानकारी छिपा रही है?

एक आरटीआई आवेदन के जवाब में दिल्ली पुलिस ने बताया है कि फरवरी में उत्तर पूर्वी दिल्ली में हुई हिंसा में 23 लोगों की मौत हुई है. इससे पहले गृह मंत्रालय ने संसद में कहा था कि इस हिंसा में 52 जानें गई हैं.

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फरवरी 2020 में उत्तर-पूर्वी दिल्ली में हुई हिंसा. (फाइल फोटो: पीटीआई)

एक आरटीआई आवेदन के जवाब में दिल्ली पुलिस ने बताया है कि फरवरी में उत्तर पूर्वी दिल्ली में हुई हिंसा में 23 लोगों की मौत हुई है. इससे पहले गृह मंत्रालय ने संसद में कहा था कि इस हिंसा में 52 जानें गई हैं.

New Delhi: Relatives of the victims, killed during communal violence in northeast Delhi area over the amended citizenship law, wait outside the mortuary of GTB hospital in New Delhi, Thursday, Feb 27, 2020. The death toll in the communal violence has reached 32 on Thursday. (PTI Photo/Vijay Verma)(PTI2_27_2020_000028B)
दिल्ली के जीटीबी अस्पताल की मोर्चरी के बाहर हिंसा में मारे गए लोगों के परिजन. (फोटो: पीटीआई)

नई दिल्ली: दिल्ली दंगों से जुड़ी कई महत्वपूर्ण जानकारियों को गोपनीय रखने और ‘जीवन या स्वतंत्रता’ का मामला होने के बाद भी देरी से जानकारी देने की कोशिश करती दिल्ली पुलिस ने इस दिशा में एक कदम और बढ़ाया है.

सूचना का अधिकार (आरटीआई) के एक आवेदन के तहत पुलिस ने बताया है कि फरवरी के आखिरी सप्ताह में हुए दिल्ली दंगों में 23 लोग मारे गए थे और इस हिंसा में कुल 48 लोगों को गिरफ्तार किया गया था.

खास बात ये है दिल्ली पुलिस का ये जवाब केंद्रीय गृह मंत्रालय द्वारा संसद में पेश किए गए और दिल्ली के अस्पतालों द्वारा दिए गए मृतकों के आंकड़ों की तुलना में आधे से भी कम है.

कॉमनवेल्थ ह्यूमन राइट्स इनिशिएटिव के एक्सेस टू इन्फॉर्मेशन प्रोग्राम के प्रोग्राम हेड वेंकटेश नायक ने दिल्ली दंगे में मारे गए लोगों के नाम एवं पता, गिरफ्तार किए गए लोगों के नाम, दिल्ली पुलिस कंट्रोल रूम के नोटिस बोर्ड पर दिखाए गए गिरफ्तार लोगों की सर्टिफाइड प्रति, दंगे के दौरान सभी पुलिस स्टेशनों में हिरासत में लिए गए लोगों के नाम के संबंध में जानकारी मांगी थी.

दिल्ली पुलिस ने आरटीआई एक्ट, 2005 के तहत 30 दिन के भीतर जवाब देने की समयसीमा का उल्लंघन करते हुए अपने ही नोडल डिपार्टमेंट गृह मंत्रालय के आंकड़ों के विपरीत जवाब भेजा है.

दिल्ली पुलिस की अपराध शाखा के डिप्टी पुलिस कमिश्नर और जन सूचना अधिकारी जॉय टिर्की ने 13 अप्रैल 2020 को भेजे अपने जवाब में कहा, ‘दिल्ली में हुई सांप्रदायिक हिंसा में कुल 23 लोगों की मौत हुई है. बाकी जानकारी आरटीआई एक्ट, 2005 की धारा 8 (1) (एच) के तहत नहीं दी जा सकती है.’

आवेदन में मृतकों के नाम एवं पता की भी जानकारी मांगी गई थी लेकिन पुलिस ने इसे देने से इनकार कर दिया.

धारा 8 (1) (एच) के तहत यदि किसी सूचना के खुलासे से जांच की प्रक्रिया या अपराधियों का अभियोजन प्रभावित होता है तो ऐसी जानकारी को भी देने से मना किया गया है.

दिल्ली पुलिस द्वारा आरटीआई के तहत दिया गया जवाब.
दिल्ली पुलिस द्वारा आरटीआई के तहत दिया गया जवाब.

इसके अलावा टिर्की ने बताया कि सांप्रदायिक हिंसा में कुल 48 लोगों को गिरफ्तार किया गया था. हालांकि जन सूचना अधिकारी ने इन लोगों की भी पहचान बताते ने मना कर दिया.

बता दें कि उत्तर-पूर्वी दिल्ली दंगों को लेकर दिल्ली पुलिस का ये जवाब केंद्रीय गृह मंत्रालय द्वारा संसद में पेश किए गए मृतकों एवं गिरफ्तार किए गए आंकड़ों की तुलना में आधे से भी कम है.

18 मार्च 2020 को केंद्रीय गृह राज्य मंत्री जी. किशन रेड्डी ने राज्यसभा में पेश किए अपने लिखित जवाब में कहा था कि दिल्ली पुलिस की रिपोर्ट के मुताबिक उत्तर-पूर्वी दिल्ली दंगे में कुल 52 लोग मारे गए और 545 लोग घायल हुए थे. 

एमडीएमके के महासचिव और तमिलनाडु से राज्यसभा सांसद वाइको के एक अन्य सवाल के जवाब में मंत्री ने सदन को बताया कि हिंसा में कुल 3,304 लोगों को गिरफ्तार या हिरासत में लिया गया था और 12 मार्च 2020 तक में 763 केस दर्ज किए गए, जिसमें से 51 मामले आर्म्स एक्ट की तहत दर्ज किए गए.

दिल्ली पुलिस द्वारा आरटीआई के तहत दी गई जानकारी अस्पातालों द्वारा दिए गए दंगे में मारे गए लोगों एवं घायलों के आंकड़ों से भी मेल नहीं खाते हैं.

आठ मार्च को दिल्ली पुलिस ने खुद ये पुष्टि की थी कि दंगे में 53 लोगों की मौत हुई है और मीडिया में व्यापक स्तर पर ये आंकड़े प्रकाशित भी किए जा चुके हैं.

इस लिंक पर द वायर  ने 53 में से 51 लोगों की पहचान के बारे में जानकारी दी है, जिसमें से अधिकतर लोग मुस्लिम समुदाय से हैं.

दिल्ली के उत्तर-पूर्वी जिले में तब दंगा भड़क गया था जब नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे लोगों को हटाने की मांग लेकर बड़ी संख्या में सीएए समर्थक सड़क पर उतर गए थे. ये दंगा मुख्य रूप से 24 फरवरी से लेकर 27 फरवरी, 2020 तक चला था.

(फोटो: पीटीआई)
(फोटो: पीटीआई)

मालूम हो कि दिल्ली दंगों के लिए बनाई गई दो विशेष जांच टीम (एसआईटी) में से एक की अगुवाई जॉय टिर्की ही कर रहे हैं.

टिर्की जेएनयू में पांच जनवरी की रात हुई हिंसा, जब कथित तौर पर एबीवीपी कार्यकर्ताओं ने नकाब लगाकर जेएनयू छात्र संघ अध्यक्ष ओईषी घोष पर हमला किया और कैंपस में तोड़-फोड़ की थी, मामले की भी जांच कर रहे है

हालांकि 10 जनवरी को आनन-फानन में किए एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में जॉय टिर्की ने हमले में गंभीर रूप से घायल हुई घोष समेत नौ लोगों को आरोपी बताया.

तब टिर्की ने पत्रकारों को बताया था कि घोष ने पांच जनवरी को पेरियार हॉस्टल में हमला करने वाली भीड़ की अगुवाई की थी.

दिल्ली दंगों को लेकर गृह मंत्रालय और दिल्ली पुलिस के आंकड़ों में इतना अंतर क्यों है, ये जानने के लिए दिल्ली पुलिस के पीआरओ एमएस रंधावा और डीसीपी जॉय टिर्की को कई बार कॉल किया गया, लेकिन उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया.

रंधावा और टिर्की को सवालों की सूची भेज दी गई है. उनका जवाब आने पर उसे रिपोर्ट में शामिल किया जाएगा.

आरटीआई कार्यकर्ता वेंकटेश नायक कहते हैं कि ये जानकारी पूरी तरह से झूठी प्रतीत होती है और ये जनता को गुमराह करने की कोशिश है.

दिल्ली पुलिस द्वारा कई जानकारी छिपाने को लेकर उन्होंने कहा, ‘केंद्रीय सूचना आयोग और दिल्ली हाईकोर्ट ने अपने आदेशों में कहा है कि किसी आरटीआई आवेदन को खारिज करते हुए जन सूचना अधिकारी की जिम्मेदारी है कि वे बताएं कि किस आधार पर वे ऐसी जानकारी का खुलासा करने से मना कर रहे हैं.’

इससे पहले द वायर  ने पिछली रिपोर्ट में बताया था कि किस तरह दिल्ली पुलिस इन सूचनाओं के अलावा अन्य जानकारियों का भी खुलासा करने से इनकार कर रही है.

उत्तर-पूर्वी दिल्ली में हुए दंगे के संबंध में पुलिस पर उठ रहे सवालों को लेकर द वायर  ने सूचना का अधिकार के तहत कई आवेदन दायर कर इस दौरान पुलिस द्वारा लिए गए फैसले और उनके द्वारा की गई कार्रवाई के संबंध में जानकारी मांगी थी.

लेकिन पुलिस ने आरटीआई एक्ट की सूचना देने से छूट प्राप्त धाराओं का ‘गैर-कानूनी’ इस्तेमाल करते हुए और इससे लोगों की जान खतरे में होने का हवाला देकर दिल्ली दंगों से जुड़ी कई महत्वपूर्ण जानकारियों का खुलासा करने से इनकार कर दिया.

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