क्या नीतीश कुमार के गृह जनपद में मुसलमान सामाजिक बहिष्कार का सामना कर रहे हैं?

कोरोना संकट के दौरान गहराती सांप्रदायिकता का नया उदाहरण मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के गृह ज़िले नालंदा के बिहार शरीफ में देखने को मिला है, जहां मुस्लिम रहवासियों का आरोप है कि हिंदू दुकानदारों द्वारा उन्हें सामान नहीं दिया जा रहा और उनका सामाजिक बहिष्कार किया जा रहा है.

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कोरोना संकट के दौरान गहराती सांप्रदायिकता का नया उदाहरण मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के गृह ज़िले नालंदा के बिहार शरीफ में देखने को मिला है, जहां मुस्लिम रहवासियों का आरोप है कि हिंदू दुकानदारों द्वारा उन्हें सामान नहीं दिया जा रहा और उनका सामाजिक बहिष्कार किया जा रहा है.

फोटो: अभिमन्यु कुमार
फोटो: अभिमन्यु कुमार

वैश्विक महामारी कोरोना के संकटकाल में भी देश में सांप्रदायिकता का वायरस तेजी से फैल रहा है और हिंदू-मुसलमान के बीच की खाई को और गहरा कर रहा है.

देश के कई हिस्सों में मुसलमानों के साथ दुर्व्यवहार की घटनाओं के सामने आने के बाद इस बार सांप्रदायिकता के इस वायरस की दस्तक बिहार के एक हिस्से से सुनाई दे रही है.

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के गृह जिले नालंदा में बिहार शरीफ के मुसलमानों का आरोप है कि उन्हें यह कहकर अलग-थलग करने की कोशिश की जा रही है कि वो कोरोना फैला रहे हैं.

उनके अनुसार, सड़कों पर आते-जाते उन पर फब्तियां कसी जा रही हैं और दुकानदार और सब्जी वाले उन्हें जरूरी सामान देने से मना कर रहे हैं.

बीते सप्ताह नालंदा राज्य का नया हॉटस्पॉट बनकर उभरा था. सोमवार यानी 27 अप्रैल तक यहां कोरोना पॉजिटिव मरीजों की संख्या 34 हो गई है.

स्वास्थ्य विभाग के आंकड़ों के मुताबिक राज्य में कोरोना संक्रमितों की कुल 274 हो चुकी है. बीते सोमवार को जिले में कोरोना के एक साथ 17 पॉजिटिव मामले सामने आए थे.

इन सभी 34 मरीजों में एक डॉक्टर भी शामिल हैंजो कोरोना मरीज के संपर्क में आने से संक्रमित हो गए थे.

बिहार शरीफ का मुस्लिम इलाके शेखाना के रहने वाले मोहम्मद शमी कहते हैं, ‘माहौल इतना बिगड़ चुका है कि जैसे मुसलमानों को बिना ट्रायल के आतंकवादी करार दे दिया जाता है, वैसे ही अब हमें कोरोना संक्रमित बता दिया जाता है.’

उनके मोहल्ले में चार कोरोना संक्रमितों के मिलने के बाद को 22 अप्रैल को स्थानीय प्रशासन ने इसे सील कर दिया था और यहां जरूरत की सामानों के दुकान खोलने पर भी पाबंदी लगा दी गई.

प्रशासन का कहना है कि सील इलाकों में जरूरत के सामान प्रशासन की तरफ से उपलब्ध कराए जा रहे हैं.

लेकिन इन इलाकों में प्रशासन द्वारा नियुक्त वॉलंटियर ही प्रशासन के इंतजाम को सिर्फ दिखावा बता रहे हैं.

सील इलाके में तैनात एक वॉलंटियर ने नाम न छापने की शर्त पर कहा, ‘प्रशासन ने एक बैनर लगवा दिया और उसमें वॉट्सऐप नंबर दे दिया कि जिनको भी सामान की जरूरत हो वह मैसेज करें. देखने में अच्छा तो जरूर लगता है कि स्थानीय प्रशासन इतना एक्टिव है लेकिन यह सिर्फ दिखावा है, जमीनी हकीकत कुछ और है. जब हम वॉलंटियर तय स्थान पर जरूरत के सामान लाने जाते हैं तो वहां कुछ नहीं होता. न दूध और न सब्जी.’

प्रशासन के इंतजाम नाकाफी हैं, ऐसे में मोहल्ले के लोगों के लिए यह दोहरी मार की तरह है. इस बीच इलाके के हिंदू-मुस्लिमों के बीच टकराव की स्थिति उत्पन्न हो गई है.

असल में शेखाना मोहल्ला से सटे मोहल्ले गैर-मुसलमानों के हैं. ऐसे में मोहल्ले की सीमाओं पर माहौल तनावपूर्ण बन गया है.

स्थानीय निवासी मो. शहजाद बताते हैं, ‘माहौल में तनाव इतना बढ़ गया है कि बीते मंगलवार को हिंदू और मुसलमान भाइयों के बीच झड़प जैसी स्थिति पैदा हो गई थी.’

हालांकि प्रशासन को इस बारे में कोई सूचना नहीं है.

शहजाद का कहना है, ‘जब भी हमारी मां-बहनें बाजार जाती हैं तो उन्हें ‘कोरोना’ कहकर चिढ़ाया जाता है.’

वे बताते हैं कि उनका मोहल्ले का रास्ता हिंदुओं के मोहल्ले से होकर गुजरता है और उसी रास्ते में बाजार भी है. जब भी उनके इलाके के लोग हिंदुओं की दुकानों से सामान की लेने जाते हैं, तो उन्हें सामान देने से इनकार दिया जाता है.

मोहल्ले की एक मुस्लिम महिला ने नाम न बताने की शर्त पर बताया, ‘दो दिन पहले मैं अपनी बेटी के साथ जरूरी सामान लाने के लिए उस दुकान में गई थी, जहां मैं अक्सर जाया करती थी. मैं बुर्के में थी. मैंने दुकानदार से आटा के लिए पूछा तो उन्होंने यह कहते हुए मना कर दिया कि स्टॉक खत्म हो गया है. जैसे ही मैंने चीनी की मांग की तो दुकानदार ने उसके लिए भी झट से मना कर दिया. उनके हाव-भाव से लगा कि वो हमें सामान देना नहीं चाहते हैं.’

बिहार शरीफ के हर दस में से एक मुसलमान परिवार का कोई सगा-संबंधी खाड़ी देशों में नौकरी करता है. बिहार में अवसरों और नौकरियों की कमी के चलते वे बाहर जाने को मजबूर हैं.

जिले के एक मरीज को छोड़ दिया जाए तो बाकी सभी दुबई से लौटे व्यक्ति की संक्रमण चेन का हिस्सा हैं, हालांकि इस शख्स ने भी लंबे इलाज के बाद कोरोना संक्रमण को हरा दिया है.

Bihar Sharif Corona Story (2)
फोटो: अभिमन्यु कुमार

वहीं दूसरी तरफ सामाजिक रूप से सक्रिय मनतोष कुमार मुसलमानों के इन आरोपों को पूरी तरह सही नहीं मानते हैं.

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) से जुड़े मनतोष कहते हैं, ‘यह बात सही है कि मुसलमानों को कुछ परेशानियां हो रही हैं क्योंकि क्योंकि जिले के अधिकतर कोरोना मरीज मुसलमान हैं, ऐसे में लोगों में यह धारणा बन गई है कि ये कोरोना फैला रहे हैं. पर उनका सामाजिक बहिष्कार नहीं किया जा रहा है.’

मनतोष कहते हैं कि सभी कोरोना मरीज एक ही संक्रमण चेन का हिस्सा हैं. अगर इनसे हिंदू भाई संक्रमित होते तो उनके इन आरोपों को सही कहा जा सकता था.

दुकानदार स्वीकारते हैं मुसलमानों के बहिष्कार की बात

मनतोष की बात के उलट हिंदू दुकानदारों ने भी इस बात को स्वीकारा कि उनके पास सामान होते हुए भी वे मुसलमानों को इसके लिए मना कर रहे हैं. उनका मानना है कि मुसलमानों से उन्हें संक्रमण का खतरा है.

हालांकि एक स्थानीय दुकानदार ने यह भी बताया कि वे मुसलमानों को सामान देना चाहते हैं पर कुछ स्थानीय दबंग उन्हें ऐसा करने से रोकते हैं.

दुकानदार ने बताया, ‘हिंदू ही नहीं, मुसलमान भी हमारे कस्टमर रहे हैं. हम उन्हें सामान देना भी चाहते हैं तो हमें देने नहीं दिया जाता. आसपास के लोग हम पर यह दबाव बनाते हैं. उनका कहना है कि अगर हमनें मुसलमानों को सामान दिया तो हमें दुकान खोलने नहीं दिया जाएगा. आप ही बताइए, हम क्या करें?’

मोहल्ले से निकलने वाले मुख्य बाजार के चौराहे पर सुबह पांच बजे से सब्जी वालों के ठेले लगते हैं. सब्जी बेचने वालों में एक महिला ने भी कुछ ऐसे ही दबाव की बात स्वीकारी और कहा, ‘आसपास के दूसरे सब्जी वाले हमें मुसलमानों को सामान देने से मान करते हैं. हम क्या कर सकते हैं, हमें रहना तो इसी मंडी में है न.’

महिला ने यह भी बताया कि जब भीड़ ज्यादा होती है तो वो मुसलमानों को सब्जी दे देती हैं क्योंकि वो मानती हैं कि वे भी इंसान हैं.

राजेश किराना दुकान चलाते हैं और कहते हैं कि उनके अधिकतर ग्राहक हिंदू हैं लेकिन अगर कोई मुसलमान उनकी दुकान पर आएगा तो वो सामान देने से मना कर देंगे.

वे कहते हैं, ‘मुसलमान खुद ही नफरत की वजह बन रहे हैं. आप देखिए कि मुस्लिम इलाकों में स्वास्थ्यकर्मियों का बहिष्कार किया जा रहा है. उन्हें यह लगता है कि सरकार एनआरसी के लिए उनसे पूछताछ कर रही है. इस तरह की सोच रहेगी, तो खुले तौर पर लोग उनका बहिष्कार न भी करें, तो अंदर ही अंदर नफरत जरूर करेंगे.”

शहर की एक गली में सब्जी का ठेला लेकर गुजर रहे जोगिंदर से जब पूछा कि क्या आप अपनी सब्जियां मुसलमानों को बेचते हैं, तो वे कहते हैं, ‘सब्जी बिके या न बिके, पर खतरा मोल नहीं लेना है.’ जल्दी में दिख रहे जोगिंदर इतना बोलकर चले जाते हैं.

क्यों हैं मुस्लिम निशाने पर

बिहार शरीफ निवासी कन्हैया कुमार कोरोना संक्रमित मुस्लिम इलाके में रहते हैं. पेशे से बैंकर कन्हैया कहते हैं कि मुसलमानों के प्रति आम लोगों की नफरत इसलिए बढ़ रही है क्योंकि वो इस संक्रमण के प्रति संजीदा नहीं दिखते हैं.

उनका कहना है, ‘आम बाजार की कहानी छोड़िए, हमारे बैंक में भी जब कोई मुसलमान ग्राहक आता है तो हमारे सभी सहकर्मी सतर्क हो जाते हैं. एकाएक डर का माहौल पैदा हो जाता है. चूकि हम बैंकर हैं और सरकार के नियमों से बंधे हैं, हम उन्हें मना नहीं कर सकते. इसलिए हम कोशिश करते हैं कि जल्दी से उनका काम निपटा दिया जाए ताकि वो चला जाए. उनके जाने के बाद हम अपने ब्रांच को सैनेटाइज करते हैं.’

कन्हैया कुमार बताते हैं कि बिहार शरीफ में इक्का-दुक्का मरीज को छोड़कर सभी मुसलमान हैं और ऐसे में ये डर लाजिमी है. आखिर सवाल जिंदगी और मौत का है.

Bihar Sharif Corona Story (1)
फोटो: अभिमन्यु कुमार

एक अन्य स्थानीय राजेश गुप्ता कहते हैं, ‘हमें चीन और अमरीका से मतलब नहीं है पर यहां कौन फैला रहा है यह बीमारी? जैसे आम की टोकरी से सड़े हुए आम को अलग कर दिया जाता है, उसी तर्ज पर अधिकतर लोग उनसे दूर रहना चाहते हैं.’

वरिष्ठ पत्रकार सुजीत वर्मा भी बताते हैं कि बिहार शरीफ के कई इलाकों में स्वास्थ्यकर्मियों का बहिष्कार यह सोचकर किया जा रहा है कि उन्हें यह लगता है कि सरकार एनआरसी के लिए उनका डेटा इकट्ठा कर रही है.

प्रशासन का इनकार

स्थानीयों की इतनी शिकायतों के बावजूद प्रशासन इनसे अब तक अनजान है. उनका कहना है कि उन्हें इस तरह की कोई शिकायत नहीं मिली है.

डीएम योगेंद्र सिंह कहते हैं, ‘इस तरह की कोई शिकायत नहीं मिली है. अगर शिकायत मिलती है तो कड़ी कार्रवाई की जाएगी. कुछ लोगों पर अफवाह फैलाने के आरोप में मामले भी दर्ज किए गए हैं.’

क्या मीडिया फैला रहा है नफरत?

साल 2011 की जनगणना रिपोर्ट के मुताबिक बिहार शरीफ की आबादी करीब तीन लाख है, जिनमें मुसलमानों की आबादी करीब 33 फीसदी है.

मिली-जुली आबादी वाला यह क्षेत्र सूफी-संतों की धरती रहा है. इतिहास में यहां कई सूफी-संत आए और एकता-शांति का संदेश दे गए. शहर में आज भी कई निशानियां इस बात को प्रमाणित करते हैं.

लेकिन उनका शांति का संदेश अब चुक गया-सा दिखता है. इस तरह से नफरत बढ़ने की क्या वजह है? सुजीत जवाब देते हैं, ‘अक्सर इस तरह की नफरत के पीछे राजनीति से जुड़े लोगों का हाथ होता है, लेकिन इस बार ऐसा नहीं है.

वे कहते हैं, ‘इसमें कोई शक नहीं है कि बिहार शरीफ में दोनों समाज के बीच दरारें पैदा हो रही हैं. कोरोना के अधिकतर मामले मुसलमानों से जुड़े हैं. ऐसे में लोगों ने यह धारणा बन गई है कि मुसलमान ही कोरोना फैला रहे हैं.’

सुजीत एक दूसरी वजह को भी गिनाते हैं, ‘यह कहीं न कहीं फेक न्यूज और राष्ट्रीय टीवी चैनलों द्वारा फैलाए जा रहे प्रोपेगेंडा का भी परिणाम है.’

मोहम्मद शमी भी हिंदू-मुसलमान के बीच दरार की वजह मीडिया और फेक न्यूज को मानते हैं.

वे कहते हैं कि शुरुआत में पूरे देश में तबलीगी जमात और निजामुद्दीन मरकज के नाम पर मुसलमानों को जो बदनाम करना शुरू किया गया, उससे बिहार शरीफ के मुसलमान भी अछूते नहीं रहे.

शमी आगे कहते हैं, ‘मीडिया वालों ने मुसलमानों के मोहल्लों को बदनाम किया है. हमें मकरज से जोड़ा जाता है.’ उनके इन आरोपों पर दूसरे मोहल्लावासियों ने भी सहमति जताई.

एक अन्य ने कहा, ‘आज से कुछ दस-बारह दिन पहले मुसलमानों के मोहल्ले से स्थानीय मरकज से जुड़े पांच लोगों को शक की बुनियाद पर प्रशासन उठा कर ले गई थी. तब टीवी चैनलों में यह दिखाया गया कि बिहार शरीफ राज्य का ‘निजामुद्दीन’ बन गया है. क्षेत्रीय टीवी चैनल उन्हें संक्रमित बता रहे थे, जबकि उन्हें सिर्फ जांच के लिए ले जाया गया था. बाद में जांच में सभी के सैंपल निगेटिव पाए गए.’

शमी कहते हैं, ‘फेक न्यूज तो फैला दिया गया लेकिन बाद में जो सच्चाई सामने आई उसे दिखाया नहीं गया, जिसने हमारे हिंदू भाइयों में अंदर शक और संदेह पैदा किया. मोबइल पर भी फेक न्यूज वाला वीडियो खूब सर्कुलेट किया गया.

नफरत भरे माहौल के बारे में सुजीत रिपोर्टिंग के दौरान का अपना एक अनुभव साझा करते हैं, ‘एक हिंदू मोहल्ले में कुछ स्वास्थ्यकर्मी जांच के लिए डोर टू डोर कैंपेनिंग कर रहे थे. एक हिंदू युवा ने स्वास्थ्यकर्मियों को चाकू लेकर खदेड़ दिया और कहा कि जाओ पहले मुसलमानों के मोहल्ले में जांच करो.’

Bihar Sharif Corona Story
बिहार शरीफ में दुकानों पर लगे भगवा झंडे. (फोटो: Special Arrangement)

क्या बिहार शरीफ में हुआ था तबलीगी जमात का जुटान?

मार्च की 13 और 14 तारीख को शहर के एक स्थानीय मरकज में तबलीगी जमात से जुड़े लोगों का जुटान हुआ था. हर तीन महीने में राज्य के विभिन्न जिलों में इसका नियमित जुटान होता है.

इससे आठ दिन बाद 22 मार्च को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के द्वारा जनता कर्फ्यू का आह्वान किया गया था. उस दिन कोरोना से राज्य में हुई पहली मौत के बाद बिहार सरकार आठ दिनों के लिए लॉकडाउन की घोषणा करती है.

बिहार शरीफ स्थित जामा मस्जिद के सचिव मीर अरशद हुसैन कहते हैं, ‘दिल्ली के निजामुद्दीन का मामला आने के बाद स्थानीय अखबार हमारे जुटान को दिल्ली के मरकज से जोड़ कर देखने लगे और इस बारे में खबर छापने लगे.’

वे कहते हैं, ‘बिहार शरीफ के मरकज में हुए जुटान का दिल्ली के जुटान से कोई लेना-देना नहीं था. यह राज्य का जुटान था. महज नाम समान होने के चलते स्थानीय अखबारों में हमारे बारे में ग़लत सूचना दी गई और सनसनी फैलाई गई.’

मुसलमानों के सामाजिक बहिष्कार का अपना निजी अनुभव साझा करते हुए हुसैन कहते हैं कि ऐसा हो रहा है लेकिन इसमें सभी हिंदू भाई शामिल नहीं है.

वे बताते हैं, ‘हमारे इलाके में कुछ दिन पहले कुछ दुकानों में भगवा झंडा टांग दिया गया और यह संदेश देने की कोशिश की गई थी कि उन दुकानों से मुसलमानों को सामान नहीं मिलेगा. लेकिन कुछ हिंदू भाई ऐसे भी हैं जिनके साथ उठना-बैठना है, वो मदद के लिए तैयार रहते हैं.’

हुसैन आगे कहते हैं, ‘जब तक मीडिया अपनी मानसिकता नहीं बदलेगा तब तक ऐसे हालात पनपते रहेंगे. आप देखिए कैसे सुबह से रात तक टीवी पर हिंदू-मुस्लिम होता रहता है. आखिर दिनभर एक ही चीज सुनते-देखते रहेंगे तो परिणाम और क्या हो सकता है?’

जिले के शिक्षक और समाजसेवी विकास कुमार मेघल कहते हैं कि वक्त के साथ हम कोरोना पर जीत तो पा लेंगे, पर इस दौरान जो नफरत के बीज बोए गए हैं, उसका असर भविष्य में देखने को मिल सकता है.

विकास कहते हैं, ‘प्रशासन इस दिशा में काम कर रहा है और अफवाह फैलाने वालों पर कार्रवाई की जा रही है, लेकिन आम लोगों को शहर और जिले में शांति बनाए रखने के लिए समुदायों को मिल कर काम करना होगा.’

हुसैन भी मानते हैं कि कोरोना संकटकाल खत्म होने के बाद दोनों समुदाय के लोगों को सड़कों पर आना होगा और शांति का पैगाम देना होगा.

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं.)