असम: कोरोना संक्रमण के डर के बाद डिटेंशन सेंटरों से रिहा किए गए 200 से अधिक ‘घोषित विदेशी’

कोरोना वायरस संक्रमण फैलने के बाद दायर याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया था कि असम के डिटेंशन सेंटरों में ऐसे 'घोषित विदेशी' जो यहां दो साल का समय गुज़ार चुके हैं, उन्हें मौजूदा हालात के मद्देनज़र सशर्त रिहा किया जाए.

असम की कुछ जिला जेलों में डिटेंशन सेंटर बनाए गए हैं. गोआलपाड़ा जिला जेल. (फोटो: अब्दुल गनी)

कोरोना वायरस संक्रमण फैलने के बाद दायर याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया था कि असम के डिटेंशन सेंटरों में ऐसे ‘घोषित विदेशी’ जो यहां दो साल का समय गुज़ार चुके हैं, उन्हें मौजूदा हालात के मद्देनज़र सशर्त रिहा किया जाए.

असम की 10 जिला जेलों में डिटेंशन सेंटर बनाए गए हैं. गोआलपाड़ा जिला जेल. (फोटो: अब्दुल गनी)
असम की गोआलपाड़ा जिला जेल. (फोटो: अब्दुल गनी)

बीते 22 अप्रैल को पश्चिमी असम के चिरांग जिले के 63 वर्षीय बोन्शीधर राजबंशी ने ढाई साल बाद आज़ाद हवा में सांस ली.

दो साल नौ महीने पहले उन्हें ‘विदेशी’ घोषित किया गया था, जिसके बाद से वे गोआलपाड़ा डिटेंशन सेंटर में रह रहे थे.

कोरोना संक्रमण के चलते जेलों में भीड़ कम करने के आदेश के बाद डिटेंशन सेंटरों में क़ैद लोगों को भी रिहा किया गया है.

बोन्शीधर ने डेक्कन क्रॉनिकल से बात करते हुए कहा, ‘मैं बहुत लंबे समय से हमें रिहा करवाने के बारे में सबसे कह रहा था, लेकिन कुछ नहीं हुआ. कोरोनावायरस के बारे में सुनने के बाद अंदर हम सब डरे हुए थे.

उनका कहना है कि वे फॉरेनर्स ट्रिब्यूनल के सामने यह प्रमाणित नहीं कर सके थे कि वे 24 मार्च 1971 (असम ने नागरिकता तय करने की कट ऑफ तिथि) के पहले से राज्य में रह रहे थे.

बोन्शीधर के जैसे 800 से अधिक लोग अब भी असम की केंद्रीय जेलों के अंदर बने छह डिटेंशन सेंटरों में रह रहे हैं.

द टेलीग्राफ की खबर के मुताबिक सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बाद अब तक छहों डिटेंशन केंद्रों से 232 लोगों को रिहा किया जा चुका है.

13 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट सीजेआई एसए बोबडे की अध्यक्षता वाली पीठ ने केंद्र और असम सरकार को आदेश दिया था कि जो ‘घोषित विदेशी’ डिटेंशन सेंटर में दो साल का समय गुजार चुके हैं, उन्हें मौजूदा हालात के मद्देनजर रिहा कर दिया जाए.

इसके अलावा शीर्ष अदालत ने रिहाई के लिए भरे जाने वाले बॉन्ड की राशि भी एक लाख रुपये से घटाकर पांच हजार रुपये कर दी. बंदियों की रिहाई के लिए दो भारतीय नागरिकों की गारंटी भी चाहिए होगी.

अदालत का यह आदेश कोरोनावायरस के संक्रमण के बाद दायर कई याचिकाओं के बाद आया है.

इन याचिकाकर्ताओं में गुवाहाटी में मानवाधिकारों के लिए काम करने वाला संगठन जस्टिस एंड लिबर्टी इनिशिएटिव भी है.

संगठन के वकील अमन वदूद ने बताया, ‘एक इंसान के बतौर यह कम से कम उनको इतना तो अधिकार है कि वे जी सकें और डिटेंशन सेंटर की बदहाल स्थितियों में कोविड-19 के चलते अपनी जान न गंवाएं.’

असम बॉर्डर पुलिस के सूत्रों के अनुसार, डिटेंशन सेंटरों में 700 से अधिक ऐसे ‘घोषित विदेशी’ हैं, जो यहां दो साल का समय काट चुके हैं और उन्हें जमानत देकर रिहा करने की प्रक्रिया जारी है. ऐसे लोगों की सूची शीर्ष अदालत और गौहाटी हाईकोर्ट में दे दी जाएगी.

ख़बरों के मुताबिक 50 लोग ऐसे भी हैं, जिन्हें ‘विदेशी’ घोषित किया जा चुका है और जिन्होंने इन केंद्रों में दो साल भी पूरे कर लिए हैं, लेकिन जरूरी कागज न दे पाने के चलते उन्हें रिहा नहीं किया जा सका.

सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद 15 अप्रैल को गौहाटी हाईकोर्ट ने कहा था कि एक सप्ताह के भीतर अधिकतम बंदियों को रिहा कर दिया जाना चाहिए.

इससे पहले 6 मार्च 2020 को केंद्रीय गृह मंत्रालय ने राज्यसभा में बताया था कि असम के छह डिटेंशन केंद्रों में कुल 802 बंदी कैद हैं.

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