लॉकडाउन के बीच आयुष्मान भारत के तहत भर्ती होने वाले मरीज़ों की संख्या में गिरावट

कोविड-19 संक्रमण के बीच गरीबी रेखा से नीचे वाले गंभीर रोगों के मरीज़ों के लिए शुरू की गई आयुष्मान भारत- प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना बुरी तरह प्रभावित है. आंकड़े बताते हैं कि बीते तीन महीनों में देश भर के सरकारी व निजी अस्पतालों में योजना के तहत भर्ती होने वाले मरीज़ों की संख्या में 20 प्रतिशत की कमी आई है.

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New Delhi: A sick woman being taken to a hospital on a rickshaw, during the nationwide lockdown to curb the spread of coronavirus, in Old Delhi, Thursday, April 23, 2020. (PTI Photo/Kamal Kishore)(PTI23-04-2020 000107B)

कोविड-19 संक्रमण के बीच गरीबी रेखा से नीचे वाले गंभीर रोगों के मरीज़ों के लिए शुरू की गई आयुष्मान भारत- प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना बुरी तरह प्रभावित है. आंकड़े बताते हैं कि बीते तीन महीनों में देश भर के सरकारी व निजी अस्पतालों में योजना के तहत भर्ती होने वाले मरीज़ों की संख्या में 20 प्रतिशत की कमी आई है.

New Delhi: A sick woman being taken to a hospital on a rickshaw, during the nationwide lockdown to curb the spread of coronavirus, in Old Delhi, Thursday, April 23, 2020. (PTI Photo/Kamal Kishore)(PTI23-04-2020 000107B)
(फोटो: पीटीआई)

कोरोना वायरस के मद्देनजर हुए देशव्यापी लॉकडाउन के पचास दिन पूरे होने वाले हैं. इस दौरान देश भर के विभिन्न क्षेत्रों में आम लोगों की स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंच सीमित हुई है.

गरीबी रेखा से नीचे जीवन-यापन करने वाले गंभीर रोगों के मरीजों के लिए केंद्र सरकार द्वारा शुरू की गई आयुष्मान भारत- प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना इस समय बुरी तरह प्रभावित है.

मालूम हो कि इस योजना के शुरू होने के बाद राष्‍ट्रीय स्‍वास्‍थ्‍य एजेंसी को बंद करके इसकी जगह परिवार और कल्‍याण मंत्रालय से संबद्ध कार्यालय के रूप में राष्ट्रीय स्वास्थ्य प्राधिकरण (एनएचए) बनाया गया था. देश भर में आयुष्मान भारत को लागू करने के लिए यह सर्वोच्च निकाय है.

इस योजना के पैकेज के तहत 825 तरह की बीमारियों को कवर किया जाता है.

इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, एनएचए डेटा की मानें तो फरवरी से अप्रैल के बीच सरकारी और निजी अस्पतालों में कोविड- 19 से अलग इलाज वाले गंभीर रोगों संबंधित प्रक्रियाओं में 20 फीसदी की गिरावट देखी गई है.

सरल शब्दों में कहें, तो इस योजना के तहत निजी या सरकारी अस्पतालों में पहुंचने वाले मरीजों की संख्या तेजी से घटी है. इन महीनों में योजना के तहत आने वाले रोगियों की संख्या 1,93, 679 से घटकर 1,51,672 पर आ गई है.

एनएचए द्वारा दिए गए आकंड़ों के अनुसार, फरवरी से अप्रैल के बीच कैंसर संबंधी उपचार प्रक्रियाओं में 57 फीसदी की गिरावट आई है, कार्डियोलॉजी यानी हृदय संबंधी में 76% और ऑब्सटेट्रिक्स और गायनोकोलॉजी (प्रसूति व स्त्री रोग) से जुड़ी प्रक्रियाओं में 26 प्रतिशत की कमी देखी गई है.

योजना के अंतर्गत इमरजेंसी रूम संबंधी 12 घंटे से कम समय के लिए भर्ती किए जाने वाले मामलों में 33 प्रतिशत की गिरावट आई है.

इन सभी प्रक्रियाओं को 21 श्रेणियों में बांटा गया है, जिसमें अन्य प्रक्रियाओं में सामान्य सर्जरी और इलाज, यूरोलॉजी (मूत्र संबंधी रोग) और न्यूरोलॉजी (मस्तिष्क संबंधी रोग) शामिल हैं.

एनएचए के शुरुआती आंकड़ों के अनुसार, निजी व सरकारी अस्पतालों, दोनों में ही कोविड 19 से मिलते-जुलते सांस संबंधी लक्षणों वाले मामलों में भी 80 फीसदी की गिरावट आई है.

इस योजना के शुरू होने पर उम्मीद की जा रही थी कि निजी अस्पतालों को जोड़ने से डायलिसिस और कीमोथेरेपी का बोझ कम होगा. इन रुझानों को देखते हुए आशंका है कि लॉकडाउन खत्म होने के बाद ऐसे मामलों में तेजी से बढ़ोतरी होगी.

इस योजना के तहत 21 हजार से ज़्यादा अस्पतालों को जोड़ा गया है, जिनमें आंध्र प्रदेश के अपोलो एंटरप्राइज और एचसीजी, महाराष्ट्र के एचसीजी और वॉकहार्ट अस्पताल, बिहार का पारस ग्लोबल हॉस्पिटल और दिल्ली-एनसीआर क्षेत्र के सर गंगाराम, मेदांता अस्पताल शामिल हैं.

एनएचए और आयुष्मान भारत के सीईओ इंदु भूषण ने बताया, ‘हमारे दैनिक ट्रीटमेंट में 50 फीसदी की कमी हुई है, जबकि डायलिसिस और कीमोथेरेपी जैसे बेहद जरूरी प्रक्रियाओं में दस से बीस प्रतिशत की गिरावट देखी गई है.’

उन्होंने आगे कहा, ‘यह थोड़ी राहत है, लेकिन हमें उम्मीद है कि ये बढ़ेंगे क्योंकि इस समय कई सरकारी अस्पतालों में यह सुविधाएं उपलब्ध नहीं हैं. हमारे साथ जुड़े निजी अस्पतालों को इन्हें संभाल लेना चाहिए.’

लेकिन एक पहलू यह भी है कि लॉकडाउन के दौरान कई निजी अस्पताल बंद है, जो इस तरह की गिरावट की एक वजह है.

भूषण आगे कहते हैं, ‘हमारे यहां जैसी आबादी को इस तरह के नॉन-कोविड मगर गंभीर रोगों का उपचार मिलना मुश्किल है. डायलिसिस और कीमोथेरेपी जैसे ट्रीटमेंट ज्यादातर निजी सेक्टर द्वारा दिए जाते हैं. हमें इन्हें जारी रखने की जरूरत है.’

उन्होंने यह भी कहा कि निजी अस्पतालों के लिए यह वेलफेयर (भलाई) के मॉडल पर काम करने का समय है न कि फायदा कमाने के. उम्मीद है वे ऐसा ही करेंगे.

सांस संबंधी रोगों के मामलों में आई गिरावट आकंड़ों में स्पष्ट दिखाई देती है. एनएचए के डेटा के अनुसार, फरवरी से 27 अप्रैल तक निजी अस्पतालों में गंभीर श्वांस रोग और इन्फ्लुएंजा के मामलों में 76 फीसदी की कमी आई है, सरकारी अस्पतालों में यह आंकड़ा 81 प्रतिशत का है.

भूषण कहते हैं, ‘सरकारी अस्पतालों में गंभीर श्वांस रोग और इन्फ्लुएंजा के मामलों में आई गिरावट वजह के बारे में कुछ कहना जल्दबाजी होगी, लेकिन एक कारण तो यह है कि इस समय बहुत से मरीज घर से बाहर निकलने के बारे में डरे हुए हैं. साथ ही, कुछ अस्पतालों द्वारा अपने यहां कुछ काम और सुविधाओं को कम भी किया गया है.’

बिहार के एक अस्पताल के प्रमुख कहते हैं, ‘डर तो है. हमारे यहां पश्चिम की तरह मामला नहीं है कि लोग अपने आप अस्पताल चले जाएं… अभी ऐसे कोई भी मरीज अस्पताल में भर्ती नहीं होना चाहते क्योंकि उन्हें डर है कि अस्पताल संक्रमण का केंद्र हैं.’

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