20 लाख करोड़ रुपये के पैकेज का महत्व इससे है कि सरकार गरीबों के हाथ में कितनी राशि देगी

यदि आरबीआई द्वारा की गईं घोषणाओं और केंद्र के पहले कोरोना राहत पैकेज की राशि जोड़ दें तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा घोषित 20 लाख करोड़ रुपये के पैकेज में करीब 13 लाख करोड़ रुपये की ही अतिरिक्त राशि बचती है, जिसका विवरण दिया जाना अभी बाकी है.

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**EDS: VIDEO GRAB** New Delhi: Prime Minister Narendra Modi gestures during his address to the nation on coronavirus pandemic in New Delhi, Thursday, March 19, 2020. (PTI Photo)(PTI19-03-2020_000207B)

यदि आरबीआई द्वारा की गईं घोषणाओं और केंद्र के पहले कोरोना राहत पैकेज की राशि जोड़ दें तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा घोषित 20 लाख करोड़ रुपये के पैकेज में करीब 13 लाख करोड़ रुपये की ही अतिरिक्त राशि बचती है, जिसका विवरण दिया जाना अभी बाकी है.

**EDS: VIDEO GRAB** New Delhi: Prime Minister Narendra Modi gestures during his address to the nation on coronavirus pandemic in New Delhi, Thursday, March 19, 2020. (PTI Photo)(PTI19-03-2020_000207B)
(फाइल फोटो: पीटीआई)

भारत में अब तक दुनिया का सबसे कठोर लॉकडाउन रहा है और इस दौरान अर्थव्यवस्था के कमजोर वर्ग की मदद करने के लिए सरकार ने नाममात्र की ही आर्थिक सहायता दी है. वास्तव में, पिछले 45 दिनों में वित्त मंत्रालय ने लोगों में ये धारणा व्याप्त की कि भारत के पास उतने संसाधन नहीं हैं कि वो भी अन्य विकसित देशों की तरह बड़ा आर्थिक पैकेज दे पाए.

फिर भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बीते मंगलवार को 20 लाख करोड़ रुपये के एक मेगा आर्थिक पैकेज की घोषणा की, जो कि भारत के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के 10 फीसदी के बराबर है. यहां तक कि 17 मई से अनिश्चित समय के लिए नए रूप में ‘लॉकडाउन 4.0’ को लागू करने की योजना बनाई गई है.

प्रथम दृष्टया पैकेज की भारी-भरकम राशि देखकर लगता है कि सरकार उन चीजों की भरपाई करना चाहती है जो पिछले कुछ हफ्तों में बहुत बुरी तरह से गलत हो गए हैं- विशेष रूप से प्रवासी श्रमिकों और उनके परिवारों की भयानक दुर्दशा, जिन्हें राज्यों ने लावारिस छोड़ दिया है. पैकेज के विवरण से पता चलेगा कि वास्तव में गरीब और असंगठित श्रमिक वर्ग के लिए कितना प्रावधान किया गया है.

हालांकि पैकेज के राजनीतिक पहलू से स्पष्ट है कि मोदी अन्य बड़े देशों की तरह खर्च करने में उदार होना चाहते हैं. इसमें संयुक्त राज्य अमेरिका शामिल है, जिसने अपने जीडीपी का लगभग 13 फीसदी आर्थिक पैकेज के लिए घोषित किया है. लेकिन फिर भी हमें इस पैकेज को लेकर वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के विवरण का इंतजार करना चाहिए, तभी असली हकीकत पता चल पाएगी.

इसमें मुख्य रूप से यह देखने की जरूरत है कि समाज के सबसे ज्यादा जरूरतमंद तबके को कितनी नकदी (राशि) तुरंत पहुंचाई जाएगी. इस तरह के एक अभूतपूर्व आर्थिक संकट में कुल कार्यबल का लगभग 25 फीसदी बेरोजगार और संभवतः और 25 फीसदी को ये विश्वास नहीं है कि वे वापस नौकरी पर जा पाएंगे या नहीं. सरकार को सिर्फ इस बात पर ध्यान देना है कि अर्थव्यवस्था को वापस सामान्य स्थिति में लौटने तक भारत का 50 फीसदी कार्यबल कैसे अपना घर चलाएगा.

भारत में मजदूरों की कुल संख्या 50 करोड़ है और मोदी के पैकेज को इस बात से आंका जाना चाहिए कि यह भारत के आधे श्रमिकों (यानी 25 करोड़) का किस तरह मदद किया जाएगा, जो या तो बेरोजगार हैं या फिर सब कुछ सामान्य हो जाने के बाद काम पर वापस जाने का इंतजार कर रहे हैं.

इसलिए पैकेज का सबसे महत्वपूर्ण पहलू यह है कि लोगों को तत्काल नकद सहयोग दिया जाए. ये समर्थन बेरोजगारों के बीच बहुत गरीबों को नकद लाभ हस्तांतरण और अन्य लोगों को काम पर वापस लाने के लिए छोटे और सूक्ष्म उद्यमों को प्रोत्साहन के रूप में हो सकता है. यह अर्थव्यवस्था में अल्पकालिक मांग उत्पन्न करने के लिए महत्वपूर्ण होगा और आपूर्ति को बढ़ाने में मदद करेगा- जो कि स्वास्थ्य सेवा को छोड़कर अधिकांश क्षेत्रों में 70 फीसदी से अधिक नीचे है.

प्रधानमंत्री ने कहा है कि इस 20 लाख करोड़ रुपये के पैकेज में पूर्व में सरकार द्वारा की गईं कोरोना संकट से जुड़ीं आर्थिक घोषणाएं और रिजर्व बैंक के फैसले भी शामिल हैं. कोरोना महामारी के दौरान अगर केंद्रीय बैंक के कुल घोषणाओं को जोड़ें तो ये करीब पांच लाख करोड़ रुपये तक पहुंचता है. इसके अलावा इसमें निर्मला सीतारमण द्वारा दी गई 1.7 लाख करोड़ रुपये का पहला कोरोना राहत पैकेज भी शामिल है.

इस तरह केंद्र के पास कुल मिलाकर करीब 13 लाख करोड़ रुपये की घोषणा करने का विकल्प बचा है. लघु एवं मध्यम उद्योग (एमएसएमई) मंत्री नितिन गडकरी ने कहा है कि भारत में छोटी कंपनियों का केंद्र और राज्य दोनों ही सरकारों पर बड़ी राशि पहले ही बकाया है. गडकरी ने पिछले सप्ताह सीएनबीसी को बताया था कि सरकार पर एमएसएमई सेक्टर की बकाया राशि इतनी ज्यादा है कि वे इसके बारे में बता नहीं सकते हैं.

ऐसे कयास लगाए जा रहे हैं कि यह राशि कुछ लाख करोड़ रुपये में होगी, जिसमें निर्यातकों का जीएसटी रिफंड बकाया भी शामिल है. गडकरी ने कहा था कि एमएसएमई को इस तरह की बकाया राशि के एवज में बैंक ऋण की गारंटी मिल सकती है. हालांकि यह अनुचित होगा यदि सरकार अपने राहत पैकेज में ये सब भी जोड़ती है क्योंकि यह छोटे व्यवसायों के लिए पहले से ही सरकार पर बकाया है.

इस पैकेज में राज्यों के नियंत्रण वाले संसाधनों को भी शामिल किया जा सकता है जैसा कि पिछले राहत पैकेज में किया गया था जो कि जीडीपी का करीब 0.8 फीसदी था. इन सभी चीजों को मिलाकर आकलन किया जाना चाहिए कि आर्थिक पुनरूद्धार के लिए घोषित इस पैकेज में केंद्र की ओर से कितनी नई राशि या फंड दी जा रही है.

मुझे आश्चर्य होगा यदि सरकार द्वारा ताजा उधारी के माध्यम से नई नकदी का प्रवाह जीडीपी के तीन फीसदी से चार फीसदी से अधिक हो जाएगा, जो कि छह से आठ लाख करोड़ रुपये तक होगाइसलिए 20 लाख करोड़ रुपये का राजकोषीय पैकेज बहुत बड़ा लग सकता है, लेकिन वास्तविक अतिरिक्त नकदी प्रवाह के मामले में पैकेज अधिक मामूली हो सकता है.

(इस लेख को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां पर क्लिक करें)

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