‘फोन पर बोले साइकिल से निकले हैं, कुछ दिन में घर आ जाएंगे, पांच घंटे बाद उनकी मौत की ख़बर आई’

उत्तर प्रदेश के कुशीनगर ज़िले के बहुआस के रहने वाले राजू गुजरात के अंकलेश्वर में काम करते थे. चार मई को वे साइकिल से अपने गांव जाने के लिए निकले थे, इसी शाम उनका शव बड़ौदा के करजन में नेशनल हाईवे पर मिला.

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Chandigarh: Migrants from various districts of Uttar Pradesh ride bicycles to reach their native places, during the ongoing COVID-19 lockdown, in the outskirts of Chandigarh, Saturday, May 16, 2020. (PTI Photo)(PTI16-05-2020 000062B)

उत्तर प्रदेश के कुशीनगर ज़िले के बहुआस के रहने वाले राजू गुजरात के अंकलेश्वर में काम करते थे. चार मई को वे साइकिल से अपने गांव जाने के लिए निकले थे, इसी शाम उनका शव बड़ौदा के करजन में नेशनल हाईवे पर मिला.

अपने दोनों बेटों के साथ राजू की पत्नी इंद्रावती. (फोटो: अशोक मिश्र)
अपने दोनों बेटों के साथ राजू की पत्नी इंद्रावती. (फोटो: अशोक मिश्र)

‘हमसे उई दिन दो बार बात भइल. एक बार दस बजे और दूसरी बार 12 बजे. दूनो बार उ इहे कहलन कि अरुण का अम्मा घबरा न. हम साइकिल से चल देहले बानी. आठ दिन में घरे पहुंच जाइब. चार-पांच बजे पुलिस के फोन आइल की राजू अब नाहीं रहलन. अब हम कईसे जियब. न घर बा न खेत दुआर. दूनो लड़का छोट बाने. कईसे उनके पढाइब, कइसे जियाइब.’

रोते हुए इंद्रावती बार-बार यही कहती हैं. इंद्रावती के पति राजू साहनी (40) की अंकलेश्वर से साइकिल से घर आते समय बड़ौदा जिले के करजन में थकान व गर्मी से मौत हो गई थी. अंकलेश्वर से 55 किलोमीटर तक साइकिल चलाने के बाद करजन में राजू सड़क पर बेहोश होकर गिर पड़े थे.

राहगीरों की सूचना पर पुलिस उन्हें अस्पताल ले गई लेकिन उन्हें बचाया न जा सका. उनके पास मिले आधार कार्ड से उनकी पहचान हुई. राजू का शव घर नहीं आ सका क्येंकि इसमें 35-40 हजार रुपये का खर्च आ रहा था और इतने पैसे नहीं थे, इसीलिए करजन में ही उनकी अंत्येष्टि कर दी गई.

राजू के भाई राजेश 16 मई को अंकलेश्वर से अपने गांव बहुआस पहुंचे हैं. उनके साथ गांव के 17 मजदूर भी वापस लौटे थे और आते ही सभी को गांव के प्राथमिक विद्यालय में क्वारंटीन कर दिया गया है.

परिवार में इंद्रावती के दो बेटे हैं, अरुण आठ वर्ष का है, विक्की पांच साल का, इसी साल उसका स्कूल में दाखिला हुआ है जबकि बड़ा बेटा पांचवीं में पढ़ रहा है. बूढ़े ससुर हैं, जिनकी मानसिक स्थिति ठीक नहीं है.

संपत्ति के नाम पर इंद्रावती के पास फूस की एक झोपड़ी है, अधबना शौचालय है. राशन कार्ड है लेकिन उसे उज्जवला योजना का लाभ नहीं मिला है, रसोई गैस का इंतजाम खुद किया है.

इंद्रावती बताती हैं कि राजू छह महीने पहले घर आए थे और करीब एक महीना घर पर रहे. इसके बाद अंकलेश्वर चले गए. इस दौरान उन्होंने घर खर्च के लिए करीब दस हजार रुपये भेजे थे. कभी एक हजार तो कभी दो हजार, पर आज उसके पास एक पैसा नहीं है.

उन्होंने यह भी बताया कि राजू की मौत के बाद शासन-प्रशासन से कोई मदद नहीं मिली है न ही किसी सरकारी अफसर या जनप्रतिनिधि ने उससे मुलाकात की है.

खेत न होने के कारण अनाज की हमेशा किल्लत रहती है. गांव के कुछ लोगों के सहयोग से ही उसका काम चल रहा है, कुछ लोगों ने राशन से मदद की है.

राजू और इंद्रावती की शादी 20 वर्ष पहले हुई. राजू शादी के पहले से मजदूरी किया करते थे. इंद्रावती बताती हैं कि राजू मजदूरी के लिए हमेशा बाहर ही रहे. पिछले दो वर्ष से वह गुजरात के अंकलेश्वर में थे.

अंकलेश्वर में एक पावर प्लांट बन रहा है, जहां राजू के भाई राजेश समेत गांव के कई और मजदूर भी काम करने गए थे.

राजेश बताते हैं, ‘अंकलेश्वर में पावर प्लांट से करीब तीन किलोमीटर दूर प्लांट में काम करने वाले मजदूर रहते थे. हम भी यहीं रह रहे थे. राजू मकान के नीचे वाले हिस्से में, मै ऊपर के हिस्से में था. चार मई की सुबह जब उठा तो मजदूरों ने बताया कि राजू सुबह ही साइकिल से गांव के लिए निकल गए हैं. साथ में कुछ और मजदूर भी गए हैं.’

राजू की मौत के बारे में राजेश को तब पता चला जब गांव से उनकी भाभी इंद्रावती का फोन आया. वह बहुत घबराई हुई थी.

इंद्रावती ने बताया कि मोबाइल को चार्जिंग में लगाया था कि मिस्ड काल दिखा. दोबारा कॉल किया तो उधर से जो कुछ कहा गया वह समझ नहीं पायी. बेटे अरुण से बात कराई लेकिन वह भी कुछ समझ न सका. उधर से गुजराती में बात की जा रही थी.

किसी अनहोनी की आशंका से उन्होंने राजेश को फोन कर बताया कि राजू फोन नहीं उठा रहे थे और अब उनके फोन पर उधर से जो कुछ कहा जा रहा है, वो समझ में नहीं आ रहा है.

राजेश बताते हैं, फिर मैंने राजू के मोबाइल पर फोन किया तो उसके बजाय किसी और ने उठाया और बोला कि वह पुलिस है. मैंने कहा कि राजू से बात कराइए तो उधर से कहा गया कि अब बात नहीं कर सकते. वह अब इस दुनिया में नहीं रहे.’

इंद्रावती के अनुसार राजू के साथ 15-16 लोग साथ चल रहे थे और उन्हें यह नहीं पता कि राजू की मौत कैसे हुई. उस दिन उसकी सुबह दस बजे और दोपहर करीब 12 बजे बात हुई थी. तब राजू ने यही कहा था कि कि घबराओ नहीं. हम साइकिल से चल रहे है, आठ दिन में पहुंच जाएंगे.

वे बताती हैं कि उनकी मौत के बाद कहा गया कि यहां आकर शव ले जाइए. बताया गया कि 35 से 40 हजार रुपये खर्च होंगे. इंद्रावती कहती हैं, ‘हमने कहा कि यहां तो दो जून की रोटी के लाले हैं, इतना पैसा कहां से लाएंगें. राजेश से कहा कि वे वहीं अंतिम संस्कार कर दे.’

इसके बाद राजेश अंकलेश्वर से दो मजदूर साथियों के साथ करजन थाने गए, जहां पुलिस ने उनसे राजू के शव की पहचान करवाई और उनका सामान आदि सौंपा। राजेश कहते हैं कि पुलिस ने अंत्येष्टि में पूरी मदद की. उनका एक पैसा खर्च नहीं हुआ.

इसके बाद राजेश और उनके दोनों मजदूर साथी वापस अंकलेश्वर लौटे और श्रमिक स्पेशल ट्रेन में नंबर से आने की प्रतीक्षा करने लगे, दस दिन बाद 14 मई को ट्रेन मिली, जिससे वे 16 मई की सुबह गोरखपुर पहुंचे.

(लेखक गोरखपुर न्यूज़लाइन वेबसाइट के संपादक हैं.)

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