भारत बहुत बड़ी आर्थिक तबाही का सामना कर रहा है, पीएमओ इसे अकेले नहीं संभाल सकता: रघुराम राजन

आरबीआई के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन ने कहा कि प्रवासी श्रमिकों और गरीबों को खाद्यान्न देना पर्याप्त नहीं है. उन्हें खाना पकाने के लिए सब्जियां और तेल की भी आवश्यकता होती है और सबसे महत्वपूर्ण पैसा और आश्रय की जरूरत है.

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**FILE** Chennai: In this file photo dated Sept 5, 2017, former RBI Governor Raghuram G Rajan speaks at an event in Chennai. Rajan, in a note to Parliamentary panel, has said over optimistic bankers, slowdown in government decision making process and moderation in economic growth mainly contributed to the mounting bad loans. (PTI Photo) (PTI9_11_2018_000148B)
रघुराम राजन (फोटो: पीटीआई)

आरबीआई के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन ने कहा कि प्रवासी श्रमिकों और गरीबों को खाद्यान्न देना पर्याप्त नहीं है. उन्हें खाना पकाने के लिए सब्जियां और तेल की भी आवश्यकता होती है और सबसे महत्वपूर्ण पैसा और आश्रय की जरूरत है.

**FILE** Chennai: In this file photo dated Sept 5, 2017, former RBI Governor Raghuram G Rajan speaks at an event in Chennai. Rajan, in a note to Parliamentary panel, has said over optimistic bankers, slowdown in government decision making process and moderation in economic growth mainly contributed to the mounting bad loans. (PTI Photo) (PTI9_11_2018_000148B)
रघुराम राजन. (फोटो: पीटीआई)

नई दिल्ली: भारतीय रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन ने कहा है कि भारत एक बहुत बड़ी आर्थिक तबाही का सामना कर रहा है और इसके समाधान के लिए सरकार को विपक्ष के विशेषज्ञों को शामिल करना चाहिए, क्योंकि प्रधानमंत्री कार्यालय अकेले ये काम नहीं कर सकता है.

उन्होंने द वायर के लिए करन थापर को दिए इंटरव्यू में कहा, ‘मैं इस बात से बहुत चिंतित हूं कि हम ऐसी तबाही का सामना कर रहे हैं. सरकार को विपक्षी विशेषज्ञों के साथ परामर्श करना चाहिए. यह सब पीएमओ द्वारा नहीं किया जा सकता है.’

भारत सरकार के पूर्व मुख्य आर्थिक सलाहकार और आईएमएफ के पूर्व मुख्य अर्थशास्त्री के रूप में काम कर चुके रघुराम राजन ने कहा कि भारत की अर्थव्यवस्था के लिए खतरा इतना बड़ा है कि सरकार को देश की सर्वश्रेष्ठ प्रतिभाओं से परामर्श लेना चाहिए. उन्होंने कहा कि स्थिति बहुत बिगड़ सकती है और इसे पीएमओ द्वारा नियंत्रित नहीं किया जा सकता है.

राजन ने द वायर को बताया कि यह चुनौती सिर्फ कोरोना वायरस और लॉकडाउन से हुए नुकसान को ठीक करने के लिए नहीं है, बल्कि पिछले 3-4 साल में उत्पन्न हुईं आर्थिक समस्याओं को ठीक करना होगा.

यह पूछे जाने पर कि क्या सरकार ऐसी स्थिति के लिए जिम्मेदार है, आरबीआई के पूर्व गवर्नर ने कहा कि देश में बहुत सक्षम प्रतिभाएं हैं और सरकार को उनसे मशविरा करना चाहिए. डॉ. राजन ने कहा कि इसमें भाजपा के पूर्व वित्त मंत्री भी शामिल हैं, हालांकि उन्होंने यशवंत सिन्हा का नाम नहीं लिया.

यह पूछे जाने पर कि क्या वह यशवंत सिन्हा और पी. चिदंबरम की बात कर रहे हैं, राजन ने दोनों का जिक्र नहीं किया, लेकिन उन्होंने कहा कि सरकार को इस तरह के राजनीतिक मतभेदों की चिंता नहीं करनी चाहिए.

रघुराम राजन से पूछा गया था कि क्या सरकार का राहत पैकेज देश की आर्थिक चुनौतियों को देखते हुए पर्याप्त है? उन्होंने कहा कि लगभग कोई भी पैकेज अपर्याप्त होगा, खासकर भारत के मामले में. उन्होंने कहा कि सरकार को सभी तरह की कोशिश करनी चाहिए.

यह पूछे जाने पर कि यदि सरकार ने और उपायों की घोषणा नहीं की तो अब से एक साल बाद अर्थव्यवस्था की स्थिति क्या होगी, राजन ने कहा कि बहुत बड़ी गिरावट आएगी.

पूर्व आरबीआई गवर्नर ने कहा कि सरकार को इस बात की चिंता नहीं करनी चाहिए कि अगर राजकोषीय घाटा बढ़ता है तो रेटिंग एजेंसियां क्या करेंगी. उन्होंने कहा कि एजेंसियों को बताया जा सकता है कि अर्थव्यवस्था को बचाने के लिए खर्च बढ़ाना आवश्यक है और जितनी जल्दी हो सकता है भारत राजकोषीय घाटे को कम कर लेगा.

उन्होंने कहा कि बेरोजगार प्रवासी श्रमिकों, गरीब और कमजोर लोगों को खाद्यान्न देना पर्याप्त नहीं है. उन्हें खाना पकाने के लिए सब्जियां और तेल की भी आवश्यकता होती है और सबसे महत्वपूर्ण बात पैसा और आश्रय की जरूरत है.

उन्होंने कहा कि सरकार को शहरों के हालात को बेहतर बनाना चाहिए ताकि उन लाखों लोगों को वापस बुलाया जा सके जो अपने गांव वापस लौट गए हैं.

निर्मला सीतारमण ने हाल ही में एएनआई को दिए एक इंटरव्यू में कहा था कि गरीबों की समस्या का समाधान करने के लिए कैश से ज्यादा प्रभावी कर्ज देना है. जबकि रघुराम राजन ने जाने-माने अर्थशास्त्रियों और नोबेल विजेताओं अभिजीत बनर्जी और अमर्त्य सेन के साथ लिखे एक लेख में गरीबों के हाथ में तत्काल पैसे देने की बात की थी.

इस संबंध में उन्होंने कहा, ‘लोन को प्रभावी होने में समय लगता है. दूसरी तरफ भूख एक तत्काल समस्या है.’

सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यम (एमएसएमई) की मदद करने के लिए सरकार द्वारा घोषित उपायों के बारे में द वायर से बात करते हुए राजन ने कहा कि एमएसएमई सबसे ऋणी क्षेत्रों में से एक हैं, और अतिरिक्त कर्ज केवल उनकी कर्जदारी को और बढ़ाएगा. बढ़ा हुआ कर्ज ही उनकी समस्याओं में इजाफा करेगा.

उन्होंने कहा कि एक खतरा यह भी है कि बैंक कर्ज नहीं दे सकते लेकिन क्रेडिट गारंटी का इस्तेमाल खुद को बेलआउट देने के लिए कर सकते हैं. उन्होंने कहा कि एमएसएमई का मदद करने का बेहतर तरीका ये था कि सरकार पर उनका जो बकाया है उसे वापस कर दिया जाए.

रघुराम राजन ने विभिन्न राज्यों द्वारा श्रम कानून में किए जा रहे बदलावों को लेकर भी बात की. उन्होंने कहा कि उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और गुजरात की सरकारों द्वारा किए जा रहे बहुत से श्रम सुधारों के बारे में लंबे समय से बात की जा रही थी और शायद जरूरत थी, लेकिन ऐसे बदलाव सरकार की ओर से एक झटके में नहीं किया जाना चाहिए.

उन्होंने कहा कि इस तरह के कदमों के लिए व्यापक परामर्श की आवश्यकता थी, अन्यथा इससे सड़कों पर विरोध प्रदर्शन और बढ़ेंगे. उन्होंने यह भी कहा कि इस तरह के सुधार सिर्फ तीन साल के लिए नहीं किए जा सकते हैं. उद्योग को स्थायी विश्वसनीय आश्वासन चाहिए होता है.

(इस इंटरव्यू को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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