कोरोना को लेकर आने वाले हफ्ते बहुत कठिन, कुछ जगह सामुदायिक संक्रमण हो रहा: एम्स निदेशक

एम्स के निदेशक डॉ. रणदीप गुलेरिया ने कहा कि भारत को अपनी सीमाओं के भीतर स्थिति से निपटने पर ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता है, न कि यह दावा करने की कि हम अन्य देशों से बेहतर कर रहे हैं.

एम्स निदेशक डॉ. रणदीप गुलेरिया. (फोटो: एएनआई)

एम्स के निदेशक डॉ. रणदीप गुलेरिया ने कहा कि भारत को अपनी सीमाओं के भीतर स्थिति से निपटने पर ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता है, न कि यह दावा करने की कि हम अन्य देशों से बेहतर कर रहे हैं.

एम्स निदेशक डॉ. रणदीप गुलेरिया. (फोटो: एएनआई)
एम्स निदेशक डॉ. रणदीप गुलेरिया. (फाइल फोटो: एएनआई)

नई दिल्ली: अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) के निदेशक डॉ. रणदीप गुलेरिया ने कहा है कि अभी भारत के लिए कोरोना महामारी पर जीत घोषित करना जल्दबाजी होगी.

उन्होंने कहा, ‘अभी तक हम ठीक-ठाक कर रहे हैं, लेकिन लड़ाई जारी है. अगले कुछ सप्ताह और महीने देश के लिए सबसे चुनौतीपूर्ण होंगे.’

उन्होंने कहा कि भारत को अपनी सीमाओं के भीतर स्थिति से निपटने पर ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता है, न कि यह दावा करने की कि हम अन्य देशों से बेहतर कर रहे हैं. हालांकि, उन्होंने कहा कि यह तुलना भारतीय आबादी में उम्मीद की कुछ किरण जगाने के लिए हो सकती है.

द वायर के लिए करण थापर को दिए इंटरव्यू में डॉ. गुलेरिया से सरकार द्वारा किए गए मैथमेटिकल मॉडलिंग के बारे में पूछा गया, जिसमें बताया गया है कि 37,000-78,000 लोगों की मृत्यु और 14-29 लाख मामलों को रोका गया है, इस पर उन्होंने कहा, ‘मैथमेटिकल मॉडलिंग एक मोटा-मोटी अनुमान है.’

उन्होंने कहा कि यह आंकड़ा अनुमानों पर आधारित है और यह कहना बहुत कठिन है कि ये सब सच है या नहीं. उन्होंने कहा कि जमीनी हकीकत बहुत अलग हो सकती है. अमेरिका में किए गये ऐसे ही कई अनुमान गलत हुए हैं.

गुलेरिया ने कहा कि चार लॉकडाउन के बाद भी भारत में मामलों में कमी नहीं आई है, जबकि इटली और चीन जैसे देशों में लॉकडाउन के 40 दिनों बाद संक्रमण के मामलों में गिरावट आने लगी थी. गुलेरिया कहते हैं कि कोरोना मामले लगातार बढ़ने की वजह नागरिक जिम्मेदारी है.

उन्होंने कहा कि लोगों के बीच शारीरिक दूरी और सेल्फ-क्वारंटीन को उस तरह से लागू नहीं किया गया जैसा किया जाना चाहिए था. उन्होंने भारत में अपने गांवों में लाखों प्रवासी श्रमिकों की वापसी का भी उल्लेख किया.

हालांकि एम्स निदेशक ने यह भी कहा कि लॉकडाउन ने वायरस को कुछ जगहों तक सीमित रखने में मदद की. उन्होंने कहा कि 80 फीसदी मामले चंद शहरों में ही हैं.

यह पूछे जाने पर कि क्या वह इसे लेकर निराश हैं कि चीन के विपरीत भारत संक्रमण के मामलों को कम करने में सफल नहीं हो पाया है, डॉ. गुलेरिया ने कहा कि भारतीय लॉकडाउन को चीन की तरह गंभीरता के साथ लागू नहीं किया गया.

द वायर द्वारा यह पूछे जाने पर क्या सरकार द्वारा सामुदायिक संक्रमण से लगातार इनकार सही है जबकि देश में इस समय 1.25 लाख से ज्यादा मामले हो गए हैं, एम्स निदेशक ने कहा कि वास्तव में इस बात के अलग-अलग अर्थ हैं.

उन्होंने कहा कि एक तरफ ये बात सही है कि देश के ज्यादातर हिस्सों में कोई सामुदायिक संक्रमण नहीं है, वहीं दूसरी तरफ जब हम हॉटस्पॉट्स को देखते हैं तो ये बात बिल्कुल सही हो जाती है कि यहां पर सामुदायिक संक्रमण हो रहा है.

डॉ. गुलेरिया से यह पूछे जाने पर कि क्या वे अपने उस बयान पर कायम हैं जिसमें उन्होंने कहा था कि जून और जुलाई के महीने में संक्रमण के मामले और बढ़ेंगे या फिर लाखों की संख्या में प्रवासी मजदूरों के लौटने से अगस्त या सितंबर में मामले बढ़ सकते हैं, इस पर उन्होंने कहा कि एक साथ पूरे देश के बारे में आकलन करने के बजाय हमें क्षेत्रवार बात करनी चाहिए.

उन्होंने कहा कि जैसे-जैसे समय बीत रहा है वैसे-वैसे देश के अलग-अलग हिस्सों में वायरस की गतिविधि बदल रही है. हालांकि गुलेरिया ने इस संभावना से इनकार नहीं किया कि अगस्त या सितंबर में बिहार और उत्तर प्रदेश में संक्रमण में काफी उछाल आ सकता है क्योंकि इन राज्यों में बहुत बड़ी संख्या में प्रवासी लौट रहे हैं.

ये पूछे जाने पर कि हमें इस बात पर कितना संतोष जताना चाहिए कि भारत में कोरोना से ठीक होने की दर 41.4 फीसदी है जबिक इटली में अब तक 32,486 लोगों की मौत हुई है लेकिन वहां ठीक होने की दर 60 फीसदी और स्पेन में 27,940 लोगों की मौत हुई है और वहां ठीक होने की दर 70 फीसदी है, गुलेरिया ने कहा कि जैसे-जैसे ये महामारी आगे बढ़ेगी, ठीक होने की दर में बदलाव आएगा.

एम्स निदेशक ने बताया कि भारत के लिए ज्यादा राहत की बात ये है कि यहां पर मृत्यू दर एक लाख लोगों पर 0.2 है, जबकि वैश्विक मृत्यू दर एक लाख लोगों पर 4.2 है. उन्होंने कहा कि भारत में सिर्फ 6.4 फीसदी मामलों को ही हॉस्पिटल में भर्ती कराना पड़ रहा है और इसमें से भी 0.5 फीसदी को वेंटिलेटर की जरूरत होती है, जबकि वैश्विक स्तर पर ये आंकड़ा तीन फीसदी है.

उन्होंने कहा कि इस आधार पर कहा जा सकता है कि कोरोना वायरस भारत को उस तरह से प्रभावित नहीं कर सकता है जिस तरह उसने इटली, स्पेन या अमेरिका को किया है. गुलेरिया ने कहा कि यह इसलिए हो सकता है क्योंकि भारत में युवा आबादी ज्यादा है और सभी का बीसीजी टीकाकरण किया जाता है या क्योंकि यह बीमारी कम वायरल है.

डॉ. गुलेरिया ने कहा कि भारत के पास ऐसा डेटा है जो बताता है कि यह बीमारी अन्य देशों की तरह यहां पर उतनी वायरल नहीं है, लेकिन इस डेटा की पुष्टि की जानी चाहिए. हालांकि, उन्होंने कहा कि बहुत कम लोगों को आईसीयू उपचार और ऑक्सीजन की जरूरत पड़ रही है. यह एक स्पष्ट संकेत है कि बीमारी दुनिया के बाकी हिस्सों की तुलना में भारत में अलग तरह से व्यवहार कर रही है.

(इस इंटरव्यू को अंग्रेजी में पढ़ने और देखने के लिए यहां पर क्लिक करें.)

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