स्पेशल ट्रेन चलने के बाद भी क्यों श्रमिकों की परेशानियां कम होने का नाम नहीं ले रही हैं?

श्रमिक स्पेशल ट्रेनों में अपने घरों को लौट रहे प्रवासी मज़दूरों को न सिर्फ़ खाने-पीने के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है, बल्कि रेलवे द्वारा रूट बदलने के कारण कई दिनों की देरी से वे अपने गंतव्य तक पहुंच पा रहे हैं. इस दौरान भूख-प्यास और भीषण गर्मी के कारण मासूम बच्चों समेत कई लोग दम तोड़ चुके हैं.

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Prayagraj: A mother covers her childs head to beat the heat while waiting to board a bus to reach her native place after arriving via special train at Prayagraj Junction, during the ongoing COVID-19 lockdown, in Prayagraj, Tuesday, May 26, 2020. (PTI Photo)(PTI26-05-2020 000043B)

श्रमिक स्पेशल ट्रेनों में अपने घरों को लौट रहे प्रवासी मज़दूरों को न सिर्फ़ खाने-पीने के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है, बल्कि रेलवे द्वारा रूट बदलने के कारण कई दिनों की देरी से वे अपने गंतव्य तक पहुंच पा रहे हैं. इस दौरान भूख-प्यास और भीषण गर्मी के कारण मासूम बच्चों समेत कई लोग दम तोड़ चुके हैं.

विशेष श्रमिक ट्रेन (फोटो: पीटीआई)
विशेष श्रमिक ट्रेन (फोटो: पीटीआई)

नई दिल्ली: कोरोना वायरस से सुरक्षा के मद्देनजर देश में पिछले दो महीने से लागू लॉकडाउन के कारण सबसे बुरी स्थिति दूसरे राज्यों में काम की तलाश में गए प्रवासी मजदूरों की है.

लॉकडाउन के कारण एक ही झटके में उनकी आजीविका छिन गई और आने वाले दिनों में उनकी जमापूंजी भी धीरे-धीरे खत्म होने लगी. ऐसी स्थिति में उनके पास अपने राज्यों में वापस लौटने के अलावा कोई चारा नहीं बचा.

बस और ट्रेन के साधन बंद हो जाने की वजह से ये प्रवासी पैदल, साइकिल, ट्रक व अन्य साधनों से अपने पैतृक घरों की ओर लौटने की कोशिश करने लगे.

घर तक पहुंचने की जद्दोजहद इनमें से कई के लिए आखिरी यात्रा साबित हुई. सड़क और ट्रेन दुर्घटनाओं के अलावा दूसरी वजहों से सैकड़ों प्रवासी कामगार रास्ते में ही मारे गए.

देश में सड़क हादसों में कमी लाने पर काम कर रहे गैर-लाभकारी संगठन सेव लाइफ फाउंडेशन के अनुसार 25 मार्च को लॉकडाउन शुरू होने के बाद से 18 मई सुबह 11 बजे तक लगभग 1,236 सड़क दुर्घटनाएं हुई थी, जिनमें 423 लोगों की मौत हुई और 833 लोग घायल हुए.

प्रवासियों की दुश्वारियों को कम करने के लिए बीती एक मई से उनके लिए देश के विभिन्न हिस्सों के लिए श्रमिक स्पेशल ट्रेनें शुरू की गईं, मगर इससे भी इनकी समस्याएं खत्म नहीं हो रही हैं.

परेशानियों का सामना करने बाद श्रमिक स्पेशल ट्रेनों में सवार होने वाले प्रवासी श्रमिकों को न सिर्फ खाने-पीने के सामानों के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है बल्कि रेलवे द्वारा रूट बदलने के कारण ट्रेनें कई दिनों की देरी से अपने गंतव्य तक पहुंच रही हैं. इस दौरान भूख-प्यास और गर्मी के कारण मासूम बच्चों समेत कई लोग दम तोड़ चुके हैं.

मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, कम से कम 40 ट्रेनों का रूट रेलवे ने बदल दिया. रेलवे का कहना है कि उसने ऐसा रूट व्यस्त होने के कारण किया.

एक श्रमिक ट्रेन 1399 यात्रियों को लेकर 21 मई को महाराष्ट्र के वसई से उत्तर प्रदेश के गोरखपुर के लिए चली और ओडिशा के राउरकेला पहुंच गई. 30 घंटे के तय समय के बजाय यह ट्रेन महाराष्ट्र, ओडिशा, पश्चिम बंगाल, झारखंड से होते हुए गोरखपुर पहुंची करीब 63 घंटे बाद 24 मई की सुबह करीब दस बजे गोरखपुर पहुंची.

इसी तरह बीते गुरुवार को गोवा से उत्तर प्रदेश के बलिया के लिए चली एक श्रमिक स्पेशल ट्रेन महाराष्ट्र के नागपुर पहुंच गई. वहां से किसी तरह चली 72 घंटे में यात्रा पूरी कर रविवार दोपहर दो बजे बलिया पहुंची.

एक श्रमिक स्पेशल ट्रेन बीते गुरुवार को बेंगलुरु से करीब 1450 लोगों को लेकर उत्तर प्रदेश के बस्ती के लिए चली लेकिन गाजियाबाद पहुंच गई. उन्हें बताया गया कि ट्रेन को रूट व्यस्त होने की वजह से डायवर्ट किया गया.

यात्रियों ने बताया कि करीब 20 घंटों तक उन्हें कुछ भी खाने के लिए नहीं मिला. ट्रेन चलने से पहले उनसे 1020 रुपये लिए गए थे, जिसमें से 875 रुपये ट्रेन का किराया और 145 रुपये बस का किराया शामिल था.

इसी तरह महाराष्ट्र के लोकमान्य टर्मिनल से 21 मई की रात एक ट्रेन पटना के लिए चली, लेकिन वह पुरुलिया पहुंच गई. यात्रियों ने बताया कि उन्हें खाना-पीना कुछ नहीं मिला और ट्रेन का पानी भी खत्म हो गया था.

गुजरात के सूरत से 16 मई को करीब 6,000 श्रमिकों को लेकर बिहार के सीवान के लिए निकलीं दो ट्रेनें क्रमश: ओडिशा के राउरकेला और बेंगलुरु पहुंच गईं.

राउरकेला पहुंचने वाली ट्रेन जब तय समय के काफी देर बाद भी नहीं पहुंची तब वाराणसी रेल मंडल ने उसकी खोजबीन की जिसके बाद इस ट्रेन का पता चला और इसे ओडिशा से वाराणसी जोन के लिए रवाना किया गया.

तीन दिनों की बजाय यह ट्रेन 9 दिनों में सीवान पहुंची. ट्रेन के रास्ता भटकने की वजह से नाराज मजदूराें ने छपरा स्टेशन पर पथराव भी किया था.

सोशल मीडिया पर भी लोग ट्रेनों की देरी और यात्रियों को हो रही परेशानियों को लिख रहे हैं. एक ट्विटर यूजर ने लिखा है- मेरा दोस्त आनंद बख्शी सोलापुर (महाराष्ट्र) से इटारसी (मध्य प्रदेश) जा रहा था और उसकी ट्रेन का रास्ता बदल दिया गया तो वह नागपुर पहुंच गया है. अब स्टेशन पर रेलवे स्टाफ का कहना है कि क्वारंटीन अवधि पूरा करने के बाद ही उसे जाने दिया जाएगा.

बिहार के समस्तीपुर पहुंची एक ट्रेन के यात्री ने बताया कि वह 22 मई को पुणे (महाराष्ट्र) में ट्रेन में बैठे थे. ट्रेन ने 36 घंटे का सफर 70 घंटे में पूरा किया. एक अन्य पैसेंजर ने बताया कि ट्रेन हर स्टेशन पर करीब 1-2 घंटे खड़ी रहती थी. इस बीच उन्हें खाना और पानी की परेशानी भी हुई.

समस्तीपुर रेल मंडल की सीनियर डीसीएम सरस्वती चंद्र ने कहा कि कई सारी ट्रेनें अनियमित तरीके से चल रही हैं, क्योंकि ट्रैक खाली नहीं हैं. बहुत कम समय का नोटिस देकर ट्रेनें चलाने के कारण भी देरी हो रही है. हम लोग कोशिश कर रहे है कि हमारे डिवीजन में ट्रेनें लेट न हों.

चार महीने तक गुजरात के बिठलापुर में एक मेटल फैक्ट्री में काम करने वाले 25 वर्षीय योगेश गिरि 6 मई को बिरमगाम रेलवे स्टेशन से बिहार के लिए श्रमिक स्पेशल ट्रेन से चले थे. इस दौरान उनके साथ ट्रेन में सवार सभी लोगों को खाने-पीने से लेकर हर तरह की दिक्कतों का सामना करना पड़ा था.

द वायर से बात करते हुए उन्होंने कहा था, ‘जिस तरीके और तकलीफ से मैं गुजरात से लौटा हूं, अब हिम्मत नहीं होगी कि दूसरे राज्य जाऊं. सोच रहा हूं कि अब बिहार में ही रहूंगा, खेतों में मजदूरी कर गुजारा कर लूंगा.’

दो साल तक गुजरात में स्कूटर के पुर्जे बनाने वाली फैक्ट्री में काम करने वाले छपरा के जलालपुर के रहने वाले 26 साल के धीरज कुमार भी बिरमगाम से श्रमिक स्पेशल ट्रेन से बिहार लौटे थे. द वायर से बात करते हुए उन्होंने कहा था कि उन्हें 24 घंटे बाद भी खाना नहीं मिला और पानी भी दो बोतल ही मिला.

इसके बाद खाना देर से मिलने के सवाल पर रेलवे मंत्रालय की तरफ से ट्वीट कर बताया गया कि 7 मई की सुबह 11 बजे लखनऊ में खाना देने की योजना थी, लेकिन ट्रेन लेट होने के कारण गोरखपुर स्टेशन पर यात्रियों को खाना दिया गया, जहां ट्रेन रात के आठ बजे पहुंची थी.

गुजरात में 3-4 महीने तक मिस्त्री का काम करने वाले 45 वर्षीय वकील प्रसाद भी उसी स्पेशल ट्रेन से बिहार के मोतिहारी लौटे. उन्होंने कहा था, ‘मैं 25 सालों से अलग-अलग राज्यों में रह रहा हूं, लेकिन इतने वर्षों में कभी भी इस तरह 24 घंटे से ज्यादा वक्त बिना खाना-पानी के घर नहीं लौटना पड़ा.

भूख-प्यास-गर्मी से ट्रेनों में छह लोगों की मौत

प्रवासी मजदूरों की समस्याएं कम करने के लिए रेलवे द्वारा चलाई गईं श्रमिक स्पेशल ट्रेनों में उन्हें न सिर्फ खाने-पीने की दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है बल्कि उनकी जानें भी जा रही हैं.

Patna: A health worker sanitizes migrants who have arrived from Jaipur by Shramik Special train at Danapur junction, during the nationwide lockdown to curb the spread of coronavirus, in Patna, Saturday, May 02, 2020. (PTI Photo)(PTI02-05-2020 000079B)
विशेष श्रमिक ट्रेन (फोटो: पीटीआई)

दैनिक भास्कर के अनुसार, महाराष्ट्र से बिहार के आरा पहुंची एक ट्रेन में लेटे एक शख्स को जब लोगों ने उठाना चाहा तो पता चला कि उसकी मौत हो चुकी है. व्यक्ति की पहचान गया (बिहार) के रहने वाले 44 वर्षीय नबी हसन के पुत्र निसार खान के रूप में की गई.

पश्चिम चंपारण जिला के चनपटिया थाना के तुलाराम घाट निवासी मोहम्मद पिंटू शनिवार को दिल्ली से पटना के लिए चले. सोमवार सुबह मुजफ्फरपुर में बेतिया की ट्रेन में चढ़ने के दौरान उनके चार वर्षीय बेटे इरशाद की मौत हो गई. पिंटू ने बताया कि उमस भरी गर्मी और पेट में अन्न का दाना नहीं होने के कारण उन लोगों ने अपने लाड़ले को खो दिया.

इसी तरह महाराष्ट्र के बांद्रा टर्मिनल से 21 मई को श्रमिक स्पेशल ट्रेन से घर लौट रहे कटिहार के 55 वर्षीय मोहम्मद अनवर की सोमवार की शाम बरौनी जंक्शन पर मौत हो गई. कथित तौर पर चार दिन से भूखे अनवर ने बरौनी में 10 रुपये का सत्तू खरीदकर खाने के बाद पानी लेने के लिए उतरने पर वहीं उनकी मौत हो गई.

सूरत से श्रमिक स्पेशल से दोपहर 1 बजे सासाराम (बिहार) पहुंची महिला ने पति से कहा भूख लगी है. स्टेशन पर ही पति के सामने नाश्ता किया और उसके बाद कांपने लगी. पति की गोद में ही उसने दम तोड़ दिया.

वह ओबरा प्रखंड के गौरी गांव की रहने वाली थी.

श्रमिक स्पेशल ट्रेन से महाराष्ट्र से बिहार के मोतिहारी जाने के दौरान ट्रेन में हालत खराब होने के बाद कुंडवा-चैनपुर के निवासी एक श्रमिक को जहानाबाद सदर अस्पताल ले जाया गया. वहां पहुंचते ही डॉक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया.

अहमदाबाद से अपने जीजा इस्लाम खान के साथ मुजफ्फरपुर जा रही 23 साल की अलविना खातून की भी श्रमिक स्पेशल ट्रेन में ही मौत हो गई. मानसिक रूप से विक्षिप्त अलविना का इलाज चल रहा था.

रिपोर्ट के अनुसार, इसी तरह एक ट्रेन को दिल्ली से मोतिहारी पहुंचने में चार दिन लग गए और इसी दौरान एक महिला को प्रसव पीड़ा शुरू हो गई. बिना किसी मेडिकल सुविधा के महिला ने समस्तीपुर में प्लेटफॉर्म पर बच्चे को जन्म दिया. जानकारी मिलने पर रेलवे के सीनियर डीसीएम मौके पर पहुंचे और महिला को अस्पताल में भर्ती कराया.

श्रमिक ट्रेनों के लेट होने के कारण प्रवासी श्रमिकों द्वारा सामना की जा रहीं परेशानियों और ट्रेनों में हो रहीं मौतों पर कांग्रेस और आम आदमी पार्टी ने सरकार की आलोचना की है.

कांग्रेस ने ट्वीट कर कहा, ‘इस कोरोना संकट में अपने कर्तव्य से भटकी हुई भाजपा सरकार में ट्रेन भी अपने रास्ते से भटक रही है. श्रमिक ट्रेनों के भटक जाने से श्रमिकों को मानसिक प्रताड़ना भी झेलनी पड़ रही है। भाजपा सरकार के हर निर्णय में जल्दबाजी नजर आ रही है.’

वहीं, दिल्ली में सत्ताधारी आम आदमी पार्टी के सांसद संजय सिह ने ट्वीट कर कहा, ‘क्या केंद्र की भाजपा सरकार सच में पागल हो गई है? श्रमिक ट्रेनें दो दिन के बजाय नौ दिन में पहुंच रही हैं. भूख और प्यास से 7 लोगों की मौत हो गई है. ये मौत नहीं गरीबों की हत्या है. रेल मंत्री पीयूष गोयल जी कृपया जवाब दीजिये दो दिन के बजाय नौ दिन में ट्रेन क्यों पहुंची? सात लोगों की मौत का ज़िम्मेदार कौन है?’

हालांकि, ट्रेनों की देरी को लेकर रेलवे प्रशासन अजीबो-गरीब तर्क दे रहा है. रेलवे बोर्ड के चेयरमैन विनोद कुमार यादव का कहना है कि 80 फीसदी ट्रेनें उत्तर प्रदेश और बिहार जा रही हैं, जिससे भीड़-भाड़ काफी अधिक बढ़ गई है. ऐसे में रेलवे को कई ट्रेनों का रूट बदलना पड़ा है.

उत्तर प्रदेश के मछलीशहर के रहने वाले जोखन यादव और उनके भतीजे रवीश यादव मुंबई में कंस्ट्रक्शन मज़दूर के रूप में काम करते थे. लॉकडाउन के चलते वे श्रमिक स्पेशल ट्रेन से घर लौट रहे थे. 23 मई को वाराणसी पहुंचने से कुछ देर पहले जोखन ने दम तोड़ दिया. उनके भतीजे का कहना है कि उन्होंने क़रीब 60 घंटों से कुछ नहीं खाया था.

हालांकि रेल मंत्री ने ट्रेनों के सात से नौ दिन की देरी से पहुंचने की घटनाओं को आधारहीन बताया है.

रेल मंत्री पीयूष गोयल ने समाचार एजेंसी एएनआई से बातचीत में कहा है कि सात दिन, नौ दिन में ट्रेनों के पहुंचने की रिपोर्ट आधारहीन, गलत और मेरे रेल कर्मचारियों द्वारा दिन रात बिना नींद लिए प्रवासियों को उनके घर भेजने के प्रयासों को नुकसान पहुंचाने के इरादे से प्रेरित हैं.

उन्होंने कहा है कि 3,265 ट्रेनों को सोमवार तक भेजा जा चुका है. 23 मई तक की लगभग सभी ट्रेनें अपने गंतव्य तक पहुंच चुकी हैं. एक से दो ट्रेनें जिन्हें उत्तर पूर्व की ओर जाना है, वे अभी रास्ते में हैं. 24 मई को भेजी गईं 238 ट्रेनों में से अधिकांश आज शाम तक पहुंच जाएंगी. अब लंबी यात्रा का समय खत्म हो गया है.

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