मशहूर उर्दू लेखक मुज्तबा हुसैन का निधन

व्यंग्य लेखन के लिए चर्चित मुज्तबा हुसैन ने दर्जनों किताबें लिखी थीं, जो विभिन्न राज्यों के पाठ्यक्रमों में शामिल हैं. उर्दू साहित्य में योगदान के लिए साल 2007 में उन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया गया था. यह सम्मान पाने वाले वे पहले उर्दू व्यंग्यकार थे.

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उर्दू लेखक मुज्तबा हुसैन. (फोटो साभार: mujtabahussain.com)

व्यंग्य लेखन के लिए चर्चित मुज्तबा हुसैन ने दर्जनों किताबें लिखी थीं, जो विभिन्न राज्यों के पाठ्यक्रमों में शामिल हैं. उर्दू साहित्य में योगदान के लिए साल 2007 में उन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया गया था. यह सम्मान पाने वाले वे पहले उर्दू व्यंग्यकार थे.

उर्दू लेखक मुज्तबा हुसैन. (फोटो साभार: mujtabahussain.com)
उर्दू लेखक मुज्तबा हुसैन. (फोटो साभार: mujtabahussain.com)

नई दिल्ली: मशहूर उर्दू लेखक और व्यंग्यकार मुज्तबा हुसैन का बुधवार सुबह हैदराबाद में निधन हो गया, वे 83 वर्ष के थे. उर्दू साहित्य में योगदान के लिए हुसैन को साल 2007 में पद्मश्री से सम्मानित किया गया था.

हुसैन अपने व्यंग्य लेखन के लिए जाने जाते थे. उर्दू अखबारों और किताबों में लिखे गए उनके कॉलम काफी चर्चित रहे. सियासत दैनिक में वे शीशा-वा-तीशा नाम से एक साप्ताहिक कॉलम लिखा करते थे.

हुसैन ने दर्जनों किताबें लिखी हैं और जिनमें से कई विभिन्न राज्यों के उर्दू पाठ्यक्रमों में शामिल हैं. भारतीय महाद्वीप में वे बेहद लोकप्रिय लेखक हैं और उनके लिखे हुए का हिंदी, अंग्रेजी, कन्नड़, उड़िया समेत कई अन्य भाषाओं में अनुवाद किया गया है.

50 सालों से अधिक तक का उनके द्वारा किया गया काम उनकी वेबसाइट www.mujtabahussain.com पर दर्ज है, जिसे साल 2015 में शुरू किया गया था.

उनकी मशहूर किताबों में तकल्लुफ बर तरफ, क़िस्सा-ए-मुख़्तसर, बहरहाल, आदमीनामा, चेहरा दर चेहरा, उर्दू के शहर उर्दू के लोग, जापान चलो जापान चंद नाम हैं. अमेरिकी विदेशी नीति पर लिखी गई उनकी किताब अमेरिका घास काट रहा है भी खासी लोकप्रिय हुई थी.

बीते साल दिसंबर महीने में वे तब चर्चा में आए थे जब उन्होंने नागरिकता संशोधन क़ानून के विरोध में अपना पद्म सम्मान लौटने की बात कही थी. तब उन्होंने कहा था कि वे कहा है कि वह देश के मौजूदा हालात से खुश नहीं हैं.

हुसैन का कहना , ‘जिस लोकतंत्र के लिए हम लड़े थे उस पर हमला हो रहा है और सरकार यह कर रही है. यही वजह है कि मैं खुद को सरकार से जोड़ना नहीं चाहता. कई लोगों की आवाज दबाई जा रही है, कई को मारा जा रहा है और गरीब लोग हंसने की स्थिति में नहीं हैं.’

उनके अवसान पर दिल्ली के शायर नोमान शौक़ ने द वायर  से बात करते हुए कहा, ‘हमने भारतीय उपमहाद्वीप में उर्दू साहित्य के एक महानतम साहित्यकार को खो दिया है. वे मुश्ताक़ अहमद युसुफी के बाद उर्दू व्यंग्य के आखिरी स्तंभ थे.’

शौक़ ने बताया कि वे पहले उर्दू व्यंग्यकार थे जिन्हें पद्म सम्मान मिला था.