कोल इंडिया द्वारा वाइल्डलाइफ बोर्ड को गुमराह करने का आरोप, विशेषज्ञ ने जावड़ेकर को लिखा पत्र

जाने-माने हाथी विशेषज्ञ रमन सुकुमार ने पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर को पत्र लिखकर कहा है कि कोल इंडिया की सहायक कंपनी नॉर्थ इस्टर्न कोलफील्ड्स के ख़िलाफ़ कार्रवाई की जाए क्योंकि उन्होंने असम के देहिंग पटकई एलिफेंट रिज़र्व में खनन को लेकर नेशनल बोर्ड फॉर वाइल्डलाइफ से तथ्य छिपाया है.

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जाने-माने हाथी विशेषज्ञ रमन सुकुमार ने पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर को पत्र लिखकर कहा है कि कोल इंडिया की सहायक कंपनी नॉर्थ इस्टर्न कोलफील्ड्स के ख़िलाफ़ कार्रवाई की जाए क्योंकि उन्होंने असम के देहिंग पटकई एलिफेंट रिज़र्व में खनन को लेकर नेशनल बोर्ड फॉर वाइल्डलाइफ से तथ्य छिपाया है.

The Dehing Patkai elephant reserve
असम का देहिंग पटकई एलिफेंट रिजर्व. (फोटो: द वायर साइंस)

नई दिल्ली: जहां एक तरफ असम के देहिंग पटकई एलिफेंट रिजर्व में खनन की इजाजत देने के केंद्र सरकार के फैसले की आलोचना हो रही है, वहीं दूसरी तरफ नेशनल बोर्ड फॉर वाइल्डलाइफ (एनबीडब्ल्यूएल) की ओर से इस जगह का निरीक्षण करने वाले विशेषज्ञ ने पर्यावरण मंत्रालय को पत्र लिखकर कहा है कि बैठक के मिनट्स में संशोधन किया जाए ताकि बोर्ड के असली फैसले से छेड़छाड़ न हो.

जाने-माने हाथी विशेषज्ञ और एनबीडब्ल्यूएल के सदस्य रमन सुकुमार ने पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर को पत्र लिखकर कहा है कि कोल इंडिया की सहायक कंपनी नॉर्थ इस्टर्न कोलफील्ड्स (एनईसी) के खिलाफ कार्रवाई की जाए क्योंकि उन्होंने एनबीडब्ल्यूएल से तथ्य छुपाया है.

मालूम हो कि एनबीडब्ल्यूएल ने सात अप्रैल को हुई बैठक में एनईसी द्वारा देहिंग पटकई के 98.59 हेक्टेयर सीमा क्षेत्र में खनन के प्रस्ताव पर विचार करने के बाद 57.20 हेक्टेयर भूमि पर खनन को मंजूरी दी, जिस पर पहले से ही गैर-कानूनी तरीके से खनन हो रहा था.

इस बैठक के मिनट्स में ये भी लिखा गया है कि बोर्ड ने आगे फैसला किया कि बाकी के 41.39 हेक्टेयर क्षेत्र में भी खनन करने पर विचार किया जाए. इसे लेकर सुकुमार ने आपत्ति जाहिर की है.

सुकुमार ने इंडियन एक्सप्रेस से कहा, ‘चूंकि 57.20 हेक्टेयर क्षेत्र पर पहले से ही कार्य चल रहा था, सर्वसम्मति से दो बैठकों में ये फैसला लिया गया कि जंगल के बाकी क्षेत्रों में खनन की इजाजत नहीं दी जाएगी. मैंने पहले ही मंत्रालय को लिखा है कि वे मिनट्स में संशोधन कर ये स्पष्ट करें कि बाकी क्षेत्रों में खनन की इजाजत नहीं दी जाएगी.’

एनबीडब्ल्यूएल वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 के तहत एक कानूनी निकाय है. इसकी स्थायी समिति राष्ट्रीय उद्यानों और अभयारण्यों में प्रस्तावित परियोजनाओं से वन्यजीवों पर पड़ने वाले प्रभावों का मूल्यांकन करने के लिए समय-समय पर बैठक करती है.

नॉर्थ ईस्टर्न कोलफील्ड्स को 1973 से 2003 तक 30 साल के लिए लीज पर इस क्षेत्र में खनन के लिए मंजूरी मिली थी. लेकिन 2003 में जब ये लीज खत्म हो गई तब भी एनईसी गैर-कानूनी तरीके से कोयले का खनन करती रही और इसने अपने खनन का दायरा 13 हेक्टेयर से 57.20 हेक्टेयर तक बढ़ा लिया.

इसे लेकर साल 2013 में पर्यावरण मंत्रालय की वन सलाहकार समिति (एफएसी) ने राज्य को बिना इजाजत के खनन के लिए कंपनी को दंडित करने के लिए कहा था. राज्य के वन विभाग ने पिछले महीने कंपनी पर 43.25 करोड़ रुपये का जुर्माना लगाया गया था.

इस बीच नॉर्थ ईस्टर्न कोलफील्ड्स ने बिना मंजूरी के खनन का काम जारी रखा और शिलांग में मंत्रालय के क्षेत्रीय कार्यालय द्वारा नवंबर 2019 में दायर एक साइट निरीक्षण रिपोर्ट के अनुसार उन्होंने 2013 के बाद से अतिरिक्ट 16 हेक्टेयर वन को नष्ट कर दिया.

एनबीडब्ल्यूएल की टीम जब इस जगह का दौरा करने गई थी तो कंपनी ने अपने प्रजेंटेशन में ये नहीं बताया कि उन्होंने 16 हेक्टेयर अतिरिक्त क्षेत्र में खनन चालू कर दिया है. इसे लेकर सुकुमार ने केंद्रीय पर्यावरण मंत्री से मांग की है कि तथ्य छुपाने के लिए वे कंपनी पर कार्रवाई करें.

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