असम को इनर लाइन परमिट से बाहर रखने के फ़ैसले पर रोक लगाने से सुप्रीम कोर्ट का इनकार

असम के दो छात्र संगठनों ने राज्य को नागरिकता संशोधन क़ानून के प्रभाव से बचाने के लिए राष्ट्रपति द्वारा बीते दिसंबर में बंगाल पूर्वी सीमांत नियमन, 1873 में किए गए संशोधनों को शीर्ष अदालत में चुनौती दी है. अदालत का कहना है कि इस बारे में केंद्र का पक्ष सुने बिना कोई रोक नहीं लगाई जा सकती.

(फोटो: पीटीआई)

असम के दो छात्र संगठनों ने राज्य को नागरिकता संशोधन क़ानून के प्रभाव से बचाने के लिए राष्ट्रपति द्वारा बीते दिसंबर में बंगाल पूर्वी सीमांत नियमन, 1873 में किए गए संशोधनों को शीर्ष अदालत में चुनौती दी है. अदालत का कहना है कि इस बारे में केंद्र का पक्ष सुने बिना कोई रोक नहीं लगाई जा सकती.

(फोटो: पीटीआई)
(फोटो: पीटीआई)

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने असम को ‘इनर लाइन परमिट’ से वंचित करने के उद्देश्य से बंगाल पूर्वी सीमांत नियमन (बीईएफआर), 1873 में संशोधन के राष्ट्रपति के आदेश को चुनौती देने वाली असम छात्र संघों की याचिकाओं पर बुधवार को केंद्र से जवाब मांगा.

प्रधान न्यायाधीश एसए बोबडे़, जस्टिस एएस बोपन्ना और जस्टिस ऋषिकेश राय की पीठ ने वीडियो कॉन्फ्रेंस के जरिये इन याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान राष्ट्रपति के आदेश पर एकतरफा रोक लगाने से इनकार कर दिया.

पीठ ने इन याचिकाओं पर केंद्र को नोटिस जारी किया और मामले को दो सप्ताह बाद सुनवाई के लिए सूचीबद्ध कर दिया.

छात्र संघों की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता विकास सिंह ने कहा कि इनर लाइन परमिट व्यवस्था का मसला संवेदनशील है और न्यायालय को राष्ट्रपति के आदेश पर अंतरिम रोक लगानी चाहिए. इस पर पीठ का कहना था कि केंद्र का पक्ष सुने बगैर इस मामले में कोई अंतरिम रोक नहीं लगायी जा सकती है.

मालूम हो कि बीईएफआर 1873 के अंतर्गत आईएलपी व्यवस्था लागू की गई थी. इस नियम की धारा दो के तहत अन्य राज्यों के नागरिकों को इन तीनों राज्यों में जाने के लिए आईएलपी लेना पड़ता है. आईएलपी वाले राज्यों में देश के दूसरे राज्यों के लोगों सहित बाहरियों को अनुमति लेनी होतो है. साथ ही, भूमि, रोजगार के संबंध में स्थानीय लोगों को संरक्षण और अन्य सुविधाएं मिलती हैं.

इस व्यवस्था का मुख्य मकसद मूल आबादी के हितों की रक्षा के लिए इन राज्यों में अन्य भारतीय नागरिकों की बसाहट को रोकना है. बीते साल विवादास्पद नागरिकता (संशोधन) कानून के बारे में पूर्वोत्तर के राज्य के लोगों की आशंकाओं के चलते गृह मंत्रालय ने इसका विस्तार मणिपुर में भी किया था.

अरुणाचल प्रदेश, नगालैंड और मिजोरम के बाद मणिपुर चौथा राज्य था, जहां आईएलपी लागू किया गया. दिसंबर 2019 में ही इसे नगालैंड के दीमापुर में भी लागू किया गया था. राज्य के वाणिज्यिक केंद्र के रूप में जाना जाने वाला दीमापुर ही केवल एक ऐसा जिला था, जो आईएलपी व्यवस्था के तहत नहीं आता था.

इसी के बाद ऑल ताई अहोम स्टूडेन्ट्स यूनियन और असम जातीयताबादी युवा छात्र परिषद ने बीईएफआर में संशोधन के राष्ट्रपति के 11 दिसंबर, 2019 के आदेश को चुनौती देते हुए इसे असंवैधानिक बताया है.

उनकी याचिका में कहा गया है कि राष्ट्रपति ने संशोधन का यह आदेश संविधान के अनुच्छेद 372 (2) के तहत जारी किया है जबकि अनुच्छेद 372 (3) के तहत संविधान लागू होने की तारीख से तीन साल तक अर्थात 1953 तक ही उन्हें यह शक्ति प्राप्त थी.

ये छात्र संगठन नागरिकता संशोधन कानून के प्रभाव से संरक्षण के लिए राज्य में आईएलपी व्यवस्था लागू करने की मांग कर रहे हैं. असम में कई छात्र संगठन नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ हैं. बीते साल के अंत में इस कानून को लेकर राज्य में उग्र प्रदर्शन भी हुए थे.

ज्ञात हो कि असम में स्थानीय बनाम बाहरी का मुद्दा दशकों से प्रभावी रहा है, जिसके लिए 80 के दशक में कई सालों तक चले असम आंदोलन के परिणामस्वरूप असम समझौता बनाया गया था. असम समझौते में 24 मार्च 1971 की तारीख को कट ऑफ माना गया था और तय किया गया था कि इस समय तक असम में आए हुए लोग ही यहां के नागरिक माने जाएंगे.

बीते साल पूरी हुई एनआरसी की प्रक्रिया का मुख्य बिंदु भी यही कट ऑफ तारीख है. इसके बाद राज्य में आए लोगों ‘विदेशी’ माना जाएगा. नागरिकता कानून पर हो रहा विरोध भी इसी बिंदु को लेकर है.

नागरिकता संशोधन कानून में 31 दिसंबर 2014 तक भारत में मुस्लिमों को छोड़कर तीन पड़ोसी राज्यों से आए छह धर्मों के लोगों को भारतीय नागरिकता देने की बात कही गई है.

स्थानीय संगठनों का कहना है कि असम के लिए जब एक कट ऑफ तारीख तय है तो हिंदू बांग्लादेशियों को नागरिकता देने के लिए यह कानून लाया गया. कई संगठन दावा करते रहे हैं कि असम समझौते के प्रावधानों के मुताबिक 1971 के बाद बांग्लादेश से आए सभी अवैध विदेशी नागरिकों को वहां से निर्वासित किया जाएगा भले ही उनका धर्म कुछ भी हो.

दिसंबर में प्रदर्शन कर रहे प्रदर्शनकारियों का कहना है कि इस विधेयक में संशोधन करके सरकार अवैध हिंदू प्रवासियों को बसाने और असम विरोधी नीति अपना रही है. असम के स्थानीय लोग इसे स्वीकार नहीं कर सकते क्योंकि यह विधेयक अन्य देशों के लोगों को यहां बसाकर मूल लोगों और उनकी भाषा को विलुप्तप्राय बना देगा, साथ ही उनकी आजीविका पर भी संकट खड़ा हो जाएगा.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)

pkv games bandarqq dominoqq pkv games parlay judi bola bandarqq pkv games slot77 poker qq dominoqq slot depo 5k slot depo 10k bonus new member judi bola euro ayahqq bandarqq poker qq pkv games poker qq dominoqq bandarqq bandarqq dominoqq pkv games poker qq slot77 sakong pkv games bandarqq gaple dominoqq slot77 slot depo 5k pkv games bandarqq dominoqq depo 25 bonus 25