कोविड-19 संकट के चलते दुनिया में एक अरब से अधिक लोग अत्यंत ग़रीब हो सकते हैं: रिपोर्ट

किंग्स कॉलेज लंदन और ऑस्ट्रेलियन नेशनल यूनिवर्सिटी के शोधार्थियों के एक अध्ययन में कहा गया है कि मध्यम आय वर्ग वाले विकासशील देशों में ग़रीबी बढ़ेगी जो वैश्विक स्तर पर ग़रीबी को बढ़ाएगा. दक्षिण एशिया का इलाका ग़रीबी की मार झेलने वाला दुनिया का सबसे बड़ा क्षेत्र होगा.

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(प्रतीकात्मक फोटो: पीटीआई)

किंग्स कॉलेज लंदन और ऑस्ट्रेलियन नेशनल यूनिवर्सिटी के शोधार्थियों के एक अध्ययन में कहा गया है कि मध्यम आय वर्ग वाले विकासशील देशों में ग़रीबी बढ़ेगी जो वैश्विक स्तर पर ग़रीबी को बढ़ाएगा. दक्षिण एशिया का इलाका ग़रीबी की मार झेलने वाला दुनिया का सबसे बड़ा क्षेत्र होगा.

(फोटो: पीटीआई)
(फोटो: पीटीआई)

लंदन: कोविड-19 संकट के चलते दुनिया में गरीबों की संख्या बढ़कर एक अरब से अधिक हो सकती है और अत्यंत गरीब लोगों की संख्या में जुड़ने वाले 39.5 करोड़ लोगों में से आधे से अधिक लोग दक्षिण एशिया के होंगे.

एक रिपोर्ट के अनुसार, दक्षिण एशिया का इलाका गरीबी की मार झेलने वाला दुनिया का सबसे बड़ा क्षेत्र होगा.

ये बातें किंग्स कॉलेज लंदन और ऑस्ट्रेलियन नेशनल यूनिवर्सिटी के शोधार्थियों के एक अध्ययन में सामने आई हैं. यह अध्ययन संयुक्त राष्ट्र विश्वविद्यालय के वैश्विक विकासात्मक अर्थशास्त्र शोध संस्थान के एक नए जर्नल में प्रकाशित हुआ है.

अध्ययन में कहा गया है कि मध्यम आय वर्ग वाले विकासशील देशों में गरीबी बढ़ेगी, जो वैश्विक स्तर पर गरीबी को बढ़ाएगा.

अध्ययन के अनुसार, यदि 1.90 डॉलर प्रति दिन की आय को गरीबी का पैमाना माना जाए और महामारी से इसमें 20 प्रतिशत का संकुचन हो तो अतिरिक्त 39.5 करोड़ अत्यंत गरीबों की श्रेणी में आ जाएंगे.

इनमें करीब आधे से अधिक लोग दक्षिण एशियाई देशों के होंगे. इसका प्रमुख कारण भारत की बड़ी आबादी का गरीब होना है. गरीबी के दलदल में फंसने वाले नए लोगों में 30 प्रतिशत यानी 11.9 करोड़ अफ्रीका के सहारा मरुस्थलीय देशों में होंगे.

डीडब्ल्यू में छपी खबर के मुताबिक, शोध रिपोर्ट में कहा गया कि मध्यम आय वाले विकासशील देशों में गरीबी रेखा से ठीक ऊपर लाखों लोग रहते हैं. इसलिए एशियाई देश- बांग्लादेश, भारत, इंडोनेशिया, पाकिस्तान और फिलीपींस में गरीबी का खतरा हो सकता है, क्योंकि महामारी की वजह से लगा लॉकडाउन आर्थिक गतिविधियां को गंभीर रूप से प्रभावित कर चुका है.

शोध के मुताबिक, चूंकि लाखों लोग गरीबी रेखा के बिल्कुल ऊपर रहते हैं इसलिए महामारी के कारण उनकी आर्थिक स्थिति अनिश्चित है. सबसे खराब परिदृश्य में अत्यंत गरीबी में रहने वालों की संख्या 70 करोड़ से बढ़कर 1.1 अरब हो सकती है. अत्यंत गरीबी में रहने वालों की कमाई 1.9 डॉलर प्रतिदिन परिभाषित है. ऐसे में दक्षिण एशिया और पूर्वी एशिया के विकासशील देशों में फिर से गरीबों की संख्या बढ़ सकती है.

किंग्स कॉलेज लंदन में अंतरराष्ट्रीय विकास के प्रोफेसर और शोध के सह-लेखक एंडी समनर कहते हैं, ‘विकासशील देशों के लिए महामारी तेजी से आर्थिक संकट बनती जा रही है. बिना कार्रवाई यह संकट वैश्विक गरीबी पर हुई प्रगति को 20 या 30 साल पीछे धकेल सकता है.’

शोधकर्ताओं ने वैश्विक नेताओं से तत्काल कदम उठाने का आग्रह किया है.

बता दें कि इससे पहले संयुक्त राष्ट्र भी कह चुका है करीब 4.9 करोड़ लोग कोविड-19 और उसके प्रभावों के कारण अत्यधिक गरीबी का शिकार हो सकते हैं.

संयुक्त राष्ट्र के महासचिव एंतोनियो गुतारेस खाद्य सुरक्षा पर एक नीति जारी करते हुए कहा था कि इस साल कोविड-19 संकट के चलते करीब 4.9 करोड़ और लोग अत्यंत गरीबी का शिकार हो जाएंगे. खाद्य और पोषण से असुरक्षित लोगों की संख्या लगातार बढ़ रही है. वैश्विक जीडीपी में प्रत्येक प्रतिशत की गिरावट सात लाख अतिरिक्त बच्चों के विकास को अवरुद्ध करेगी.

साथ ही उन्होंने कहा था कि दुनिया की 7.8 अरब आबादी को भोजन कराने के लिए पर्याप्त से अधिक खाना उपलब्ध है. लेकिन वर्तमान में 82 करोड़ से ज्यादा लोग भुखमरी का शिकार हैं और पांच वर्ष की आयु से कम के करीब 14.4 करोड़ बच्चों का भी विकास नहीं हो है. हमारी खाद्य व्यवस्था ढह रही है और कोविड-19 संकट ने हालात को बुरा बनाया है.’

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)