दिल्लीः जीटीबी अस्पताल में व्यक्ति की मौत, परिवार का आरोप- समय पर इलाज नहीं मिला

दिल्ली के रहने वाले संदीप गर्ग को सांस लेने में तकलीफ के चलते जीटीबी अस्पताल में भर्ती कराया गया था. उनकी बेटी का आरोप है कि अस्पताल के स्टाफ का व्यवहार काफ़ी ख़राब था. उन्होंने तमाम औपचारिकताएं और पेपर वर्क पूरा करने का हवाला देकर मेरे पिता को भर्ती करने में बहुत देर कर दी.

फोटो: पीटीआई

दिल्ली के रहने वाले संदीप गर्ग को सांस लेने में तकलीफ के चलते जीटीबी अस्पताल में भर्ती कराया गया था. उनकी बेटी का आरोप है कि अस्पताल के स्टाफ का व्यवहार काफ़ी ख़राब था. उन्होंने तमाम औपचारिकताएं और पेपर वर्क पूरा करने का हवाला देकर मेरे पिता को भर्ती करने में बहुत देर कर दी.

(प्रतीकात्मक फोटो: पीटीआई)
(प्रतीकात्मक फोटो: पीटीआई)

नई दिल्लीः दिल्ली के विश्वास नगर के रहने वाले 53 वर्षीय संदीप गोयल की नौ जून को जीटीबी अस्पताल में मौत हो गई. उनके  परिवार का आरोप है कि अस्पताल की लापरवाही के चलते समय पर इलाज नहीं मिलने से उनकी मौत हुई है. हालांकि अस्पताल ने इन आरोपों से इनकार किया है.

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, दिल्ली में कार डीलरशिप का काम करने वाले संदीप गर्ग (53) को सांस लेने में तकलीफ के चलते आठ जून को जीटीबी अस्पताल में भर्ती कराया था.

संदीप के तीन बच्चे हैं. सबसे बड़ी बेटी कृति (24), मानवी (20) और बेटा गीतांश (17). उनकी पत्नी की 2013 में मौत हो गई थी.

संदीप की बेटी कृति का कहना है जीटीबी अस्पताल में तमाम औपचारिकताएं और कागजी कार्यवाही पूरी करने के बाद उन्हें अस्पताल में भर्ती किया गया, जहां देर से ऑक्सीजन देने से उनकी मौत हो गई.

कृति का कहना है कि उनका कोरोना टेस्ट भी कराया गया था, लेकिन रिपोर्ट निगेटिव आई लेकिन अस्पताल ने पहले ही उनके मामले को कोरोना संदिग्ध मामले के तौर पर सूचीबद्ध कर लिया था.

कृति का आरोप है कि पिता की तबियत बिगड़ने पर पहले उन्होंने कई निजी अस्पतालों से संपर्क किया, लेकिन कहीं भी बेड नहीं मिला.

कृति ने कहा, ‘लॉकडाउन में ढील मिलने के बाद पिताजी ने काम पर जाना शुरू किया था, लेकिन कुछ दिनों बाद उन्हें खांसी शुरू हो गई और उसके बाद उन्हें हल्का बुखार हुआ. जब उन्हें सांस लेने में तकलीफ हुई, हमारे डॉक्टरों ने उन्हें कोरोना टेस्ट कराने को कहा.’

वह कहती हैं कि इस बीच घबराए संबंधियों ने हमसे दूरी बनानी शुरू कर दी तो पड़ोसियों ने भी कोई मदद नहीं की.

कृति ने कहा, ‘मैं एक के बाद एक निजी अस्पताल को फोन करती लेकिन कहीं भी बेड नहीं मिला. मेरे पिता को तुरंत ऑक्सीजन की जरूरत थी, हमने गुरु तेग बहादुर अस्पताल जाने की सोची, जो हमारे घर के पास था.’

कृति ने कहा, ‘जीटीबी के स्टाफ का व्यवहार काफी खराब था. उन्होंने तमाम औपचारिकताएं और पेपर वर्क पूरा करने का हवाला देकर मेरे पिता को भर्ती करने में बहुत देर कर दी. मेरे पिता की तबियत लगातार बिगड़ रही थी, लेकिन वहां ऑक्सीजन की कोई सुविधा नहीं थी.’

उन्होंने बताया, ‘मेरे पिता जिस स्ट्रेक्चर पर लेटे थे, कोई भी उन्हें छूना नहीं चाहता था, मैंने और मेरे भाई ने स्ट्रेक्चर को अंदर वॉर्ड तक पहुंचाया.’

अस्पताल के मेडिकल सुपरिंटेंडेंट डॉ. सुनील कुमार ने इन आरोपों का खंडन करते हुए कहा, ‘अस्पताल के डेटा एंट्री ऑपरेटर ने मरीज का नाम, उम्र, मोबाइल नंबर और सिर्फ पता मांगा था. इसके अलावा यहां किसी तरह की औपचारिकता या पेपरवर्क नहीं होता.’

उन्होंने कहा, ‘हालांकि मैं अस्पताल स्टाफ के रुखे और सख्त व्यवहार के आरोपों को नकार नहीं सकता. इन आरोपों की जांच की जाएगी.’

कृति का कहना है कि उनके पिता को बहुत देर में ऑक्सीजन दी गई और उन्होंने खुद ही अपने पिता के चेहरे पर मास्क लगाया और मशीन को चालू किया.

उन्होंने कहा, ‘ग्लूकोज ड्रिप के लिए मुझसे मेरे पिता के हाथ को मजबूती से पकड़ने को कहा गया, ताकि ग्लूकोज के लिए सूई उनके हाथ में लगाई जा सके और उसके बाद मुझसे ड्रिप को एडजस्ट करने को कहा गया ताकि खून का प्रवाह सही से बना रहे.’

कृति ने बताया, ‘वहां पर हर तरफ मरीजों के शव पड़े थे. मुझे नहीं पता था कि उनके शवों को क्यों नहीं हटाया गया. जब मैंने डॉक्टरों से अपने पिता को चेक करने को कहा तो उन्होंने मुझसे कहा कि अगर उन्हें हर कोरोना संदिग्ध मरीज को चेक करना होगा तो वे बचेंगे कैसे.’

कृति कहती हैं, ‘मुझे अपने पिता के नाक में ऑक्सीजन का पाइप लगाना पड़ा. किसी डॉक्टर ने मेरे पिता को चेक नहीं किया और उन्हें ऑक्सीजन और ग्लूकोज के अलावा किसी तरह की चिकित्सीय मदद नहीं दी गई.’

वे कहती हैं कि पीपीई सूट पहनकर अपने चैंबर में बैठे डॉक्टर चैंबर से बाहर निकलने की जहमत नहीं उठा रहे थे, वे केवल तभी बाहर निकलते थे, जब किसी तरह का कोई दौरा करना होता था.

कृति ने कहा, ‘मुझे बताया गया कि अस्पताल में अत्यधिक जोखिम है और मुझे जाना चाहिए. मेरे पिता की हालत बहुत गंभीर थी, उन्हें मधुमेह था और उन्हें हर थोड़ी देर में खाना चाहिए था. मेरी बहन उनके लिए खाना लाई थी जिसके बाद हम चले गए.’

वह कहती हैं, ‘मैंने एक निजी अस्पताल में बेड का बंदोबस्त करने की व्यवस्था की थी और अगले दिन (नौ जून) उन्हें वहां भर्ती करने के बारे में पूछा था लेकिन सुबह लगभग नौ बजे जीटीबी अस्पताल से मुझे फोन कर तुरंत अस्पताल आने को कहा गया.’

उन्होंने बताया, ‘जब तक मैं अस्पताल पहुंची, मेरे पिता के शव को सील कर मोर्चरी में रख दिया गया था. उनकी कोरोना रिपोर्ट निगेटिव आई थी लेकिन अस्पताल ने उन्हें कोरोना संदिग्ध मौत के रूप में सूचीबद्ध किया.’

जब डॉ. कुमार से गर्ग परिवार की परेशानियों के बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा, जीटीबी अस्पताल मरीजों की भलाई के लिए प्रतिबद्ध है.

उन्होंने कहा, ‘परिवार द्वारा लगाए गए सभी आरोपों की जांच की जाएगी और सच्चाई का पता लगाया जाएगा. अगर काम में किसी तरह की लापरवाही का पता चलता है तो उचित कार्रवाई की जाएगी.’