कोरोना से निपटने के लिए सरकार ने ईमानदार कोशिश नहीं की

कोरोना से बिगड़ती स्थितियों को संभालने में केंद्र सरकार की सारी नीतियां फेल हो चुकी हैं. सरकार की इस विफलता का ख़ामियाज़ा कई पीढ़ियों को भुगतना पड़ेगा.

//
Gurugram: Migrants wait to board a bus for Bihar at Tau Devi Lal Stadium, during the ongoing COVID-19 lockdown, in Gurugram, Tuesday, June 2, 2020. (PTI Photo)(PTI02-06-2020_000216B)

कोरोना से बिगड़ती स्थितियों को संभालने में केंद्र सरकार की सारी नीतियां फेल हो चुकी हैं. सरकार की इस विफलता का ख़ामियाज़ा कई पीढ़ियों को भुगतना पड़ेगा.

Gurugram: Migrants wait to board a bus for Bihar at Tau Devi Lal Stadium, during the ongoing COVID-19 lockdown, in Gurugram, Tuesday, June 2, 2020. (PTI Photo)(PTI02-06-2020_000216B)
(फोटो: पीटीआई)

दो महीने के कड़े लॉकडाउन के बावजूद भी आज कोरोना वायरस संक्रमण का ग्राफ लगातार बढ़ता जा रहा है.

लॉकडाउन के दौरान सरकार ने चिकित्सा व्यवस्था में सुधार के कोई प्रयास नहीं किए. इसका नतीजा है कि हर तीन में से दो जिलों के पास आज भी कोरोना जांच का इंतजाम नहीं है.

राजधानी दिल्ली के अस्पतालों में भी लोग बेड के अभाव में मर रहे हैं. मजदूरों को अमानवीय क्वारंटीन सेंटर में रखने, घंटों तक राशन की लाइनों में लगवाने और हजारों किलोमीटर की पैदल यात्रा करने पर मजबूर करने वाली सरकार ने ग़रीबों को बचाने का कोई प्रयास नहीं किया.

लगातार गिरती अर्थव्यवस्था और तेजी से बढ़ रही बेरोजगारी आगाह करती है कि हम भुखमरी की स्थिति में जल्द ही पहुंचने वाले हैं.

जाहिर है कि कोरोना से निपटने में केंद्र सरकार की सारी नीतियां फेल हो चुकी हैं. मेरा मानना है कि सरकार की इस विफलता का खामियाजा हमारी कई पीढ़ियों को भुगतना पड़ेगा.

सरकार के समर्थक सवाल उठाएंगे कि जब अमेरिका जैसी महाशक्ति भी मुंह के बल गिर गई है तो भारत की सरकार क्या कर सकती थी?

उन्हें मेरा जवाब है कि हमारी सरकार सारी चुनौतियों से निपट सकती थी. शुरुआत करते हैं देशव्यापी लॉकडाउन से. क्या सरकार ने चार घंटे के नोटिस पर लॉकडाउन लगाने से पहले स्वास्थ्य विभाग के विशेषज्ञों, महामारीविदों, अर्थशास्त्रियों और समाज वैज्ञानिकों से कोई राय ली थी?

क्या सरकार ने ये सोचा था कि अचानक से करोड़ों लोगों का रोजगार छीनकर और उन्हें भुखमरी की स्थिति में डालकर कोरोना से कैसे लड़ा जाएगा?

लॉकडाउन के फैसले को मैं अनैतिक मानता हूं. ऐसे देश में जहां एक बड़ी आबादी झुग्गियों में रहने को मजबूर है और उन्हें पीने का पानी तक नसीब नहीं है, वहां सिर्फ संपन्न लोगों की सुविधा को देखते हुए सामाजिक दूरी और लॉकडाउन का फरमान सुनाना अनैतिक और अनुचित है.

हमारे सामने दक्षिण कोरिया का उदाहरण मौजूद था. दक्षिण कोरिया ने बिना कोई लॉकडाउन किए सिर्फ ज्यादा से ज्यादा जांच और जन शिक्षा के जरिए कोरोना पर जीत हासिल की है.

जब कोरोना से अधिक प्रभावित हिस्सों में लॉकडाउन लगाया ही जा रहा था तो सरकार को बताना चाहिए था कि देशव्यापी लॉकडाउन की जरूरत क्यों पड़ी.

सरकार को कामकाजी वर्ग से रूबरू होकर इसका कारण बताना चाहिए था. सरकार वैज्ञानिकों और अर्थशास्त्रियों से नियमित राय लेकर और प्रेस कॉन्फ्रेंस भी कर सकती थी.

लॉकडाउन की अवधि तक हर एक परिवार के पास 7000 रुपये की मदद पहुंचाई जा सकती थी. देश के हर नागरिक को जन वितरण प्रणाली के तहत राशन के साथ-साथ दाल और तेल भी दिया जा सकता था.

अर्थशास्त्री प्रभात पटनायक और जयति घोष ने गणना की है कि हर नागरिक के पास क्रमश: तीन और छह महीने तक ये मदद पहुंचाने में जीडीपी का 3 फीसदी हिस्सा ही खर्च करना होगा और राशन के लिए भारत सरकार को अपने 77 मिलियन टन के खाद्यान भंडार का सीमित संसाधन ही खर्च करना पड़ेगा.

अब लघु और मध्यम उद्योग को डूबने से बचाने के लिए सरकार को चाहिए कि वह लोन चुकाने में छह महीने तक इन उद्योगों की मदद करे.

इस राहत नीति के लिए हमें अमेरिका के हालिया समझौते की तरफ देखना चाहिए. व्यापक रोजगार गारंटी योजना पर भारी खर्च करना चाहिए और इसका विस्तार शहरों में भी करना होगा.

सरकार को न्यूनतम आय का कम से कम आधा हिस्सा पेंशन के तौर पर देना चाहिए और यह सुनिश्चित करना चाहिए कि महामारी के वक्त बुजुर्गों को बाहर नहीं जाना पड़े, जिससे उन्हें संक्रमण का ख़तरा हो.

प्रवासी मजदूरों के लिए सरकार को लॉकडाउन से पहले कम से कम एक हफ्ते का समय देना चाहिए था. अभी भी सरकार इस दिशा में काम कर सकती है.

अभी सरकार एक हफ्ते मजदूरों के लिए मुफ्त ट्रेनें चलवाए जिसे पहले आओ पहले पाओ की तर्ज पर रखा जाए. आज भी लॉकडाउन के नुकसान की भरपाई की जा सकती है, लेकिन इसके लिए इच्छाशक्ति की जरूरत है.

आम दिनों में देश के 13,452 पैसेंजर ट्रेनों से हर रोज 23 मिलियन लोग यात्रा करते हैं, लेकिन पिछले एक महीने से भी अधिक समय में मात्र 6 मिलियन मजदूर ही ट्रेनों से सफर करके अपने घर पहुंच सके हैं.

अब सरकार को झुग्गी-बस्तियों में हर रोज पानी की मुफ्त आपूर्ति करानी चाहिए जिससे वहां रहने वाले लोग भी साफ-सफाई का ध्यान रख सकें.

मानसिक स्वास्थ्य और घरेलू हिंसा को ध्यान में रखते हुए हेल्पलाइन बनानी चाहिए. भिक्षुक गृहों, महिला आश्रय गृहों और बच्चों के होम्स को खाली कराया जाना चाहिए और यहां रह रहे लोगों को स्वच्छता की दृष्टि से सुरक्षित जगह पर रखना चाहिए.

जेलों की सुरक्षा के लिए मैं वही समाधान बताऊंगा जिसका निर्देश सुप्रीम कोर्ट दशकों पहले दे चुका है. वैसे सभी विचाराधीन कैदियों को जमानत दे दी जाए जिन्होंने कोई बड़ा जुर्म नहीं किया है.

इनमें से भी 65 वर्ष से अधिक उम्र के कैदियों को पूरे महामारी तक जमानत दिया जाए. छोटे अपराधों के दोषी लोगों को सरकार जमानत दे.

दशकों से ध्वस्त पड़ी चिकित्सीय व्यवस्था को अचानक से सुधार पाना असंभव होगा इसलिए यहां सरकार को स्पेन से सीखना चाहिए. सभी प्राइवेट अस्पतालों, उसके संसाधन और कर्मचारियों की सेवा लेनी चाहिए. इसके लिए सरकार एक अध्यादेश पारित कर सकती है.

इस अध्यादेश में यह सुनिश्चित किया जाए कि कोरोना संक्रमण से पीड़ित कोई भी मरीज इलाज की सुविधा से महरूम नहीं रहेगा.

सरकार इसका भी ध्यान रखे कि कोरोना के इलाज के लिए दूसरी बीमारियों में उपयोग आने वाले संसाधनों को न छीना जाए. दूसरी बीमारियों के मरीजों का बेड छिनकर कोरोना पीड़ितों के लिए लगाना अनैतिक होगा.

इस महामारी के शुरुआती दिनों में ही सरकार को पीपीई किट, वेंटिलेटर और जांच किट जैसी चीजों के निर्माण में ध्यान लगाना चाहिए था.

आशा, आंगनबाड़ी और सफाई कर्मचारी जैसे जमीनी कार्यकर्ताओं को उनका मेहनताना कम मिलता है और नौकरी की सुरक्षा भी नहीं होती.

सरकार को स्टेडियम, विश्वविद्यालयों और होटलों को अस्पताल या क्वारंटीन सेंटर में तब्दील करना चाहिए था लेकिन ऐसा नहीं किया गया. लंदन से आए लोगों को रखने के लिए सरकार ने अपने खर्चे से महंगे होटलों का इंतजाम किया, जो बिल्कुल बेतुका था.

अगर सरकार ये सब खर्च उठा सकती है तो बाकी का क्यों नहीं. एक सवाल पूछा जा सकता है कि इतने भारी खर्च के लिए पैसा कहां से आएगा?

लॉकडाउन में ढील देने वाले अधिकतर देशों ने अपने जीडीपी का 10 से 20 प्रतिशत खर्च करने की बात कही है जबकि भारत अपने सार्वजनिक व्यय का 1 प्रतिशत से भी कम इस महामारी के लिए खर्च कर रहा है.

अब सरकार टॉप 1 प्रतिशत अमीरों के ऊपर संपत्ति कर तथा 33 प्रतिशत विरासत कर लगाकर इन पैसों का इंतजाम कर सकती है. इतना करने से मेरे द्वारा सुझाए गए सभी खर्चे की भरपाई हो जाएगी.

क्या हमारी सरकार इनमें से कोई भी कदम उठाएगी? इसका सीधा जवाब है- नहीं. इसका कारण यह नहीं है कि सरकार की उतनी क्षमता नहीं है या ऐसा कर लगाना संभव नहीं है.

यह बिल्कुल संभव है. कई देशों ने अपने यहां ये टैक्स लगाए भी हैं. इसके लागू न होने के पीछे सिर्फ यही कारण है कि हमारी सरकार और संपन्न लोग ऐसा नहीं करना चाहते.

हम आज जिस मानवीय त्रासदी के दौर से गुजर रहे हैं उसका सारा दोष कोविड-19 के ऊपर नहीं मढ़ सकते. हमें यहां सिर्फ खुद को और इस समाज को दोषी मानना चाहिए.

(लेखक पूर्व आईएएस अधिकारी और मानवाधिकार कार्यकर्ता हैं.)

(मूल अंग्रेजी लेख से अभिनव प्रकाश द्वारा अनूदित.)

pkv games bandarqq dominoqq pkv games parlay judi bola bandarqq pkv games slot77 poker qq dominoqq slot depo 5k slot depo 10k bonus new member judi bola euro ayahqq bandarqq poker qq pkv games poker qq dominoqq bandarqq bandarqq dominoqq pkv games poker qq slot77 sakong pkv games bandarqq gaple dominoqq slot77 slot depo 5k pkv games bandarqq dominoqq depo 25 bonus 25 bandarqq dominoqq pkv games slot depo 10k depo 50 bonus 50 pkv games bandarqq dominoqq slot77 pkv games bandarqq dominoqq slot bonus 100 slot depo 5k pkv games poker qq bandarqq dominoqq depo 50 bonus 50 pkv games bandarqq dominoqq