दिल्ली सरकार ने अप्रैल से जून तक किसी बच्चे को मिड-डे मील योजना का लाभ नहीं दिया: आरटीआई

आरटीआई दस्तावेज़ों से पता चला है कि दिल्ली सरकार ने मार्च महीने में मिड-डे मील के तहत पके हुए भोजन के बदले में छात्रों के खाते में कुछ राशि डाली है, लेकिन ये भोजन पकाने के लिए निर्धारित राशि से भी कम है. इसके अलावा ये धनराशि भी सभी पात्र लाभार्थियों को नहीं दी गई है.

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(प्रतीकात्मक फोटो: रॉयटर्स)

आरटीआई दस्तावेज़ों से पता चला है कि दिल्ली सरकार ने मार्च महीने में मिड-डे मील के तहत पके हुए भोजन के बदले में छात्रों के खाते में कुछ राशि डाली है, लेकिन ये भोजन पकाने के लिए निर्धारित राशि से भी कम है. इसके अलावा ये धनराशि भी सभी पात्र लाभार्थियों को नहीं दी गई है.

(प्रतीकात्मक फोटो: रॉयटर्स)
(प्रतीकात्मक फोटो: रॉयटर्स)

नई दिल्ली: कोविड-19 महामारी के बीच राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली के बच्चों को अप्रैल से लेकर जून तक मिड-डे मील योजना के तहत खाद्यान्न या खाद्य सुरक्षा भत्ता (एफएसए) नहीं दिया गया है.

वहीं, मार्च महीने में मिड-डे मील के तहत पके हुए भोजन के एवज में छात्रों के खाते में कुछ राशि डाली गई है, लेकिन ये सिर्फ भोजन पकाने के लिए निर्धारित राशि से भी कम है. इसके अलावा ये धनराशि भी सभी पात्र लाभार्थियों को नहीं दी गई है.

द वायर  द्वारा सूचना का अधिकार (आरटीआई) एक्ट, 2005 के तहत प्राप्त किए गए दस्तावेजों से ये जानकारी सामने आई है.

कोरोना वायरस संक्रमण के कारण लागू किए गए लॉकडाउन के कारण देश की बहुत बड़ी आबादी को खाद्यान्न संकट का सामना करना पड़ रहा है और इसमें बच्चे भी शामिल हैं.

इस बात को ध्यान में रखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने मार्च महीने के बीच में ही कहा था कि बच्चों को उचित पोषण देने के लिए महामारी के दौरान मिड-डे मील जैसी योजनाओं को बंद नहीं किया जा सकता और सभी राज्यों को निर्देश दिया था कि वे योजना को लाभ पहुंचाने का रास्ता निकालें.

कोविड-19 महामारी के समय ये स्थिति और चिंताजनक हो जाती है, क्योंकि उचित मात्रा में भोजन न मिल पाने के कारण लोगों के रोग प्रतिरोधक क्षमता में गिरावट आती है, जिसके कारण संक्रमण फैलने का खतरा बढ़ सकता है. इस वायरस से सबसे ज्यादा खतरा बच्चों और बुजुर्गों को है.

इस पर संज्ञान लेते हुए केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने 20 मार्च 2020 को सभी राज्यों एवं केंद्रशासित प्रदेशों से कहा था कि कोविड-19 के कारण स्कूल बंद होने के बावजूद सभी बच्चों को मिड-डे मील मुहैया कराई जाए.

मंत्रालय ने कहा था कि यदि पका हुआ भोजन नहीं दिया जा रहा है तो इसके बदले में खाद्य सुरक्षा भत्ता (एफएसए) दिया जाए, जिसमें ‘खाद्यान्न’ और ‘खाना पकाने की राशि’ होती है.

हालांकि राज्य सरकारों द्वारा इस आदेश को उचित तरीके से लागू किया जा रहा है, ऐसा होता प्रतीत नहीं हो रहा है.

दिल्ली के शिक्षा निदेशालय ने बताया है कि बच्चों को मिड-डे मील के तहत अप्रैल, मई और जून महीने का खाद्य सुरक्षा भत्ता अभी नहीं दिया गया है.

बीते 25 जून 2020 को आरटीआई आवेदन के जवाब में मिड-डे मील के सेक्शन ऑफिसर नरेश कुमार ने बताया, ‘आपको ये सूचित किया जाता है कि पात्र छात्रों को अप्रैल-जून 2020 के लिए खाद्य सुरक्षा भत्ता देने की प्रक्रिया अभी चल रही है और जल्द ही डीबीटी के जरिये खाते में ट्रांसफर कर दिया जाएगा.’

इसके अलावा द वायर  द्वारा प्राप्त किए गए दस्तावेजों से पता चलता है कि दिल्ली सरकार ने कोरोना वायरस के कारण स्कूल बंद करने के दौरान सिर्फ मार्च महीने के लिए छात्रों के खाते में कुछ राशि डाली है, लेकिन ये धनराशि जितनी होनी चाहिए उतनी नहीं है.

मालूम हो कि दिल्ली के शिक्षा मंत्री मनीष सिसोदिया ने पांच मार्च को ही प्राइमरी स्कूलों को बंद करने की घोषणा कर दी थी.

राज्य सरकार द्वारा मुहैया कराई गई जानकारी के मुताबिक मार्च महीने में उच्च प्राथमिक स्तर (छठी से आठवीं क्लास) के 429,027 छात्रों को 77.99 रुपये की दर से कुल 3.34 करोड़ रुपये का खाद्य सुरक्षा भत्ता देने का प्रस्ताव रखा गया था. 

वहीं प्राथमिक स्तर (एक से पांचवीं क्लास) के 136,094 छात्रों को 94.60 रुपये की दर से कुल 1.28 करोड़ रुपये देने का प्रावधान किया गया था. 

दस्तावेजों से पता चलता है कि इसे लेकर दिल्ली में मिड-डे मील के सेक्शन ऑफिसर नरेश कुमार ने एक मई 2020 और 17 अप्रैल 2020 को शिक्षा निदेशालय के डीडीओ को पत्र लिखकर कहा कि मिड-डे मील के तहत उच्च प्राथमिक स्तर के छात्रों के लिए 3.34 करोड़ रुपये और प्राथमिक स्तर के छात्रों के लिए 1.28 करोड़ रुपये जारी किए जाएं.

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हालांकि विभाग ने ये स्पष्ट नहीं किया है कि इसमें से कितनी राशि छात्रों के खाते में वाकई डाल दी गई है. द वायर  ने अपने स्तर पर कुछ लाभार्थियों के पासबुक को देखकर ये पुष्टि की है कि उनके खाते में यही राशि डाली गई है.

लेकिन दिल्ली सरकार द्वारा दी गई यह लाभ दो तरीके से अपर्याप्त है. पहला ये कि दिल्ली के स्कूलों में कुल जितने बच्चे हैं उतनों को भी यह राशि नहीं दी गई है.

साल 2019-20 के दौरान राष्ट्रीय राजधानी के स्कूलों में कुल 16.26 लाख बच्चे थे. इसमें से 942,559 बच्चे प्राइमरी स्तर पर और 683,820 बच्चे उच्च प्राइमरी स्तर में थे.

हालांकि केंद्र सरकार के प्रोजेक्ट अप्रूवल बोर्ड (पीएबी) ने इसमें से 11.68 लाख बच्चों को ही केंद्र की ओर से राशि/सहायता देने की मंजूरी दी थी. इसमें प्राइमरी स्तर के 601,834 बच्चे और उच्च प्राइमरी के 566,744 लाख बच्चे शामिल हैं.

इस तरह यदि केंद्र द्वारा मंजूर लाभार्थियों की संख्या को लेकर तुलना करें तो दिल्ली सरकार ने मार्च में उच्च प्राथमिक स्तर के 137,717 छात्रों और प्राइमरी स्तर के 465,740 लाख बच्चों को मिड-डे मील के तहत खाद्य सुरक्षा भत्ता का लाभ देने से वंचित कर दिया गया.

वहीं यदि दिल्ली के स्कूलों में दाखिला लिए कुल बच्चों के आधार पर तुलना करें तो राज्य सरकार ने मार्च में उच्च प्राथमिक स्तर के 254,703 और प्राथमिक स्तर के 806,465 बच्चों को मिड-डे मील योजना का लाभ नहीं दिया है.

अब यदि योजना के तहत दी गई राशि को देखें तो वो भी नाममात्र ही है.

भारत सरकार के मानक के अनुसार मिड-डे मील योजना के तहत प्राथमिक स्तर पर 100 ग्राम एवं उच्च प्राथमिक स्तर पर 150 ग्राम खाद्यान्न प्रति छात्र प्रतिदिन के हिसाब से उपलब्ध कराया जाना चाहिए.

वहीं एक अप्रैल, 2020 से पहले तक भोजन पकाने की राशि प्राथमिक स्तर पर 4.48 रुपये और उच्च प्राथमिक स्तर पर 6.71 रुपये प्रति छात्र प्रतिदिन निर्धारित थी, जिसमें दाल, सब्जी, तेल, नमक, ईंधन आदि का मूल्य शामिल होता है.

चूंकि मिड-डे मील योजना के तहत कार्य दिवस के आधार पर भोजन का वितरण होता है, इसलिए भोजन पकाने की राशि के रूप में मार्च में 22 कार्य दिवस के लिए प्राथमिक स्तर के बच्चों को न्यूनतम 98.56 रुपये और उच्च प्राथमिक स्तर के बच्चों को न्यूनतम 147.62 रुपये दिए जाने चाहिए थे.

इसके अलावा प्राथमिक स्तर के छात्र को न्यूनतम 2.2 किलो खाद्यान्न और उच्च प्राथमिक स्तर के छात्र को न्यूनतम 3.3 किलो खाद्यान्न या इसके एवज में पैसे दिए जाने चाहिए था.

हालांकि राज्य सरकार ने प्राथमिक स्तर के बच्चों को 94.60 रुपये और उच्च प्राथमिक स्तर के बच्चों को 77.99 रुपये दिए हैं, जो किसी भी स्थिति में उपर्युक्त मांग की पूर्ति नहीं करता है.

द वायर  ने शिक्षा निदेशालय और मिड-डे मील विभाग को ईमेल भेजकर पूछा है कि उन्होंने किस आधार पर छात्रों के खाते में ये राशि डालने की गणना की है. इसके अलावा द वायर  ने विभाग के ऑफिस में कई बार फोन लगाकर इस संबंध में उनसे जवाब मांगा था लेकिन कोई मौजूद नहीं था. यदि कोई जवाब आता है तो उसे स्टोरी में शामिल कर लिया जाएगा.

सार्वजनिक दस्तावेजों से पता चलता है कि दिल्ली में मिड-डे मील का कवरेज वैसे भी काफी कम है. साल 2019-20 की पीएबी मीटिंग में एमएचआरडी द्वारा सौंपी गई जानकारी के मुताबिक दिल्ली के स्कूलों में दाखिला लेने वाले कुल बच्चों की तुलना में 41 फीसदी बच्चों को मिड-डे मील योजना का लाभ नहीं मिल पाता है.

इसके अलावा मिड-डे मील देने के लिए जितना दिन निर्धारित किया गया है उससे कम दिन ही बच्चों को भोजन दिया जा रहा है. मंत्रालय ने स्कूलों में भोजन की गुणवत्ता पर भी सवाल उठाए थे.

दिल्ली में मिड-डे मील योजना को लागू करने के लिए कुल छह एजेंसियां हैं, जिसमें शिक्षा निदेशालय, तीन दिल्ली नगर निगम (एमसीडी), नई दिल्ली नगर निगम (एनडीएमसी) और दिल्ली कैंटोनमेंट बोर्ड (डीसीबी) है. इसमें से शिक्षा निदेशालय योजना का नोडल विभाग है.

इन सभी विभागों से संबंद्ध कुल मिलाकर दिल्ली में 2,975 स्कूल हैं, जिसमें मिड-डे मील योजना लागू है.

केंद्र सरकार खाना पकाने की राशि का 60 फीसदी हिस्सा देती है और राज्य सरकार को 40 फीसदी ही खर्च करना पड़ता है. केंद्र की ओर से सभी राज्यों को खाद्यान्न मुफ्त में मुहैया कराया जाता है.

भारत सरकार ने वित्त वर्ष 2020-21 के लिए दिल्ली को 27.18 करोड़ रुपये की केंद्रीय सहायता जारी कर दी है.

द वायर  ने अपनी पिछले दो रिपोर्टों में बताया था कि किस तरह दिल्ली के अलावा उत्तराखंड और त्रिपुरा में भी लॉकडाउन के दौरान मिड-डे मील योजना का सभी बच्चों को लाभ नहीं मिल पाया है.

उत्तराखंड राज्य ने अप्रैल और मई महीने में लगभग 1.38 लाख बच्चों को मिड-डे मील मुहैया नहीं कराया है, जबकि त्रिपुरा की भाजपा सरकार ने मिड-डे मील के एवज में छात्रों के खाते में कुछ राशि ट्रांसफर करने का आदेश दिया था, जो कि सिर्फ खाना पकाने के लिए निर्धारित राशि से भी कम है.