कोरोना मरीज़ से उम्मीद नहीं की जा सकती कि वो भर्ती होने से पहले आय प्रमाण पत्र दिखाए: हाईकोर्ट

बॉम्बे हाईकोर्ट ने एक चैरिटेबल ट्रस्ट द्वारा संचालित मुंबई केजे सोमैया हॉस्पिटल एंड रिसर्च सेंटर को निर्देश दिया कि वे 10.06 लाख रुपये रजिस्ट्री में जमा कराएं. याचिका में आरोप लगाया गया है कि अस्पताल ने ईडब्ल्यूएस श्रेणी के कोरोना मरीज़ से अधिक पैसे वसूले हैं.

(फोटोः पीटीआई)

बॉम्बे हाईकोर्ट ने एक चैरिटेबल ट्रस्ट द्वारा संचालित मुंबई केजे सोमैया हॉस्पिटल एंड रिसर्च सेंटर को निर्देश दिया कि वे 10.06 लाख रुपये रजिस्ट्री में जमा कराएं. याचिका में आरोप लगाया गया है कि अस्पताल ने ईडब्ल्यूएस श्रेणी के कोरोना मरीज़ से अधिक पैसे वसूले हैं.

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(प्रतीकात्मक फोटोः पीटीआई)

मुंबई: बॉम्बे हाईकोर्ट ने बीते शुक्रवार को कहा कि आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (ईडब्ल्यूएस) के कोरोना मरीजों से ये उम्मीद नहीं की जा सकती है कि वे ईडब्ल्यूएस योजना के तहत लाभ पाने के लिए अस्पताल में भर्ती होने से पहले आय प्रमाण पत्र दिखाएंगे.

कोर्ट ने आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के कोरोना मरीजों के संबंध में दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा.

इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक न्यायालय ने एक चैरिटेबल ट्रस्ट द्वारा संचालित केजे सोमैया हॉस्पिटल एंड रिसर्च सेंटर को निर्देश दिया कि वे 10.06 लाख रुपये रजिस्ट्री में जमा कराएं. याचिका में आरोप लगाया गया है कि अस्पताल ने ईडब्ल्यूएस श्रेणी के कोरोना मरीज से अधिक पैसे वसूले हैं.

जस्टिस आरडी धानुका और माधव जमदार की पीठ ने अब्दुल शोएब शेख तथा छह अन्य लोगों द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई की. उन्होंने मांग की है कि अस्पताल के खिलाफ जांच की जाए, क्योंकि 14 से 28 अप्रैल के बीच कोरोना इलाज के लिए याचिकाकर्ता द्वारा भर्ती होने पर अस्पताल ने मोटी रकम वसूली है.

वकील विवेक शुक्ला ने कहा कि सभी याचिकाकर्ता झुग्गीवासी हैं और बांद्रा (पूर्व) के भरत नगर में रहते हैं. उन्होंने कहा कि ये सभी महाराष्ट्र पब्लिक ट्रस्ट एक्ट (एमपीटी एक्ट) के तहत ईडब्ल्यूएस श्रेणी में आते हैं और उन्होंने डिस्चार्ज होने पर अपना रिफंड मांगा था, लेकिन अस्पताल से कोई जवाब नहीं मिला था.

याचिकाकर्ताओं ने कहा कि उन्होंने अस्पताल से निकाले जाने की धमकी के बाद दोस्तों, रिश्तेदारों और पड़ोसियों से कर्ज लेकर 10 लाख रुपये का भुगतान किया था.

अस्पताल की ओर से पेश हुए वरिष्ठ वकील जनक द्वारकादास और अधिवक्ता अंकित लोहिया तथा अज़ीजा खत्री ने कहा कि याचिकाकर्ता ईडब्ल्यूएस श्रेणी के नहीं हैं और उन्होंने पात्रता साबित करने के लिए कोई रिकॉर्ड पेश नहीं किया है.

द्वारकादास ने कहा कि अपने दावे को साबित करने के लिए उन्हें आय प्रमाण पत्र दिखाना चाहिए था. याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि वे कोविड-19 से पीड़ित थे और उन्हें तत्काल चिकित्सा सहायता की आवश्यकता थी, इसलिए वे ऐसे प्रमाण पत्र पेश नहीं कर पाए.

हाईकोर्ट ने 12 जून को राज्य चैरिटी आयुक्त को सात याचिकाकर्ताओं की शिकायतों की जांच करने का निर्देश दिया था.

राज्य चैरिटी आयुक्त और मुंबई सिटी कलेक्टर से कहा गया था कि वे हलफनामा दायर कर बताएं कि क्या ट्रस्ट को अस्पताल में ईडब्ल्यूएस श्रेणी के मरीजों के लिए 10 फीसदी बेड आरक्षित करने थे और क्या उन्होंने लॉकडाउन के दौरान इन जरूरतों को पूरा किया था.

पीठ ने बीते शुक्रवार को संयुक्त चैरिटी कमिश्नर द्वारा दायर की गई जांच रिपोर्ट का अवलोकन किया और कहा कि यह रिपोर्ट अस्पताल द्वारा प्रस्तुत किए गए दस्तावेजों और परिसर में जाकर सभी रिकॉर्डों का निरीक्षण किए बिना तैयार की गई है.

न्यायाधीशों ने कहा कि यह निर्विवाद है कि एमपीटी अधिनियम के तहत ईडब्ल्यूएस के लिए 10 प्रतिशत बेड आरक्षित करने की योजना सोमैया अस्पताल पर लागू थी.

पीठ ने कहा, ‘हमारे प्रथम दृष्टया विचार के अनुसार कोविड-19 जैसी बीमारी से पीड़ित व्यक्ति से ये उम्मीद नहीं की जा सकती है कि वो ईडब्ल्यूएस योजना का लाभ पाने के लिए अस्पताल में भर्ती होने से पहले तहसीलदार या सामाजिक कल्याण अधिकारी से आय प्रमाण पत्र बनवाकर पेश करेगा.’

इसके बाद कोर्ट ने अस्पताल को निर्देश दिया कि वो दो हफ्ते के भीतर रजिस्ट्री में 10.06 लाख रुपये जमा कराए और कहा कि मामले की सुनवाई तेजी से की जाएगी.

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