स्कूल की पाठ्य पुस्तकों में महिलाओं को कम आंका गया: रिपोर्ट

ग्लोबल एजुकेशन मॉनीटरिंग रिपोर्ट 2020 के मुताबिक स्कूल की टेक्स्टबुक में शामिल महिला छवियों की संख्या न सिर्फ पुरुषों की तुलना में कम होती हैं बल्कि महिलाओं को कम प्रतिष्ठित पेशों में अंतर्मुखी एवं दब्बू लोगों की तरह दर्शाया गया है.

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(फोटो साभार: ट्विटर/GEMReport)

ग्लोबल एजुकेशन मॉनीटरिंग रिपोर्ट 2020 के मुताबिक स्कूल की टेक्स्टबुक में शामिल महिला छवियों की संख्या न सिर्फ पुरुषों की तुलना में कम होती हैं बल्कि महिलाओं को कम प्रतिष्ठित पेशों में अंतर्मुखी एवं दब्बू लोगों की तरह दर्शाया गया है.

(फोटो साभार: ट्विटर/GEMReport)
(फोटो साभार: ट्विटर/GEMReport)

नई दिल्ली: यूनेस्को की तरफ से जारी वैश्विक शिक्षा निगरानी रिपोर्ट के मुताबिक महिलाओं एवं लड़कियों को स्कूल की पाठ्य पुस्तकों में कम प्रतिनिधित्व दिया गया है या जब शामिल भी किया गया है तो दुनिया के कई देशों की पुस्तकों में उन्हें पारंपरिक भूमिकाओं में दर्शाया गया है.

एक स्वतंत्र टीम द्वारा ग्लोबल एजुकेशन मॉनीटरिंग रिपोर्ट (जीईएम रिपोर्ट) बनाई जाती है और इसे यूनेस्को ने प्रकाशित किया है.

इसे शिक्षा पर सतत विकास लक्ष्य पूरा करने में हुई प्रगति की निगरानी का आधिकारिक आदेश प्राप्त है.

हाल में जारी वार्षिक रिपोर्ट के चौथे संस्करण में बताया गया कि पाठ्य पुस्तकों में शामिल महिला पात्रों की छवियों की संख्या न सिर्फ पुरुषों की छवियों की तुलना में कम होती हैं बल्कि महिलाओं को कम प्रतिष्ठित पेशों में दर्शाया गया है और वह भी अंतर्मुखी एवं दब्बू लोगों की तरह.

रिपोर्ट में उल्लेखित लैंगिक रूढ़ियों में पुरुषों को डॉक्टर के रूप में जबकि महिलाओं को नर्सों के रूप में दिखाना, महिलाओं को केवल भोजन, फैशन या मनोरंजन से संबंधित विषयों में दिखाना, महिलाओं को स्वैच्छिक भूमिकाओं में और पुरुषों को वेतन वाली नौकरियों में दिखाया जाना शामिल है.

इसमें कुछ देशों के प्रयासों का भी जिक्र किया गया है जो अधिक लैंगिक संतुलन को दर्शाने के लिए पाठ्यपुस्तक में दी छवियों को बदलना चाह रहे हैं.

रिपोर्ट में कहा गया, ‘अफगानिस्तान में, 1990 के दशक में प्रकाशित पहली कक्षा के पाठ्यपुस्तकों से महिलाएं लगभग नदारद थीं. 2001 के बाद से उनकी उपस्थिति ज्यादा दिखने लगी लेकिन दब्बू, मां, देखभाल करने वालों, बेटियों और बहनों जैसी घरेलू भूमिका में. उनका अधिकतर प्रतिनिधित्व उनके लिए केवल शिक्षण के विकल्प को दिखाकर किया गया.’

इसमें कहा गया, ‘इसी तरह ईरान इस्लामी गणराज्य की 90 प्रतिशत प्राथमिक और माध्यमिक अनिवार्य शिक्षा पाठ्य-पुस्तकों की समीक्षा में महिलाओं की केवल 37 प्रतिशत छवियां देखी गईं. इनमें से आधी छवियों में महिलाओं को परिवार और शिक्षा से जुड़ा दिखाया गया, जबकि कार्यस्थल की छवियां सात प्रतिशत से भी कम थी. फारसी और विदेशी भाषा की 60 प्रतिशत, विज्ञान की 63 प्रतिशत और सामाजिक विज्ञान की 74 प्रतिशत किताबों में महिलाओं की कोई तस्वीर नहीं थी.’

रिपोर्ट में महाराष्ट्र के पाठ्यपुस्तक उत्पादन एवं पाठ्यक्रम अनुसंधान ब्यूरो द्वारा 2019 में लैंगिक रूढ़िवादों को हटाने के लिए कई पाठ्यपुस्तक छवियों में सुधार का भी संज्ञान लिया गया.

इसमें कहा गया, ‘उदाहरण के लिए दूसरी कक्षा की पाठ्यपुस्तकों में महिला और पुरुष दोनों घर के काम करते दिख रहे हैं, वहीं एक महिला डॉक्टर और पुरुष शेफ की भी तस्वीर थी. विद्यार्थियों से इन तस्वीरों पर गौर करने और इन पर बात करने के लिए कहा गया था.’

इस रिपोर्ट में इटली, स्पेन, बांग्लादेश, पाकिस्तान, मलेशिया, इंडोनेशिया, कोरिया, अमेरिका, चिली, मोरक्को, तुर्की और युगांडा में भी पाठ्यपुस्तकों में महिलाओं के साथ जुड़ी इन रूढ़ियों का उल्लेख है.

शिक्षा क्षेत्र के लिए कोविड-19 एक झटका

यूनेस्को की वैश्विक शिक्षा निगरानी रिपोर्ट के मुताबिक कोविड-19 वैश्विक महामारी से शिक्षण क्षेत्र को काफी नुकसान पहुंचेगा.

इस रिपोर्ट में सरकारों से ऐसी शिक्षा प्रणालियों का फिर से निर्माण करने की अपील की गई है जो बेहतर हो और जिसकी सब तक पहुंच हो.

रिपोर्ट में कहा गया कि कोरोना वायरस संक्रमण की दरों पर स्कूल बंद करने के प्रभाव का आकलन अनिश्चितताओं से भरा है क्योंकि निर्णायक साक्ष्यों को सामने आना अभी बाकी है जो कई बार इस मुद्दे को काफी हद तक विभाजनकारी बनाता है.

इसमें कहा गया, ‘कुछ शिक्षक जो संवेदनशील समूहों से ताल्लुक रखते हैं, उन्हें चिंता है कि उनकी सेहत जोखिम में है. ऐसे बहुत कम देश हैं जो स्कूलों में सामाजिक दूरी के सख्त नियमों को लागू कर सकते हैं. कुल मिलाकर शिक्षण पर इसका असर काफी होने वाला है, भले ही इसकी तीव्रता को कम करना मुश्किल है.’

हाल में जारी वार्षिक रिपोर्ट के चौथे संस्करण में कहा गया कि कोविड-19 वैश्विक महामारी का वंचित विद्यार्थियों पर ज्यादा असर पड़ेगा, जिनके पास घर पर संसाधन कम हैं और यह सामाजिक-आर्थिक अंतर को और बढ़ाएगा.

रिपोर्ट में कहा गया, ‘कम और मध्यम आय वाले देशों में से 17 प्रतिशत देश और शिक्षक भर्ती करने की, 22 प्रतिशत कक्षा का समय बढ़ाने और 68 प्रतिशत स्कूल दोबारा खुलने पर सुधारात्मक कक्षाएं शुरू करने की योजना बना रहे हैं.’

इन कक्षाओं की योजना कैसे होगी और इन्हें कैसी शक्ल दी जाएगी, यह इस लिहाज से देखना बहुत अहम होगा कि वंचित विद्यार्थियों को इसका लाभ मिल पाता है या नहीं.

इसमें कहा गया, ‘कोविड-19 संकट ने दिखाया है कि यह मुद्दा संचार माध्यमों तक लोगों की असमान पहुंच (डिजिटल डिवाइड) की समस्या को दूर करने के लिए केवल तकनीकी समाधानों के बारे में नहीं है. भले ही दूरस्थ शिक्षा (डिस्टेंस लर्निंग) सुर्खियों में रही हो लेकिन कुछ ही देशों के पास शिक्षा एवं शिक्षण के ऑनलाइन दृष्टिकोण की चुनौतियों पर ध्यान देने का मूलभूत ढांचा है. ज्यादातर बच्चों और युवाओं ने कुछ समय के लिए सीखने के नुकसान का सीधा-सीधा सामना किया है.’

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