आईसीएमआर की कोविड-19 वैक्सीन लॉन्च करने की समयसीमा को लेकर वैज्ञानिक क्यों चिंतित हैं?

आईसीएमआर ने कोविड-19 की स्वदेशी वैक्सीन के लॉन्च के लिए 15 अगस्त की समयसीमा निर्धारित की है, जिसे लेकर डॉक्टर्स और वैज्ञानिक संशय में हैं. वैक्सीन बनाने वाली कंपनी भारत बायोटेक का भी मानना है कि ट्रायल पूरे होने में अक्टूबर तक का समय लग सकता है.

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कोवैक्सिन. (फोटो साभार: फेसबुक/bharatbiotech)

आईसीएमआर ने कोविड-19 की स्वदेशी वैक्सीन के लॉन्च के लिए 15 अगस्त की समयसीमा निर्धारित की है, जिसे लेकर डॉक्टर्स और वैज्ञानिक संशय में हैं. वैक्सीन बनाने वाली कंपनी भारत बायोटेक का भी मानना है कि ट्रायल पूरे होने में अक्टूबर तक का समय लग सकता है.

कोवैक्सिन. (फोटो साभार: फेसबुक/bharatbiotech)
कोवैक्सिन. (फोटो साभार: फेसबुक/bharatbiotech)

नई दिल्ली: भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) ने कोविड-19 का स्वदेशी वैक्सीन चिकित्सकीय उपयोग के लिए 15 अगस्त तक उपलब्ध कराने के मकसद से चुनिंदा चिकित्सकीय संस्थाओं और अस्पतालों से कहा है कि वे भारत बॉयोटेक के सहयोग से विकसित किए जा रहे संभावित टीके ‘कोवैक्सीन’ को परीक्षण के लिए मंजूरी देने की प्रक्रिया तेज करें.

मौजूदा समय में क्लीनिकल परीक्षण के लिए 12 स्थलों की पहचान की गई है और आईसीएमआर ने चिकित्सकीय संस्थाओं एवं प्रमुख जांचकर्ताओं से यह सुनिश्चित करने को कहा है कि विषय नामांकन सात जुलाई से पहले शुरू हो जाए.

भारत के पहले स्वदेशी संभावित कोविड-19 टीके ‘कोवैक्सीन’ को डीसीजीआई से मानव पर परीक्षण की बीते 29 जून को अनुमति मिली है.

‘कोवैक्सीन’ को हैदराबाद की कंपनी भारत बायोटेक ने भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) और राष्ट्रीय विषाणु विज्ञान संस्थान (एनआईवी) के साथ मिलकर विकसित किया है.

आईसीएआर के महानिदेशक डॉ. बलराम भार्गव ने 12 स्थलों के प्रमुख जांचकर्ताओं को लिखे पत्र में कोवैक्सीन के देश में विकसित पहला वैक्सीन होने का उल्लेख करते हुए कहा कि यह ‘शीर्ष प्राथमिकता वाली परियोजनाओं’ में शामिल है ‘जिसकी सरकार उच्चतम स्तर पर निगरानी कर रही है’.

भार्गव ने पत्र में लिखा, ‘सभी क्लीनिकल परीक्षणों के पूरा होने के बाद 15 अगस्त तक टीकों को चिकित्सकीय उपयोग के लिए उपलब्ध कराने का लक्ष्य रखा गया है. बीबीआईएल इस लक्ष्य को पूरा करने के लिए तेजी से काम कर रहा है लेकिन अंतिम परिणाम इस परियोजना में शामिल सभी क्लीनिकल परीक्षण स्थलों के सहयोग पर निर्भर करेगा.’

उन्होंने कहा, ‘बीबीवी-152 टीके के क्लीनिकल परीक्षण स्थल के तौर पर आपको चुना गया है. कोरोना वायरस वैश्विक महामारी के मद्देनजर जन स्वास्थ्य संबंधी आपात स्थिति के कारण आपको सलाह दी जाती है कि आप क्लीनिकल परीक्षण संबंधी सभी मंजूरियों की प्रक्रिया तेज करें और सुनिश्चित करें कि विषय नामांकन की प्रक्रिया सात जुलाई तक पूरी हो जाए.’

पत्र में चेतावनी दी गई है कि इसका पालन नहीं करने के मामले को गंभीरता से लिया जाएगा. पत्र की एक प्रति भारत बायोटेक को भेज दी गई है.

पत्र में कहा गया है, ‘कृपया गौर करें कि इसका पालन नहीं करने पर इसे गंभीरता से लिया जाएगा. इसलिए आपको सलाह दी जाती है कि इस परियोजना को शीर्ष प्राथमिकता के तौर पर लें और समय सीमा के तहत काम पूरा करें.’

अक्टूबर तक पूरा होगा ट्रायल: भारत बायोटेक

आईसीएमआर के दिशानिर्देश से अलग कोवैक्सीन का विकास करने वाली भारत बायोटेक खुद अक्टूबर से पहले वैक्सीन का ट्रायल पूरा करने से इनकार कर रही है.

इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार, कंपनी का कहना है कि पहले और दूसरे चरण का ट्रायल अक्टूबर तक ही हो पाएगा.

कंपनी ने कहा, ‘अक्टूबर 2020 तक पहले और दूसरे चरण में मिली सफलता के बाद हम बड़े पैमाने पर ट्रायल कर पाएंगे. इसके बाद विनियामक अनुमोदन प्राप्त करने पर लाइसेंस की समय सीमाएं निर्धारित की जाएंगी.’

बता दें कि कंपनी को अभी तक पहले और दूसरे चरण का ट्रायल करने की मंजूरी मिली है जबकि बड़े पैमाने के ट्रायल तीसरे चरण में किए जाते हैं.

पहले चरण में कुछ दर्जन लोगों पर शरीर में वैक्सीन की सुरक्षा की जांच की जाती है. वहीं, दूसरे चरण में वैज्ञानिक यह पता लगाने की कोशिश करते हैं कि क्या वैक्सीन मनमुताबिक प्रतिक्रिया दे रहा है.

दूसरे चरण के लिए सैकड़ों वालंटियर चाहिए होते हैं जिसमें महीनों लग सकते हैं.

वास्तव में सभी क्लीनिकल ट्रायल के आधिकारिक ऑनलाइन केंद्र क्लीनिकल ट्रायल्स रजिस्ट्री पर दिया गया है कि क्लीनिकल ट्रायल्स के लिए कोवैक्सीन के पास 15 महीने हैं.

इसमें कहा गया है कि दो चरणों में ट्रायल का मूल्यांकन 14, 28, 104 और 194 दिन पर किया जाएगा.

वहीं, आईसीएमआर द्वारा चुने गए 12 में से छह अस्पतालों के संस्थागत नैतिकता समितियों द्वारा पहले और दूसरे चरण के ट्रायलों को मंजूरी दिया जाना बाकी है.

ट्रायल शुरू किए जाने से पहले इस मंजूरी की अनिवार्य आवश्यकता होती है. जिन छह अस्पतालों ने पहले और दूसरे चरण के ट्रायल को मंजूरी दी है, वे गोवा, गोरखपुर, बेल्गावी, रोहतक और कानपुर के कम जाने-पहचाने अस्पताल हैं.

वहीं, जिन छह अस्पतालों से मंजूरी मिल चुकी है उनमें एम्स, दिल्ली और एम्स पटना शामिल हैं.

समयसीमा निर्धारित करने और जल्दबादी पर वैज्ञानिकों ने जताई चिंता

वहीं, आईसीएमआर द्वारा वैक्सीन के लिए समयसीमा निर्धारित किए जाने पर डॉक्टरों और वैज्ञानिकों ने भी आश्चर्य जताया है. पत्र के लहजे और जल्दबाजी के संकेत से कुछ वैज्ञानिक चिंतित हैं.

उन्होंने पत्र में निर्धारित समयसीमा पर सवाल उठाया है और टीके के विकास प्रक्रिया को छोटा न करने की सलाह दी.

एम्स निदेशक डॉ. रणदीप गुलेरिया ने कहा, ‘वैक्सीन की प्रभावशीलता और सुरक्षा दोनों को ध्यान में रखते हुए यह एक बहुत ही चुनौतीपूर्ण और कठिन काम होगा. इसके अलावा अगर हमें मनमुताबिक परिणाम मिलते हैं तो दूसरी चुनौती वैक्सीन के बड़े पैमाने पर उत्पादन की प्रक्रिया है.’

वायरस मामलों के जानकार और भारत में स्वास्थ्य अनुसंधान के लिए फंड देने वाली संस्था वेलकम ट्रस्ट-डीबीटी अलायंस के मुख्य कार्यकारी शहीद जमाल ने 15 अगस्त की समयसीमा को बेतुका कहा है.

उन्होंने कहा, ‘मुझे डर है कि इसके लिए वैश्विक वैज्ञानिक समुदाय हम पर हंस रहा होगा. ऐसा नहीं होना चाहिए था. भारत विज्ञान के क्षेत्र में एक गंभीर देश है. अगर हम इस तरह का व्यवहार करेंगे तो कौन हम पर भरोसा करेगा? अगर हम वास्तव में कल एक अच्छा वैक्सीन लेकर आएं तो भी हम पर विश्वास करने वाला कौन करेगा? पत्र में जिस तरह की भाषा का इस्तेमाल किया गया है, उससे मैं स्तब्ध हूं. यह कोई पत्र नहीं है, यह एक धमकी की तरह है.’

विषाणु वैज्ञानिक उपासना राय ने कहा कोरोनो वायरस के खिलाफ वैक्सीन लॉन्च की प्रक्रिया को गति देना या जल्द लॉन्च करने का वादा करना प्रशंसा के योग्य है, लेकिन यह सवाल महत्वपूर्ण है कि क्या ‘हम बहुत ज्यादा जल्दबाजी कर रहे हैं.’

सीआईएसआर-आईआईसीबी कोलकाता में वरिष्ठ वैज्ञानिक रे ने से कहा, ‘हमें सावधानी से आगे बढ़ना चाहिए. इस परियोजना को उच्च प्राथमिकता देना नितांत आवश्यक है. हालांकि, अतिरिक्त दबाव जरूरी नहीं कि जनता के लिए सकारात्मक उत्पाद दे.’

विषाणु रोग विशेषज्ञ सत्यजीत रथ ने कहा, ‘आईसीएमआर के पत्र का लहजा और सामग्री उत्पाद के विकास की प्रक्रिया और तकनीकी रूप से व्यावहरिकता के आधार पर अनुचित है.’

उन्होंने कहा कि वैक्सीन का विकास बहु चरणीय प्रक्रिया है. पहले चरण में छोटे स्तर पर परीक्षण होता है जिसमें बहुत कम संख्या में प्रतिभागी होते और यह आकलन किया जाता है कि क्या वैक्सीन इंसानों के लिए सुरक्षित है या नहीं.

उन्होंने कहा कि दूसरे चरण में सैकड़ों लोग हिस्सा लेते हैं और इस चरण में संभावित टीके के प्रभाव का आकलन किया जाता है.

उन्होंने कहा कि अंतिम चरण में हजारों लोगों को शामिल किया जाता है और देखा जाता है कि निर्धारित समय में क्या वैक्सीन प्रभावी है या नहीं और यह कई महीनों तक चलता है.

रे ने कहा कि टीके को विभिन्न चिकित्सकीय चरणों को पूरा करने में कम से कम 12 से 18 महीने का समय लगता है.

उन्होंने कहा, ‘आज से 15 अगस्त में कंपनी के पास टीके के विकास के लिए जरूरी प्रक्रिया पूरी करने के लिए मात्र एक महीने का समय है.’

रे कहते हैं, ‘कैसे इतनी छोटी से अवधि निर्धारित की जा सकती है? कहा से यह सबूत मिला कि इस पूरी प्रक्रिया को पूरा करने के लिए यह अवधि पर्याप्त है? संभावित टीके की सुरक्षा और प्रभाव का क्या जो किसी भी दवा के विकसित करने का मौलिक चरण है? क्या प्री-क्लीनिकल अध्ययन भी पूरा किया गया? बहुत जल्दबाजी करने से खतरा पैदा हो सकता है.’

उन्होंने कहा कि महत्वपूर्ण चरणों को छोड़ना या तो खतरनाक हो सकता है या उत्पाद की गुणवत्ता खराब हो सकती है.

रे ने आगे बताया, ‘हमें मानकों और गुणवत्ता से समझौता नहीं करना चाहिए. हमें सबसे पहले वैक्सीन लॉन्च करने की जरूरत नहीं है बल्कि हमें मेड इन इंडिया वैक्सीन बनाने की जरूरत है जिसपर पूरी दुनिया भरोसा कर सके.’

विपक्ष ने आईसीएमआर के फैसले पर कहा- प्रधानमंत्री को खुश करने का प्रयास

माकपा महासचिव सीताराम येचुरी ने शनिवार को आरोप लगाया कि आईसीएमआर कोरोना वायरस का वैक्सीन बनाने की प्रक्रिया तेज करने की कोशिश कर रही है, ताकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी स्वतंत्रता दिवस पर इसके संबंध में घोषणा कर सकें.

उन्होंने कहा कि वैज्ञानिक अनुसंधान ‘आदेश के अनुसार’ नहीं किया जा सकता.

आईसीएमआर ने कोविड-19 का स्वदेशी वैक्सीन चिकित्सकीय उपयोग के लिए 15 अगस्त तक उपलब्ध कराने के मकसद से चुनिंदा चिकित्सकीय संस्थाओं और अस्पतालों से कहा है कि वे भारत बॉयोटेक के सहयोग से विकसित किए जा रहे संभावित टीके ‘कोवैक्सीन’ को परीक्षण के लिए मंजूरी देने की प्रक्रिया तेज करें.

आईसीएमआर ने कहा, ‘हमारी प्रक्रिया विश्व स्तर पर स्वीकृत मानदंडों के अनुसार, कोरोना महामारी की रोकथाम के लिए तेजी से वैक्सीन विकसित करने के लिए है, जिसका मानव और पशुओं पर समान रूप से परीक्षण किया जा सके.’

उसने आगे कहा, ‘बड़े सार्वजनिक स्वास्थ्य के हित में आईसीएमआर के लिए एक महत्वपूर्ण स्वदेशी वैक्सीन के साथ नैदानिक परीक्षणों में तेजी लाना महत्वपूर्ण है. कोविड-19 महामारी की अभूतपूर्व प्रकृति का सामना करते हुए दुनिया भर में अन्य सभी वैक्सीन उम्मीदवारों को समान रूप से तेजी लाने के लिए कहा गया है.’

मानव परीक्षण की मंजूरी पाने वाली जायडस ने भी कहा- तीन महीने में पूरा होगा ट्रायल

भारत बायोटेक के कोवैक्सीन के बाद कैडिला हेल्थकेयर समूह की कंपनी जायडस को कोविड-19 के स्वदेशी रूप से विकसित संभावित टीके का मानव परीक्षण करने की घरेलू प्राधिकरणों से मंजूरी मिल गई है.

हालांकि, कोवैक्सीन की तरह उसने भी तीन महीने में ट्रायल पूरा करने की बात कही है. दवा बनाने वाली कंपनी ने शुक्रवार को कहा कि उसके द्वारा विकसित टीके जायकोव-डी का प्री-क्लीनिकल परीक्षण पूरा हो गया है.

इसके बाद उसे केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन (सीडीएससीओ) के भारत के औषधि महानियंत्रक (डीजीसीआई) से इसके मानव परीक्षण की मंजूरी मिल गयी है.

कंपनी ने कहा कि वह परीक्षण के लिए संभावित टीके की पर्याप्त मात्रा का उत्पादन पहले ही कर चुकी है. कंपनी जुलाई में ही नव परीक्षण शुरू करेगी.

कंपनी की योजना देश के विभिन्न शहरों में एक हजार से अधिक लोगों के ऊपर इस टीके का परीक्षण करने की है.

कैडिला हेल्थकेयर ने बताया, ‘जायकोव-डी’ को अहमदाबाद स्थित उसके वैक्सीन प्रौद्योगिकी केंद्र में विकसित किया गया है. चूहे, सुअर और खरगोश जैसे पशुओं पर किए गए परीक्षण में इस टीके को प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिहाज से काफी मजबूत पाया गया है.’

कंपनी ने आगे कहा, ‘इस टीके ने जिन प्रतिरक्षक पदार्थों (एंटीबॉडीज) का सृजन किया, वे ‘वाइल्ड टाइप वायरस’ को पूरी तरह से नियंत्रित कर पा रहे थे. यह इसे कोरोना वायरस के लिए संभावित टीकों का प्रबल दावेदार बनाता है.

वायरस के उन स्वरूपों को ‘वाइल्ड टाइप वायरस’ कहा जाता है, जिनके डीएनए में म्यूटेशन के बाद बदलाव नहीं आया हो.

कंपनी ने कहा कि इस टीके का मांसपेशियों तथा नसों दोनों तरीकों से बार-बार प्रयोग करने के बाद भी सुरक्षा के लिहाज से कोई समस्या उत्पन्न नहीं हुई.  खरगोशों पर किए गए परीक्षण में इस टीके की उस मात्रा के तीन गुना को सुरक्षित पाया गया, जितनी मात्रा का इस्तेमाल मानव पर करने की योजना है.

जायडस कैडिला के चेयरमैन पंकज आर. पटेल ने इंडियन एक्सप्रेस से कहा, पहले और दूसरे चरण का ट्रायल पूरा करने के लिए हमें लगभग तीन महीने लगेंगे. इसके बाद हम डीसीजीआई से संपर्क करेंगे.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)